आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
कांग्रेस से लेकर जम्मू-कश्मीर की स्थानीय पार्टियाँ वर्तमान मोदी सरकार पर कभी आतंकवादियों पर पैलेट गन तो कभी ईंट का जवाब पत्थर से देने के लिए सैन्य बल प्रयोग करने पर सड़क से लेकर संसद तक हंगामा करते है। आखिर क्यों? क्या इन पार्टियों को देश प्यारा नहीं? आखिर कोई न कोई तो कारण जरूर है। आखिर क्या कारण है कि ये लोग पाकिस्तान और अलगाववादियों से बातचीत करने के लिए बाध्य कर रहे हैं? इतने वर्षों तक जब यही समस्त पार्टियाँ सत्ता में थीं, क्यों नहीं की बातचीत? कश्मीर की दुर्दशा करने वाले भी वही सब हैं, जिनसे बातचीत करने के लिए मोदी सरकार पर जोर डाला जा रहा है। अलगाववादियों को दामाद बनाकर रखा जाने उपरांत भी कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं पर क्यों नहीं विराम लगा? क्यों यही अलगाववादी इनके परिवारजनों का अपहरण करते रहे? किसी भी नेता में इतना भी कहने का साहस नहीं कि किसी आतंकवादी को बचाने आए मुँह ढककर आए पत्थरबाजों के साथ भी किसी तरह की नरमी न बरती जाए, क्यों? रमजानो में तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती केन्द्र सरकार से सैन्य कार्यवाही पर रोक लगाने का आग्रह तो कर सकती हैं, परन्तु उन्ही दिनों सैनिको पर पत्थरबाज़ी करने वालों को कुछ कहने का सहस नहीं, क्यों?
हकीकत में ये समस्त पार्टियाँ इन्ही अलगाववादियों के रहमोकरम पर है और इनके इशारे पर काम करती हैं। देखिए क्यों देश प्रेम की बात करने वाले राष्ट्रपति शासन और आतंकवादियों के विरुद्ध सख्ती करने का विरोध कर रहे हैं:--
जम्मू-कश्मीर में सोज की बेटी, आजाद के साले और मुफ्ती की बहन के बदले छोड़े गए थे आतंकवादी
आतंकी और आतंकवाद पर बयानबाजी को लेकर कश्मीर के नेता सैफुद्दीन सोज और गुलाम नबी आजाद इन दिनों चर्चा में हैं। इन दोनों में आतंकियों को लेकर जो कॉमन बात है वह ये कि दोनों के नजदीकी रिश्तेदारों को आतंकियों ने अगवा किया। और फिर उसे छोड़ने के बदले जेल में बंद आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा।
कश्मीर में आतंकियों द्वारा अगवा कर और उसके बदले आतंकियों को रिहा करवा लेने का सबसे हाईप्रोफाइल और पहला केस रूबैया सईद का था। मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी के अगवा होने के बाद अगले कुछ सालों तक आतंकवादियों ने अपनी मांग मनवाने के लिए लोगों को अगवा करने का तरीका अपना लिया था।
रूबैया सईद, मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी (1989)
दिसंबर 1989 में मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी और मेहबूबा मुफ्ती की बहन रूबैया सईद को आतंकवादियों ने अगवा कर लिया था। उन्हें छुड़ाने के लिए 5 खूंखार आतंकवादियों को सरकार ने रिहा कर दिया था। उस दौरान मुफ्ती मोहम्मद सईद केंद्र सरकार में गृहमंत्री थे। वीपी सिंह सरकार के आठ आतंकियों को छोड़ने के फैसले के छह दिन बाद आतंकियों ने उसे छोड़ा था। इनमें से आतंकवादी जावेद अहमद जारगर ने बाद में 1999 में आईसी 814 फ्लाइट को अगवा किया था।
नाहिदा सोज, सैफुद्दीन सोज की बेटी (1991)
कांग्रेसी नेता सैफुद्दीन सोज की बेटी नाहिदा सोज को अगस्त 1991 में आतंकवादियों ने अगवा कर लिया था। सैफुद्दीन सोज उस वक्त नेशनल कांफ्रेंस पार्टी से सांसद थे। उनकी बेटी को अगवा करने के पीछे आतंकवादी संगठन जम्मू कश्मीर स्टूडेंट लिब्रेशन फ्रंट (जेकेएलएलएफ) का हाथ था। नाहिदा को छोड़ने के लिए सरकार को पाकिस्तानी खूंखार आतंकी मुश्ताक अहमद को रिहा करना पड़ा था। इस दौरान सुरक्षाबलों ने एक आतंकी मुख्तार उर्फ उमर कचरू के भाई को गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन मुख्तार ने सोज के घर फोन कर नाहिदा को मार डालने की धमकी दी। सोज ने सुरक्षाबलों पर मुख्तार के भाईयों को छोड़ने का दबाव बनाया। इसके बावजूद उसे नहीं छोड़ा गया और आतंकी ठिकानों पर छानबीन जारी रही। लोगों में गुस्सा था कि जेकेएसएलएफ ने एक औरत को अगवा किया है। आतंकवादियों ने पांच आतंकियों को छोड़ने की अपनी मांग बदलकर केवल मुश्तार अहमद को छोड़ने की बात मान ली।
तसद्दुक देव, गुलाम नबी आजाद के साले (1992)
कश्मीर में कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद के साले तसद्दुक देव को जनवरी 1992 में आतंकवादियों ने किडनैप कर लिया था। गुलाम नबी आजाद उस दौरान केंद्र में संसदीय मामलों के मंत्री थे। उनके साले तसद्दुक के बदले अल उमर मुजाहिद्दीन के तीन आतंकवादियों को जेल से रिहा कर दिया गया था।
आतंकवादियों द्वारा अगवा किए जाने के बाकी बड़े मामले
1) 155 यात्रियों से भरे भारतीय एयरलाइन के विमान को आतंकियों से मुक्त कराने के लिए तीन आतंकवादियों को छोड़ा गया था।
2) इंडियन आयल कॉर्पोरेशन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के दोरईस्वामी को जुलाई 1991 में इख्वान उल मुसलमीन ने श्रीनगर से अगवा कर लिया था। अगस्त में उन्हें छह आतंकवादियों की रिहाई के बदले छोड़ा गया था। जिन आतंकियों को छोड़ा गया उनमें जावेद अहमद शल्ला शामिल था। जावेद कश्मीर यूनिवर्सिटी के कुलपति और एचएमटी के जनरल मैनेजर एचएल खेड़ा का हत्यारा था।
अवलोकन करें:--
3) जम्मू कश्मीर के मंत्री जीएम मीर के बेटे मीर नसर उल्लाह, वैज्ञानिक एके धर और टीके रैना को आतंकियों के चुंगल से रिहा करवाने के लिए सात आतंकवादियों को छोड़ा गया था। ये घटना 1992 की है।
कुछ घटनाएं ऐसी भी थीं जिनमें अगवा लोगों को छुड़ाने के लिए सरकार ने क्या कीमत चुकाई ये बात सामने ही नहीं आई
1) 1992 में पीसी प्रेसिडेंट गुलाम रसूल कर के दामाद डॉ. मुस्तफा असलम, एडिशनल चीफ सेक्रेटरी शेख गुलाम रसूल के बेटे फयाद अहमद, ऑल इंडिया रेडियो के असिस्टेंट स्टेशन डायरेक्टर हसन जिया को छुड़ाने के बदले सरकार ने क्या किया ये बात सार्वजनिक नहीं की गई।
2) अल्लाह टाइगर आतंकियों ने पूर्व एमएलसी हबीबउल्ला बट को मार्च 1992 में अगवा किया और एक महीने बाद अप्रैल में छोड़ दिया। इसके बदले कितने आतंकी छोड़े गए मालूम नहीं चला।
3) इसी तरह जम्मू कश्मीर बैंक के चेयरमैन एमएस कुरैशी को भी आतंकियों ने जून 1992 में अगवा कर बाद में रिहा कर दिया था। जेकेएलएफ ने इलाहाबाद बैंक के मैनेजर हंसराज सिंह को अगस्त 1992 में अगवा किया और 24 दिन बाद रिहा कर दिया।
कांग्रेस से लेकर जम्मू-कश्मीर की स्थानीय पार्टियाँ वर्तमान मोदी सरकार पर कभी आतंकवादियों पर पैलेट गन तो कभी ईंट का जवाब पत्थर से देने के लिए सैन्य बल प्रयोग करने पर सड़क से लेकर संसद तक हंगामा करते है। आखिर क्यों? क्या इन पार्टियों को देश प्यारा नहीं? आखिर कोई न कोई तो कारण जरूर है। आखिर क्या कारण है कि ये लोग पाकिस्तान और अलगाववादियों से बातचीत करने के लिए बाध्य कर रहे हैं? इतने वर्षों तक जब यही समस्त पार्टियाँ सत्ता में थीं, क्यों नहीं की बातचीत? कश्मीर की दुर्दशा करने वाले भी वही सब हैं, जिनसे बातचीत करने के लिए मोदी सरकार पर जोर डाला जा रहा है। अलगाववादियों को दामाद बनाकर रखा जाने उपरांत भी कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं पर क्यों नहीं विराम लगा? क्यों यही अलगाववादी इनके परिवारजनों का अपहरण करते रहे? किसी भी नेता में इतना भी कहने का साहस नहीं कि किसी आतंकवादी को बचाने आए मुँह ढककर आए पत्थरबाजों के साथ भी किसी तरह की नरमी न बरती जाए, क्यों? रमजानो में तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती केन्द्र सरकार से सैन्य कार्यवाही पर रोक लगाने का आग्रह तो कर सकती हैं, परन्तु उन्ही दिनों सैनिको पर पत्थरबाज़ी करने वालों को कुछ कहने का सहस नहीं, क्यों?
हकीकत में ये समस्त पार्टियाँ इन्ही अलगाववादियों के रहमोकरम पर है और इनके इशारे पर काम करती हैं। देखिए क्यों देश प्रेम की बात करने वाले राष्ट्रपति शासन और आतंकवादियों के विरुद्ध सख्ती करने का विरोध कर रहे हैं:--
जम्मू-कश्मीर में सोज की बेटी, आजाद के साले और मुफ्ती की बहन के बदले छोड़े गए थे आतंकवादी
आतंकी और आतंकवाद पर बयानबाजी को लेकर कश्मीर के नेता सैफुद्दीन सोज और गुलाम नबी आजाद इन दिनों चर्चा में हैं। इन दोनों में आतंकियों को लेकर जो कॉमन बात है वह ये कि दोनों के नजदीकी रिश्तेदारों को आतंकियों ने अगवा किया। और फिर उसे छोड़ने के बदले जेल में बंद आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा।
कश्मीर में आतंकियों द्वारा अगवा कर और उसके बदले आतंकियों को रिहा करवा लेने का सबसे हाईप्रोफाइल और पहला केस रूबैया सईद का था। मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी के अगवा होने के बाद अगले कुछ सालों तक आतंकवादियों ने अपनी मांग मनवाने के लिए लोगों को अगवा करने का तरीका अपना लिया था।
दिसंबर 1989 में मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी और मेहबूबा मुफ्ती की बहन रूबैया सईद को आतंकवादियों ने अगवा कर लिया था। |
रुबैया को छुड़ाने के लिए सरकार ने 5 खूंखार आतंकवादियों को रिहा कर दिया था |
दिसंबर 1989 में मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी और मेहबूबा मुफ्ती की बहन रूबैया सईद को आतंकवादियों ने अगवा कर लिया था। उन्हें छुड़ाने के लिए 5 खूंखार आतंकवादियों को सरकार ने रिहा कर दिया था। उस दौरान मुफ्ती मोहम्मद सईद केंद्र सरकार में गृहमंत्री थे। वीपी सिंह सरकार के आठ आतंकियों को छोड़ने के फैसले के छह दिन बाद आतंकियों ने उसे छोड़ा था। इनमें से आतंकवादी जावेद अहमद जारगर ने बाद में 1999 में आईसी 814 फ्लाइट को अगवा किया था।
सैफुद्दीन सोज की बेटी नाहिदा सोज को अगवा करने के पीछे आतंकी संगठन जेकेएलएफ का हाथ था। |
कांग्रेसी नेता सैफुद्दीन सोज की बेटी नाहिदा सोज को अगस्त 1991 में आतंकवादियों ने अगवा कर लिया था। सैफुद्दीन सोज उस वक्त नेशनल कांफ्रेंस पार्टी से सांसद थे। उनकी बेटी को अगवा करने के पीछे आतंकवादी संगठन जम्मू कश्मीर स्टूडेंट लिब्रेशन फ्रंट (जेकेएलएलएफ) का हाथ था। नाहिदा को छोड़ने के लिए सरकार को पाकिस्तानी खूंखार आतंकी मुश्ताक अहमद को रिहा करना पड़ा था। इस दौरान सुरक्षाबलों ने एक आतंकी मुख्तार उर्फ उमर कचरू के भाई को गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन मुख्तार ने सोज के घर फोन कर नाहिदा को मार डालने की धमकी दी। सोज ने सुरक्षाबलों पर मुख्तार के भाईयों को छोड़ने का दबाव बनाया। इसके बावजूद उसे नहीं छोड़ा गया और आतंकी ठिकानों पर छानबीन जारी रही। लोगों में गुस्सा था कि जेकेएसएलएफ ने एक औरत को अगवा किया है। आतंकवादियों ने पांच आतंकियों को छोड़ने की अपनी मांग बदलकर केवल मुश्तार अहमद को छोड़ने की बात मान ली।
तसद्दुक देव, गुलाम नबी आजाद के साले (1992)
कश्मीर में कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद के साले तसद्दुक देव को जनवरी 1992 में आतंकवादियों ने किडनैप कर लिया था। गुलाम नबी आजाद उस दौरान केंद्र में संसदीय मामलों के मंत्री थे। उनके साले तसद्दुक के बदले अल उमर मुजाहिद्दीन के तीन आतंकवादियों को जेल से रिहा कर दिया गया था।
आतंकवादियों द्वारा अगवा किए जाने के बाकी बड़े मामले
1) 155 यात्रियों से भरे भारतीय एयरलाइन के विमान को आतंकियों से मुक्त कराने के लिए तीन आतंकवादियों को छोड़ा गया था।
2) इंडियन आयल कॉर्पोरेशन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के दोरईस्वामी को जुलाई 1991 में इख्वान उल मुसलमीन ने श्रीनगर से अगवा कर लिया था। अगस्त में उन्हें छह आतंकवादियों की रिहाई के बदले छोड़ा गया था। जिन आतंकियों को छोड़ा गया उनमें जावेद अहमद शल्ला शामिल था। जावेद कश्मीर यूनिवर्सिटी के कुलपति और एचएमटी के जनरल मैनेजर एचएल खेड़ा का हत्यारा था।
अवलोकन करें:--
कुछ घटनाएं ऐसी भी थीं जिनमें अगवा लोगों को छुड़ाने के लिए सरकार ने क्या कीमत चुकाई ये बात सामने ही नहीं आई
1) 1992 में पीसी प्रेसिडेंट गुलाम रसूल कर के दामाद डॉ. मुस्तफा असलम, एडिशनल चीफ सेक्रेटरी शेख गुलाम रसूल के बेटे फयाद अहमद, ऑल इंडिया रेडियो के असिस्टेंट स्टेशन डायरेक्टर हसन जिया को छुड़ाने के बदले सरकार ने क्या किया ये बात सार्वजनिक नहीं की गई।
2) अल्लाह टाइगर आतंकियों ने पूर्व एमएलसी हबीबउल्ला बट को मार्च 1992 में अगवा किया और एक महीने बाद अप्रैल में छोड़ दिया। इसके बदले कितने आतंकी छोड़े गए मालूम नहीं चला।
3) इसी तरह जम्मू कश्मीर बैंक के चेयरमैन एमएस कुरैशी को भी आतंकियों ने जून 1992 में अगवा कर बाद में रिहा कर दिया था। जेकेएलएफ ने इलाहाबाद बैंक के मैनेजर हंसराज सिंह को अगस्त 1992 में अगवा किया और 24 दिन बाद रिहा कर दिया।
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