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राजीव भाई ने एक बार शंकराचार्य जी को कहा कि ये तो बहुत बड़ी रकम है जो आप खर्च कर रहे है तो शंकराचार्य जी ने कहा कि राजीव भाई आपको मालूम है लोगो को इसाई बनाने के लिये हर साल 18000 करोड़ खर्च हो रहा है, मै तो उनको एक तिहाई भी खर्च नहीं कर रहा हूँ।
अब आप सोच रहे होंगे कि वो करते क्या है तो वो गरीब आदिवासी के लिये निशुल्क स्कूल चलाते है, और उन स्कूल में भर्ती होने पर उनको फिर से हिन्दू बनाते है, उनके लिये स्कूल के सभी खर्चे करते है, जैसे किताब, कॉपी, पेन्सिल, खाना पीना, कपडे । फीस भी वही भरते है, रहने के लिये हॉस्टल का खर्च भी शंकराचार्य जी का मठ करता है। और ऐसे उनके करीब 170 स्कूल तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश में चलते है जिनकी संख्या धीरे धीरे वो बढ़ा रहे है। उनके बहुत से हॉस्पिटल चलते है जहा पर गरीब आदिवासियों को निशुल्क चकित्सा दी जाती है ।
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दोस्तों उस वक़्त की कांग्रेस की सरकार चाहती थी कि ये सब बंद हो जाये क्योकि Christian Institutes को ये बर्दास्त नहीं, क्योकि शंकराचार्य जी उनके सामने खड़े है, अब आर-पार की लड़ाई हो रही है Christian Institutions का असर भारत में उसी दिन बढ़ाना शुरू हो गया था जिस दिन सोनिया गाँधी इस देश की सुपर प्राइम मिनिस्टर बनी थी। शंकराचार्य के इन कार्यो को रोकने के लिये तरह तरह से कोशिस चल रही है, एक तो सीधे सीधे उनके ऊपर चार्ज लगाओ और उनको जेल में डालो, चार्ज अप्रूव नहीं हुआ फिर में जेल में डालो। और जिनके ऊपर चार्ज अप्रूव हो गए है उनको कैबिनेट मिनिस्टर बनाकर बिठाओ। सिभु सोरेन ने 78 मर्डर किये है, 78 मुसलमानों को झारखण्ड में जिन्दा जला दिया था। सबुत है अपराध सिद्ध हुआ है, चार्ज भी प्रूव हुए है, लेकिन वो आजतक छुटा हुआ है क्योकि सरकार में मंत्री बनकर बैठा है और अगर सरकार उसे अरेस्ट करे तो केंद्र की सरकार गिरेगी तो सिभु सोरेन को मंत्री बनाओ और उसको सुरक्षा दो, ये सरकार कर रही है और शंकराचार्य जी जिनका अपराध अभी सिद्ध नहीं हुआ उनको जेल में भेजो, और पुरे देश में बदनामी करवाओ और टीवी वालो को भी पैसा देकर कई महीनो तक दिखवा, आजकल चले रहे लगभग सभी चैनल अमरीका या दुसरे देशो के है जिन्होंने 3 महीनो तक शंकराचार्य जी को बदनाम किया। सत्य बिलकुल उसके विपरीत है। शंकराचार्य जी के ऊपर एक भी चार्ज प्रूव नहीं होगा जब मामला सुप्रीम कोर्ट में जायेगा । सुप्रीम कोर्ट ने अभी अभी आर्डर दिया है कि तमिलनाडु में कोई निष्पक्ष न्याय नहीं मिलेगा एसलिये सभी मामले कर्नाटक में भेजे जाए, ये आर्डर आते ही जय ललिता को मिर्ची लग गई और वो परेशान हो गई, क्योकि उसे मालूम है कि किसी और अदालत में ये सिद्ध नहीं होगा। एक दिन सुप्रीम कोर्ट में शंकराचार्य जी का बेल एप्लीकेशन गया और उसी दिन स्वीकार हो गया और हाई कोर्ट ने बेल एप्लीकेशन रिजेक्ट कर दी थी क्योकि हाई कोर्ट जय ललिता के कण्ट्रोल में है, जय ललिता सोनिया गाँधी के कण्ट्रोल में है और सोनिया गाँधी चर्च के कण्ट्रोल में है।
भाई राजीव दीक्षित जी का ये व्याख्यान कांग्रेस सरकार के समय का है इस केस में शंकराचार्य जी पर कोई चार्ज सिद्ध नहीं हुआ था।
जयललिता ने 2001 में जब तमिलनाडु के मख्यमंत्री पद की शपथ ली तो कांची के शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती उनके आध्यात्मिक गुरू थे. चार साल बाद नवंबर में जयललिता ने पड़ोसी राज्य आंध्रप्रदेश के महबूबनगर में राज्य की पुलिस को भेजकर जयेन्द्र सरस्वती को गिरफ्तार कर चेन्नई बुला लिया.
यह गिरफ्तारी शाम के उस पहर की गई जब जयेन्द्र सरस्वती त्रिकाल संध्या पूजन करने की तैयारी कर रहे थे. अगले दिन से कार्तिक का महीना शुरू हो रहा था और शंकराचार्य को रातभर जागकर पूजा-पाठ करना था. लेकिन तमिलनाडु की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर एक खास हवाई जहाज से चेन्नई ले आए क्योंकि जयललिता का यही आदेश था.
जयललिता ने 2001 में जब तमिलनाडु के मख्यमंत्री पद की शपथ ली तो कांची के शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती उनके आध्यात्मिक गुरू थे. चार साल बाद नवंबर में जयललिता ने पड़ोसी राज्य आंध्रप्रदेश के महबूबनगर में राज्य की पुलिस को भेजकर जयेन्द्र सरस्वती को गिरफ्तार कर चेन्नई बुला लिया.
यह गिरफ्तारी शाम के उस पहर की गई जब जयेन्द्र सरस्वती त्रिकाल संध्या पूजन करने की तैयारी कर रहे थे. अगले दिन से कार्तिक का महीना शुरू हो रहा था और शंकराचार्य को रातभर जागकर पूजा-पाठ करना था. लेकिन तमिलनाडु की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर एक खास हवाई जहाज से चेन्नई ले आए क्योंकि जयललिता का यही आदेश था.
'तुम्हें पता है मैं कौन हूं? मुझे कुछ हो गया तो पूरा देश हिल उठेगा.'
जयललिता से गिरफ्तारी का आदेश लेकर पहुंचे पुलिस दल से जयेन्द्र सरस्वती ने कहा. लेकिन गिरफ्तारी की जिम्मेदारी लेकर आए पुलिस अफसर की कान में जूं तक नहीं रेंगी. कुछ ही पल में जयेन्द्र सरस्वती को भी समझ आ गया कि अब पुलिसबल के साथ जाने के सिवाए उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है. लिहाजा एक आखिरी कोशिश उन्होंने की-
'मुझे जयललिता से बात करनी है.'
तमिलनाडु की पुलिस कुछ देर शांत रही. जब जयेन्द्र सरस्वती की जयललिता से संपर्क साधने की कोशिश विफल हो गई तो वह अपनी पूजा बीच में छोड़कर जाने के लिए तैयार हो गए. विशेष विमान से चेन्नई पहुंचने के बाद तमिलनाडु पुलिस का बड़ा दस्ता एयरपोर्ट पर इंतजार कर रहा था. जहाज से उतरते ही उन्हें पुलिस की जीप में बैठने के लिए कहा गया.
'क्या मैं वीरप्पन हूं, जो पुलिस की गाड़ी में इस तरह बैठा कर ले जाया जाएगा?'
इस बयान के साथ ही जयेन्द्र सरस्वती का राजनीतिक सत्ता के प्रति सींचा हुआ भ्रम टूट रहा था. वह पुलिस की जीप में बैठ गए. बस एक उम्मीद बची थी कि उन्हें पूछताछ के लिए कांचिपुरम के उनके मठ ले जाया जाएगा. लेकिन पुलिस की जीप सीधे कांचीपुरम मजिस्ट्रेट के यहां रुकी. वहां एक आरोपी की तरह उनकी पेशी हुई और 15 दिन की न्यायिक हिरासत में वेल्लोर जेल भेज दिया गया. जेल में उन्हें एक सामान्य कैदी की तरह ढ़ाई बटा ढ़ाई की सेल में रखा गया.
दरअसल, जयेन्द्र सरस्वती की यह गिरफ्तारी एक कत्ल के सिलसिले में हुई थी. जयेन्द्र सरस्वती पर कत्ल के आरोप के साथ कत्ल की साजिश रचने का झूठा आरोप लगा कर गिरफ्तार करवा दिया सितंबर 2004 में कांची मठ के ही शंकरारामन का तीन मोटरसाइकिल पर सवार बदमाशों ने कत्ल कर दिया थ
हालांकि पूरा मामला इतना आसान नहीं था. राजनीतिक गलियारों और मठ के कर्मचारियों के बयान के मुताबिक जयललिता ने अपने आध्यात्मिक गुरू जयेन्द्र सरस्वती को महज इसलिए सलाखों के पीछे भेज दिया था क्योंकि जयललिता के कुछ नजदीकियों की नजर मठ की किसी जमीन पर थी. मठ उक्त जमीन पर अपना अस्पताल बनवाना चाहता था वहीं जयललिता के करीबी इस जमीन का अधिग्रहण कर अस्पताल का निर्माण कराना चाह रहे थे.
बहरहाल, खास बात यह है कि जयललिता के इस कदम का विरोध देश में किसी पार्टी ने नहीं किया. उनके धुर विरोधी डीएमके ने तमिलनाडु सरकार के फैसले के समर्थन में कहा कि कानून की नजर में सभी बराबर हैं. कांग्रेस ने पूरी तरह घटना को नजरअंदाज कर दिया. राष्ट्रपति रहे आर वेंकटरमन और मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन जयेन्द्र सरस्वती के भक्तों में थे लेकिन उन्होंने भी किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दी थी. महज, भारतीय जनता पार्टी, जिसने खाली विरोध किया और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ-साथ विश्व हिंदू परिषद ने तमिलनाडु सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए उन्हें रिहा करने की
जयललिता से गिरफ्तारी का आदेश लेकर पहुंचे पुलिस दल से जयेन्द्र सरस्वती ने कहा. लेकिन गिरफ्तारी की जिम्मेदारी लेकर आए पुलिस अफसर की कान में जूं तक नहीं रेंगी. कुछ ही पल में जयेन्द्र सरस्वती को भी समझ आ गया कि अब पुलिसबल के साथ जाने के सिवाए उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है. लिहाजा एक आखिरी कोशिश उन्होंने की-
'मुझे जयललिता से बात करनी है.'
तमिलनाडु की पुलिस कुछ देर शांत रही. जब जयेन्द्र सरस्वती की जयललिता से संपर्क साधने की कोशिश विफल हो गई तो वह अपनी पूजा बीच में छोड़कर जाने के लिए तैयार हो गए. विशेष विमान से चेन्नई पहुंचने के बाद तमिलनाडु पुलिस का बड़ा दस्ता एयरपोर्ट पर इंतजार कर रहा था. जहाज से उतरते ही उन्हें पुलिस की जीप में बैठने के लिए कहा गया.
'क्या मैं वीरप्पन हूं, जो पुलिस की गाड़ी में इस तरह बैठा कर ले जाया जाएगा?'
इस बयान के साथ ही जयेन्द्र सरस्वती का राजनीतिक सत्ता के प्रति सींचा हुआ भ्रम टूट रहा था. वह पुलिस की जीप में बैठ गए. बस एक उम्मीद बची थी कि उन्हें पूछताछ के लिए कांचिपुरम के उनके मठ ले जाया जाएगा. लेकिन पुलिस की जीप सीधे कांचीपुरम मजिस्ट्रेट के यहां रुकी. वहां एक आरोपी की तरह उनकी पेशी हुई और 15 दिन की न्यायिक हिरासत में वेल्लोर जेल भेज दिया गया. जेल में उन्हें एक सामान्य कैदी की तरह ढ़ाई बटा ढ़ाई की सेल में रखा गया.
दरअसल, जयेन्द्र सरस्वती की यह गिरफ्तारी एक कत्ल के सिलसिले में हुई थी. जयेन्द्र सरस्वती पर कत्ल के आरोप के साथ कत्ल की साजिश रचने का झूठा आरोप लगा कर गिरफ्तार करवा दिया सितंबर 2004 में कांची मठ के ही शंकरारामन का तीन मोटरसाइकिल पर सवार बदमाशों ने कत्ल कर दिया थ
हालांकि पूरा मामला इतना आसान नहीं था. राजनीतिक गलियारों और मठ के कर्मचारियों के बयान के मुताबिक जयललिता ने अपने आध्यात्मिक गुरू जयेन्द्र सरस्वती को महज इसलिए सलाखों के पीछे भेज दिया था क्योंकि जयललिता के कुछ नजदीकियों की नजर मठ की किसी जमीन पर थी. मठ उक्त जमीन पर अपना अस्पताल बनवाना चाहता था वहीं जयललिता के करीबी इस जमीन का अधिग्रहण कर अस्पताल का निर्माण कराना चाह रहे थे.
बहरहाल, खास बात यह है कि जयललिता के इस कदम का विरोध देश में किसी पार्टी ने नहीं किया. उनके धुर विरोधी डीएमके ने तमिलनाडु सरकार के फैसले के समर्थन में कहा कि कानून की नजर में सभी बराबर हैं. कांग्रेस ने पूरी तरह घटना को नजरअंदाज कर दिया. राष्ट्रपति रहे आर वेंकटरमन और मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन जयेन्द्र सरस्वती के भक्तों में थे लेकिन उन्होंने भी किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दी थी. महज, भारतीय जनता पार्टी, जिसने खाली विरोध किया और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ-साथ विश्व हिंदू परिषद ने तमिलनाडु सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए उन्हें रिहा करने की

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