भूली बिसरी यादें : इतिहास के धूमिल पृष्ठों से
भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 6 जुलाई को जयन्ती होती हैं. 6 जुलाई सन् 1901 को कोलकाता में जन्मे श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को भारतीय राजनीति में उनके कई अहम योगदानों के लिए हमेशा ही याद रखा जाता है। इन्ही में से श्यामा प्रसाद मुख़र्जी का एक अहम कदम था कश्मीर मुद्दे पर उनका सुझाया हल जिसके बाद नेहरु सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार ने उन्हें मौत का इनाम दे डाला था। श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की मौत के ठीक बाद ही देश के उस समय के तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने नम आखों से श्यामा प्रसाद मुख़र्जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया था कि, ” वो (श्यामाप्रसाद मुख़र्जी) अपने सार्वजनिक जीवन में अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को व्यक्त करने से कभी भी डरे नहीं थे.”
केवल 33 साल की उम्र में कोलकाता यूनिवर्सिटी के वीसी बने थे श्यामा प्रसाद मुख़र्जी
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी के पिता सर आशुतोष मुख़र्जी खुद हाईकोर्ट के जज और शिक्षाविद् हुआ करते थे। श्यामा प्रसाद मुख़र्जी के पिता के बारे में कहा जाता था कि वो बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। बाद में श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी इसी विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बने। कहा जाता है कि भारतीय जनता पार्टी खुद को भारतीय जनसंघ का उत्तराधिकारी मानती थी। 1951 में जनसंघ की स्थापना डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी जिसके बाद 1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया।
पाकिस्तान समझौते के विरोध में दिया था मंत्री पद से इस्तीफा
जानिए क्या था वो पाकिस्तान समझौता
आखिर ऐसा क्या समझौता था जिसके चलते श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को ये कदम उठाना पड़ा? अप्रैल 1950 में मुखर्जी ने नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के बीच दोनों देशों के अल्पसंख्यकों को लेकर नेहरू-लियाकत समझौते के विरोध में मंत्री पद से इस्तीफा दिया था। इस समझौते के तहत दोनों देश इस बात पर सहमत हुए थे कि अब शरणार्थियों की लूटी हुई संपत्ति वापिस की जाएगी और साथ ही जबरन धर्म परिवर्तन पर भी रोक लगायी जाएगी।
एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेगा का दिया था नारा
आजादी के समय जम्मू कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान हुआ करता था. वहां के मुख्यमंत्री को भी प्रधानमंत्री कहा जाता था. धारा 370 लागू होने से कश्मीर में बगैर परमीट के कोई दाखिल नहीं हो सकता था। इस परमिट का विरोध करते हुए डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा कि एक देश में दो विधान, दो निशान, दो प्रधान नहीं चलेगा. उस वक़्त कश्मीर में जाने के लिए भारतीय नागरिकों को पहचान पत्र दिखाना पड़ता था. जिस बात का भी श्यामाप्रसाद मुख़र्जी ने पुरजोर विरोध किया था. वो डॉ. श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ही थे जिन्होंने पांच मई को “कश्मीर दिवस” मनाने की घोषणा की थी।
उस समय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में यह प्रावधान किया गया था कि कोई भी भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू-कश्मीर की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकता लेकिन डॉ. मुखर्जी इस प्रावधान के सख्त खिलाफ थे। उनका कहना था कि, “नेहरू जी ने ही ये बार-बार ऐलान किया है कि जम्मू व कश्मीर राज्य का भारत में 100% विलय हो चुका है, फिर भी यह देखकर हैरानी होती है कि इस राज्य में कोई भारत सरकार से परमिट लिए बिना दाखिल नहीं हो सकता. मैं नही समझता कि भारत सरकार को यह हक़ है कि वह किसी को भी भारतीय संघ के किसी हिस्से में जाने से रोक सके क्योंकि खुद नेहरू ऐसा कहते हैं कि इस संघ में जम्मू व कश्मीर भी शामिल है.”
यूँ तो लोग श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की मौत को रहस्य मानते हैं लेकिन सच्चाई इससे उलट है
हालाँकि इस मुद्दे में सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये सामने आई कि श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को न तो अमृतसर में, न पठानकोट में और न ही रास्ते में कहीं और गिरफ्तार किया गया बल्कि अमृतसर स्टेशन पर करीब 20000 लोग डॉ.मुख़र्जी के स्वागत के लिए मौजूद थे। जिसके बाद 11 मई को वो कश्मीर पहुंच भी गए लेकिन डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जम्मू-कश्मीर में बिना परमिट के आते हुए हिरासत में ले लिया गया था। जिसके बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनके साथियों के संग हिरासत में लेकर और श्रीनगर में रखा गया।
लेकिन यहाँ बड़ा सवाल ये उठता है कि अगर सुरक्षा और शांति भंग होने के डर से सरकार पहले ही अवगत थी तो आखिरकार उन्हें जम्मू व कश्मीर के सीमा में प्रवेश करने से पहले ही क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया ? उन्हें पठानकोट या उससे पहले ही गिरफ्तार किए जाने की योजना क्यों बदल दी गई? उन्हें आगे बढ़ने ही क्यों दिया गया? श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को हिरासत में लेने से जुड़े ये कुछ ऐसे सवाल है। जिनका अभी तक कोई उत्तर नहीं मिला है।
23 जून, 1953 को हिरासत में उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। यूँ तो श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की मौत सुनने में ही रहस्यमयी लगती है लेकिन डॉ मुख़र्जी की मौत के बाद जवाहरलाल नेहरु ने श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की मां योगमाया के एक पत्र के जवाब में कहा था कि ‘मैं इसी सच्चे और स्पष्ट निर्णय पर पहुंचा हूं कि इस घटना में कोई रहस्य नहीं है।
डॉ के कहने पर नर्स ने दिया था एक इंजेक्शन जिसके बाद कभी नहीं उठे श्यामा प्रसाद
बताया जाता है कि श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को हिरासत के बाद जहाँ बंदी बनाया गया था वो एक छोटा सा मकान था। उन्ही के बगल के कमरों में उनके दो साथी गुरुदत्त वैध और टेकचंद को रखा गया था। श्यामा प्रसाद की मौत से जुड़ा एक बड़ा खुलासा उस वक़्त भी हुआ था जब उनके अंतिम दिनों में हर पल उनके साथ मौजूद रहने वाली नर्स ने बताया था कि अपने डॉक्टर के कहने पर मैंने उन्हें एक इंजेक्शन दिया था जिसके बाद वो तड़पे और हमेशा के लिए सो गए थे।
नर्स ने बताया था कि,
जब डॉ मुखर्जी सो रहे थे तो डॉक्टर ने जाते-जाते मुझसे ये कहा था कि, ‘डॉ मुखर्जी जागें तो उन्हें इंजेक्शन दे दिया जाए और उसके लिए उसने एम्प्यूल नर्स के पास छोड़ दिया.’ जब श्यामा प्रसाद मुख़र्जी होश में आये तो उन्हें इंजेक्शन दे दिया गया। जब श्यामा प्रसाद मुख़र्जी को इंजेक्शन दिया गया तो वो दर्द से उछल पड़े और पूरी ताकत से चीखे, ‘जल जाता है, हमको जल रहा है.’ नर्स टेलीफोन की तरफ दौड़ी ताकि डॉक्टर से कुछ सलाह ले सके परन्तु तब तक वह मूर्छित हो चुके थे और शायद सदा के लिए मौत की नींद में सो चुके थे।श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने खुद जताई थी अपनी हत्या की आशंका
हम यहाँ आपको ये भी बता दें कि यूँ तो पंडित नेहरु ने श्यामाप्रसाद मुख़र्जी की मौत में कुछ भी रहस्यमय नहीं पाया लेकिन डॉ. मुखर्जी ने खुद अपनी हत्या की आशंका जताई थी। डॉ परसादीलाल की मानें तो जम्मू कश्मीर जाने से पहले दिल्ली में उनकी डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी से मुलाकात हुई थी और इसी दौरान डॉ श्याम प्रसाद मुखर्जी ने अपनी हत्या का अंदेशा जताया था. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि जम्मू कश्मीर में उनकी हत्या कराई जा सकती है.
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने खुद जताई थी अपनी हत्या की आशंका
अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था ये बड़ा खुलासा
श्यामाप्रसाद मुख़र्जी की मौत पर एक बड़ा बयान देते हुए बीजेपी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने 2004 जुलाई में कहा था कि, “श्यामाप्रसाद मुख़र्जी की मौत प्राकृतिक नहीं बल्कि इसमें नेहरु सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार का बड़ा हाथ था|” श्यामाप्रसाद मुख़र्जी के बारे में बताते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में प्रवेश के लिए ली जाने वाली परमिट को हटाने के लिए श्यामाप्रसाद मुख़र्जी ने काफी बलिदान दिया था. हालाँकि इस संघर्ष में उनकी मौत ज़रूर हो गयी लेकिन उनका बलिदान बर्बाद नहीं गया।
23 जून 1953 को कारावास में ही उनकी मौत हो गयी थी लेकिन श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत के बाद भारतीयों नागरिकों के कश्मीर में प्रवेश के लिए पहचान पत्र दिखाने का कानून खत्म हो गया था। हां लेकिन जम्मू-कश्मीर का मुद्दा अभी भी कमोबेश उसी स्थिति में बना हुआ है।
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