सच होते फिल्मों के डायलॉग क्या ड्रोन से ही होगी अब जंग, बेकार हो जाएँगे बड़े-बड़े लड़ाकू विमान? रूस-यूक्रेन से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक बदली युद्ध की तस्वीर; आज ऐसी दूरदर्शी फिल्मों का आभाव है
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ड्रोन युग ( फोटो साभार- एआई ग्रोक ) |
बॉर्डर फिल्म में जैकी श्रॉफ द्वारा अभिनीत विंग कमांडर एंडी बाजवा, सनी देओल द्वारा अभिनीत मेजर कुलदीप सिंह चाँदपुरी से कहते हैं कि यह वायुसेना ही है जो दुश्मन को उसके इलाके में मार गिराती है। एक समय था जब यह हकीकत थी। कारगिल युद्ध में वायुसेना ने पाकिस्तानी चौकियों और बंकरों को ध्वस्त करने में अहम भूमिका निभाई थी।
युद्ध की कहानियाँ और फिल्मों की पटकथाएँ वास्तविक जीवन के अनुभवों के आधार पर बनती हैं, लेकिन तकनीक में तेजी से बदलाव हुआ है। अब किफायती ड्रोन युद्ध के मैदान में बेहद कारगर हथियार बन गए हैं।
दुनियाभर में युद्ध का तरीका बदल रहा है। कॉकपिट डॉगफाइट्स में नहीं, बल्कि कंटेनर, ट्रकों, गुफाओं और बंकरों से किए जाने वाले हमलों में है। ड्रोन, घूमते हुए हथियार, एफपीवी, मशीनें जो न सोती हैं, न खाती हैं, न सवाल करती हैं। ये बस आज्ञा मानती हैं और अब युद्ध की कहानियाँ लिख रही हैं।
ड्रोन युद्ध का युग आ गया है। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या लड़ाकू विमान अब संग्रहालय की शोभा बढ़ाएँगी? यूक्रेन-रूस युद्ध में नई तस्वीर सामने आई है। यूक्रेन के ड्रोन ने रूस में तबाही मचा दी। हाई-टेक राफेल, एफ-35, मिग इंजन या सुखोई की गड़गड़ाहट को अब भूल जाइए। रूस-यूक्रेन युद्ध ने इतिहास में जंग की नई दास्तान लिखी है। इसमें सस्ते ड्रोन, और सस्ते एफपीवी क्वाडकॉप्टर ने न केवल ऑपरेशन को अंजाम दिया, बल्कि उन्हें परिभाषित भी किया।
अचानक दुनिया भर के देशों ने ऐसे ड्रोन खरीदना शुरू कर दिया है, जो लड़ाकू जेट और महंगी मिसाइलों के काम को सस्ते, सटीक और जोखिम-मुक्त तरीके से कर सकते हैं।
ऐसा नहीं है कि ड्रोन कभी युद्ध का हिस्सा नहीं रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश सीरिया सहित मध्य पूर्व देशों पर हमला करने के लिए उनका उपयोग करते रहे हैं। हालाँकि वे जिन ड्रोन का उपयोग करते हैं, वे महंगे हैं और उन्हें हासिल करना मुश्किल है। अब जिन ड्रोनों का उपयोग किया जा रहा है वे लड़ाकू जेट की तुलना में बहुत सस्ते हैं।
ड्रोन अब सहायक हथियार नहीं, युद्ध विजेता हैं
युद्ध के शुरुआती दिनों से ही, तुर्की के बायरकटर टीबी2 ने यूक्रेन को रूसी बख्तरबंद गाड़ियों को नष्ट करने में मदद की। जवाबी कार्रवाई में रूस की ओर से ईरानी शाहद-136 ड्रोन यूक्रेनी शहरों को निशाना बनाया। फिर ग्रेनेड के साथ रेट्रोफिट किए गए व्यावसायिक रेसिंग ड्रोन का इस्तेमाल किया गया। ये केवल तभी विस्फोट करते थे जब टारगेट सुनिश्चित होती थी। युद्ध शुरू होने के बाद से रूस और यूक्रेन दोनों ने सैकड़ों वीडियो साझा किए गए, जिसमें दिखाया गया था कि कैसे सस्ते ड्रोन सफलतापूर्वक दुश्मन को मार गिराते हैं।
हाल ही में यूक्रेन ने ‘ऑपरेशन स्पाइडरवेब’ में दिखाया कि ड्रोन युद्ध कुछ ही दिनों में कितना विकसित हो गया है। यूक्रेन ने करीब डेढ़ साल पहले कथित तौर पर रूस के अंदर स्थित एयरबेस पर हमला करने की तैयारी शुरू कर दी थी। ड्रोन्स को लकड़ी के कंटेनरों और मोबाइल केबिनों में छिपाकर रूस में तस्करी की गई। हमले के समय इन कंटेनरों की छतें रिमोट से खोली गईं। ड्रोन्स ने रूसी विमानों पर सटीक हमला किया। अब सीमा पार कर हमले के लिए किसी जेट की जरूरत नहीं थी। बस योजना, धैर्य और एक लैपटॉप की जरूरत थी। यह कोई साइंस फिक्शन नहीं है। यह ड्रोन युद्ध का नया तरीका है।
This will be in textbooks.
— Maria Avdeeva (@maria_avdv) June 1, 2025
Ukraine secretly delivered FPV drones and wooden mobile cabins into Russia. The drones were hidden under the roofs of the cabins, which were later mounted on trucks.
At the signal, the roofs opened remotely. Dozens of drones launched directly from the… pic.twitter.com/sJyG3WyYYI
भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने दिया संदेश
हाल ही में, भारत ने पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया। पहलगाम में 26 निर्दोष हिंदुओं की जान चली गई थी। भारत ने पाकिस्तान और पीओके में आतंकी शिविरों पर हमला किया। इसके बाद पाकिस्तान ने अपने सहयोगी देशों से प्राप्त ड्रोन का इस्तेमाल किया। भारतीय नागरिकों और सैन्य ठिकानों पर हमला करने की कोशिश की गई। लेकिन, भारतीय वायु रक्षा प्रणाली ने इसे रोक दिया।
A 100% Indian-designed suicide drone called the JM-1 made its combat debut in Operation Sindoor becoming the first ‘Atmanirbhar’ loitering munition to strike Pakistani targets. The Indian drone warfare story is probably this conflict’s biggest takeaway: pic.twitter.com/u6SUDjHqOD
— Shiv Aroor (@ShivAroor) May 20, 2025
फिर भारत के लिए जवाबी कार्रवाई करने का समय आ गया। भारतीय सशस्त्र बलों ने भारत में बने एफपीवी ड्रोन, हेरॉन यूएवी और सामरिक लोइटरिंग मुनिशन पर बहुत अधिक भरोसा किया। भारत द्वारा निर्मित लोइटरिंग मुनिशन जेएम-1 ने भी ऑपरेशन में अपनी क्षमता साबित की। हाई रिज़ॉल्यूशन वाले ड्रोन निगरानी प्रणाली का उपयोग करके लक्ष्यों की मैपिंग की गई। खुफिया इनपुट के साथ क्रॉस वेरिफाई किया गया और फिर सटीक हमले किए गए।
साथ ही भारतीय मिसाइलों ने पाकिस्तानी हवाई ठिकानों को तबाह कर दिया। इस दौरान भारतीय नकली ड्रोन ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, खासकर भारतीय लड़ाकू विमानों से मेल खाने वाले ड्रोन्स ने पाकिस्तानी वायु रक्षा प्रणाली को भ्रमित कर दिया।
अजरबैजान आर्मेनिया युद्ध में ड्रोन का इस्तेमाल
यूक्रेन-रूस जंग से पहले 2020 के नागोर्नो-करबाख युद्ध में पहली बार मानव रहित ड्रोन का इस्तेमाल किया गया। तुर्की के बायरकटर टीबी2 ड्रोन से लैस अजरबैजान ने अर्मेनियाई सेना को अपने अधीन कर लिया। अजरबैजान ने कथित तौर पर वायु रक्षा प्रणाली की जानकारी प्राप्त करने के लिए ‘चारा ड्रोन’ का इस्तेमाल किया और फिर उन्हें नष्ट करने के लिए आधुनिक ड्रोन का इस्तेमाल किया।
Vətən müharibəsində dronları idarə edən hərbçilərimizin ermənilərə mesajı: SÜRPRİZ #Azerbaijan #Azerbaycan #Karabakh #QarabağAzərbaycandır #Karabağ #Drone #BayraktarTb2 pic.twitter.com/ncwjPRN2IR
— Ismayil Jabiyev (@ismayiljabiyev) November 2, 2021
सिर्फ 44 दिनों में आर्मेनिया ने सैकड़ों टैंक, तोपें और मोबाइल एयर डिफेंस यूनिट खो दिए। उनमें से कई ड्रोन द्वारा रिकॉर्ड किए गए फुल एचडी फुटेज में नष्ट हो गए।
Azerbaijan’s use of Turkish drones gave it a decisive edge and victory over Armenia in the Nagorno-Karabakh conflict in 2020.
— TRT World (@trtworld) January 5, 2021
Here’s a look at why the world is now taking notice of Turkish drone and defence technology pic.twitter.com/7P5EXhVoDm
घूमते-फिरते हथियार
MQ 9 रीपर जैसे ड्रोन लक्ष्य पर हमला करने के बाद घर लौट आते हैं। हालाँकि, घूमते-फिरते हथियार या LM, प्रतीक्षा करने के लिए बनाए गए हैं। ये एक भिक्षु के धैर्य और एक फिदायीन के स्वभाव जैसे उड़ने वाले स्नाइपर की तरह हैं। एक बार लॉन्च होने के बाद, वे कभी-कभी घंटों तक युद्ध के मैदान के ऊपर चक्कर लगाते हैं, हरकतों को स्कैन करते हैं। जिस समय सैनिकों का ग्रुप, टैंक या रडार सिग्नल पर लॉक होते हैं और बगैर चेतावनी के टारगेट को ध्वस्त कर देते हैं। इससे बचना काफी मुश्किल होता है।
Russia turned Oekainian armoured vehicles into scrap metal. The footage shows several armoured vehicles destroyed by Russian UAVs and Lancet loitering munitions of the Sever Group of Forces in the border area of Kursk region. pic.twitter.com/u1Mob5T3zG
— sonja van den ende (@SonjaEnde) August 24, 2024
भारत के नागस्त्र-1 की कीमत मात्र 5,500 डॉलर या लगभग 4.69 लाख रुपये है। जबकि एक राफेल की कीमत लगभग 242 मिलियन डॉलर है। यानी एक राफेल की तुलना में भारत उसी कीमत पर 44,000 नागस्त्र-1 ड्रोन अपने शस्त्रागार में जोड़ सकता है।
इजरायल जैसे देशों ने हारोप जैसी प्रणालियों के साथ प्रौद्योगिकी का बीड़ा उठाया, लेकिन अब ईरान के शाहेद 131 और 136 भी प्रतिस्पर्धा दे रहे हैं। युद्ध अब हवाई युद्ध में लगे लड़ाकू विमानों से नहीं लड़े जाते। वे ऊपर से निगरानी करने वाले ड्रोनों से लड़े जा रहे हैं और लड़े जाते रहेंगे।
DPR quadcopter drone grenade strikes against Ukrainian soldiers near Pervomaisk pic.twitter.com/pWhXsxiFfQ
— LogKa (@LogKa11) February 11, 2023
शीर्ष युद्ध ड्रोनों पर एक नज़र
भविष्य में नई वायु सेना को अरबों डॉलर के जेट, विशाल हवाई पट्टी और पायलटों की ज़रूरत नहीं होगी, जिन्हें युद्ध में प्रशिक्षित होने में सालों लग जाते हैं। यह शिपिंग कंटेनरों में फिट हो जाता है और मांग पर लॉन्च होता है।
बायरकटर टीबी2 तुर्की निर्मित ड्रोन है जो सस्ता, कैमरा युक्त और घातक है। इसका इस्तेमाल सीरिया, लीबिया, यूक्रेन और अजरबैजान में किया जा चुका है।
बायरकटर टीबी2 स्रोत: Wikiशाहेद 136 और 131 ईरान निर्मित कामिकेज़ ड्रोन हैं जिन्हें यमन से लेकर रूस तक को बेचा जाता है। वे अविश्वसनीय हैं लेकिन ग्रुप में इस्तेमाल किए जाने पर ख़तरनाक है।
शाहेद 136 स्रोत-wikiएमक्यू 9 रीपर संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा निर्मित ड्रोन है। ये लंबे समय तक चलने वाला और सैटेलाइट से जुड़ा हंटर किलर ड्रोन है। ये महंगे हैं लेकिन रेंज और सटीकता में बेजोड़ हैं।
एमक्यू 9 रीपर स्रोत- GAASविंग लूंग II और CH सीरीज चीन निर्मित ड्रोन हैं, जिन्हें रीपर्स को बीजिंग का जवाब माना जाता है। इन्हें अफ्रीका और मध्य पूर्व में बड़े पैमाने पर बेचा गया है।
विंग लूंग II स्रोत- Wikiइजरायल निर्मित आईएआई हारोप और हेरोन ड्रोन भी बेजोड़ हैं। फिलिस्तीन- इजरायल युद्ध में इसका इस्तेमाल किया गया है। इनकी उड़ान क्षमता उल्लेखनीय है।
आईएआई हारोप स्रोत- wikiभारत घातक और CATS वारियर जैसे विश्व स्तरीय ड्रोन भी विकसित कर रहा है। भारत के नागस्त्र-1 का हाल ही में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान इस्तेमाल किया गया।
घातक ड्रोन स्रोत- wikiसबसे अच्छी बात यह है कि इनमें से ज़्यादातर ड्रोन किफ़ायती हैं। इनमें से कुछ की कीमत मिसाइल से भी कम है। युद्ध का मैदान अब सबसे बड़े लोगों और देशों का नहीं, बल्कि सबसे होशियार लोगों और देशों का है।
क्या लड़ाकू विमान खत्म हो गए हैं?
यह घोषणा करना जल्दीबाजी है कि लड़ाकू विमानों का समय खत्म हो गया है। आखिरकार अगर कुछ हज़ार डॉलर का ड्रोन एक छिपे हुए ट्रक से सैकड़ों मिलियन डॉलर के विमान को नष्ट कर सकता है, तो हवाई पट्टी बनाने की क्या ज़रूरत है? हालाँकि, अभी लड़ाकू विमानों को छोड़ने का समय नहीं आया है।
जब बात गहरी पैठ वाले हमलों, हवाई श्रेष्ठता और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध की आती है, तो लड़ाकू विमान अभी भी हावी हैं। ये दुश्मन का मनोबल तोड़ते हैं, तेज गति से बचाव करने वाले मिशन चलाते हैं और ऐसे पेलोड ले जाते हैं जिन्हें ड्रोन अभी भी संभाल नहीं सकते। सुखोई 30, राफेल या यहां तक कि भारत का आगामी एएमसीए की जरूरत और विश्वसनीयता बनी रहेगी।
भविष्य लड़ाकू विमान के साथ-साथ ड्रोन युग का होगा यानी लड़ाकू विमानों के ऊपर से बोझ कम हो जाएगा।
ड्रोन सिद्धांत या डायनासोर सिद्धांत
दुनिया भर की सेनाओं के लिए असली सवाल यह नहीं है कि ड्रोन काम करते हैं या नहीं। सवाल यह है कि क्या उन्होंने ड्रोन के साथ नेतृत्व करने के लिए खुद में तेजी से बदलाव किया है?
अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत को डेढ़ लाख करोड़ रुपये अधिक राफेल में निवेश करना चाहिए या आधी राशि स्वदेशी ड्रोन और एआई – आधारित युद्ध प्रणाली बनाने में खर्च करनी चाहिए। क्या भारत पर्याप्त ड्रोन ऑपरेटरों, कोडर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध रणनीतिकारों को ट्रेनिंग दे रहा है, या सिर्फ अधिक लड़ाकू पायलटों को? बीसवीं सदी में जिसने भी आसमान को नियंत्रित किया, उसने युद्ध को नियंत्रित किया।
इक्कीसवीं सदी में डेटा भी काफी अहम है। साइबर सुरक्षा, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमता, ड्रोन रक्षा ग्रिड और स्वायत्त हत्या प्राधिकरण अब सैन्य आवश्यकताएँ हैं, लग्जरी नहीं।
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