पैर के निशान- यहां एक पैर का निशान भी है, जिसको लेकर अनेक मान्यताएं हैं। इस निशान को त्रेता युग का गवाह माना जाता है। कोई इसे राम का पैर तो कोई सीता के पैर का निशान मानते हैं। बताते हैं कि ये वही स्थान है, जहां जटायु ने राम को रावण का पता बताया था।
नृत्य मंडप- मंदिर का सबसे रहस्यमय हिस्सा नृत्य मंडप है। मंडप पर कुल 70 पिलर यानी खंभे मौजूद हैं, जिसमें से 69 खंभे वैसे ही हैं, जैसे होने चाहिए। मगर एक खंभा दूसरों से एकदम अलग है, वो इसलिए क्योंकि ये खंभा हवा में है। यानी इमारत की छत से जुड़ा है, लेकिन जमीन के कुछ सेंटीमीटर पहले ही खत्म हो गया। बदलते वक्त के साथ ये अजूबा एक मान्यता बन चुका है।कुछ लोग इस मंडप को शिव और पार्वती के विवाह से भी जोड़ते हैं, क्योंकि पौराणिक कथाओं के मुताबिक महादेव और पार्वती का विवाह इसी जगह पर हुआ था।
स्वयंभू शिवलिंग- इस धाम में मौजूद एक स्वयंभू शिवलिंग भी है जिसे शिव का रौद्र अवतार यानी वीरभद्र अवतार माना जाता है। 15वीं शताब्दी तक ये शिवलिंग खुले आसमान के नीचे विराजमान था, लेकिन विजयनगर रियासत में इस मंदिर का निर्माण शुरू किया गया, वो भी एक अद्भुत चमत्कार के बाद। मंदिर के पुजारी कहते हैं कि पहले यहां स्वामी पैदा हुआ था। 1538 में यहां भगवान की प्रतिष्ठा के ग्रुप अन्ना के दो पुत्र थे। एक पुत्र बोल नहीं पाता था। यहां पूजा करने के बाद उसके बेटे को बोलना आ गया और उसके बाद मंदिर बनाया। यहां वीरभद्र स्वामी की स्थापना की। उन्होंने इस मंदिर का पूरा निर्माण करवाया।
नंदी की मूर्ति- यहां नंदी की 27 फीट लंबी और 15 फीट चौड़ी एक विशालकाय मूर्ति है। चंद कदमों के फासले पर शेषनाग की एक अनोखी प्रतिमा भी है। बताया जाता है कि करीब साढ़े चार सौ साल पहले ये मूर्ति एक स्थानीय शिल्पकार ने बनाई थी। इसे बनाए जाने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। नंदी और शेषनाग का एक साथ एक जगह पर होना, ये इशारा था कि मंदिर के भीतर महादेव और भगवान विष्णु से जुड़ी कोई और अद्भुत कहानी है।
मंदिर से जुड़े अन्य तथ्य
लेपाक्षी मंदिर को विजयनगर के राजाओं ने बनवाया था। दक्षिणी आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में स्थित यह मंदिर हिन्दुपुर के 15 किलोमीटर पूर्व और उत्तरी बेंगलुरू से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर है। मंदिर एक कछुआ के खोल की तरह बने एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है।
इस मंदिर में इष्टदेव श्री वीरभद्र है। वीरभद्र, दक्ष यज्ञ के बाद अस्तित्व में आए भगवान शिव का एक क्रूर रूप है। इसके अलावा शिव के अन्य रूप अर्धनारीश्वर, कंकाल मूर्ति, दक्षिणमूर्ति और त्रिपुरातकेश्वर यहां भी मौजूद हैं। यहां देवी को भद्रकाली कहा जाता है। मंदिर 16 वीं सदी में बनाया गया और एक पत्थर की संरचना है। मंदिर विजयनगरी शैली में बनाया गया है।
कैसे पहुंचे लेपाक्षी मंदिर
यदि आप लेपाक्षी मंदिर आकर यहां के चमत्कार और शक्ति को महसूस करना चाहते हैं तो सड़क और रेल मार्ग दोनों ही आपके लिये बेहतर है। लेपाक्षी मंदिर हैदराबाद और बेंगलुरू जैसे शहरों से नेशनल हाइवे-7 से जुड़ा हुआ है। साथ ही मंदिर का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हिन्दूपुर है।
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