सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने २७ जून को हाल ही में भीड़ द्वारा ‘‘पीट पीटकर हत्याओं’’ की घटनाओं के विरोध में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार पुरस्कार वापस कर दिया। जिसके बाद भाजपा ने उनपर तंज कसना शुरु कर दिया है। भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य प्रीति गांधी ने अपने ट्विटर हैंडल पर कमेंट्री अंदाज में लिखा और ये धमाके के साथ एक बार फिर वापस आया अवॉर्ड वापसी गैंग, इस बार इस गैंग का मुखिया कोई और नहीं शबनम हाशमी हैं। वहीं प्रीति के इस ट्वीट के बाद अभिनेता और राजनेता परेश रावल ने भी ट्वीट कर शबनम हाशमी पर निशाना साधा।
दोनों भाजपा नेताओं के इन ट्वीट पर लोग अपनी प्रतिक्रियाएं देते हुए शबनम पर निशाना साध रहे हैं। प्रीति के पोस्ट पर जवाब देते हुए एक ने लिखा बेशर्म महिला जिसे उसके भाइयों और रिश्तेदारों द्वारा हिंदुओं और कश्मीरी पुलिस की हत्या किए जाने का कोई दर्द महसूस नहीं होता। एक ने लिखा कि, अगर २०१९ में मोदी जी फिर से प्रधानमंत्री बन गए तो ऐसे लोगों को रात में नींद भी नहीं आएगी। एक ने लिखा ये तो हम भूल ही गए कि इनके भाई की कांग्रेसी गुड़ों द्वारा हत्या कर दी गई थी और इन्होंने यह अवॉर्ड उसी कांग्रेस सरकार से प्राप्त किया था।
वहीं परेश रावल के ट्वीट पर एक यूजर ने लिखा इन गैंग मेंमबर्स को एक बात याद दिला दूं कि, अवॉर्ड के साथ बाकी की चीजें जैसे गाड़ी, ट्रेन और फ्लाइट के टिकट वापस करना मत भूलना। एक ने लिखा अच्छा है ले लो इन निकम्मों से अवॉर्ड वापस और ऐसे लोगों को दो जो इन अवॉर्ड के असली हकदार हैं।
शबनम हाशमी ने लौटाया राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार पुरस्कार
वर्ष २००८ में इस पुरस्कार से सम्मानित शबनम ने अवॉर्ड वापस करते समय कहा था कि, यह पुरस्कार देने वाला राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ‘‘अपनी पूरी विश्वसनीयता खो चुका है।’’ उन्होंने आयोग के प्रमुख पर उनके ‘निंदनीय बयानों’’ को लेकर निशाना साधा। आयोग प्रमुख गयोरूल हसन रिजवी हाल में उस समय विवादों में फंस गये थे जब उन्होंने कहा था कि भारत के खिलाफ चैंपियंस ट्राफी में पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाने वालों को पाकिस्तान ‘‘भेजा जाना’’ चाहिए। शबनम ने आयोग को लिखे पत्र में कहा, ‘‘मैं अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों पर हमले और हत्याओं एवं सरकार द्वारा पूरी तरह से निष्क्रियता, उदासीनता और हिंसक गिरोहों को मौन समर्थन के विरोध में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार पुरस्कार वापस करती हूं, जो अपनी पूरी विश्वसनीयता खो चुका है।’’
सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने मंगलवार को हाल में भीड़ द्वारा ‘पीट-पीटकर हत्या’ की घटनाओं के विरोध में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार पुरस्कार वापस कर दिया। इस तरह की ताजा घटना राष्ट्रीय राजधानी के पास की है, जिसमें जुनैद नाम के एक मुस्लिम किशोर की मौत हो गई। वर्ष २००८ में इस पुरस्कार से सम्मानित शबनम ने कहा कि यह पुरस्कार देने वाला राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अपनी पूरी विश्वसनीयता खो चुका है। उन्होंने आयोग के प्रमुख पर उनके बयानों को लेकर निशाना साधा।
आयोग प्रमुख गयोरुल हसन रिजवी हाल में उस समय विवादों में आ गए थे जब उन्होंने कहा था कि, भारत के विरुद्ध चैंपियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाने वालों को पाकिस्तान भेजा जाना चाहिए। शबनम ने आयोग को लिखे पत्र में कहा, ‘मैं अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों पर हमले, हत्याओं और सरकार द्वारा पूरी तरह से निष्क्रियता, उदासीनता और हिंसक गिरोहों को मौन समर्थन के विरोध में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार पुरस्कार वापस करती हूं, जो अपनी पूरी विश्वसनीयता खो चुका है !’
इससे लगभग २ साल पहले कई लेखकों, फिल्म निर्माताओं और वैज्ञानिकों ने गोमांस की अफवाह को लेकर उत्तर प्रदेश में मोहम्मद अखलाक की पीट-पीटकर हत्या के बाद राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाए थे।
शबनम ने आयोग जाकर इसके निदेशक टी एम सकारिया को पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र लौटाया। शबनम ने कहा कि उन्होंने रिजवी से भी संपर्क करने का प्रयास किया, परंतु वह उपलब्ध नहीं थे। इस पुरस्कार में २०११ से पहले कोई नकद राशि नहीं मिलती थी। हालांकि २०११ में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने इसके साथ दो लाख रुपये (व्यक्ति) और पांच लाख रुपये नकद (संगठन) देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।
1976में समाजवाद और सेकुलरिज्म जो शब्द संविधान मे जोड़े गये उसे अब परिभाषित कर देना चाहिए, ताकि इसके मनमाने इस्तेमाल पर विराम लगे? सेकुलरिज्म शब्द का बहुत दुरुपयोग हुआ है। इसके चलते भारत की संस्कृति को बदलने के प्रयास होते रहे हैं। समाजवाद और धर्मनिर्पिछता दो अलग चीज है धर्म के आधार पर पच्छपात न हो तो उसे धर्मनिरपेक्षता कहेंगे और समाजवाद का मतलब एक ऐसे समता मूलक समाज की स्थापना है जिसमे जाति, धर्म आयु, लिंग भेद आदि किसी भी आधार पर भेदभाव न हो।
वास्तव में भीड़ द्वारा हत्या किए जाने के विरोध में विधवा विलाप करने वाले महात्मा गाँधी के असली भक्त हैं, जिसे निम्न लेख चरितार्थ कर रहा है :--
1945 का दोहराता इतिहास
इतना ही नहीं, इस सन्दर्भ में 1945 की एक घटना जिसके मेरे पिताश्री मगन बिहारी चश्मदीद गवाह है। जिसकी
पुष्टि इस वर्ष पड़ी बकरीद वाले दिन महात्मा गाँधी के प्रवचन सुनकर किया जा सकता है। उन दिनों गाँधी के रोज़ शाम को रेडियो पर पंचकुइया रोड,नई दिल्ली स्थित प्रेम नाथ मोटर्स के सामने बाल्मीकि मंदिर से प्रसारित होता था। उस वर्ष तक हर बकरीद पर दिल्ली के सदर बाजार में गौ काटने के कारण दंगा होता था। पिताश्री करोल बाग़ चाचाजी की ससुराल से आ रहे थे, कि झंडेवालान मंदिर के निकट उनको आगे बढ़ने से रोक दिया गया, कारण पूछने पर मालूम हुआ कि आज लोटन पहलवान ने गौ हत्यारों को छटी का दूध याद करवा दिया। और पुलिस ने जख्मी हालत में उसे गिरफ्तार कर ला रही है। उस दिन ज़िंदगी में पहली और आखिरी बार पिताश्री ने लोटन पहलवान को देखा था। घर आकर मौहल्ले में सबको बताया। आशा थी, महात्मा गाँधी गौ-हत्या के रक्षक लोटन पहलवान का गुणगान करेंगे, दुर्भाग्य से महात्मा गाँधी आशा के विपरीत बोले : "आज सब कुछ ठीक रहा, पुलिस ने एक दंगाई को गिरफ्तार कर लिया", समस्त मौहल्ला गाँधी की वाणी सुन सन्न रह गए। यानि महात्मा गाँधी जो गौ-हत्या के विरोधी केवल शब्दों में थे, लेकिन हकीकत में कुछ और। खैर, लोटन के साहसिक कदम से हर साल बकरीद पर होने वाले दंगे तो बंद हो गए, लेकिन आज इतिहास पुनः दोहराया जा रहा है कि गौ-रक्षको को गुंडा बताया जा रहा है।
भारत में ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि अगर गैर-बीजेपी शासित राज्यों में 100 हिन्दू भी मार दिए जाँय तो कोई आवाज नहीं उठाता लेकिन अगर बीजेपी शासित राज्यों में एक भी मुस्लिम की हत्या हो जाती है तो मीडिया और विपक्षी पार्टियाँ मिलकर बवाल मचा देते हैं, हिन्दू मरते हैं तो ये ऑंखें बंद कर लेते हैं लेकिन जैसे ही ये देखते हैं कि किसी मुस्लिम की हत्या हुई है, मीडिया अपने TRP बढाने के लिए उछल कूद मचाने लगता है और राजनीतिक पार्टियों का पॉलिटिकल टूरिज्म शुरू हो जाता है.
अगर आप अखबार पढ़ते होंगे तो पता होगा, बंगाल और केरल जैसे राज्यों में हिन्दुओं, आरएसएस नेताओं, बीजेपी नेताओं को सरेआम मारा जा रहा है लेकिन मीडिया और राजनीतिक पार्टियों ने अपनी ऑंखें बंद कर रखी हैं. अब आप इनका दोगलापन देखिये, जब से बीजेपी शासित राज्य हरियाणा में आपसी जड़ाई में जुनैद की हत्या हुई है, तबसे मीडिया और राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर बवाल खड़ा कर दिया है. जुनैद की हत्या गलत है लेकिन इसे धर्म के आधार पर देखना गलत है.
हैरानी तो तब होती है जब सर्वोच्च पद पर बैठे राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी भी मीडिया और राजनीतिक पार्टियों के सुर में सुर मिलाते हुए इस मुद्दे पर बोलते हैं, कल राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी ने अपनी कांग्रेस पार्टी के एक कार्यक्रम में भीड़ द्वारा बढती हत्याओं पर चिंता जताई, चिंता जताना सही बात है लेकिन बंगाल और केरल की घटनाओं पर भी बोलना चाहिए, कश्मीर पर भी बोलना चाहिए था, कर्नाटक में प्रशांत पुजारी की हत्या पर भी बोलना चाहिए था, जब भी भीड़ द्वारा किसी की ह्त्या की जाए तो सबके लिए बोलना चाहिए, सिर्फ मुस्लिम देखकर नहीं बोलना चाहिए वरना बहुसंख्यक हिन्दुओं का सिस्टम से भरोसा उठते देर नहीं लगेगी.
अवलोकन करिए :--

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