देश में कांग्रेस का शासन काल घोटालों से भरा हुआ रहा। एक घोटाला जो कांग्रेस के 70 सालों के शासन में किए गए घोटालों के बराबर नहीं हो सकता क्योंकि यह उससे भी बहुत बड़ा घोटाला है। इस घोटाले का नाम है- भगवा आतंकवाद। सरकार प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा का वचन देती है लेकिन कांग्रेस ने देश के नागरिकों के साथ क्या किया?
कांग्रेस प्रारम्भ से ही हिन्दू संगठनों का विरोध करती रही है। हिन्दू सभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, शिव सेना, विश्व हिन्दू परिषद् आदि अनेको हिन्दू स्वयंसेवी संस्थाएँ भारत में थीं, लेकिन तुष्टिकरण के चलते कांग्रेस किसी न किसी बहाने इन संगठनों का विरोध कर इनकी छवि धूमिल करने में व्यस्त रही। दुःख इस बात का है, कि सत्ता के भूखे हिन्दू इस नेहरू गाँधी की चापलूसी में लगे रहे। कहने को तो आज उनको बहुत दूरगामी नेताओं में शुमार किया जाता है, परन्तु थे बहुत मंदबुद्धि। किसी भी नेता ने नेहरू परिवार की वास्तविकता को सार्वजनिक करने का प्रयास तक नहीं किया।
कांग्रेस प्रारम्भ से ही हिन्दू संगठनों का विरोध करती रही है। हिन्दू सभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, शिव सेना, विश्व हिन्दू परिषद् आदि अनेको हिन्दू स्वयंसेवी संस्थाएँ भारत में थीं, लेकिन तुष्टिकरण के चलते कांग्रेस किसी न किसी बहाने इन संगठनों का विरोध कर इनकी छवि धूमिल करने में व्यस्त रही। दुःख इस बात का है, कि सत्ता के भूखे हिन्दू इस नेहरू गाँधी की चापलूसी में लगे रहे। कहने को तो आज उनको बहुत दूरगामी नेताओं में शुमार किया जाता है, परन्तु थे बहुत मंदबुद्धि। किसी भी नेता ने नेहरू परिवार की वास्तविकता को सार्वजनिक करने का प्रयास तक नहीं किया।
यहाँ फ्रेंच ज्योतिष नॉस्त्रेदमस की 1555 में की गयी भविष्यवाणी चरितार्थ होती है कि भारत स्वतंत्र होने उपरांत पुनः गुलाम होगा और 2014 चुनाव उपरान्त ही वास्तविक स्वतन्त्रता मिलेगी। नॉस्त्रेदमस के अनुसार वही 2014 चुनाव, वही अधेड़ उम्र का सख्त प्रशासक, भारत को विश्व गुरु बनाने को लालायित, छद्दमवाद से दूर राष्ट्रभावना से ओतप्रोत आदि आदि।
Vinay Chauhan shared a link to the group: BJP SOCIAL MEDIA.
और देखिए प्रमाण :--
1. महात्मा गाँधी के वध उपरान्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध, दोष : राष्ट्र विरोधी, मुस्लिम विरोधी और न जाने कितने दोष मंढे, लेकिन 1962 भारत-चीन युद्ध उपरान्त गणतन्त्र दिवस परेड में सम्मिलित करना, सिद्ध करता है, कि आर.एस.एस. का विरोध केवल राजनीतिक द्धेष भावना से प्रेरित ;
2. हिन्दू महासभा का विरोध महात्मा गाँधी वध कारण। क्योकि नाथूराम गोडसे महासभा से थे, सबने महात्मा गाँधी का वध तो देखा, लेकिन वध के कारणों को जनता से छुपाया गया। वास्तविकता यह है कि गोडसे के इस महानतम कार्य के लिए भारत में जन्म लेने वाली हर पीढ़ी, विशेषकर हर हिन्दू, ऋणी रहेगा। यदि जनवरी में गाँधी का वध न किया जाता, इसी महात्मा ने जिन्नाह की बात मान, लगभग दो/तीन माह उपरान्त भारत के एक और बंटवारे की नीवं रख दी होती। गोडसे ने भारत में तुष्टिकरण के जन्मदाता का वध किया था। मेरा पूर्ण विश्वास है, जिस दिन गोडसे का वास्तविक इतिहास जन-जन तक पहुंचेगा, मोहनदास करमचंद गाँधी से कहीं अधिक सम्मानपूर्वक गोडसे का नाम लिया जाएगा।
http://nigamrajendra28.blogspot.com/2016/…/blog-post_51.html
3. तिरंगे से पूर्व सर्वसम्मति से पारित भारत का राष्ट्रीय ध्वज किस रंग का था, और महात्मा गाँधी ने किन लोगों के कहने पर उस ध्वज का विरोध किया था?
4. भारत के वास्तविक इतिहास धूमिल क्यों किया गया? और तत्कालीन जिन नेताओं को आज देश का महान नेता बताया जाता है, क्यों नहीं इन नेताओं ने हिन्दू सम्राटों के गौरवविंत इतिहास को धूमिल कर मुग़ल आतताई शासकों को महान बताने वाले इतिहासकारों पर कार्यवाही की गयी?
कांग्रेस के शासनकाल में हुई आतंकवादी घटनाओं को भगवा आतंकवाद या हिंदू आतंकवाद के तौर पर सियासतदानों ने जमकर प्रचारित किया। अब जरा इस दौर पर भी गौर करिए।
Very Interesting Story About Illicit Relationship
1. महात्मा गाँधी के वध उपरान्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध, दोष : राष्ट्र विरोधी, मुस्लिम विरोधी और न जाने कितने दोष मंढे, लेकिन 1962 भारत-चीन युद्ध उपरान्त गणतन्त्र दिवस परेड में सम्मिलित करना, सिद्ध करता है, कि आर.एस.एस. का विरोध केवल राजनीतिक द्धेष भावना से प्रेरित ;
2. हिन्दू महासभा का विरोध महात्मा गाँधी वध कारण। क्योकि नाथूराम गोडसे महासभा से थे, सबने महात्मा गाँधी का वध तो देखा, लेकिन वध के कारणों को जनता से छुपाया गया। वास्तविकता यह है कि गोडसे के इस महानतम कार्य के लिए भारत में जन्म लेने वाली हर पीढ़ी, विशेषकर हर हिन्दू, ऋणी रहेगा। यदि जनवरी में गाँधी का वध न किया जाता, इसी महात्मा ने जिन्नाह की बात मान, लगभग दो/तीन माह उपरान्त भारत के एक और बंटवारे की नीवं रख दी होती। गोडसे ने भारत में तुष्टिकरण के जन्मदाता का वध किया था। मेरा पूर्ण विश्वास है, जिस दिन गोडसे का वास्तविक इतिहास जन-जन तक पहुंचेगा, मोहनदास करमचंद गाँधी से कहीं अधिक सम्मानपूर्वक गोडसे का नाम लिया जाएगा।
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4. भारत के वास्तविक इतिहास धूमिल क्यों किया गया? और तत्कालीन जिन नेताओं को आज देश का महान नेता बताया जाता है, क्यों नहीं इन नेताओं ने हिन्दू सम्राटों के गौरवविंत इतिहास को धूमिल कर मुग़ल आतताई शासकों को महान बताने वाले इतिहासकारों पर कार्यवाही की गयी?
कांग्रेस के शासनकाल में हुई आतंकवादी घटनाओं को भगवा आतंकवाद या हिंदू आतंकवाद के तौर पर सियासतदानों ने जमकर प्रचारित किया। अब जरा इस दौर पर भी गौर करिए।
वीडियो देखिए
https://www.facebook.com/shridevkinandanthakurjivssct/videos/1421948301197293/https://www.facebook.com/agale20saltakmodi/videos/1706992899372308/
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जिनमें 68 लोगों की जान गई। 18 मई 2007 मक्का मस्जिद मक्का मस्जिद के धमाकों में 13 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद 25 अगस्त 2007 हैदराबाद के लुंबिनी पार्क और गोकुल चाट भंडार पर धमाके हुए जिनमें 42 लोगों की जान गई। फिर 11 अक्टूबर 2007 को अजमेर शरीफ की दरगाह पर धमाका हुआ, जिसमें 3 लोगों की मौत हुई। 14 अक्टूबर 2007 को लुधियाना में भी ईद के दिन धमाका हुआ, जिसमें 6 लोगों की मौत हुई। सितंबर 2006 से अक्टूबर 2007 के बीच के इस दौर में कुल 6 आतंकी हमले हुए करीब 169 मासूमों की जानें गईं।
अब जरा गौर कीजिए, इन सभी मामलों को अलग लिखने की वजह तत्कालीन यूपीए सरकार और एनआईए की जांच ने दी। इनमें मालेगांव, समझौता, मक्का मस्जिद और अजमेर शरीफ धमाकों में हिंदू संगठनों का हाथ होने की बात एनआईए की जांच ने बाद में कही। लुधियाना का धमाका पाकिस्तान की मदद से बब्बर खालसा द्वारा किए जाने की बात सामने आई।
29 सितंबर 2008 को मालेगांव में फिर धमाके हुए और इसमें 10 लोग मारे गए। ये भी पाकिस्तान के नापाक आतंकियों के हमलों की फेहरिस्त में एक टाट के पैबंद जैसा दिखाई पड़ता है। इसकी कहानी भी पहले कुछ और थी और बाद में इसमें भी भगवा आतंकवाद की थ्योरी सामने आ गई।
कथित भगवा आतंकवाद के इस दौर में हैदराबाद के धमाकों में शाहिद और बिलाल नाम के दो आतंकी पकड़े गए। जांच में ये बात सामने आई कि हूजी ने इस आतंकी हमले को अंजाम दिया है। पुलिस और एटीएस की जांच ने ये भी साफ कर दिया कि इस मामले के मास्टर माइंड और मक्का मस्जिद के मास्टर माइंड एक ही थे। माले गांव की जांच में भी सिमी के ही आतंकियों का हाथ होने की बात साफ हो गई थी।
इसी तरह समझौता में अमेरिकी इंटेलीजेंस एजेंसियों ने भी ये साफ कर दिया था कि ये लश्कर का काम है। इस सबके बावजूद मालेगांव, मक्का मस्जिद, अजमेर शरीफ और समझौता धमाकों के इस दौर में एनआईए ने जांच को भगवा संगठनों पर केंद्रित कर दिया, जबकि इससे पहले हुए धमाकों और बाद के धमाकों की मॉडस ऑपरेंडी में भी कोई खास फर्क देखने को नहीं मिलेगा।
हां इधर, एक बात थी कि इन हमलों में मुसलमान ज्यादा मारे गए। इस बात को आधार बनाकर ये घटिया थ्योरी भी सामने रखने की कोशिश की गई कि पाकिस्तान परस्त आतंकी मुस्लिमों के हिमायती हैं और उन्हें नहीं मारेंगे। आतंक का कोई मजहब नहीं होता और इन हमलों में भी मजहब ढूंढना बेमानी है। 26/11 से लेकर देश के हर आतंकी हमले में हर मजहब का हिंदुस्तानी मारा गया।
इस महत्वपूर्ण प्रश्न को समझिए, जाहिर है इस ज्वलंत प्रश्न के साथ इस दौर को अलग रखकर समझना इसीलिए जरूरी है क्योंकि इस दौर में पाकिस्तान परस्त आतंकी शायद छुट्टी पर चले गए थे। जब कथित भगवा आतंकवाद के हमलों की बात तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिंदबरम रख रहे थे, तब इस्लामिक आतंकी शांत बैठे थे।
ये बहुत ही अजीब लगता है क्योंकि इस दौर के पहले और बाद में किस तरह हमले होते रहे और मासूम मरते रहे के आंकड़े मैं शुरू मॆं ही रख चुका हूं। हमले पहले भी हुए और बाद में भी, लेकिन इस दौर में इंडियन मुजाहिदीन और सिमी शांत हो कर बैठ गए। ऐसा लगता है जैसे वो कथित भगवा आतंकियों को सितंबर 2006 से अक्टूबर 2007 का समय दान में देकर खुद छुट्टी पर चले गए। ज्यादा जांच पड़ताल तो दूर की कौड़ी है लेकिन थोड़ा तारीखों पर नजर दौड़ा ली जाए तो बहुत सी बातों पर से परदा उठ जाए।
अगस्त 2010 में दिल्ली में देश भर के पुलिस प्रमुखों की बैठक में चिदंबरम ने अपने भाषण को पूरी तरह देश में पनपने वाले आतंकवाद पर केंद्रित रखा था। ये वो दौर था, जब एनआईए की जांच इस दिशा में जा रही थी। फिर एक-एक कर वो मामले सामने आए जहां मुस्लिम मारे गए और कथित भगवा आतंकी सामने आए।
दुखद बात ये है कि जिस वक्त वो ये चिंता जता रहे थे उसके बाद से अब तक देश में 21 आतंकी हमले हो चुके हैं और सब पाकिस्तान प्रायोजित ही हैं, लेकिन पाकिस्तान उनके उसी बयान को पकड़े हुए कह रहा आतंकी तो आप के देश में ही पनपनते हैं। इस चिंता को जताने के बाद से लेकर आज तक कोई ऐसा मामला सामने नहीं आया जो एनआईए जांच की इस कहानी को दोहराता पाया जाता। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों की छुट्टी वाला ये दौर भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी शर्मसार करने वाला रहा।
कांग्रेस ने हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए कई हथकंडे अपनाए। कांग्रेस ने आतंकी हमलों को ‘भगवा आतंकवाद’ का नाम दिया। लेकिन बाद में इन सब का खुलासा हुआ और बड़ा घोटाला बाहर आया। कांग्रेस की इस कुचाल की वजह से कई बेगुनाहों को सजा मिली। सुप्रीम कोर्ट को तुरंत सोनिया गांधी को गिरफ्तार करने का आदेश देना चाहिए और चुनाव आयोग को कांग्रेस पार्टी पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
यादव परिवार
नेहरू-गाँधी परिवार के बाद नाम आता है मुलायम सिंह यादव परिवार का। इस परिवार का शायद ही कोई सदस्य राजनीति क्षेत्र से बाहर हो। मुलायम सिंह पार्टी ने भी हिन्दू दमन में कोई कसर नहीं छोड़ी। 7 नवम्बर 1966 को तत्कालीन कांग्रेसी सरकार द्वारा गौ-हत्या का विरोध कर रहे साधु-संतों के खून से पार्लियामेंट स्ट्रीट लाल की गयी तो मुलायम सिंह ने भी तुष्टिकरण नीति अपनाते हुए अयोध्या में राम भक्तो पर गोलियाँ चलवा दी। कश्मीर में पत्थरबाजों पर आर्मी द्वारा पेलेट गन का विरोध किस मंशा से किया? क्या हिन्दू ही गोली से मरने के लिए है?
इसके बाद नाम आता है, लालू प्रसाद यादव का। यह परिवार भी राजनीती में अपनी जड़ें फैला रहा है। यदुवंशी होते हुए मुलायम सिंह की भाँति तुष्टिकरण कर हिन्दू समाज के प्रति द्धेष भावना।
रामविलास पासवान
राजनैतिकता से दूर, राजनीति क्षेत्र में सर्वाधिक अवसरवादी राजनीतिज्ञ। गोधरा काण्ड के कारण अटल बिहारी का दामन झटक कांग्रेस की शरण लेने वाले रामविलास अब उसी तत्कालीन गुजरात मुख्यमन्त्री की गोदी में बैठ गए। 2014 में देखा की प्रधानमन्त्री की दौड़ में नरेन्द्र मोदी प्रबल दावेदार हैं, गोधरा काण्ड भूल, आ गए मलाई युक्त मालपुए खाने। यानि जहाँ दिखे तवा परात, बिता दे वहीँ सारी रात। बेशर्मी की भी हद होती है, जो अपने सिद्धांत पर नहीं चल सकता जनता का क्या भला करेगा? किसका सिद्धान्त, कैसा सिद्धान्त, अपने और अपने परिवार के पेट की चिन्ता करो। यह भी अपने परिवार को निरन्तर राजनीति में घुसा रहे हैं।
क्या इनमे से कोई राष्ट्र को बताएगा कि जब कांग्रेस इस्लामिक आतंकवाद को पर्दा डाल हिन्दू/भगवा आतंकवाद का माहौल बना रही थी, क्यों नहीं विरोध किया? जब बेकसूर साधु-संत, साध्वी आदि को बलात्कार और आतंकवाद के झूठे आरोपों में फंसाया जा रहा था, क्यों नहीं कांग्रेस का विरोध करने का साहस किया ? क्या कांग्रेस का साथ देते इनकी अंतरात्मा मर गयी थी या कुर्सी के नशे में उचित अथवा अनुचित का बोध करने का होश नहीं था? जो नेता कुर्सी के नशे में उचित अथवा अनुचित का भेद न कर पाए, जनता अथवा देश का क्या भला कर सकता है? ऐसे नेताओं से देशहित के बारे में कल्पना करना ही व्यर्थ है।
अब जरा गौर कीजिए, इन सभी मामलों को अलग लिखने की वजह तत्कालीन यूपीए सरकार और एनआईए की जांच ने दी। इनमें मालेगांव, समझौता, मक्का मस्जिद और अजमेर शरीफ धमाकों में हिंदू संगठनों का हाथ होने की बात एनआईए की जांच ने बाद में कही। लुधियाना का धमाका पाकिस्तान की मदद से बब्बर खालसा द्वारा किए जाने की बात सामने आई।
29 सितंबर 2008 को मालेगांव में फिर धमाके हुए और इसमें 10 लोग मारे गए। ये भी पाकिस्तान के नापाक आतंकियों के हमलों की फेहरिस्त में एक टाट के पैबंद जैसा दिखाई पड़ता है। इसकी कहानी भी पहले कुछ और थी और बाद में इसमें भी भगवा आतंकवाद की थ्योरी सामने आ गई।
आतंकियों को संरक्षण और बेकसूर संतो को जेलों में यातनाएँ , वाह कांग्रेस वाह |
किसने आग लगाई थी इस डिब्बे में |
हां इधर, एक बात थी कि इन हमलों में मुसलमान ज्यादा मारे गए। इस बात को आधार बनाकर ये घटिया थ्योरी भी सामने रखने की कोशिश की गई कि पाकिस्तान परस्त आतंकी मुस्लिमों के हिमायती हैं और उन्हें नहीं मारेंगे। आतंक का कोई मजहब नहीं होता और इन हमलों में भी मजहब ढूंढना बेमानी है। 26/11 से लेकर देश के हर आतंकी हमले में हर मजहब का हिंदुस्तानी मारा गया।
इस महत्वपूर्ण प्रश्न को समझिए, जाहिर है इस ज्वलंत प्रश्न के साथ इस दौर को अलग रखकर समझना इसीलिए जरूरी है क्योंकि इस दौर में पाकिस्तान परस्त आतंकी शायद छुट्टी पर चले गए थे। जब कथित भगवा आतंकवाद के हमलों की बात तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिंदबरम रख रहे थे, तब इस्लामिक आतंकी शांत बैठे थे।
ये बहुत ही अजीब लगता है क्योंकि इस दौर के पहले और बाद में किस तरह हमले होते रहे और मासूम मरते रहे के आंकड़े मैं शुरू मॆं ही रख चुका हूं। हमले पहले भी हुए और बाद में भी, लेकिन इस दौर में इंडियन मुजाहिदीन और सिमी शांत हो कर बैठ गए। ऐसा लगता है जैसे वो कथित भगवा आतंकियों को सितंबर 2006 से अक्टूबर 2007 का समय दान में देकर खुद छुट्टी पर चले गए। ज्यादा जांच पड़ताल तो दूर की कौड़ी है लेकिन थोड़ा तारीखों पर नजर दौड़ा ली जाए तो बहुत सी बातों पर से परदा उठ जाए।
अगस्त 2010 में दिल्ली में देश भर के पुलिस प्रमुखों की बैठक में चिदंबरम ने अपने भाषण को पूरी तरह देश में पनपने वाले आतंकवाद पर केंद्रित रखा था। ये वो दौर था, जब एनआईए की जांच इस दिशा में जा रही थी। फिर एक-एक कर वो मामले सामने आए जहां मुस्लिम मारे गए और कथित भगवा आतंकी सामने आए।
दुखद बात ये है कि जिस वक्त वो ये चिंता जता रहे थे उसके बाद से अब तक देश में 21 आतंकी हमले हो चुके हैं और सब पाकिस्तान प्रायोजित ही हैं, लेकिन पाकिस्तान उनके उसी बयान को पकड़े हुए कह रहा आतंकी तो आप के देश में ही पनपनते हैं। इस चिंता को जताने के बाद से लेकर आज तक कोई ऐसा मामला सामने नहीं आया जो एनआईए जांच की इस कहानी को दोहराता पाया जाता। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों की छुट्टी वाला ये दौर भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी शर्मसार करने वाला रहा।
कांग्रेस ने हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए कई हथकंडे अपनाए। कांग्रेस ने आतंकी हमलों को ‘भगवा आतंकवाद’ का नाम दिया। लेकिन बाद में इन सब का खुलासा हुआ और बड़ा घोटाला बाहर आया। कांग्रेस की इस कुचाल की वजह से कई बेगुनाहों को सजा मिली। सुप्रीम कोर्ट को तुरंत सोनिया गांधी को गिरफ्तार करने का आदेश देना चाहिए और चुनाव आयोग को कांग्रेस पार्टी पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
यादव परिवार
नेहरू-गाँधी परिवार के बाद नाम आता है मुलायम सिंह यादव परिवार का। इस परिवार का शायद ही कोई सदस्य राजनीति क्षेत्र से बाहर हो। मुलायम सिंह पार्टी ने भी हिन्दू दमन में कोई कसर नहीं छोड़ी। 7 नवम्बर 1966 को तत्कालीन कांग्रेसी सरकार द्वारा गौ-हत्या का विरोध कर रहे साधु-संतों के खून से पार्लियामेंट स्ट्रीट लाल की गयी तो मुलायम सिंह ने भी तुष्टिकरण नीति अपनाते हुए अयोध्या में राम भक्तो पर गोलियाँ चलवा दी। कश्मीर में पत्थरबाजों पर आर्मी द्वारा पेलेट गन का विरोध किस मंशा से किया? क्या हिन्दू ही गोली से मरने के लिए है?
इसके बाद नाम आता है, लालू प्रसाद यादव का। यह परिवार भी राजनीती में अपनी जड़ें फैला रहा है। यदुवंशी होते हुए मुलायम सिंह की भाँति तुष्टिकरण कर हिन्दू समाज के प्रति द्धेष भावना।
रामविलास पासवान
राजनैतिकता से दूर, राजनीति क्षेत्र में सर्वाधिक अवसरवादी राजनीतिज्ञ। गोधरा काण्ड के कारण अटल बिहारी का दामन झटक कांग्रेस की शरण लेने वाले रामविलास अब उसी तत्कालीन गुजरात मुख्यमन्त्री की गोदी में बैठ गए। 2014 में देखा की प्रधानमन्त्री की दौड़ में नरेन्द्र मोदी प्रबल दावेदार हैं, गोधरा काण्ड भूल, आ गए मलाई युक्त मालपुए खाने। यानि जहाँ दिखे तवा परात, बिता दे वहीँ सारी रात। बेशर्मी की भी हद होती है, जो अपने सिद्धांत पर नहीं चल सकता जनता का क्या भला करेगा? किसका सिद्धान्त, कैसा सिद्धान्त, अपने और अपने परिवार के पेट की चिन्ता करो। यह भी अपने परिवार को निरन्तर राजनीति में घुसा रहे हैं।
क्या इनमे से कोई राष्ट्र को बताएगा कि जब कांग्रेस इस्लामिक आतंकवाद को पर्दा डाल हिन्दू/भगवा आतंकवाद का माहौल बना रही थी, क्यों नहीं विरोध किया? जब बेकसूर साधु-संत, साध्वी आदि को बलात्कार और आतंकवाद के झूठे आरोपों में फंसाया जा रहा था, क्यों नहीं कांग्रेस का विरोध करने का साहस किया ? क्या कांग्रेस का साथ देते इनकी अंतरात्मा मर गयी थी या कुर्सी के नशे में उचित अथवा अनुचित का बोध करने का होश नहीं था? जो नेता कुर्सी के नशे में उचित अथवा अनुचित का भेद न कर पाए, जनता अथवा देश का क्या भला कर सकता है? ऐसे नेताओं से देशहित के बारे में कल्पना करना ही व्यर्थ है।
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