सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के साथ ही भारत उन 25 अन्य देशों के साथ जुड़ गया जहां समलैंगिकता वैध है।शीर्ष अदालत ने धारा 377 के तहत सहमति से समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करते हुये कहा कि यह तर्कहीन, सरासर मनमाना और बचाव नहीं किये जाने वाला है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से 495 पेज में चार अलग अलग फैसलों में कहा कि एलजीबीटीक्यू समुदाय को देश के दूसरे नागरिकों के समान ही सांविधानिक अधिकार प्राप्त हैं। लेकिन दुनियाभर में अब भी 72 ऐसे देश और क्षेत्र हैं जहां समलैंगिक संबंध को अपराध समझा जाता है। उनमें 45 वे देश भी हैं जहां महिलाओं का आपस में यौन संबंध बनाना गैर कानूनी है।
उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सितम्बर 6 को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत 158 साल पुराने इस औपनिवेशिक कानून के संबंधित हिस्से को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और कहा कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

इंटरनेशनल लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांस एंड इंटरसेक्स एसोसिएशन के अनुसार आठ ऐसे देश हैं जहां समलैंगिक संबंध पर मृत्युदंड का प्रावधान है और दर्जनों ऐसे देश हैं जहां इस तरह के संबंधों पर कैद की सजा हो सकती है।लेकिन कई देश ऐसे हैं जहां समलैंगिक रिश्ते रखने पर मौत की सजा मिलती है। दुनिया में 13 देशों में इसे क्राइम माना गया है। सोमालिया, नाइजीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कतर, सुडान, ईरान, सऊदी अरब, और यमन में मौत की सजा दी जाती है। जबकि इंडोनेशिया समेत कुछ देशों में होमो सेक्सुअल को मारने की सजा दी जाती है। कुछ और देश ऐसे हैं जहां इसे क्राइम की कटैगरी में रखा गया है। जबकि बहुत सारे देश हैं समलैंगिक संबंधों को मान्यता मिली हुई है। यहां तक कि समलैंगिक पुरूष और महिलाएं शादी करने की भी इजाजत है। आइसलैंड, पुर्तगाल, अर्जेंटीना, बेल्जियम, कनाडा, स्पेन, फ्रांस, ब्राजील, इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, दक्षिण अफ्रीका, नॉर्वे, स्वीडन, कोलंबिया, जर्मनी, माल्टा, लग्जमबर्ग, फिनलैंड, आयरलैंड, ग्रीनलैंड, डेनमार्क, उरुग्वे, न्यूजीलैंड में पहले से ही समलैंगिक संबंधों (गे, लेस्बियन संबंधों) को मान्यता मिली हुई है। अब इस कटैगरी में भारत का भी नाम जुड़ गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने एकमत से अपनी व्यवस्था में कहा कि परस्पर सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंध अपराध नहीं है। न्यायालय ने कहा कि ऐसे यौन संबंधों को अपराध के दायर में रखने संबंधी भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के प्रावधान से संविधान में प्रदत्त समता और गरिमा के अधिकार का हनन होता है।
शीर्ष अदालत ने धारा 377 के तहत सहमति से समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करते हुये कहा कि यह तर्कहीन, सरासर मनमाना और बचाव नहीं किये जाने वाला है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से 495 पेज में चार अलग अलग फैसलों में कहा कि एलजीबीटीक्यू समुदाय को देश के दूसरे नागरिकों के समान ही सांविधानिक अधिकार प्राप्त हैं।
धारा 377 ‘अप्राकृतिक अपराधों’ से संबंधित है और इसमें कहा गया है कि जो कोई भी स्वेच्छा से प्राकृतिक व्यवस्था के विपरीत किसी पुरूष, महिला या पशु के साथ गुदा मैथुन करता है तो उसे उम्र कैद या फिर एक निश्चित अवधि के लिये कैद जो दस साल तक बढ़ाई जा सकती है, की सजा होगी और उसे जुर्माना भी देना होगा। कोर्ट ने कहा कि अदालतों को प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि गरिमा के साथ जीने के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में माना गया है।
भारत के कौन से वेद अथवा शास्त्र के आधार पर यह फैसला आया है, कहा नहीं जा सकता। लगता है, अब देश विश्व चर्चित भारतीय संस्कृति से दूर, पूर्णरूप से पश्चिमी सभ्यता की जकड में आ चूका है।
उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सितम्बर 6 को भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत 158 साल पुराने इस औपनिवेशिक कानून के संबंधित हिस्से को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और कहा कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।


#WATCH Celebrations at Delhi's The Lalit hotel after Supreme Court legalises homosexuality. Keshav Suri, the executive director of Lalit Group of hotels is a prominent LGBT activist.
शीर्ष अदालत ने धारा 377 के तहत सहमति से समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करते हुये कहा कि यह तर्कहीन, सरासर मनमाना और बचाव नहीं किये जाने वाला है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से 495 पेज में चार अलग अलग फैसलों में कहा कि एलजीबीटीक्यू समुदाय को देश के दूसरे नागरिकों के समान ही सांविधानिक अधिकार प्राप्त हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को समलैंगिकता पर बड़ा फैसला दिया। | तस्वीर साभार: PTI |
भारत के कौन से वेद अथवा शास्त्र के आधार पर यह फैसला आया है, कहा नहीं जा सकता। लगता है, अब देश विश्व चर्चित भारतीय संस्कृति से दूर, पूर्णरूप से पश्चिमी सभ्यता की जकड में आ चूका है।
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