आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से गठबंधन तोड़कर महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। भाजपा के सभी मंत्रियों ने जून 19 को इस्तीफे दे दिए। दोनों दलों के बीच तीन साल पहले गठबंधन हुआ था। भाजपा ने अब राज्यपाल से राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने की मांग की है। महबूबा ने शाम 4 बजे पार्टी की बैठक बुलाई है। वे भी राज्यपाल को इस्तीफा सौंप चुकी हैं।
दो वजह जो भाजपा ने बताईं : राम माधव ने कहा, ‘‘घाटी में आतंकवाद, कट्टरपंथ, हिंसा बढ़ रही है। ऐसे माहौल में सरकार में रहना मुश्किल था। जम्मू और कश्मीर क्षेत्र के बीच सरकार के भेदभाव के कारण भी हम गठबंधन में नहीं रह सकते थे।’’
दो वजह, जिनकी वजह से मतभेद थे : पहली- रमजान के दौरान सुरक्षाबल आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन रोक दें, इसे लेकर भाजपा-पीडीपी में मतभेद थे। महबूबा के दबाव में केंद्र ने सीजफायर तो किया लेकिन इस दौरान घाटी में 66 आतंकी हमले हुए, पिछले महीने से 48 ज्यादा। दूसरी- पीडीपी चाहती थी कि केंद्र सरकार हुर्रियत समेत सभी अलगाववादियों से बातचीत करे। लेकिन भाजपा इसके पक्ष में नहीं थी।
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महबूबा मुफ्ती दे सकती थीं इस्तीफा, तो पहले ही BJP ने चला 'आखिरी दांव'?
जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी गठबंधन सरकार गिर गई है. बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने घोषणा करते हुए कहा कि कश्मीर के मौजूदा हालात को देखते हुए बीजेपी अब महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व में पीडीपी को समर्थन देने की स्थिति में नहीं है. उन्होंने महबूबा मुफ्ती पर आरोप लगाते हुए कहा कि हालिया दौर में आतंकवाद, हिंसा में इजाफा हुआ है और लोगों के मौलिक अधिकार खतरे में हैं. उन्होंने इसके उदाहरण के लिए पिछले दिनों पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि ऐसी परिस्थिति में पीडीपी को समर्थन जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है. हालांकि बीजेपी भले ही इन कारणों को सरकार से समर्थन वापसी के कारणों के रूप में बता रही है लेकिन बीजेपी और पीडीपी के संबंध कुछ और ही कहानी बयां करते हैं.अवलोकन करें:--
रमजान में सीजफायर
रमजान के मौके पर कश्मीर घाटी में केंद्र ने आतंकवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान ऑपरेशन ब्लैकऑउट की घोषणा की थी. लेकिन इसका घाटी पर सकारात्मक असर नहीं पड़ा. पत्थरबाजी और आतंकवादी गतिविधियों में इजाफा हुआ. वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी की श्रीनगर के बीचोंबीच हत्या कर दी गई. उसके बाद रमजान खत्म होते ही 17 जून को सरकार ने संघर्षविराम की घोषणा को वापस लेते हुए कहा कि अब पहले की तरह ही आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई जारी रहेगी. सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी इस फैसले के खिलाफ थी. पीडीपी अपनी खोई हुई सियासी जमीन को घाटी में हासिल करने के लिए इस संघर्षविराम को आगे बढ़ाए जाने के पक्ष में थी.
जबकि केंद्र का आकलन था कि कश्मीर के हालात बदतर हो रहे हैं, इसलिए इसको बढ़ाया जाना उचित नहीं है. सूत्र यह भी कह रहे हैं कि महबूबा मुफ्ती इस मसले पर केंद्र के रुख से खफा थीं और कश्मीर में संघर्षविराम की मियाद को आगे बढ़ाने की अपील के साथ खुद ही इस्तीफा देने के मूड मे थीं. अगर वह ऐसा करने में सफल हो जातीं तो वह संघर्षविराम खत्म करने के लिए केंद्र को कसूरवार ठहरातीं और खुद को शहीदाना अंदाज में पेश करतीं. पिछले एक साल से महबूबा मुफ्ती जनता में अपने लिए सहानुभूति पैदा करने के लिए लगातार कोशिशों में थीं.
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कांग्रेस ने कहा- सरकार नहीं बनाएंगे : गुलाम नबी आजाद ने कहा- पीडीपी के साथ कांग्रेस के सरकार बनाने का सवाल ही नहीं उठता। हम पीडीपी को समर्थन नहीं देंगे। लेकिन भाजपा पीडीपी सरकार के सिर पर सब तोहमत लगाकर भाग नहीं सकती है। इस सरकार में सबसे ज्यादा जवान शहीद गए। सबसे ज्यादा आतंकी हमले और सीज फायर वॉयलेशन हुआ। वहीं, राज्य में 15 सीटों वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, ‘‘ये भी गुजर गया...।’’
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कश्मीर में बिगड़ते हालात को संभालने में पीडीपी मुख्यमंत्री के असहयोग को बर्दाश्त से बाहर होते देख, आज, जून 19 को भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया, इसके साथ ही महबूबा मुफ्ती सरकार अल्पमत में आ गयी। पत्थरबाजों पर कार्यवाही में असहयोग, मस्जिदों से आतंकवादियों को बचाने के लिए चीख-पुकार, घरों में आतंकवादियों को संरक्षण, धारा 370 को समाप्त कर जम्मू-कश्मीर को भारत की मुख्य धारा में लाने में असहयोग आदि।
ऐसे में जेहन में सवाल उठ रहे हैं कि क्या जम्मू कश्मीर कोई सरकार बनेगी या फिर से विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे? इस सवाल का जवाब यह है कि बीजेपी+पीडीपी गठबंधन टूटने के बाद भी जम्मू कश्मीर में सरकार बनने के विकल्प खुले हैं. आइए समझते हैं जम्मू कश्मीर में कैसे और कौन बना सकते हैं सरकार.
जम्मू कश्मीर में विधानसभा की 87 सीटें हैं. यहां सरकार बनाने के लिए करीब 44 विधायकों का समर्थन चाहिए. बहुमत का आंकड़ा पाने के लिए कई विकल्प बनते दिख रहे हैं.
विकल्प-1
बीजेपी: 25 विधायक
नेशनल कांफ्रेस (फारुख अब्दुल्ला की पार्टी): 15 विधायक
जम्मू कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस: 2 विधायक
पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट: 1 विधायक
निर्दलीय: 3 विधायक
इस तरह बीजेपी की अगुवाई में गठबंधन सरकार बन सकती है. क्योंकि इस फॉर्मूले में 46 विधायक एक पक्ष में दिख रहे हैं. अगर इस तरह का गठबंधन बनता है तो इसमें बीजेपी अपना मुख्यमंत्री बना सकती है, क्योंकि इसमें बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है.
विकल्प-2
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी: 28 विधायक
कांग्रेस: 12
जम्मू कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस: 2 विधायक
पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट: 1 विधायक
निर्दलीय: 3 विधायक
अगर ऐसा कोई गठबंधन बनता है तो महबूबा मुफ्ती अपनी सरकार बचा सकती हैं. इस गठबंधन में भी 46 विधायक के एक पाले में हो सकते हैं.
विकल्प-3
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी: 28 विधायक
नेशनल कांफ्रेस (फारुख अब्दुल्ला की पार्टी): 15 विधायक
कांग्रेस: 12
कुल विधायक: 55 इस तरह महबूबा मुफ्ती गठबंधन सरकार चला सकती हैं. हालांकि यह विकल्प काफी मुश्किल दिख रहा है. क्योंकि पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस का एक साथ आना मुश्किल दिख रहा है.
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राज्य में लोगों का जीने का अधिकार खतरे में :राम माधव ने कहा, ‘‘गृह मंत्रालय और एजेंसियों से सूचनाएं लेने के बाद हमने मोदीजी और अमित शाह से सलाह ली। हम इस नतीजे पर पहुंचे कि इस गठबंधन की राह पर चलना भाजपा के लिए मुश्किल होगा। घाटी में आतंकवाद, कट्टरपंथ और हिंसा बढ़ रही है। लोगों के जीने का अधिकार और बोलने की आजादी भी खतरे में है। पत्रकार शुजात बुखारी की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई। ये स्थिति की गंभीरता को बताता है।’’
हालात संभालने के लिए राज्यपाल शासन लागू हो: ''रमजान के दौरान हमने ऑपरेशन रोके, ताकि लोगों को सहूलियत मिले। हमें लगा कि अलगाववादी ताकतें और आतंकवादी भी हमारे इस कदम पर अच्छी प्रतिक्रिया देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जम्मू-कश्मीर भारत का अखंड और अविभाज्य अंग है। देश की संप्रभुता और राष्ट्रहित में हम चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में हालात संभालने के लिए राज्यपाल शासन लागू हो।"
जम्मू कश्मीर विधानसभा में सीटों की स्थिति
पार्टी | सीटें |
पीडीपी | 28 |
भाजपा | 25 |
नेशनल फ्रंट | 15 |
कांग्रेस | 12 |
अन्य | 7 |
कुल | 87 |
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