
कश्मीर के उरी सैन्य बेस पर आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान की घेरेबंदी तेजी से शुरू कर दी है। पाक की आतंकी करतूतों के खिलाफ भारत को विश्व जनमत से मिले मजबूत सर्मथन से उत्साहित नई दिल्ली ने संयुक्त राष्ट्र में जोरदार तरीके से इस्लामाबाद को घेरा है। एक दिन पहले ही अमेरिका, रूस, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, ईरान आदि देशों ने उरी में आतंकी हमले की निंदा करते हुए भारत का सर्मथन किया है। पाक को सबसे अधिक धक्का रूस ने दिया है।
उसने अगले साल पाक के साथ होने वाले संयुक्त सैन्य अभ्यास को रद कर दिया। अब तक भरोसेमंद साथी रहे चीन ने भी उरी हमले की निंदा की और पाकिस्तान के लिए कोई भी सहानुभूति नहीं दिखाई। यूएन सम्मेलन में भाग लेने जेनेवा गए नवाज शरीफ को भी वहां बलूच विरोध का सामना करना पड़ा है। वहां पाक डेलिगेशन आतंकवाद के प्रश्न पर मीडिया का सामना नहीं कर सका और उसे फजीहत झेलनी पड़ी।

आज 21 सितंबर को पाक पीएम नवाज शरीफ यूएन को संबोधित करेंगे, जिसमें वे कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे, लेकिन उससे पहले ही जेनेवा में पाक को जिस तरह आतंकवाद को लेकर मुंह की खानी पड़ी है, उससे नवाज का हौसला जरूर पस्त हुआ होगा और वे समझ गए होंगे कि भारत के खिलाफ बेबुनियाद कश्मीर राग अलाप को कोई नहीं सुनेगा। नवाज के संबोधन से पहले ही भारत ने संयुक्त राष्ट्र में पाक की आतंकी साजिशों का पर्दाफाश कर कूटनीतिक किलेबंदी कर दी है।
भारत ने जेनेवा में बेहद स्पष्ट और कड़े संदेश में पाकिस्तान से आतंकवाद का सर्मथन बंद करने तथा अवैध तरीके से कब्जा किए गए पाक कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को खाली करने को कहा। साथ ही भारत ने बलूचिस्तान, खबर-पख्तूनख्वा और सिंध में मानवाधिकारों के उल्लंघन तथा अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों के मुद्दे को भी उठाया। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् (एचआरसी) के 33वें सत्र में उत्तर देने के अधिकार के तहत भारत ने कहा कि हम, एक बार फिर, पाकिस्तान से कहते हैं कि वह भारत के किसी भी हिस्से में हिंसा तथा आतंकवाद को उकसाना और सर्मथन देना बंद करे तथा किसी भी रूप में हमारे अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी बंद करे।
हम परिषद से अनुरोध करते हैं कि वह पाक से अवैध तरीके से कब्जा किए गए पीओके के क्षेत्र को खाली करने को कहे। पाक का 1947 से ही कश्मीर की सीमा पर नजर है और उसका पुख्ता सबूत 1947, 1965 और 1999 में उसकी ओर से दिखाई आक्रामकता है। वर्तमान में पाक ने अवैध तरीके से और जबरन जेएंडके में लगभग 78,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय भूमि पर कब्जा किया हुआ है। भारत ने कहा कि कश्मीर में अशांति का मूल कारण पाक से प्रायोजित सीमापार का आतंकवाद है।


भारत की इस ठोस रणनीति के बाद अब यूएन में पाक के पैंतड़े का भारतीय पक्ष पर असर नहीं पड़ेगा और वह अलग-थलग पड़ जाएगा। राष्ट्रीय जांच एजेंसी की ओर से उरी आतंकी हमले की जांच शुरू दिए जाने से भारत दुनिया के सामने इस हमले में पाक के हाथ होने के सबूत पेश कर सकेगा। भारत यूएन में सबूत के साथ पाक को बेनकाब करना चाहता है।
यह भी संभव है कि 26 सितंबर को जब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज यूएन में अपना संबोधन देंगी, तो वे पाक के खिलाफ कुछ सबूत भी दुनिया के सामने रखें। पाक के साथ तनाव के बीच भारत ने इजराइल के सहयोग से बने बराक सीरीज की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल का परीक्षण कर अपनी सैन्य मजबूती का भी संकेत दिया है। भारत को चाहिए कि पाक के सभी अंतरराष्ट्रीय दरवाजे बंद करने की कोशिश करे।
क्या बंटवारे के दौरान कोई गुप्त समझौता हुआ था?


सत्ता के गलियारों में आजकल एक चर्चा बहुत जोरों पर है कि जिस तरह मोदी पाकिस्तान को जकड़ने का प्रयत्न कर रहे हैं, क्या बँटवारे के दौरान भारत-पाक में हुए गुप्त समझौते को भी निरस्त करने का साहस करेंगे? चर्चा है कि उस कालखंड में भारत द्धारा पहले हमला न करने का गुप्त समझौता है, जिसका पाकिस्तान निरन्तर लाभ उठा रहा है और इतने आतंकी हमले होने के बावजूद भी हमला नहीं कर रहा। जबकि विश्व में जिस किसी भी देश पर आतंकी हमला हुआ, उस देश ने हमलावर देश के विरुद्ध कार्यवाही की, लेकिन भारत सबूत देने में ही समय व्यर्थ कर देश को भ्रमित कर रहा है।
क्या जिन्नाह ने ब्लैकमेल किया था?

जितने अधिक आतंकवादी हमले भारत पर हुए हैं, विश्व में किसी अन्य देश पर नहीं हुए, फिर भी भारत पाकिस्तान को साबुत ही देता रहता है और पाकिस्तान उन्हें ठुकराता रहता है। कहते हैं, यह समझौता उस वक़्त हुआ था, जब महात्मा गाँधी, आदि ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के विरुद्ध अनुबन्ध किया था। जिन्नाह ने ब्रिटिशर्स से इस बात का लाभ उठाते हुए भारत और पाकिस्तान के बीच इस तरह का गुप्त अनुबन्ध करने के लिए बाध्य किया था। क्योंकि यदि ब्रिटिश और भारत सरकार जिन्नाह की बात नहीं मानती, निश्चित रूप से बोस के विरुद्ध किये गए गुप्त समझौते के सार्वजानिक होने का भय दोनों सरकारों को था। यही कारण है कि ब्रिटिश अथवा भारत सरकार द्धारा बोस के विरुद्ध हुए समझौते को सार्वजानिक नहीं किया गया।
सत्यापित होतीं पिताश्री की बातें
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| पिताश्री एम.बी.एल.निगम |

नेताजी बोस की फाइलें सार्वजानिक हो रही हैं, लेकिन वह गुप्त समझौता नहीं, आखिर क्यों? यह वह समझौते हैं, जिनकी मेरे पिताश्री एम.बी.एल.निगम अक्सर चर्चा करते थे। पत्रकारिता में आने एवं इन्टरनेट के आने से पिताश्री की बोस के विरुद्ध हुए समझौते की तो पुष्टि हो गयी, बस प्रतीक्षा है भारत-पाक के बीच हुए इस गुप्त समझौते के सार्वजानिक होने की। इस समझौते को करने का एक कारण यह भी था कि महात्मा गाँधी अपनी मृत्यु उपरान्त भी पाकिस्तान को भारत द्धारा किसी भी अहित से बचाने की। जिस दिन यह दोनों समझौते सार्वजानिक हो गए, पिताश्री की वह बात भी सत्यापित हो जाएगी कि नेहरू एवं महात्मा गाँधी की इतनी छवि ख़राब होगी भारत तो क्या विश्व में कोई इनका नाम लेने वाला भी नहीं होगा। जितना सम्मान के साथ आज इनका नाम लिया जाता है, उतने ही अपमान के साथ इनका नाम लिया जाएगा। यदि वास्तव में महात्मा गाँधी के कारण ही देश को आज़ादी मिली है, फिर किन कारणों से नेहरू ने महात्मा गाँधी के परिवार को सत्ता से दूर रखा? यह वह ज्वलन्त प्रश्न है, जिसे अनेको बार अपने लेखों में किया,परन्तु किसी भी नेता ने इस ज्वलन्त प्रश्न का उत्तर देने का साहस नहीं किया।
कहते हैं कि अगर गाँधी जैसे नेताओं ने अपनी धूमिल होती भ्रमित छवि को बनाए रखने के लिए नेताजी बोस के विरुद्ध समझौता नहीं किया होता तो इंडो-पाक गुप्त समझौता भी नहीं होता।
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