जब भारत के पास 20 देशों को मिटाने की ताकत है तो हथियारों की कमीं कहाँ है, इतना बड़ा युद्ध होने की संभावना ही नहीं है और अगर हुआ तो भारत के साथ साथ चीन और पाकिस्तान का भी नामो निशान मिट जाएगा, भारत, चीन और पाकिस्तान के पास परमाणु बम हैं, बड़ी बड़ी मिसाइलें हैं, फाइटर प्लेन है। इतना सब कुछ होते हुए युद्ध भण्डार की कमीं कैसे हो गयी और अगर हो भी गयी तो 20 दिन के अन्दर हथियार खरीद लिए जाएंगे। आखिर पहले से एक साल का युद्ध भंडार क्यों इकठ्ठा किया जाए।
सोशल मीडिया पर CAG के इस रिपोर्ट की खूब बखिया उधेडी जा रही है, लोग कह रहे हैं कि अगर युद्ध हुआ तो भारत 10 दिन में ही चीन और पाकिस्तान को मिटाकर खुद भी मिट जाएगा, भारत के पास इतनी युद्ध सामग्री है जिसके जरिये 20 देशों को ख़त्म कर सकता है।
लोग समझ गए हैं कि CAG ने यह रिपोर्ट दुनिया में भारत को नीचा दिखाने और कांग्रेस पार्टी को मोदी सरकार के खिलाफ मुद्दा देने के लिए जारी की गयी है, वर्तनाम CAG को कांग्रेस सरकार ने ही नियुक्त किया था इसलिए उनकी चमचागिरी करने के लिए देश का सिर्फ नीचा किया गया है।
CAG ने क्यों कहा ऐसा, देश के खिलाफ क्या हो रही साजिश
जुलाई 22 को CAG के शशी कान्त शर्मा ने एकाएक एक रिपोर्ट जारी कर दी, जिसमें उन्होंने कहा कि भारतीय सेना के पास सिर्फ 20 दिनों की युद्ध सामग्री है। अब आप सोचिये, CAG की इस रिपोर्ट से किसका फायदा हुआ, जाहिर है कांग्रेस पार्टी का फायदा हुआ है, ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस को मोदी सरकार के खिलाफ बोलने का मौका मिल गया है। अब आप समझ गए होंगे कि CAG ने यह रिपोर्ट क्यों जारी की और बॉर्डर पर तनाव के समय यह रिपोर्ट मीडिया में कैसे लीक हो गयी।
इस समय इस रिपोर्ट की जरूरत नहीं थी क्योंकि 20 दिन की रक्षा सामाग्री बहुत होती है, युद्ध शुरू होने पर हथियार और गोला बारूद किसी भी देश से खरीदा जा सकता हैं, सिर्फ एक हप्ते में युद्ध सामग्री खरीदकर उसका इस्तेमाल किया जा सकता है और करना भी चाहिए क्योंकि कोई भी देश एक साल के लिए युद्ध सामग्री और गोला बारूद का भण्डार करके नहीं रखता क्योंकि इसके लिए बहुत पैसा खर्च होता है और युद्ध ना होने की स्थिति में गोला बारूद खराब हो जाता है।
प्रश्न है कि CAG ने इसी समय यह रिपोर्ट क्यों जारी की? दरअसल CAG शशी कान्त शर्मा को 2013 में कांग्रेस सरकार ने ही नियुक्त किया था, उसके पहले वे कांग्रेस सरकार में भारत के रक्षा सचिव थे. कांग्रेस की इतनी नजदीकी का लाभ तो उन्हें मिलना ही था, अब CAG शशी कान्त शर्मा ने जान बूझकर कांग्रेस को मोदी सरकार के खिलाफ मुद्दा देने के लिए हथियारों की कमीं की रिपोर्ट जारी कर दी और दिन भर अफजल गैंग और कांग्रेसियों ने मिलकर मोदी सरकार की जमकर बैंड बजाई।
अब सिक्के का दूसरा पहलू समझिये, प्रधानमंत्री मोदी हाल ही में इजरायल गए थे, अगर वहां पर युद्ध सामग्री की खरीद पर कोई डील होती तो यही कांग्रेस और अफजल गैंग मीडिया वाले मोदी सरकार का यह कहकर जीना हराम कर देते कि यह सरकार पगला गयी है, युद्ध की तैयारी कर रही है, हथियार और गोला बारूद खरीदे जा रहे हैं, पड़ोसी देशों से दोस्ती करने के बजाय दुश्मनी की जा रही है।
मतलब मोदी सरकार को हर तरफ से मार खानी है, अगर हथियार खरीदते हैं तो भी उन्हें बुरा कहा जाता है, अगर 1 साल के लिए युद्ध सामग्री खरीदकर रख दें तो भी उन्हें बुरा बताया जाएगा और अगर 20 दिन की युद्ध सामग्री है तो भी उन्हें बुरा भला कहा जा रहा है। वैसे 20 दिन की युद्ध सामग्री बहुत होती है, अगर भारत चाहें तो हथियारों और मिसाइलों से सिर्फ 10 दिन में चीन और पाकिस्तान को ख़त्म कर सकता है।
क्या कहा था CAG ने
CAG ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि युद्ध की हालत में भारत के पास सिर्फ 20 दिनों की युद्ध सामग्री है। भारतीय सेना के पास युद्ध सामग्री की भारी कमी है, 150 तरह के हथियारों में से 60 तरह के हथियारों की कमी है।
समस्त दलों को एकजुट होने की आवश्यकता
सत्ता के गलियारों में अब यह चर्चा भी बहुत जोरों पर है कि क्या CAG में भारत विरोधी विराजमान है, क्योकि 1965 और 71 में भारत-पाक युद्ध जब अपने चरम पर था, तब भी इसी तरह की रपट ने सरकार को युद्ध विराम के लिए मजबूर होना पड़ा था। यदि इन इन दोनों सूचनाओं को सत्य माना जाने पर यह शंका होती है कि क्या सरकार और सेना का मनोबल तोड़ने जयचंद उच्च पदों पर विराजमान हैं? क्या किसी युद्ध में कूदने पूर्व क्या केन्द्र सरकार, रक्षा मंत्रालय, या तीनों सेना प्रमुखों को ज्ञान नहीं होता कि हमारे पास कितनी सामग्री है? या इस तरह के बयान देकर केन्द्र सरकार से सच्चाई कबुलवा कर दुश्मन को सचेत करने की मंशा तो नहीं? यह बहुत ही गम्भीर विषय है, जिस पर सत्ता और विपक्ष को एक छत के नीचे बैठ निस्संकोच चिंतन कर, कोई हल निकालना चाहिए। क्योकि यह सत्ता की लड़ाई नहीं, देश की सुरक्षा एवं आन, बान और शान की बात है। देश की प्रतिष्ठा की बात है, स्वाभिमान की बात है। सत्ता पक्ष से लड़ने के लिए अन्य अनेकों मुद्दे हो सकते है, लेकिन यह मुद्दा देश की प्रतिष्ठा का है। और इस मुद्दे पर समस्त पार्टियों को बैठ सुलझाना होगा।
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