अभी तक पाकिस्तान इस मुगालते में था कि भारत की पिछली सरकारों की भांति वर्तमान सरकार भी शायद गीदर भभकियाँ दे कर अपनी जनता को भ्रमित कर देगी, परन्तु दांव उल्टा ही पड़ गया।
पाकिस्तान से बदला लेने के लिए भारत के पास दो रास्ते थे, एक तो तुरंत हमला कर देना और दूसरा उसे अलग थलग करके और उसे आतंकी राष्ट्र साबित करके सभी लोगों को इकठ्ठा करके उसे पिटवाना, आपने देखा होगा जब कोई चोर चोरी करता है तो उससे बदला लेने के लिए सभी पडोसी लोगों में उसे पहले चोर साबित करना पड़ता है, जब वह चोर साबित हो जाता है तो सभी पडोसी उसे चोर चोर बोलने लगते हैं और एक दिन सभी लोग मिलकर उसे कूट देते हैं। भारत ने भी यही रास्ता अपनाया है।
| नासमझ पाकिस्तान इशारा भी नहीं समझ पाया ! |
भारत ने दक्षेस की अध्यक्षता कर रहे नेपाल से कहा है कि एक देश ने ऐसा माहौल बना दिया है जो शिखर सम्मेलन के लिए हितकारी नहीं।
गौरतलब है कि 18 सितंबर को उरी में हुए आतंकवादी हमले में 19 जवान शहीद हुए थे। एएनआई ने विदेश मंत्रालय के हवाले से कहा है कि मौजूदा परिस्थितियों में भारत सरकार इस्लामाबाद में प्रस्तावित सम्मेलन में हिस्सा लेने में असमर्थ है। विदेश मंत्रालय ने सार्क के मौजूदा अध्यक्ष नेपाल को बताया है कि सीमा-पार से आतंकवादी घटनाएं बढ़ी हैं। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि उन्हें कोई आधिकारिक जानकारी नहीं मिली है, बल्कि भारतीय विदेश मंत्रालय के ट्वीट से यह पता चला है। लेकिन भारत का ऐसा फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है।
पाकिस्तान तो गया काम से
इस्लामाबाद सार्क सम्मलेन नवम्बर महीने में होने वाला है, लेकिन भारत द्वारा इस सम्मलेन का बहिष्कार करने के बाद अब पडोसी देशों बांग्लादेश, अफगानिस्तान और भूटान ने भी इसका बहिष्कार करने का ऐलान किया जिसके बाद इस सम्मेलन पर संकट के बादल मंडराने शुरू हो गए हैं, नेपाल और श्रीलंका के फैसले के बाद इस सम्मलेन का पूरी तरह से बहिष्कार हो जाएगा जिसके चांसेस 99 फ़ीसदी हैं।
सार्क सम्मेलन को लेकर पाकिस्तान को दोहरा झटका लगा है। भारत के बाद अब बांग्लादेश ने भी सार्क सम्मेलन से किनारा कर लिया है और शिरकत नहीं करने का फैसला किया है। गौर हो कि सार्क शिखर सम्मेलन पाकिस्तान के इस्लामाबाद में नवंबर के महीने में आयोजित होना है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लिए यह दोहरा झटका है।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा कि पडोसी देश पाकिस्तान द्वारा लगातार आतंकवाद को बढ़ावा देने की घटनाएं सामने आने के बाद अफ़ग़ानिस्तान अगले महीने इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मलेन में भाग लेने से असमर्थ है। बांग्लादेश ने कहा कि पिछले कुछ समय से बांग्लादेश में जिस तरह से आतंकी घटनाएं बढ़ रही हैं और पाकिस्तान का बांग्लादेश में दखल बढ़ रहा है, ऐसी स्थति में बांग्लादेश भी इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मलेन में भाग लेने में असमर्थ है। इसके अलावा पडोसी देश भारत के रूख का भी हम समर्थन करते हैं।
भूटान ने भी एक बयान जारी करते हुए कहा कि भूटान की शाही सरकार पडोसी देशों की चिंता से भली भाँती वाकिफ है, जिस तरह से आसपास आतंक की घटनाएं बढ़ रही हैं, ऐसे माहौल में भूटान भी सार्क सम्मलेन में भाग लेने में असमर्थ है।
श्रीलंका ने भी कहा है कि भारत की गैरमौजूदगी से यह सम्मलेन होना असंभव है।
भारत के बायकॉट का क्या होगा असर?
1985 में बने इस गुट में भारत सबसे बड़ा सदस्य है। अगर भारत और तीन अन्य सदस्य इस सम्मेलन में नहीं जाएंगे तो इसके आयोजन पर भी संकट के बादल छा गए हैं। नए नियमों के मुताबिक, सम्मेलन में सभी सदस्य देशों की मौजूदगी जरूरी है, नहीं तो आयोजन स्थगित करना पड़ेगा या रद्द करना पड़ेगा। 1985 के बाद ये पहला मौका होगा जब भारत ने सार्क सम्मेलन का बायकॉट करने का फैसला लिया है। इस सम्मेलन में भारत के नहीं जाने से आयोजन की सारी तैयारियां धरी की धरी रह जाएंगी। श्रीलंका ने कह दिया है कि भारत की भागीदारी के बगैर सार्क सम्मेलन मुमकिन नहीं है।
भारत के इस कदम का चार अन्य सदस्य देशों का साथ देने का मतलब है कि भारत दक्षिण एशिया में अपनी मजबूत कूटनीतिक पकड़ बना रहा है। अफगानिस्तान और बांग्लादेश तो खुद भी आतंकवाद से जूझ रहे हैं, लेकिन भूटान और श्रीलंका जैसे छोटे देशों का भारत के साथ खड़ा होना भारत की ताकत को दिखाता है।
जीडीपी के हिसाब से सार्क की इकोनॉमी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। सार्क के सदस्य देश दुनिया के तीन फीसदी दायरे में फैले हुए हैं और दुनिया की पूरी आबादी का करीब 21 फीसदी हिस्सा इन देशों में रहता है। इन आठ देशों में भारत का क्षेत्रफल और आबादी 70 फीसदी से भी ज्यादा है।
2005-10 के दौरान सार्क की औसत जीडीपी ग्रोथ रेट 8.8 फीसदी प्रतिवर्ष थी लेकिन 2011 में यह घटकर 6.5 फीसदी रह गई। यह भारत में आर्थिक मंदी का असर था क्योंकि सार्क की कुल इकोनॉमी का करीब 80 फीसदी भारत के हिस्से में है।
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