आज पत्रकारिता का स्तर इतना गिर जाएगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। वैसे इसमें कोई दो राय भी नहीं कि पहले भी पत्रकार नेताओं के पे-रोल पर थे। लेकिन अब तो पानी सिर को पार करने को है। किसी को राष्ट्रीय पुरस्कार चाहिए तो किसी को राज्य सभा सीट या कोई अन्य पुरस्कार। आज निर्भीक पत्रकारिता हो रही है, राजनीतिक दलों के इशारे पर। और इसको उजागर कर रहे हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल। जिसके लिए वास्तव में केजरीवाल बधाई के पात्र हैं। जिस मीडिया को कोसते थे उसी की पोल भी खोल रहे हैं।
लेकिन इन सब बातों के उजागर होने से केजरीवाल को यह भी समझ लेना चाहिए कि जिस मीडिया के प्रमुख से साठगांठ कर अपना इंटरव्यू प्रसारित करवा रहे हैं, उस मीडिया में उनके दुश्मन भी बैठे हुए हैं, जो अपनी नौकरी को दांव पर रख उन्ही की पोल भी खोल रहे हैं। या यह भी सम्भव है कि वही प्रमुख केजरीवाल और केजरीवाल के विरोधियों से मिल यह खेल खेल रहे हों। क्योंकि इस में कोई दो राय भी नहीं कि वास्तव में केजरीवाल की राजनीति किसी को भी रास नहीं आ रही। सभी लोग समझ चुके हैं कि केजरीवाल जो बोलते हैं करते उसके बिल्कुल विपरीत हैं। केवल रायता फ़ैलाने के सिवा कुछ नहीं कर रहे।
राजदीप सरदेसाई दिखावा तो खूब करते है की वो एक निष्पक्ष पत्रकार है लेकिन सच्चाई कुछ और ही है l राजदीप सरदेसाई के नाम को लगभग सारे लोग जानते हैl ये जनाब बहुत काम समय में दौलत और शोहरत हासिल करने वाले पत्रकारों में से एक है l कांग्रेस के शासनकाल में इनको पदम् श्री के अवार्ड भी दिया जा चुका है l लेकिन इनकी पत्रकारिता को देखकर ऐसा बिलकुल नहीं लगता की इन्हें देश के इतने बड़े सम्मान से दिया जाना चाहिये था l
दूसरी तरफ हमे एक वीडियो हासिल हुआ है, जिसमे साफ़ तौर पर देखा जा सकता है की राजदीप किस तरह से अरविन्द केजरीवाल के साथ मिलकर इंटरव्यू फिक्स कर रहे है l
देखें वीडियो
इनके अलावा बहुत पहले भी एक वीडियो सामने आया था l जिसमें आज तक पुण्य प्रसून वाजपेयी अरविन्द केजरीवाल के साथ इंटरव्यू फिक्स करते दिखाई दिए थे, सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर खूब वायरल भी हुआ था l हम आपके लिए वो वीडियो भी लेकर आये है l
देखिये वो वीडियो भी
अब इन दोनों इंटरव्यू से स्पष्ट है कि या केजरीवाल पेड-मीडिया को उजागर कर रहे हैं या इनकी राजनीति से परेशान मीडिया। आखिर मीडिया वालों के भी परिवार हैं, सगे सम्बन्धी है,, मित्र है। हो सकता है, सम्भव भी हो कि जनता की परेशानियों को देखते हुए केजरीवाल को उजागर करने का षड्यंत्र रचा गया हो। अपने प्रमुख के विरुद्ध कोई भी कर्मचारी जाने का शायद ही दुस्साहस करेगा।
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