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जब तक गांधी महात्मा रहेंगे… गोडसे तेरा नाम रहेगा

मैं ये कतई प्रयास नहीं करना चाह रहा हूँ कि नाथूराम गोडसे को किसी विशेष कारण से महिमा मंडित किया जाये….. लेकिन कल जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि एक व्यक्ति विशेष के कृत्य से आप समूचे समुदाय या उसके मानने वालो को कैसे दोषी ठहरा सकते है उस राय में दम लगा.
माननीय कोर्ट ने राहुल गांधी को सलाह दी कि या वो माफ़ी मांगे या ये साबित करे कि गाँधी जी की हत्या में आरएसएस का किसी भी तरह से हाथ है या फिर ट्रायल के लिए तैयार रहे.. जैसी कि पूरी उम्मीद थी राहुल जी और कांग्रेस ने माफ़ी मांगने से मना कर दिया और दलील दी कि राहुल जी ने वो ही कहा जो पब्लिक परसेप्शन हैं क्योंकि अगर माफ़ी मांगी तो राहुल गांधी और कांग्रेस की राजनीती दोनों ही रसातल पर पहुँच जायेगी जो इतने सालों आरएसएस का ख़ौफ़ पैदा कर के हासिल की.
हालाँकि 130 साल पुरानी सोच कैसे एक माफ़ी भर से मिट जायेगी ये भी एक बड़ा सवाल है, इसीलिए ये तय किया गया एक झूठी सोच को अगले हजारों सालों तक कंधे पर ढोना ज्यादा फायदेमंद होगा.
अब बात करें…….. क्या गोडसे के कृत्य के पीछे एक विध्वंसक सोच रही थी जिसके चलते गांधी जी की हत्या की गयी थी. अगर प्राइमाफैसी दृष्टि से देखे तो जो पब्लिक परसेप्शन कहा जा रहा है वो सही भी हो सकता है क्योंकि गोडसे आरएसएस से जुड़ा रहा था वैसे ही जैसे आज लगभग 10 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं और गाहे बगाहे बीजेपी की आलोचना भी करते रहते हैं और 15 साल बीजेपी में रह कर जब छोड़ते है तो दूध के धुले हो जाते हैं जैसे नवजोत सिद्धू हुए हैं.
लेकिन अगर कुछ तथ्य पर गौर करें तो ये बात पूरी तरह सही भी नहीं लगती है. गोडसे ने 1940 में शायद पहले से ही आरएसएस से दूरी बना ली थी वो लगातार अपनी बात कई मंचो से कहता था और शायद वो पहला व्यक्ति था जिसने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि अगर गांधीजी चाहते तो भारत 1920 में ही आज़ाद हो जाता, जब पूरा देश असहयोग आंदोलन से जुड़ चुका था और अँग्रेजी शासन की चूले हिल गयी थीं.
यहाँ तक कि अंग्रेजों ने भी भारत छोड़ने का अपना मन बनाना शुरू कर दिया था लेकिन उसी वक्त एक घटना के कारण गांधीजी ने अपना अनशन तोड़ा और असहयोग आंदोलन को बंद किया जिसके खिलाफ उस समय के सभी बड़े नेता थे और चाहते थे कि गांधीजी आंदोलन जारी रखे, अगर गांधीजी अपनी बात पर अड़े रहते तो उसी समय देश आज़ाद हो जाता और न वो दौर देश ने देखा होता जो 1930-1947 के बीच देखा, इसी दौर में हिन्दू मुस्लिम विभाजन की खाई पड़ी, 3 लाख आदमी मारे गए और देश के टुकड़े हुए.
कहा गया कि 55 लाख जो पाकिस्तान को दिए वो ही मुख्य कारण था जबकि गोडसे के लेखों को पढ़े तो लगेगा कि गांधीजी के कई निर्णय और मुस्लिम परस्त सोच थी जो पाकिस्तान बनने के बाद और ज्यादा मुखर हुई थी और इस जैसे कई कारण थे जिससे गोडसे बहुत व्यथित था.
चलिए बात सारी बातों को समेटते हैं…
* गोडसे ने गांधी को मारा, बहुत ही जघन्य कार्य किया लेकिन अगर उसके पीछे कोई संस्था होती तो ये कार्य 10 साल पहले ही हो जाता क्योंकि आरएसएस का विरोध गांधीजी से 1925 से ही चला आ रहा था और खिलाफत आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान चरम पर था. आज़ादी के बाद वैसे भी गांधी जी बहुत बीमार रहते थे और कई बार यम के द्वार से लौट आये थे.
* आरएसएस को मालूम था कि गांधी जी भारतवासियों और कई स्वयंसेवको के दिलों में बसते थे और आज़ादी के बाद उनकी मौत की बात सपने में भी सोची ही नहीं जा सकती.
* पाकिस्तान बनने के बाद वहाँ पर भी कई ग्रुप्स जिन्ना की हत्या की योजना बनाते पकड़े गए जिसके चलते उनकी सुरक्षा बेहद कड़ी कर दी गयी थी तो जिन्ना ने तो यहाँ तक कहाँ था कि मुझे मार के क्या फ़ायदा मैं खुद अपनी मौत मर रहा हूँ.. लेकिन इससे उलट गांधी जी की हत्या की खबरों के बावजूद उनकी सुरक्षा काफी ढीली और चुकग्रस्त थी जिसका फ़ायदा शायद गोडसे ने उठा लिया.
* जेल में उसने कहा था कि उसके साथ सिर्फ 2 और लोग इस बारे में जानते थे कि उसके पास एक पिस्तौल है और उसे ये दुःख है कि वो ये काम 10 साल पहले क्यों नहीं कर पाया.
* जेल में गोडसे से मिलने कभी उसके परिवार का कोई आदमी नहीं आया, उसको अच्छा वकील भी उपलब्ध नहीं कराया गया बल्कि गोडसे ने कभी भी अपने निर्दोष होने की बात नहीं कही.
* गोडसे के भाई जब सरदार पटेल से मिलने बम्बई आये, एक छोटी से पर्ची पर अपना नाम लिख के भेजा तो सरदार साब ने मीटिंग छोड़ के उन्हें बुलाया और काफी देर तक उनका पक्ष सुना और सांत्वना दी कि पुलिस कभी उनके दरवाजे नहीं आएगी.
* यहाँ तक की गोडसे के फाँसी के बाद उसका क्रियाक्रम भी सरकारी नियम के तहत किया गया, उसकी राख तक कोई लेने नहीं आया, उसकी बरसी पर कभी कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं किये गये हालाँकि हाल ही में कुछ विकृत लोगो द्वारा फ़ोटो शॉप करके दिखाया गया कि गोडसे को श्रदांजलि दी जाती है.
* एक विचार ये कहता है कि गोडसे गांधीजी की हत्या करके भाग क्यों नहीं गए…. तो उसका जवाब में यही कहा जा सकता है कि अगर भगत सिंह सेंट्रल हॉल में बम फेंक कर भाग जाते तो वो शहीदे आज़म न कहलाते, उनका भाग जाना कोई सन्देश नहीं देता, यहाँ मैं कतई भगत सिंह से गोडसे की तुलना नहीं कर रहा हूँ.
बल्कि उसके न भागने वाली सोच बता रहा हूँ और गोडसे ने कभी अपने किये पर शर्मिंदगी नहीं दिखाई बल्कि जब जूरी ने उससे पूछा कि क्या वो कभी भी गांधी से प्रभावित था तो उसने कहा था कि हाँ मैंरे जीवन पर गांधीजी का बड़ा प्रभाव था और उसे उनसे कभी ये उम्मींद नहीं थी कि वो हिंदुओं के हितों को चोट पहुँचाने वाले काम करेंगे और उसने अपने जीवन में एक चींटी भी नहीं मारी है, हत्या करने के विचार को उसने 3 महीने तक सहेजा था.
दोस्तों, आज अगर हम देखें तो लगेगा कि अपने समाज के हितों के लिए मुस्लिम या दलित या कई समाज थोड़े से फायदे के लिए आंदोलित हो जाते है, मासूम लोगों की हत्या कर देते हैं… शायद गोडसे भी हिन्दू हितों के हनन से आहत हुआ होगा… आज हम देखते हैं कि आतंकवादियों की फांसी रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट आधी रात को खुलती है लेकिन भगत सिंह के लिए कोई कोर्ट नहीं खुलवाई गयी.
और अगर आज गांधीजी होते तो शायद अफजल गुरु या याकूब मेमन की फांसी को भी नहीं रुकवाते… अभी हो रही हजारों निर्दोषों की हत्या के पीछे भी हम कोई सोच या किताब या जाकिर नाइक का नहीं मान रहे है बस ये ही कोशिश है की कैसे भी आरएसएस को घेरा जाये.
गोडसे कौन सी विचारधारा से प्रभावित था जैसा कि पब्लिक परसेप्शन है कि आरएसएस की सोच से था तो आज के वर्तमान प्रधानमंत्री तो खुद ही आरएसएस प्रचारक रहे है जिनके बारे में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विदेशी धरती के ऊपर उड़ रहे हवाईजहाज में कहा था कि मोदी का पीएम बनना डिजास्टर होगा, अल्पसंख्यक समुदाय को भी लगा था कि उनके आने के बाद आरएसएस कत्लेआम करेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ…..
अरे अगर आरएसएस की विचारधारा हत्यापुरक होती तो रोज गाली खाने वाले पीएम कई हत्याएं करवा चुके होते, वो पाकिस्तान से दोस्ती को लालायित नहीं होते, सबका साथ सबका विकास जैसी सोच का पालन नहीं करते…. साध्वी प्रज्ञा, कमलेश तिवारी, आसाराम बापू, कर्नल पुरोहित आदि अभी तक बाहर आ चुके होते, पाकिस्तान से युद्ध शुरू हो चुका होता…
खैर, रही बात गांधीजी और गोडसे की तो अगर गांधीजी अमर हुए तो गोडसे भी अमर हो गया… क्योंकि वो भागा नहीं था… गांधी जी को तो जाना ही था जैसे जिन्ना जी गए लेकिन गांधीजी की हत्या होना आने वाली कई सदियों के लिए एक प्रश्न छोड़ गया है कि ऐसे क्या हालात हुए थे कि उनकी हत्या की गयी और अगर गांधीजी अपनी आप स्वर्ग सिधारते तो क्या कांग्रेस को एक मुद्दा मिला होता आजीवन काल के लिये….. हत्या तो इंदिरा जी, राजीव जी की भी हुई लेकिन वहां पब्लिक परसेप्शन गौण है क्योंकि वोट जरुरी है…
राहुल जी आप कभी माफ़ी नहीं मानना बल्कि आप इस पब्लिक परसेप्शन की लड़ाई को लड़ते रहना.. क्योंकि अब आप चाह कर भी गांधीजी को गोडसे से अलग नहीं कर सकते…. वो दोनों अमर हो चुके हैं…

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To write on general topics and specially on films;THE BLOGS ARE DEDICATED TO MY PARENTS:SHRI M.B.L.NIGAM(January 7,1917-March 17,2005) and SMT.SHANNO DEVI NIGAM(November 23,1922-January24,1983)

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