‘हमारे बारह’ पर जो बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा, वही हम भी कह रहे- मुस्लिम नहीं हैं अल्पसंख्यक… अब बंद हो देश के दूसरा सबसे बड़े मजहब का तुष्टिकरण
मुस्लिम समाजिक कुरीतियों पर जितना काम हिन्दू समाज ने किया है, किसी मौलाना, मौलवी या इस्लामिक विद्वान ने नहीं किया, ये लोग तो कुर्सी के भूखे छद्दम सेक्युलरिस्ट हिन्दुओं की तरह कट्टरपंथियों के हाथ की कठपुतली बन मुसलमान को बहकावे में रखे रहते हैं। जब एक वृद्ध महिला के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने दिया, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी को कट्टरपंथी इस्लाम के ठेकेदारों की गोदी में बैठ संसद के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट निर्णय को बदलने की क्या जरुरत थी? क्या मुस्लिम महिला को सम्मान से जीने का हक़ नहीं? फिर जब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम महिला को तलाक और हलाला से मुक्ति दिलवाई, क्यों इन सबने विरोध किया? मुस्लिम महिला को बच्चा पैदा करने की मशीन मत बनाओ।
अन्नू कपूर की फिल्म 'हमारे बारह' का विरोध चीख-चीखकर बता रहा है कि कट्टरपंथी और इनको समर्थन देते छद्दम सेक्युलरिस्ट्स हिन्दू मुस्लिम महिला से उसका सुख छीन रहे हैं। 'हमारे बारह' से पहले भी मुस्लिम महिला के दर्द को 'निकाह' और 'तलाक' आदि फिल्मों में दर्शाया जा चुका है।
‘हमारे बारह’ फिल्म को लेकर उठे विवाद पर बॉम्बे हाईकोर्ट में पीठ ने सुनवाई करते हुए कुछ टिप्पणी की हैं। कोर्ट ने कहा है कि ‘हमारे बारह’ फिल्म उन्होंने देखी और उन्हें इस फिल्म में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगा। फिल्म का उद्देश्य वास्तव में महिलाओं का उत्थान है।
जस्टिस बीपी कोलाबावाला और फिरदौस पूनीवाला की खंडपीठ ने कहा कि फिल्म का पहला ट्रेलर आपत्तिजनक था, लेकिन उन्होंने (निर्माताओं ने) उसे हटा दिया और साथ ही फिल्म से आपत्तिजनक सीन भी हटा दिए गए हैं।
अदालत ने कहा कि ये एक ऐसी फिल्म है जिसे देख विचार किया जाए, न कि ऐसी फिल्म है जिसे लेकर दर्शकों से अपेक्षा की जाए कि वो अपना दिमाग घर पर रखकर इसे देखें।
हाई कोर्ट ने कहा कि इस फिल्म में मौलाना को कुरान की गलत व्याख्या करते दिखाया गया, और एक मुस्लिम व्यक्ति उसी दृश्य पर आपत्ति जताता है… लोगों से यही अपेक्षा की जाती है कि लोगों को अपने दिमाग का इस्तेमाल करना चाहिए और ऐसे मौलानाओं की बातें आँख मूँदकर नहीं माननी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि उन्हें फिल्म देखखर नहीं लगा कि कोई ऐसी चीज है इसमें जो हिंसा भड़काने वाली है। अगर लगता, तो पहले ही इस पर आपत्ति जता देते। भारत की जनता इतनी भोली या मूर्ख नहीं है कि उसे ये सब समझ न आए।
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी गौर किया कि फिल्म निर्माताओं ने सेंसर बोर्ड से प्रमाण पत्र पाने के पहले ही फिल्म का ट्रेलर रिलीज कर दिया था, इसलिए अदालत ने उनपर जुर्माना लगाया। साथ ही कहा कि ट्रेलर रिलीज करके उल्लंघन तो किया गया है इसलिए याचिकाकर्ता की पसंद की चैरिटी के अनुसार भुगतान करना होगा।
कोर्ट ने कहा कि बिन प्रमाण पत्र हासिल किए जो ट्रेलर रिलीज किया गया वो थोड़ा परेशान करने वाला था। अदालत ने निर्माताओं को सावधान रहकर काम करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि रचनात्मक स्वतंत्रता की आड़ में किसी भी मजहब की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले संवाद और दृश्य नहीं जोड़े जाने चाहिए।
अदालत ने इस पूरी सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण टिप्पणी यह भी दी कि निर्माओं को सावधान रहना चाहिए कि वो पेश क्या कर रहे हैं। वे किसी भी धर्म को ठेस पहुँचाने का काम नहीं कर सकते हैं। मुस्लिम इस देश का दूसरा सबसे बड़ा मजहब है।
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