बॉलीवुड की मशहूर गायिका और स्वर कोकिला लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) का रविवार (6 फरवरी, 2022) को निधन हो गया है। कई दिनों से मुबंई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती गायिका की स्थिति में सुधार नहीं होने के बाद वह हफ्तों से आईसीयू में थीं, जहाँ आज सुबह 8 बजकर 12 मिनट पर 92 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम साँस ली। भले ही वह अब हमारे बीच नहीं रहीं, लेकिन उनकी सुरीली आवाज हमेशा लोगों के जेहन में जिंदा रहेगी। आज हम आपको उनसे जुड़े कुछ ऐसे ही किस्से बताने जा रहे हैं, जिसे आप इससे पहले नहीं जानते होंगे।
‘भारत रत्न’ से सम्मानित दिग्गज गायिका लता मंगेशकर को 8 जनवरी 2022 को कोरोना संक्रमित पाए जाने पर हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। बाद में उन्हें न्यूमोनिया हो गया था, जिससे उनकी हालत बिगड़ने लगी। इसके बाद उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। उनकी हालत में सुधार के बाद वेंटिलेटर सपोर्ट भी हट गया था, लेकिन 5 फरवरी को उनकी स्थिति बिगड़ने लगी और उन्हें फिर से वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया। आखिरकार, 6 फरवरी को ‘स्वर कोकिला’ ने अंतिम साँस ली।
लता मंगेशकर ने बॉलीवुड में करीब सात दशक तक अपनी मधुर आवाज से लोगों के दिलों पर राज किया है। वह दुनियाभर में ‘भारत की नाइटिंगेल’ के नाम से मशहूर हैं।
लता मंगेशकर और उनका परिवार उन लोगों में से हैं, जिन्होंने कभी भी कॉन्ग्रेस और उसके वफादारों के बनाए गए सिस्टम के प्रोपेगेंडा पर भरोसा नहीं किया। उन्होंने पाया कि वीर सावरकर भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्पित देशभक्त और प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, जो कविता और लेखन का कार्य भी करते थे।
स्वर कोकिला लता मंगेशकर और उनका परिवार वीर सावरकर के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों को लेकर हमेशा गौरवान्वित रहा है। हर साल सावरकर की जयंती और पुण्यतिथि पर (28 मई और 26 फरवरी) लता मंंगेशकर हिंदुत्व के इस विचारक को सार्वजनिक तौर पर श्रद्धांजलि देने और अंग्रेजों के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके अमूल्य योगदान को दोहराने से कभी नहीं कतराती थीं।
ऐसे मिला ‘मंगेशकर’ नाम का टाइटल
लता मंगेशकर का जन्म 28 सितम्बर, 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। उनकी माता का नाम शेवन्ती देवी था और पिता का नाम पंडित दीनानाथ मंगेशकर था। लता जी के पिता को अपने पिता पक्ष से ज्यादा माता पक्ष से लगाव था। दीनानाथ की माँ येसूबाई देवदासी थीं। वो गोवा के ‘मंगेशी’ गाँव में रहती थीं। वो मंदिरों में भजन-कीर्तन कर जिंदगी का गुजारा करती थीं। बस यहीं से दीनानाथ को ‘मंगेशकर’ नाम का टाइटल मिला। दीनानाथ मंगेशकर गायक के साथ थिएटर कलाकार भी थे, जिन्होंने मराठी भाषा में कई संगीतमय नाटकों का निर्माण किया था।
लता मंगेशकर, अपने पिता की पाँच संतानों में सबसे बड़ी थीं। लता के छोटे-भाई बहनों ने भी उनके नक्शे कदम पर चलते हुए संगीत की दुनिया में कदम रखा और देश के मशहूर गायक बने। स्टारडस्ट को दिए एक पुराने इंटरव्यू में उन्होंने (गायिका) बताया था, “एक बार मेरे पिता ने अपने शिष्य को एक राग का अभ्यास करने के लिए कहा था। उस वक्त मैं पास में खेल रही थी, अचानक मैं उस राग को दोहराने लगी था। जब मेरे पिता ने मुझे वह राग दोहराते हुए देखा तो वह बहुत खुश हुए, उन्होंने अपनी ही बेटी में एक शिष्य को खोज लिया था।
जब लता का रहा विवादों में नाम
लता के विवादों में रहने का कारण था कि इन्होंने अपने समक्ष अपनी बहनों के अतिरिक्त किसी अन्य शारदा, कृष्णा कल्ले, वाणी जयराम आदि कई गायिकों को कभी नहीं उभरने दिया। शंकर(शंकर जयकिशन) ने जब Around The World फिल्म में गायिका शारदा को मौका देने से इतनी नाराज थी कि जयकिशन के मृत्यु के बाद शंकर के संगीत निर्देशन में गाने से मना कर दिया। शंकर की आर्थिक स्थिति निराशाजनक हो रही थी, लेकिन लता ने इस जोड़ी के संगीत निर्देशन में एक बढ़कर एक गीत दिए हैं। लेकिन फिल्म सन्यासी के निर्माता सोहन लाल ने जब शंकर को लता के मना करने की बात बताई, तब गायक मुकेश शंकर के हमदर्द बनकर सामने आए और बड़ी मुश्किल से लता को तैयार किया था।
नौशाद के साथ गाना रिकॉर्ड करते समय लता हो गई थीं बेहोश
लता ने अपने करियर का पहला गाना ‘नाचू या गाड़े, खेलो सारी मणि हौस भारी’ 1942 में आई एक मराठी फिल्म ‘किटी हसाल’ के लिए रिकॉर्ड किया था, लेकिन दुर्भाग्यवश इस गाने को फिल्म के फाइनल कट से हटा दिया गया था। उन्होंने फ़र्स्टपोस्ट को दिए इंटरव्यू में इसका खुलासा किया था कि संगीतकार नौशाद के साथ एक गाना रिकॉर्ड करते समय वह एक बार बेहोश हो गई थीं।
उन्होंने कहा था, “हम गर्मी की दोपहर में एक गाना रिकॉर्ड कर रहे थे। आप जानते हैं कि गर्मियों में मुंबई कैसे हो जाती है। उन दिनों रिकॉर्डिंग स्टूडियो में एसी (AC) नहीं होता था। यहाँ तक कि फाइनल रिकॉर्डिंग के दौरान सीलिंग फैन को भी बंद कर दिया गया था। बस, फिर क्या था, मुझे इतनी गर्मी लगी कि मैं बेहोश हो गई।”
नूरजहाँ, शमशाद बैगम जैसी भारी आवाज वाली गायिकाओं के कारण हुईं रिजेक्ट
कहा जाता है कि जिस समय लता मंगेशकर ने बॉलीवुड इंडस्ट्री में प्ले बैक सिंगर के तौर पर एंट्री की थी, उस वक्त उन्हें उनकी पतली आवाज के कारण रिजेक्ट कर दिया गया था। दरअसल, उस दौर में नूरजहाँ और शमशाद बैगम जैसी भारी आवाज वाली गायिकाओं का दबदबा था। वहीं, ट्रेजेडी किंग दिवंगत अभिनेता दिलीप कुमार और संगीतकार मदन मोहन को लता मंगेशकर अपने भाई की तरह मानती थीं। रक्षाबंधन के मौके पर लता ने इन दोनों को राखी भी बाँधती थीं। लता मंगेशकर को गायन के साथ-साथ फोटोग्राफी का भी शौक था।
दुर्रानी के बेहूदा मजाक ‘तुम कैसे सफेद चादर लपेटकर चली आती हो’ का दिया था करारा जवाब
1940 के दशक में म्यूजिक की दुनिया में जीएम दुर्रानी का जलवा था। उस दौर में कोई नया म्यूजिक डायरेक्टर उनके पास पहुँचता तो दुर्रानी उसको जलील करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। एक बार नौशाद साहब लता और दुर्रानी के गाने की रिकॉर्डिंग कर रहे थे। उस वक्त दुर्रानी का बर्ताव शर्मीली और विनम्र लता प्रति बेहद रूखा था। उनके व्यवहार में अहंकार झलकता था। नौशाद साहब खुद उस घटना के गवाह थे।
उन्होंने बताया था, “उस समय सिर्फ दो माइक होते थे। एक संगीतकारों के लिए, दूसरा गायकों के लिए इस तरह वे दोनों (दुर्रानी और लता) आमने-सामने खड़े थे। जैसे ही दुर्रानी की लाइन पूरी होती, वे उनके साथ काफी बुरा और अजीब व्यवहार करने लगते थे।” यही नहीं दुर्रानी ने लता के सादे पहनावे का मजाक उड़ाते हुए लखनवी उर्दू में कहा, “लता, तुम रंगीन कपड़े क्यों नहीं पहनती? तुम कैसे इस तरह सफेद चादर लपेटकर चली आती हो।” लेकिन लता मंगेशकर ने इंडस्ट्री में नई होने के बावजूद उनके इस बेहूदा मजाक को सहन नहीं किया। लता मंगेशकर ने कहा, “मैं सोचती थी कि ये आदमी मेरे पहनावे की जगह मेरे गायन पर ज्यादा ध्यान देगा। उसी पल मैंने फैसला किया कि मैं उस कलाकार के साथ फिर नहीं गाऊँगी।”
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