नेहरू से लेकर PM मोदी तक किसी ने नहीं की नेताजी की राख वापस लाने की कोशिश--आशीष रे, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते आशीश रे ने नेहरू से लेकर पीएम मोदी तक सरकारों पर नेताजी की अनदेखी करने का आरोप लगाया है।
हिन्दू स्वयंसेवी संस्थाएँ हिन्दू हितों की बात करने से लेशमात्र भी संकोच नहीं करती। लेकिन विरासत को भारत वापस लाने में संकोच करती हैं। कितने दशकों तक हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की अस्थियों का अनादर होता रहा, किसी ने चिंता नहीं की। पृथ्वीराज की अस्थियाँ अफ़ग़ानिस्तान में मोहम्मद गोरी की मज़ार पर चढ़ने वाली सीढ़ियों में रख, उस सीढ़ी पर जूते-चप्पल मारकर चढ़ने का रिवाज़ था। जिसे लेकर आया, अपनी जान जोखिम में डाल कर तिहाड़ जेल से भाग कर, लेकर आया शेरसिंह राणा। वो भी उस समय जब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का राज था। लगभग वही स्थिति स्वतन्त्रता सैनानी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की राख के साथ हो रही है।
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते और लेखक आशीष रे ने कहा कि नेहरू की पहली सरकार से लेकर पीएम मोदी की आज की सरकार तक सभी नेता जी के लापता होने की सच्चाई में यकीन करते आए हैं लेकिन किसी भी सरकार ने उनकी राख वापस लाने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की है।
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आशीष रे ने बताया विभिन्न सरकारों ने टोक्यो के रेनकोजी मंदिर से नेताजी के अवशेष वापस लाने के लिए बोस के सभी परिवावालों और उन सरकारों तक पहुंचने के प्रयास नहीं किए जो उनके अवशेष वापसी का विरोध कर रहे थे।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नायकों में से एक नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मौत आज भी एक रहस्य है। लेकिन रे उम्मीद कर रहे हैं कि हाल ही में उनकी आने वाली पुस्तक लाइड टू रेस्ट: द कांट्रोवर्सी ओवर सुभाष चंद्र डेथ इस बहस को खत्म करने का काम करेगी।
लेखक ने कहा, भारत सरकार टोक्यो के रेनकोजी मंदिर में रखे गए बोस के अवशेष को संरक्षित रखने के लिए भुगतान करती है। बोस के विस्तारित परिवार और कुछ राजनीतिक पार्टियों ने अवशेष को लाने का विरोध किया लेकिन केंद्र सरकार ने विरोध करने वालों से संपर्क करने का सही तरह से प्रयास नहीं किया। उन्होंने कहा कि 1995 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और उनके विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अवशेष लाने की एक कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हो सके।
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