ऐसा आभास होता है कि तेलंगाना में सरकार नाम की कोई चीज़ नहीं। यदि है तो लगता है कोई सरकार की नहीं सुनता। क्योंकि मॉल्स के अतिरिक्त खुले बाजार में खुले आम लूट। ग्राहकों से प्रिंटेड मूल्य से अधिक कीमत वसूलना। सडकों का दिल्ली से बुरा हाल। राजीव गांधी हवाई अड्डा से इंदिरा नगर और इंदिरा नगर से टेलिकॉम नगर की ओर आने पर इतने खतरनाक गड्ढे , जिनका छः महीने उपरांत भराव हुआ। इंदिरा नगर से फ्लाईओवर से टेलीकॉम नगर की तरफ आने पर और फ्लाईओवर के नीचे सड़क पर इतने गड्ढे? क्या भोलीभाली जनता के कन्धों पर किये संघर्ष का ये ही परिणाम है? जरा सी भी वाहन चालक से बेध्यानी हुई नहीं, कट गया उसका टिकट। बाद में चालक का ही कसूर बता कर पुलिस एवं सरकार अपना दामन साफ कर लेंगे। कहाँ है इस क्षेत्र के निगम पार्षद, विधायक एवं सरकार ? यदि यही स्थिति दिल्ली, उत्तर प्रदेश या बिहार की होती, मीडिया ने शोर मचा दिया होता, परन्तु तेलंगाना में सब खामोश, क्यों? जब तक आंध्र का बटवारा नहीं हो गया, जनता को न जाने कितने लॉलीपॉप देकर आग में झुलसाया गया था, क्या इसी लूट के लिए?
कल (अक्टूबर 26 को) ब्लॉग पर प्रकाशित करने उपरान्त, सांध्य में किसी काम से चारमीनार जाना पड़ा था। वापसी में आंध्र लेजिस्लेटिव असेंबली और लगभग सामने ही पी टी आई कार्यालय, लेकिन सडको की हालात दिल्ली से भी बत्तर। क्या इन्ही टूटी-फूटी सड़कों के लिए नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए जनता को संघर्ष की आग में झोंका था?
कहने को प्रदेश में इतनी आईटी कम्पनियां है, और सडकों की दिल्ली से भी बत्तर दशा? क्या कारण है कि मीडिया खामोश है?
दशहरे की छुट्टी का क्या महत्व?
दशहरा उत्सव वाले दिन टेलीकॉम नगर, इंदिरा नगर और कॉन्टिनेंटल हॉस्पिटल तक ऐसा सन्नाटा, जैसे की क्षेत्र में कर्फ्यू हो ! हैरान था इतने बड़े त्यौहार पर कर्फ्यू का माहौल। क्या आंध्रा के राम और पूर्वी भारत के राम में अन्तर है? क्या कर्फ्यू जैसे माहौल के लिए दशहरे की छुट्टी होती है? जब दशहरा से परहेज़ है तो दीपावली क्यों मनाते है? क्यों बाजार सजाए जा रहे हैं? इतना ही नहीं राम और हनुमान मन्दिरों की कमी भी नहीं। यह गंभीर चिन्ता का विषय है। पछता रहा था, कि "क्यों दिल्ली की इतनी रौनक और नवरात्रों की बहार को त्याग हैदराबाद आया?" ऐसे महान पर्व का दिल्ली से तुलना करने पर, मन्थन करता रहा कि "किसी आईटी नगर में हो या किसी जंगल में?" लेकिन उस मन्थन का अब तक कोई निजोड़ नहीं निकल पाया।
भ्रष्टाचार दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार आदि प्रदेशों से अधिक। बटवारा चाहे निगम पालिकाओं का हो या राज्यों का, जनता को तो उसी हाल में जीना है, मालपुए एवं हलवा-पूरी खाएंगे नेता। दिल्ली में तीन नगर निगम बनी, क्या मिला जनता को? आज सत्ता के भूखे नेताओं से पूछा जाये “जब देश आज़ाद हुआ था कितने राज्य थे और आज कितने हैं? किसलिए राज्यों का विभाजन किया गया है, मात्र अपना पेट पालने के लिए? भ्रष्टाचार दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है। किसी नेता पर लेशमात्र भी फर्क नहीं पड़ रहा। भ्रष्टाचार दिखता है,केवल चुनावों में और उसके बाद भाड़ में जाये जनता। आखिर जनता को कब तक विकास एवं भ्रष्टाचार के नाम पर मूर्ख बनाया जाएगा?
कल (अक्टूबर 26 को) ब्लॉग पर प्रकाशित करने उपरान्त, सांध्य में किसी काम से चारमीनार जाना पड़ा था। वापसी में आंध्र लेजिस्लेटिव असेंबली और लगभग सामने ही पी टी आई कार्यालय, लेकिन सडको की हालात दिल्ली से भी बत्तर। क्या इन्ही टूटी-फूटी सड़कों के लिए नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए जनता को संघर्ष की आग में झोंका था?
कहने को प्रदेश में इतनी आईटी कम्पनियां है, और सडकों की दिल्ली से भी बत्तर दशा? क्या कारण है कि मीडिया खामोश है?
दशहरे की छुट्टी का क्या महत्व?
| मैसूर का दशहरा |
| कुल्लू दशहरा उत्सव |
| दिल्ली में दशहरे की रौनक |
अभी कुछ माह पूर्व एक नेता के बेटे की कार पर आंधी से प्लास्टिक का बड़ा होल्डिंग फट कर क्या गिरा, सरकार स्वयं राष्ट्र को बताए कि “कितने माह तक सडकों से विज्ञापन होल्डिंग गायब रहे और क्यों?” इतने समय तक सरकार को विज्ञापनों से होनी वाली आय में जो कमी आयी है, कौन है ज़िम्मेदार? क्या नेता समाज इसकी भरपायी करेगा या टैक्स लगाकर जनता से वसूला जाएगा?
क्या तेलंगाना में यह कानून लागू नहीं?
कानूनन कूड़ा जलाना अपराध है, लेकिन टेलिकॉम नगर में नहीं। सफाई कर्मचारी झाड़ू देने उपरान्त रोज़ कूड़े को जलाते हैं और उसकी राख किसी भी खाली प्लॉट में फेंक देते हैं। दिनभर देखो सफाई कर्मचारी हाथ में झाडू लिए देखे/देखी जा सकती हैं, कमर में एक कट्टा लटका रहेगा। उस कट्टे में क्या भरा जाता है, वही जाने, लेकिन कूड़ा नहीं और न ही कूड़ा उठाने के लिए कोई चीज़। स्पष्ट है कुछ कूड़ा जला दिया और कुछ किसी भी खाली प्लाट पर फेंक दिया। क्या तेलंगाना में यह कानून लागू है ?
राष्ट्रीय गीत का अपमान
अभी कुछ समय पूर्व किसी पुलिस उत्सव की तैयारी में गावची बौलि स्थित सायबराबाद पुलिस आयुक्त कार्यालय में चल रहे अभ्यास के दौरान माइक और पुलिस बैंड पर राष्ट्रीय गीत “जन गण मन अधिनायक …, ऐ मेरे वतन के लोगों…. , सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा… ” आदि और दो/तीन अन्य गीतों के मात्र दो ही अन्तरों उपरांत रोक दिया जाता, क्यों? समस्त गीत हिन्दी भाषा के थे, जो आसानी से घर बैठे सुने जा रहे थे। जब पुलिस आयुक्त कार्यालय में राष्ट्रीय गीतों का अपमान होगा फिर आम जनता को ऐसे अपराध करने पर क्यों कानून का डंडा मारा जाता है?
प्यार किया तो डरना क्या…
दिल्ली मेट्रो में रोमांस की वीडियो सोशल मीडिया में कितनी वायरल होती है, लेकिन यहाँ पीजी के आसपास सड़क पर होते रोमांस… की कही कोई चर्चा नहीं। माँ-बाप समझते हैं कि “बेजारी हमारी बच्ची घर से दूर अपने भविष्य के लिए आईटी कंपनी में कार्य कर अनुभव लेकर घर के आसपास आ जाएगी/जायेगा। उनको नहीं मालूम कि वहां तो ‘खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों’ गीत को चरितार्थ किया जा रहा है।”
मनमानी कीमत
कुछ समय से दिल्ली और हैदराबाद आना-जाना लगा होने के कारण, दिल्ली वापसी में ट्रेन में एक ऐसा यात्री नहीं मिलता जो मनमानी कीमत वसूली की चर्चा न करता हो। 19 रूपए की जर्सी दूध की थैली मॉल में तो प्रकाशित मूल्य पर मिलेगी, मॉल की बजाए किसी दुकान से वही थैली 20 रूपए की मिलेगी। हर बृहस्पतिवार को मौलाना आज़ाद उर्दू यूनिवर्सिटी के पास सब्जी मार्केट लगती है। यहाँ से रिलायंस एवं मोर मॉल का लगभग 15/20 मिनट पैदल का रास्ता है। देखिये लूट का स्पष्ट प्रमाण, 20 अक्टूबर को रिलायंस में प्याज 13 रूपए, खीरा 22 रु., टमाटर 18 रु., और बृहस्पतिवार सब्ज़ी मार्किट में 15, 30/40 और 30 रूपए आदि भाव। दिल्ली में एक हार मिलता है 10 रूपए में, यहाँ 20 रूपए हाथ और उस हाथ-नाप से दिल्ली के मुकाबले आधा हार भी नहीं बनता। जबकि रिलायंस में वही फूल 56 रूपए किलो। अष्ठमी को 31 रूपए में इतना फूल आ गया कि अष्टमी, नवमी एवं दशहरा आराम से मन गए। फिर भी फूल बच गए।
एक बार बंगलुरु में दीपावली मनाने का अवसर मिला। बीटीएम में, दीपावली वाले दिन जो फूलवाला 500 रूपए किलो फूल बेच रहा था, वही फूलवाला अगले दिन 40 रूपए बेच रहा है।
इतना ही नहीं टेलीकॉम नगर स्थित स्वीट बास्केट में मोतिचूर लड्डू 560 रूपए किलो, जबकि इंदिरा नगर स्थित बालाजी स्वीट्स पर 360 रु., स्वाद में स्वीट बास्केट से अच्छा। यानि नाम बड़े और दर्शन छोटे। अब इसको खुली लूट न कहा जाए तो क्या कहा जाये? यदि सरकार ऐसे दुकानदारों पर नकेल डाल सख्त कार्यवाही करे, समस्त जनता को इस तरह बढ़ायी गयी महंगाई से बहुत राहत मिलेगी। अभी दिल्ली से आते समय कुछ बिछड़े मित्रों से मुलाकात हो गयी, लगभग सभी ने स्थाई रूप से हैदराबाद रहने से मना करने के जो कारण गिनाए, 30 मार्च से निरन्तर अनुभव भी कर रहा हूँ। अपने मित्रों के अनुभव इतने कटु थे, जिन्हें शब्दों में बयां करना वास्तव में लोहे के चने चबाने से कम नहीं। दिल्ली प्रशासन औषधालय में कार्यरत केरलवासी एक महिला चिकित्सक बोली “अंकल हैदराबाद मत जाइए, घूमने जाइए, रहने नहीं, वहाँ के व्यवहार से दुःखी होकर दो माह बाद ही मैंने सरकारी नौकरी छोड़ दी थी, जबकि डॉक्टरी करने उपरान्त मेरी पहली पोस्टिंग हैदराबाद ही हुई थी…और केंद्र सरकार को छोड़ दिल्ली सरकार की नौकरी कर रही हूँ।” अब जब प्रमाण ही प्रस्तुत कर दिए गए हैं, किसी और प्रमाण एवं सरकार को अपनी सफाई देने की जरुरत भी नहीं।

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