आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
आतंकी मामलों में NIA को देश की टॉप एजेंसी माना जाता है, और हिंदू आतंकवाद जैसे मामलों के कारण भी एजेंसी की साख पर सवाल उठने लगे थे, पर अब वो सब मोदी राज में धुल गए हैं।
पिछले 4 सालों में जिस तरह से इस एजेंसी ने कई मामलों में नाकामयाबी की इबारत लिखी, उससे इसकी साख कमजोर हो गई। एक के बाद एक कई अहम मामलों में NIA विफल होती रही और कई दागी कमजोर जांच की वजह से छूटते रहे. ऐसे में एजेंसी के काम पर सवाल उठना भी लाजमी है। NIA पर सवाल इसलिए भी उठे, क्योंकि जिन बड़े मामलों में वो विफल रही उनमें से सभी ऐसे केस थे जिनके आधार पर कांग्रेस सरकार ने हिंदू आतंकवाद का जुमला उछाला था।
ज्ञात हो कि NIA का गठन भी 2009 में कांग्रेस सरकार ने ही किया था। 18 मई 2007 की दोपहर करीब 1 बजे मक्का मस्जिद में जोरदार धमाका हुआ, जिसमें 9 लोगों की मौत हो गई जबकि 58 लोग घायल हो गए थे. इस घटना के बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए हवाई फायरिंग भी की, जिसमें पांच और लोग मारे गए। यह मामला सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया था लेकिन फिर यह मामला NIA के पास चला गया।
जांच चलती रही, पर कुछ सच सामने नहीं आ सका। 2014 में कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए मुख्य आरोपी स्वामी असीमानंद समेत सभी 5 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। सीबीआई ने 2010 में सबसे पहले असीमानंद को ही गिफ्तार किया था, लेकिन 2017 में उसे जमानत मिल गई थी। इस घटना में 160 चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे. लेकिन 54 गवाह मुकर गए।
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अप्रैल 2011 में इस केस को एनआईए को सौंपा गया. इस दौरान केस के एक प्रमुख अभियुक्त और आरएसएस कार्यकर्ता सुनील जोशी को गोली मार दी गई। एनआईए ने जांच के बाद दस लोगों को आरोपी बनाया था, जो सभी अभिनव भारत संगठन के सदस्य थे। स्वामी असीमानंद सहित, देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा उर्फ अजय तिवारी, लक्ष्मण दास महाराज, मोहनलाल रतेश्वर और राजेंद्र चौधरी को मामले में आरोपी बनाया गया था. पर मामले में 5 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी और सभी को कोर्ट ने बरी कर दिया था.
इसी तरह समझौता एक्सप्रेस धमाके में भी 68 लोगों की मौत हो गई, जबकि 12 लोग घायल हुए। ट्रेन उस दिन दिल्ली से लाहौर जा रही थी. इस धमाके में मारे गए ज़्यादातर यात्री पाकिस्तानी नागरिक थे। इसी तर्ज़ पर हैदराबाद की मक्का मस्जिद, अजमेर शरीफ दरगाह और मालेगांव में भी धमाके किए गए थे. इन सभी मामलों के तार आपस में जु़ड़े हुए थे. मामले में NIA ने 26 जून 2011 को 5 लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाख़िल की थी. जिसमें नाबा कुमार उर्फ़ स्वामी असीमानंद, सुनील जोशी, रामचंद्र कालसंग्रा, संदीप डांगे और लोकेश शर्मा का नाम शामिल था।
29 सितंबर, 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में जबरदस्त ब्लास्ट हुआ था, जिसमें 6 लोग मारे गए थे. जबकि 79 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे. इस मामले में दायर की गई चार्जशीट में 14 आरोपियों के नाम थे. ब्लास्ट के लिए आरडीएक्स देने और साजिश रचने के आरोप में साध्वी प्रज्ञा और कर्नल प्रसाद पुरोहित को गिरफ्तार कर किया गया था. इस मामले की जांच पहले एटीएस के पास थी, मगर बाद में जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंपी गई।
कहते है कि आँखों देखी मक्खी कोई नहीं खाता, लेकिन सत्ता के भूखे हिन्दू नेता हिन्दू धर्म को अपमानित होते देखते रहे। पिछली युपीए सरकार के रहते सब भीगी बिल्ली बने रहे। आतंकवादियों को बचाने बेकसूर हिन्दू साधु/संत, साध्वी को जेलों में डाला गया, अगर कसाब जिन्दा न पकड़ा गया होता, निश्चित रूप से मुम्बई हादसे को भी हिन्दू आतंकवाद देने से कोई नहीं चूकता। क्योकि कसाब एक मुसलमान होते हुए हाथ में कलावा बांधे हुए था। यही कारण था कि पिछली सरकार तक कोई देश पाकिस्तान द्वारा भारत में होते आतंकवादी हमलों को गम्भीरता से नहीं लेता था। लेकिन आज विश्व में वही देश हैं, और भारत भी वही है, लेकिन जिस तरह वर्तमान प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व पटल पर आतंकवाद मुद्दे को उछाला, विश्व भारत के साथ खड़ा हो गया। जिस कारण आतंकवाद में मरने वालों की लाशों पर मालपुए खाए जा रहे थे, सब बंद हो गए।
और होने वाले उपचुनावों में समस्त गैर-भाजपाई एकजुट होकर जनता में मोदी का डर दिखाते नज़र आए। हालाँकि उपचुनावों में भाजपा को ज्यादातर हार का सामना करना पड़ा। परन्तु हार का भविष्य में होने वाले आम चुनाव और विधानसभा चुनावों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। क्योकि अब मोदी के रहते कोई हिन्दू को आतंकवादी कहने का साहस नहीं करेगा। इस मुद्दे पर हर हिन्दू को गंभीरता से चिन्तन करना होगा। क्या हिन्दू अपने आपको आतंकवादी कहलवाना चाहेगा? यदि हाँ, तो मोदी का डर दिखाने वालों को जरूर वोट दें, अन्यथा मोदी का डर दिखाने वालों को धूल चटवाना ही उचित होगा। ये वही चाय बेचने वाला नरेन्द्र मोदी है, जिसने हिन्दुओं पर लगे "हिन्दू आतंकवाद" बदनुमा दाग को धोया है।
कहते है कि आँखों देखी मक्खी कोई नहीं खाता, लेकिन सत्ता के भूखे हिन्दू नेता हिन्दू धर्म को अपमानित होते देखते रहे। पिछली युपीए सरकार के रहते सब भीगी बिल्ली बने रहे। आतंकवादियों को बचाने बेकसूर हिन्दू साधु/संत, साध्वी को जेलों में डाला गया, अगर कसाब जिन्दा न पकड़ा गया होता, निश्चित रूप से मुम्बई हादसे को भी हिन्दू आतंकवाद देने से कोई नहीं चूकता। क्योकि कसाब एक मुसलमान होते हुए हाथ में कलावा बांधे हुए था। यही कारण था कि पिछली सरकार तक कोई देश पाकिस्तान द्वारा भारत में होते आतंकवादी हमलों को गम्भीरता से नहीं लेता था। लेकिन आज विश्व में वही देश हैं, और भारत भी वही है, लेकिन जिस तरह वर्तमान प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व पटल पर आतंकवाद मुद्दे को उछाला, विश्व भारत के साथ खड़ा हो गया। जिस कारण आतंकवाद में मरने वालों की लाशों पर मालपुए खाए जा रहे थे, सब बंद हो गए।
और होने वाले उपचुनावों में समस्त गैर-भाजपाई एकजुट होकर जनता में मोदी का डर दिखाते नज़र आए। हालाँकि उपचुनावों में भाजपा को ज्यादातर हार का सामना करना पड़ा। परन्तु हार का भविष्य में होने वाले आम चुनाव और विधानसभा चुनावों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। क्योकि अब मोदी के रहते कोई हिन्दू को आतंकवादी कहने का साहस नहीं करेगा। इस मुद्दे पर हर हिन्दू को गंभीरता से चिन्तन करना होगा। क्या हिन्दू अपने आपको आतंकवादी कहलवाना चाहेगा? यदि हाँ, तो मोदी का डर दिखाने वालों को जरूर वोट दें, अन्यथा मोदी का डर दिखाने वालों को धूल चटवाना ही उचित होगा। ये वही चाय बेचने वाला नरेन्द्र मोदी है, जिसने हिन्दुओं पर लगे "हिन्दू आतंकवाद" बदनुमा दाग को धोया है।
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