खबर के मुताबिक 7वीं कक्षा की किताब में अकबर को जानकारी दी गई है, “अकबर मुशल वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था। जब उसने भारत को एक केंद्रीय सत्ता के अधीन लाने की कोशिश की तो उसे कड़े विरोध का सामनाकरना पड़ा। महाराणा प्रताप, चांद बीबी और रानी दुर्गावती ने उनके खिलाफ संघर्ष किया। उनका संघर्ष उल्लेखनीय है।” अकबर के शासनकाल को तीन लाइनों में सिमटने की कोशिश की गई है। दिया गया है। इसके अलावा किताब में रुपया को लेकर भी कोई जिक्र नहीं है। भी उल्लेख नहीं है जिसे अफगान आक्रांताओं ने जारी किया था जो अब तक प्रचलन में है। वहीं बीते साल की पुस्तक की बात करें तो उसमें अकबर को एक उदार और सहिष्णु शासक बताया गया था।
इसके अलावा मौजूदा पुस्तक में से दिल्ली में शासन करने वाली पहली महिला रजिया सुल्तान, मुहम्मद बिन तुगलक के दिल्ली से दौलताबाद (मौजूदा मराठावाड़ा) में राजधानी शिफ्ट करने और देश में पहली विमुद्रीकरण पहल को हटा दिया गया है। मुहम्मद बिन तुगलक ने रातों-रात सोने और चांदी के सिक्कों की जगह पर तांबे और पीतल के सिक्कों का चलन शुरू किया था। ऐसे ही शेर शाह सूरी से जुड़ी जानकारी भी हटा दी गई है। शेर शाह सूरी ने ही हुमायूं को भारत से भागने को मजबूर किया था। वहीं मध्यकालीन भारतीय इतिहास के खंड में शिवाजी के इतिहास पर ज्यादा जोर दिया गया है। पुरानी किताब में उनके अध्याय का नाम जहां “पीपल्स किंग” था वहीं उसे अब बदलकर “एन आइडियल रूलर” किया गया है।
राजस्थान सरकार ने बदला हल्दीघाटी युद्ध का इतिहास, लिखा- महाराणा प्रताप ने अकबर को हराया था
इस सन्दर्भ में अवलोकन करें:--
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बता दें महाराणा प्रताप के इतिहास को बदलने की जानकारी इसी साल की शुरुआत में आई थी। फरवरी 2017 में वसुंधरा राजे सरकार के तीन मंत्रियों ने उस प्रस्ताव का समर्थन किया था, जिसके तहत इतिहास के तथ्य बदलने की बात की गई थी। महाराणा प्रताप के हल्दीघाटी युद्ध पर फिर से चर्चा का मुद्दा उठाया गया था क्योंकि इस युद्ध के बारें में इतिहासकारों की अलग-अलग राय है। फरवरी 2017 के करीब राजस्थान विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर और इतिहासकार डॉक्टर चन्द्रशेखर शर्मा ने एक शोध प्रस्तुत किया था जिसके मुताबिक 18 जून 1576 ई. को हल्दीघाटी युद्ध मेवाड़ तथा मुगलों के बीच हुआ था। युद्ध के परिणाम के बारे में तरह-तरह की बाते की जाती हैं लेकिन असल में इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने जीत हासिल की थी। डॉ. शर्मा ने विजय को दर्शाते प्रमाण राजस्थान विश्वविद्यालय में जमा कराए थे। वहीं मार्च 2017 में राज्य सरकार के अकबर के नाम के आगे से ‘महान’ शब्द हटाने की खबर सामने आई थी। राजस्थान के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने मुगल सम्राट अकबर की तुलना ‘आतंकियों’ से की थी।
इसके अलाव गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी मई 2017 में कहा था कि महाराणा प्रताप को इतिहास में वो जगह नहीं मिली जो उन्हें मिलनी चाहिए थी। महाराणा प्रताप में ऐसी कौन-सी कमी थी। यह बात उन्होंने राज्य के पाली जिले के खारोकडा गांव में महाराणा महाराणा प्रताप की अनावरण कार्यक्रम के दौरान कही थी। राजनाथ सिंह ने कहा था कि उन्हें आश्चर्य है कि इतिहासकारों को अकबर की महानता तो नजर आई, लेकिन राजस्थान के वीर सपूत महाराणा प्रताप की महानता नजर नहीं आयी।
राजनाथ सिंह ने पूछा- इतिहासकारों को महाराणा प्रताप में क्या कमी दिखी जो वे उनकी जगह अकबर को महान बताते हैं
राजनाथ सिंह पाली जिले के खारोकडा गांव में महाराणा प्रताप की मूर्ति का लोकार्पण करने के बाद समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उन्हें आश्चर्य हो रहा है कि इतिहासकारों को अकबर तो महान दिखा लेकिन महाराणा प्रताप की महानता उन्हें दिखायी नहीं दी। इतिहासकारों ने इस मामले में (महाराणा प्रताप का) सही मूल्यांकन नहीं किया है। इतिहासकारों को अपनी इस गलती को सुधारना चाहिए।
वास्तव में जो इतिहास संशोधन स्वतन्त्रता उपरान्त होना था, वह काम अब 2017 से प्रारम्भ हो रहा है। वैसे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी के कार्यकाल में केन्द्रीय मन्त्री डॉ मुरली मनोहर जोशी ने शुरुआत करने का प्रयास किया, खिचड़ी सरकार होने के कारण तुष्टिकरण हावी हो गया और डॉ जोशी को अपने बड़े कदम वापस पीछे करने पड़े। यही कारण था कि प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर डॉ मनमोहन सिंह तक सभी तुष्टिकरण को अपनाते राज करते रहे। जिस कारण भ्रमित इतिहास को हम भारतीय वास्तविक इतिहास मानते रहे और वास्तविक इतिहास बताने वालों को साम्प्रदायिक, फिरकापरस्त, मुस्लिम विरोधी आदि नामों से अलंकृत करते रहते हैं।
मेरे अपना मत है, कि वास्तविकता जानने उपरान्त शायद ही कोई मुस्लिम विरोध में खड़ा हो, कुछ कट्टरपंथियों को छोड़। बल्कि यही मुसलमान इतिहास से इतना खतरनाक खिलवाड़ यानि बलात्कार से कहीं अधिक घिनौना अपराध करने वालों की मान्यता समाप्त कर, उन्हें दण्डित करने सडकों पर आएंगे।
भारतीय इतिहास के साथ इतनी अधिक छेड़खानी की गयी है, जिसका कोई हिसाब नहीं। किसी पुरुष द्वारा किसी महिला का बलात्कार करने पर जिस नेता को देखो उस बलात्कार पर अपनी रोटी सेंकने लगता है। इतने कानूनों के बावजूद नए कानून बनाने की वकालत करते हैं। लेकिन जिन इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास के साथ चंद चांदी के सिक्कों की खातिर बलात्कार किया है, उन्हें सजा देने के लिए सड़क से लेकर संसद तक सन्नाटा पसरा पड़ा है। क्यों? भारतीय इतिहास के बलात्कारी आज भी मालपुए खा रहे हैं, फूलों की सेज़ पर आनन्दित हो रहे हैं , यदि यही इतिहास-बलात्कार विश्व के किसी भी देश में हुआ होता, ऐसे लोगों पर कानूनी कार्यवाही हो गयी होती।
कश्मीर में स्कूल-कॉलेज आदि को आग लगाना, आए दिन बंद करवाना, मुग़ल काल को दोहराने का प्रयास कर रहे हैं। मुगलकाल में हिन्दुओं को अपने त्यौहार मनाने और समाननीय जीवन जीने के लिए जज़िया देना पड़ता था, लेकिन आज हज जाने वालों को सब्सिडी दी जाती है, जो विश्व में कोई देश नहीं देता, परन्तु भारत में दी जाती है।
मुग़लों का गुणगान करने की बजाए, भारतीय जनता को मुगलों की निम्न ज्यादतियों से क्यों नहीं अवगत करवाया गया। मुग़ल जिस देश से आए थे, वहाँ कोई उनका नाम लेने वाला कोई नहीं, लेकिन भारतीय जयचंदों के कारण भारत में आतताइयों को महान बताकर जीवित रखा जा रहा है।
क्या कहीं हिन्दी, पंजाबी या बंगाली बाजार देखा है?
दिल्ली जामा मस्जिद पर उर्दू बाजार है, क्यों? क्या अर्थ होता है उर्दू का? यह कोई भाषा नहीं, इस उर्दू शब्द की वास्तविकता को जनता से छुपाना ही अब तक की सरकारों एवं इतिहासकारों का सर्वाधिक घृणित काम है। यदि वास्तव में यह भाषा के नाम पर है, तो हिन्दू बहुल क्षेत्रों में हिन्दी, संस्कृत या बंगाली क्षेत्रों में बांग्ला नाम से कोई बाजार क्यों नहीं? क्या उर्दू बाजार नाम रखे जाने के रहस्य से पर्दा उठाया जाएगा?
मुग़लकाल में जामा मस्जिद क्षेत्र में मटिया महल है, जहाँ मिट्टी के महल थे, जहाँ गर्मी के मौसम में मुग़ल बेगमें रहती थी, मुगलों की इतनी बड़ाई करने वालों बताओ तो सही कहाँ गए मिट्टी के वो महल, किसने बर्बाद किए? क्या इन्हे तोड़ने वालों के विरुद्ध कोई आपराधिक मामला दर्ज़ हुआ या नहीं? यदि यहाँ कोई मिट्टी का महल नहीं था या थे, फिर मटिया महल नाम क्यों?
खिलजी ने आखिर क्यों जलवा दी थी नालंदा यूनिवर्सिटी ?
प्राचीन विश्व का प्रसिद्ध विश्वविद्यालय नांलदा जो छटवीं शताब्दी.में पुरे वर्ल्ड का नॉलेज का सेन्टर थी जहाँ कोरिआ 'चीन 'जपान 'तिब्बत ओर तुर्की से स्टूडेंट्स और टीचर्स पढ़ने-पढ़ाने आते थे लेकिन बख्तियार खिलजी नाम के एक सिरफ़िरे ने इसको तहस -नहस कर दिया था। उसने नांलदा यूनिवर्सिटी में आग लगवा दी थी जिससे इसकी लाइब्रेरी में रखी करीबन 35 हजार बेशकीमती पुस्तकें जलकर राख हो गयी थी। इस दौरान उसने यहाँ पढ़ने वाले एवं धार्मिक गुरुओं को मौत के घाट उतार दिया था।
पहली शताब्दी से लेकर 11 वीं शताब्दी तक भारत की आर्थिक स्थिति बहुत सुदृढ़ थी जिसके चलते 1193 ईस्वी में इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने भारत पर आक्रमण किया एवं 4 वर्षों तक हिन्दुस्तान में भयंकर लूटपाट की। नालंदा यूनिवर्सिटी उस समय राजगीर का उपनगर हुआ करती थी। यह राजगीर से पटना को जोड़ने वाली सड़क पर स्थित है। कहा जाता है कि एक बार बख्तियार खिलजी बहुत बुरी तरह से बीमार पड़ा था। उसने अपने हकीमों से इलाज करवाया लेकिन उसे कोई स्वास्थ्य लाभ नहीं हुआ तो उसने अपने हकीमों की सलाह पर नालंदा की आयुर्वेद शाखा के प्रधान राहुल श्रीभद्र को बुलवाया।
उसने राहुल श्रीभद्र से कहा की मेरा इलाज मेरे वतन की दवाओं से ही होना चाहिए और अगर मैं एक पखवाड़े में स्वस्थ नहीं हुआ तो तुम्हें मौत की सजा दे दी जायेगी। श्रीभद्र ने कुछ सोचा एवं खिलजी की शर्त मान ली। कुछ दिन बाद वह अपने हाथ में एक पुस्तक लेकर लौटा एवं खिलजी को कहा की मैं आपको कोई भी ओषधि नहीं दूंगा लेकिन अगर आप मन से यह पूरी किताब पढ़ लेंगे तो आपको जल्द ही स्वास्थय लाभ प्राप्त होगा। दरअसल श्रीभद्र ने उस किताब के पन्नों पर औषधीय लेप चढ़ा दिया था, खिलजी अपनी अँगुलियों पर थूंक लगा कर उसके पन्ने पलटता हुआ जल्द ही स्वस्थ हो गया। श्रीभद्र को जब उसके साथयों ने पूछा की ऐसा नामुमकिन काम उसने कैसे किया तो उसने सबको असलियत बता दी और जल्द ही यह बात खिलजी तक पहुँच गयी। खिलजी ने श्रीभद्र का अहसान मानने की बजाय नालंदा यूनिवर्सिटी पर आक्रमण कर दिया एवं जो भी सामने आया उसे मौत के घाट उतार दिया गया एवं पुरे नालंदा परिसर को आग लगवा दी। कहा जाता है की यह आग लगातार तीन महीनों तक जलती रही एवं समस्त बहुमूल्य साहित्य को नष्ट करके ही बुझी।
https://www.facebook.com/hindutvakranti/videos/846405828849498/उपरोक्त वीडियो से मुगलों की ज़ालिम मानसिकता का आभास होता है। फिर जिस अकबर को महान बताकर हमें पढ़ाया जाता है, यह क्यों नहीं पढ़ाया कि इसी अकबर ने ज्वाला माता की जोत को बुझाने के लिए नीचता की कितनी सीमाएँ लाँधि थी, और जब अपनी नीचता में असफल होने पर नंगे पाओं लेकर तो सोने का छतर लेकर गया, परन्तु माता पर चढ़ाने उपरान्त, किस धातु का बन गया, पता नहीं, जो न लोहे का प्रतीत होता है और न ही तांबे का, जिसे आज भी देखा जा सकता है।
अय्याशी के लिए मीना बाजार लगवाता था। 








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