मदर टेरेसा प्रारम्भ से ही विवादों में रही, लेकिन छद्दम धर्म-निरपेक्ष यानि नगाड़ो की आवाज़ में तूती की आवाज़ किसी ने नहीं सुनी। जनसेवा के नाम पर देश में ईसाई धर्मान्तरण को प्रोत्साहित करती रही। टेरेसा को नोबेल पुरस्कार मिलने पर ओशो ने विरोध भी किया था। प्रस्तुत है ओशो को टेरेसा द्धारा लिखे पत्र पर ओशो का प्रवचन:--
मदर टेरेसा को नोबल पुरस्कार मिलने पर ओशो ने मदर टेरेसा के कार्यों का विश्लेषण किया था, जिससे मदर टेरेसा और उनके समर्थक नाराज हो गये थे. मदर ने दिसम्बर 1980 के दिसंबर माह के अंत में ओशो को पत्र लिखा. उस पर ओशो का प्रवचन –
मदर टेरेसा को नोबल पुरस्कार मिलने पर ओशो ने मदर टेरेसा के कार्यों का विश्लेषण किया था, जिससे मदर टेरेसा और उनके समर्थक नाराज हो गये थे. मदर ने दिसम्बर 1980 के दिसंबर माह के अंत में ओशो को पत्र लिखा. उस पर ओशो का प्रवचन –
राजनेता और पादरी हमेशा से मनुष्यों को बांटने की साजिश करते आए हैं. राजनेता बाह्य जगत पर राज जमाने की कोशिश करता है और पादरी मनुष्य के अंदरुनी जगत पर.
इन दोनों ने मानवता के खिलाफ गहरी साजिशें मिलकर की हैं. कई बार तो अपने अंजाने ही इन लोगों ने ऐसे कार्य किये हैं. इन्हे खुद नहीं पता होता ये क्या कर रहे हैं. कई बार इनकी नियत नहीं होती गलत करने की पर चेतना से रहित उनके दिमाग क्या सुझा सकते हैं?
अभी हाल में मदर टेरेसा ने मुझे एक पत्र लिख भेजा. मुझे उनके पत्र की गंभीरता पर कुछ नहीं कहना, उन्होंने निष्ठा से भरे शब्दों से पत्र लिखा है, पर यह चेतना रहित दिमाग की उपज है. उन्हें स्वयं नहीं ज्ञात है कि वे क्या लिख रही हैं. उनका लिखना यांत्रिक है, जैसे रोबोट ने लिख दिया हो.
वे लिखती हैं,” मुझे अभी आपके भाषण की कटिंग मिली. मुझे आपके लिए बेहद खेद हुआ कि आप ने ऐसा कहा (सन्दर्भ – नोबल पुरस्कार). आपने मेरे नाम के साथ जो विशेषण इस्तेमाल किये उनके लिए मैं पूरे प्रेम से आपको क्षमा करती हूँ.”
वे मेरे प्रति खेद महसूस कर रही हैं… मुझे उनका पत्र पढकर आनंद आया! उन्होंने मेरे द्वारा उपयोग में लाये गये विशेषणों को समझा ही नहीं. लेकिन वे चेतन नहीं हैं वरना वे अपने प्रति खेद महसूस करतीं मेरे प्रति नहीं.
उन्होंने मेरे भाषण की कटिंग भी अपने पत्र के साथ भेजी है मैंने जो विशेषण इस्तेमाल किये थे, वे थे – धोखेबाज ( deceiver), कपटी (charlatan) और पाखंडी या ढोंगी (hypocrite)….
मैंने उनकी आलोचना की थी और कहा था कि उन्हें नोबल पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए था. और इस बात को उन्होंने अन्यथा ले लिया. अपने पत्र में वे लिखती हैं “सन्दर्भ : नोबल पुरस्कार”.
यह आदमी, नोबल, दुनिया के सबसे बड़े अपराधियों में से एक था. पहला विश्वयुद्ध उसके हथियारों से लड़ा गया था, वह हथियारों का बहुत बड़ा निर्माता था…
मदर टेरेसा नोबल पुरस्कार को मना नहीं कर सकीं. प्रशंसा पाने की चाह, सारे विश्व में सम्मान पाने की चाह, नोबल पुरस्कार तुम्हे सम्मान दिलवाता है, सो उन्होंने पुरस्कार सहर्ष स्वीकार किया…
मदर टेरेसा नोबल पुरस्कार को मना नहीं कर सकीं. प्रशंसा पाने की चाह, सारे विश्व में सम्मान पाने की चाह, नोबल पुरस्कार तुम्हे सम्मान दिलवाता है, सो उन्होंने पुरस्कार सहर्ष स्वीकार किया…
इसलिए मैंने मदर टेरेसा जैसे व्यक्तियों को धोखेबाज (deceivers) कहा. वे जानबूझ धोखा नहीं देते, निश्चित ही उनकी नियत धोखा देने की नहीं है, लेकिन यह बात महत्वपूर्ण नहीं है, अंतिम परिणाम स्पष्ट है.
ऐसे लोग समाज में लुब्रीकेंट का कार्य करते हैं ताकि समाज के पहिये, शोषण का पहिया, अत्याचार का पहिया यूँ ही आसानी से घूमता रहे. ये लोग न केवल दूसरों को बल्कि खुद को भी धोखा दे रहे हैं. और मैं ऐसे लोगों को कपटी (charlatans) भी कहता हूँ,
क्योंकि एक सच्चा धार्मिक आदमी, जीसस जैसा आदमी, नोबल पुरस्कार पायेगा? असंभव है यह! क्या तुम कल्पना कर सकते हो कि सुकरात को नोबल पुरस्कार दिया जाए, या कि अल-हिलाज मंसूर को इस पुरस्कार से नवाजे सत्ता? अगर जीसस को नोबल नहीं मिल सकता, और सुकरात को नोबल नहीं मिल सकता, और ये लोग सच्चे धार्मिक, चेतन मनुष्य हैं, तब मदर टेरेसा कौन हैं? …
सच्चा धार्मिक व्यक्ति विद्रोही होता है, समाज उसकी आलोचना करता है, निंदा करता है. जीसस को समाज ने अपराधी करार दिया और मदर टेरेसा को संत कह रहा है. यह बात विचारणीय है, अगर मदर टेरेसा सही हैं तो जीसस अपराधी हैं और अगर जीसस सही हैं तो मदर टेरेसा एक कपटी मात्र हैं उससे ज्यादा कुछ नहीं.
कपटी लोगों को समाज बहुत सराहता है क्योंकि ये लोग समाज के लिए सहायक सिद्ध होते हैं, समाज की जैसी भ्रष्ट व्यवस्था चली आ रही होती है उसे वैसे ही चलने देने में ये लोग बड़ी भूमिका निभाते हैं.
मैंने जो भी विशेषण इस्तेमाल किये वे सोच समझ कर इस्तेमाल किये. मैंने बिना विचारे कोई शब्द इस्तेमाल नहीं करता. और मैंने पाखंडी या ढोंगी (hypocrites) शब्द का इस्तेमाल किया. ऐसे लोग पाखंडी हैं क्योंकि इनकी आधारभूत जीवन शैली बंटी हुयी है, सतह पर एक रूप और अंदर कुछ और रूप.
वे लिखती हैं,” ‘प्रोटेस्टेंट परिवार को बच्चा गोद लेने से इसलिए नहीं रोका गया था कि वे प्रोटेस्टेंट थे बल्कि इसलिए कि उस समय हमारे पास कोई बच्चा नहीं था जो हम उन्हें गोद दे सकते थे”.
अब उन्हें नोबल पुरस्कार इसलिए दिया गया है कि वे हजारों अनाथों की सहायता करती हैं और उनकी संस्था में हजारों अनाथालय हैं. अचानक उनके अनाथालय में एक भी बच्चा उपलब्ध नहीं रहता? और भारत में कभी ऐसा हो सकता है कि अनाथ बच्चों का अकाल पड़ जाए? भारतीय तो जितने चाहो उतने अनाथ बच्चे जन्मा सकते हैं बल्कि जितने तुम चाहो उससे भी कहीं ज्यादा!
और उस प्रोटेस्टेंट परिवार को एकदम से इंकार नहीं किया गया था. यदि एक भी अनाथ बच्चा उपलब्ध नहीं था और उनके सारे अनाथालय खाली हो गये थे तो मदर टेरेसा सात सौ ननों का क्या कर रही हैं? इन ननों का काम क्या है? सात सौ ननें? वे किसकी माताओं की भूमिका निभा रही हैं?
एक भी अनाथ बच्चा नहीं – अजीब बात है! – और वो भी कलकत्ता में! सड़क पर कहीं भी तुम्हे अनाथ बच्चे दिखाई दे जायेंगे – तुम्हे कूड़ेदान तक में बच्चे मिल सकते हैं. उन्हें सिर्फ बाहर देखने की जरुरत थी और उन्हें बहुत से अनाथ बच्चे मिल जाते. तुम आश्रम से बाहर जाकर देखना, अनाथ बच्चे मिल जायेंगें. तुम्हे खोजने की भी जरुरत नहीं, वे अपने आप आ जायेंगें!
अचानक उनके अनाथालय में अनाथ बच्चे नहीं मिलते.… और अगर उस परिवार को एकदम से इंकार किया जाता तब भी बात अलग हो जाती. लेकिन परिवार को एकदम से इंकार नहीं किया गया था, उनसे कहा गया था,”हाँ, आपको बच्चा मिल सकता है, आवेदन पत्र भर दीजिए”. आवेदन पत्र भरा गया था. जब तक कि परिवार ने अपने सम्प्रदाय का नाम जाहिर नहीं किया था तब तक उनके लिए बच्चा उपलब्ध था पर जैसे ही उन्होंने आवेदन पत्र में लिखा कि वे प्रोटेस्टेंट चर्च को मानने वाले मत के हैं, अचानक से मदर टेरेसा की संस्था के अनाथालयों में अनाथ बच्चों की किल्लत हो गयी, बल्कि अनुपस्थिति हो गयी.
और असली कारण प्रोटेस्टेंट परिवार को बताया पर कैसे? अब यही पाखण्ड है! यही धोखेबाजी है. यह गन्दगी से भरा है. कारण भी उन्हें इसलिए बताना पड़ता है क्योंकि बच्चे वहाँ थे अनाथालयों में. कैसे कहते कि अनाथ बच्चे नहीं हैं? उनकी तो हरदम प्रदर्शनी लगी रहती है वहाँ.
उन्होंने मुझे भी आमंत्रित किया है: आप किसी भी समय आ सकते हैं और आपका स्वागत है हमारे अनाथालय और हमारी संस्था देखने आने के लिए. उनका सदैव ही प्रदर्शन किया जाता है.
बल्कि, उस प्रोटेस्टेंट परिवार ने पहले ही एक अनाथ बच्चे का चुनाव कर लिया था. अतः वे कह नहीं पायीं ,” हमें खेद है, बच्चे नहीं हैं अनाथालय में”.
उन्होंने परिवार से कहा.” इन अनाथ बच्चों को रोमन कैथोलिक चर्च के रीति रिवाजों और विधि विधान के मुताबिक़ पाला पोसा गया है, और इनके मनोवैज्ञानिक विकास के लिए यह बहुत बुरा होगा अगर उन्हें इस परम्परा से अलग हटाया गया. आपको उन्हें गोद देने का असर उन पर यह पड़ेगा कि उनके विकास की गति छिन्न भिन्न हो जायेगी. हम उन्हें आपको गोद नहीं दे सकते क्योंकि आप प्रोटेस्टेंट हैं.”
वही असली कारण था. और बच्चा गोद लेने का इच्छुक परिवार कोई मूर्ख नहीं था. पति यूरोपियन यूनिवर्सिटी में प्रोफसर है – और वह स्तब्ध रह गया, उसकी पत्नी स्तब्ध रह गयी. वे इतनी दूर से बच्चा गोद लेने आए थे पर उन्हें इंकार कर दिया गया क्योंकि वे प्रोटेस्टेंट थे. यदि उन्होंने आवेदन पत्र में ‘कैथोलिक’ लिखा होता तो उन्हें तुरंत बच्चा मिल जाता.
एक और बात समझ लेने की है : ये बच्चे मूलभूत रूप से हिंदू हैं. अगर मदर टेरेसा को इन बच्चों के मनोवैज्ञानिक विकास और हित की इतनी चिंता है तो इन बच्चों का पालन पोषण हिंदू धर्म के अनुसार करना चाहिए. पर उन्हें कैथोलिक चर्च के अनुसार पाला गया है. और इस सबके बद उन्हें प्रोटेस्टेंट परिवार को गोद देना, और प्रोटेस्टेंट कोई बहुत अलग नहीं है कैथोलिक लोगों से. क्या अंतर है कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट में? केवल कुछ मूर्खतापूर्ण अंतर… !
कुछ ही रोज पहले भारतीय संसद में धर्म की स्वतंत्रता के ऊपर एक बिल प्रस्तुत किया गया. बिल प्रस्तुत करने के पीछे उद्देश्य था कि किसी को भी अन्यों का धर्म बदलने की अनुमति नहीं होनी चाहिए : जब तक कि कोई अपनी मर्जी से अपना धर्म छोड़ कर किसी अन्य धर्म को अपनाना न चाहे. और मदर टेरेसा पहली थीं जिन्होने इस बिल का विरोध किया.
अब तक के अपने पूरे जीवन में उन्होंने कभी किसी बात का विरोध नहीं किया, यह पहली बार था और शायद अंतिम बार भी. उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा और उनके और प्रधानमंत्री के बीच एक विवाद उत्पन्न हो गया. उन्होंने कहा,” यह बिल किसी भी हालत में पास नहीं होना चाहिए क्योंकि यह पूरी तरह से हमारे काम के खिलाफ जाता है. हम लोगों को बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और लोग केवल तभी बचाए जा सकते हैं जब वे रोमन कैथोलिक बन जाएँ”.
उन्होंने सारे देश में इतना हल्ला मचाया – और राजनेता तो वोट के एफिरक में रहते ही हैं, वे ईसाई मतदाताओं को नाराज करने का ख़तरा नहीं उठा सकते थे – सो बिल को गिर जाने दिया गया. बिल को भुला दिया गया…
यदि मदर टेरेसा सच में ही ईमानदार हैं और वे यह विश्वास रखती हैं कि किसी व्यक्ति का मत परिवर्तन करने से उसका मनोवैज्ञानिक ढांचा छिन्न भिन्न हो जाता है तो उन्हें मूलभूत रूप में मत-परिवर्तन के खिलाफ होना चाहिए. कोई अपनी इच्छा से अपना मत बदल ले तो बात अलग है.
अब उदाहरण के लिए तुम स्वयं मेरे पास आए हो, मैं तुम्हारे पास नहीं गया. मैं तो अपने दरवाजे से बाहर भी नहीं जाता… मैं किसी के पास नहीं गया, तुम स्वयं मेरे पास आए हो. और मैं तुम्हे किसी और मत में परिवर्तित भी नहीं कर रहा हूँ. मैं यहाँ कोई विचारधारा भी स्थापित नहीं कर रहा हूँ. मैं तुम्हे कैथोलिक चर्च के catechism के एतारह धार्मिक शिक्षा की प्रश्नोत्तरी भी नहीं दे रहा, किसी किस्म का कोई वाद नहीं दे रहा.
मैं तो सिर्फ मौन हो सकने में सहायता प्रदान कर रहा हूँ. अब, मौन न तो ईसाई है, न मुस्लिम, और न ही हिंदू ; मौन तो केवल मौन है. मैं तो तुम्हे प्रेममयी होना सिखा रहा हूँ, प्रेम न ईसाई है न हिंदू, और न ही मुस्लिम. मैं तुम्हे जागृत होना सिखा रहा हूँ. चेतनता सिर्फ चेतनता ही है इसके अलावा और कुछ नहीं और यह किसी की बपौती नहीं है. चेतनता को ही मैं सच्ची धार्मिकता कहता हूँ.
मेरे लिए मदर टेरेसा और उनके जैसे लोग पाखंडी हैं, क्योंकि वे कहते एक बात हैं, पर यह सिर्फ बाहरी मुखौटा होता है क्योंकि वे करते दूसरी बात हैं. यह पूरा राजनीति का खेल है – संख्याबल की राजनीति.
और वे कहती हैं,” मेरे नाम के साथ आपने जो विशेषण इस्तेमाल किये हैं उनके लिए मैं आपको प्रेम भरे ह्रदय के साथ क्षमा करती हूँ”. पहले तो प्रेम को क्षमा की जरुरत नहीं पड़ती क्योंकि प्रेम क्रोधित होता ही नहीं. किसी को क्षमा करने के लिए तुम्हारा पहले उस पर क्रोधित होना जरूरी है.
मैं मदर टेरेसा को क्षमा नहीं करता, क्योंकि मैं उनसे नाराज नहीं हूँ. मैं उन्हें क्षमा क्यों करूँ? वे भीतर से नाराज होंगीं…. इसीलिये मैं तुमको इन बातों पर ध्यान लगाने के लिए कहना चाहता हूँ. कहते हैं, बुद्ध ने कभी किसी को क्षमा नहीं किया, क्योंकि साधारण सी बात है कि वे किसी से कभी भी नाराज ही नहीं हुए.
क्रोधित हुए बिना तुम कैसे किसी को क्षमा कर सकते हो? यह असंभव बात है. वे क्रोधित हुए होंगीं. इसी को मैं अचेतनता कहता हूँ, उन्हें इस बात का बोध ही नहीं कि वे असल में लिख क्या रही हैं… उन्हें भान भी नहीं है कि मैं उनके पत्र के साथ क्या करने वाला हूँ!
वे कहती हैं,” ‘मैं महान प्रेम के साथ आपको क्षमा करती हूँ’ – जैसे कि प्रेम भी छोटा और महान होता है. प्रेम तो प्रेम है, यह न तो तुच्छ हो सकता है और न ही महान. तुम्हे क्या लगता है कि प्रेम गणनात्मक है? यह कोई मापने वाली मुद्रा है?- एक किलो प्रेम, दो किलो प्रेम. कितने किलो का प्रेम महान प्रेम हो जाता है? या कि टनों प्रेम चाहिए?
प्रेम गणनात्मक नहीं वरन गुणात्मक है और गुणात्मक को मापा नहीं जा सकता. न यह गौण है न ही महान. अगर कोई तुमसे कहे, “ मैं तुमसे बड़ा महान प्रेम करता हूँ.” तो सावधान हो जाना. प्रेम तो बस प्रेम है, न उससे कम न उससे ज्यादा.
और मैंने कौन सा अपराध किया है कि वे मुझे क्षमादान दे रही हैं? कैथोलिक्स की मूर्खतापूर्ण पुरानी परम्परा- और वे क्षमा करे चली जाती हैं! मैंने तो किसी अपराध को स्वीकार नहीं किया फिर उन्हें मुझे क्यों क्षमा करना चाहिए?
मैं इस्तेमाल किये गये विशेषणों पर कायम हूँ, बल्कि मैं कुछ और विशेषण उनके नाम के साथ जोड़ना पसंद करूँगा – कि वे मंद और औसत बुद्धि की मालकिन हैं, बेतुकी हैं. और अगर किसी को क्षमा ही करना है तो उन्हे ही क्षमा किया जाना चाहिए क्योंकि वे एक बहुत बड़ा पाप कर रही हैं.
अपने पत्र में वे कहती हैं,” मैं गोद लेने की परम्परा को अपनाकर गर्भपात के पाप से लड़ रही हूँ”. अब आबादी के बढ़ते स्तर से त्रस्त काल में गर्भपात पाप नहीं है बल्कि सहायक है आबादी नियंत्रित रखने में. और अगर गर्भपात पाप है तो पोलोक पोप और मदर टेरेसा और उनके संगठन उसके लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि ये लोग गर्भ-निरोधक संसाधनों के खिलाफ हैं, वे जन्म दर नियंत्रित करने के हर तरीके के खिलाफ हैं, वे गर्भ-निरोधक पिल्स के खिलाफ हैं.
असल में यही वे लोग हैं जो गर्भपात के लिए जिम्मेदार हैं. गर्भपात की स्थिति लाने के सबसे बड़े कारण ऐसे लोग ही हैं. मैं इन्हे बहुत बड़ा अपराधी मानता हूँ!
बढ़ती आबादी से ग्रस्त धरती पर जहां लोग भूख से मर रहे हों, वहाँ गर्भ-निरोधक पिल का विरोध करना अक्षम्य है. यह पिल आधुनिक विज्ञान का एक बहुत बड़ा तोहफा है आज के मानव के लिए. यह पिल धरती को सुखी बनाने में सहायता कर सकती है.
मैं गरीब लोगों की सेवा नहीं करना चाहता, मैं उनकी मैं गरीबी को समाप्त करके उन्हें समर्थ बनाना चाहूँगा. बहुत हो चुकीं ऐसी बेतुकी बातें. मेरी रूचि उन्हें गरीब बनाए रखने में नहीं है जिससे कि मैं उनकी सेवा करके लोगों की निगाह में पुण्य कमाऊं. उनकी गरीबी दूर होना मेरे लिए ज्यादा आनंद का विषय है.
दस हजार सालों से मूर्ख गरीब लोगों की सेवा करते आए हैं पर इससे कुछ नहीं बदला. अब हमारे पास समर्थ टैक्नोलौजी हैं जिससे हम गरीबी समाप्त करने में सफलता पा सकें.
तो अगर किसी को क्षमा किया जाना चाहिए तो इसके पात्र ये लोग हैं. पोप, मदर टेरेसा, आदि इत्यादी लोगों को क्षमा किया जाना चाहिए. ये लोग अपराधी हैं पर इनका अपराध देखने समझने के लिए तुम्हे बहुत बड़ी मेधा और सूक्ष्म बुद्धि चाहिए.
और ज़रा इनका अहंकार देखिये, दूसरों से बड़ा होने का अहं. वे कहती हैं,”मैं तुम्हे क्षमा करती हूँ, मुझे तुम्हारे लिए बड़ा खेद है”. और वे प्रार्थना करती हैं,” ईश्वर की अनुकम्पा आपके साथ हो और आपका ह्रदय प्रेम से भर जाए”.बकवास है यह सब!
मैं किसी ऐसे ईश्वर में विश्वास नहीं करता जो मानव जैसा होगा, जब ऐसा ईश्वर है ही नहीं तो वह कृपा कैसे करेगा मुझ पर या किसी और पर? ईश्वरत्व को केवल महसूस किया जा सकता है, ईश्वर कोई व्यक्ति नहीं है जिसे पाया जा सके या जीता जा सके. यह तुम्हारी ही शुद्धतम चेतनता है. और ईश्वर को मुझ पर कृपा क्यों करनी चाहिए? मैं ही तुम्हारी कल्पना के सारे ईश्वरों पर कृपा बरसा सकता हूँ.
मुझे किसी की कृपा के लिए प्रार्थना क्यों करनी चाहिए? मैं पूर्ण आनंद में हूँ मुझे किसी कृपा की आवश्यकता है ही नहीं. मुझे विश्वास ही नहीं है कि कहीं कोई ईश्वर है. मैंने तो हर जगह देख लिया मुझे कहीं ईश्वर के होने के लक्षण नजर नहीं आए. यह ईश्वर केवल सत्य से अंजान लोगों के दिमाग में वास करता है. ध्यान रखना मैं नास्तिक नहीं हूँ, पर मैं आस्तिक भी नहीं हूँ.
ईश्वर मेरे लिए कोई व्यक्ति नहीं बल्कि एक उपस्थिति है, जिसे केवल ध्यान की उच्चतम और सबसे गहरी अवस्था में ही महसूस किया जा सकता है. उन्ही क्षणों में तुम्हे सारे अस्तित्व में बहता ईश्वरत्व महसूस होता है. कोई ईश्वर कहीं नहीं है लेकिन ईश्वरत्व है!
मैं गौतम बुद्ध के बारे में कहे गये H. G. Wells के बयान को प्रेम करता हूँ. उसने कहा था,” गौतम बुद्ध सबसे बड़े ईश्वररहित व्यक्ति हैं लेकिन साथ ही वे सबसे बड़े ईश्वरीय व्यक्ति हैं.
यही बात तुम मेरे बारे में कह सकते हो: मैं इश्वर्राहित व्यक्ति हूँ लेकिन मैं ईश्वरीयता को जानता हूँ.
ईश्वरीयता एक सुगंध जैसी है, परम आनंद का अनुभव, परम स्वतंत्रता का अनुभव. तुम ईश्वरीयता के सामने प्रार्थना नहीं कर सकते. तुम इसका चित्र नहीं बना सकते. तुम यह नहीं कह सकते – कि ईश्वर तुम्हारा भला करे- और ऐसा तो खास तौर पर नहीं कह सकते – कि ईश्वर की कृपा तुम्हारे साथ रहें पूरे 1981 के दौरान! तब 1982 का क्या होगा?
महान साहस! महान साझेदारी! ऐसी उदारता!
“…और तुम्हारा ह्रदय प्रेम से भर जाए”. मेरा ह्रदय प्रेम के अतिरेक से पहले ही भरा हुआ है. इसमें किसी और के प्रेम के लिए जगह बची ही नहीं. और मेरा ह्रदय किसी और के प्रेम से क्यों भरे? उधार का प्रेम किसी काम का नहीं. ह्रदय की अपनी सुगंध होती है.
लेकिन इस तरह की बकवास को बहुत धार्मिक माना जाता है. वे इस आशा से यह सब लिख रही हैं कि मैं उन्हें बहुत बड़ी धार्मिक मानूंगा. लेकिन जो मैं देख पा रहा हूँ वे एक बेहद साधारण, औसत इंसान हैं जो कि आप कहीं भी पा सकते हैं. औसत लोगों से अटी पड़ी है धरती.
मैं उन्हें मदर टेरेसा कह कर पुकारता रहा हूँ पर मुझे उन्हें मदर टेरेसा कह कर पुकारना बंद करना चाहिए क्योंकि हालांकि मैं कतई सज्जन नहीं हूँ पर मुझे समुचित जवाब तो देना ही चाहिए. उन्होंने मुझे लिखा है- मि. रजनीश, तो अब से मुझे भी उन्हें मिस टेरेसा कह कर संबोधित करना चाहिए. यही सज्जनता भरा व्यवहार होगा.
अहंकार पिछले दरवाजे से आ जाता है. इसे बाहर निकाल फेंकने का प्रयत्न मत करो.
कलकत्ते से मुझे एक न्यूज-कटिंग मिली है. पत्रकार ने बताया कि वह मदर टेरेसा के बारे में मेरे बयान – कि वे बेतुकी हैं- की कटिंग लेकर मदर टेरेसा के पास गया और वे कटिंग देखते ही गुस्से में आग बबूला हो गयीं और उन्होंने कटिंग फाड़ कर फेंक दी. वे इतनी क्रोधित थीं कि कोई बयान देने के लिए तैयार नहीं हुईं. पर बयान तो उन्होने दे दिया- कटिंग को फाड़ कर.
पत्रकार ने कहा,” मैं तो हैरान हो गया उनका बर्ताव देखकर. मैंने उनसे कहा कि कटिंग तो मेरी थी और मैं तो उस बयान पर उनकी प्रतिक्रिया जानने उनके पास गया था”.
और ये लोग समझते हैं कि वे धार्मिक हैं. वास्तव में कटिंग फाड़ कर उन्होंने सिद्ध कर दिया कि मैंने जो कुछ उनके बारे में कहा था वह सही था : कि वे औसत और बेतुकी हैं. अब कटिंग फाड़ना एक बेतुकी बात है.
अब मुझे तो दुनिया भर से इतने ज्यादा कॉम्प्लीमेंट्स – “इनवर्टेड कौमाज़” वाले- मिलते हैं कि अगर मैं उन सबको फाड़ने लग जाऊं तो मेरी तो अच्छी खासी एक्सरसाइज इसी हरकत में हो जाए और तुम्हे पता ही है एक्सरसाइज मुझे कितनी नापसंद है.
(अंग्रेजी प्रवचन से अनुवादित)
– ओशो
– ओशो
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