LGBT समुदाय के खिलाफ अपमानजनक पाठ्यक्रम की बात कहते हुए दो NGO ने इसके खिलाफ केरल हाई कोर्ट में याचिका डाली है.
LGBTQ+ समुदाय से जुड़ी एक याचिका पर केरल हाई कोर्ट ने अंडर ग्रेजुएशन मेडिकल एजुकेशन बोर्ड से जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है कि MBBS की किताबों में LGBT समुदाय के लोगों को गलत तरीके के पेश किया गया है। उनके खिलाफ अतार्किक डर पैदा किया जा रहा है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, केरल हाई कोर्ट ने इस पूरे मामले को गंभीर बताया है। इस याचिका को दो NGO क्वीरिदम और दिशा की तरफ से दायर किया गया है। क्वीरिदम LGBT समुदाय और दिशा अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए काम करता है।
अवैज्ञानिक पाठ्यक्रम
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, याचिका में बताया गया है कि मेडिकल एजुकेशन बोर्ड की किताबों में LGBT समुदाय के लोगों की लैंगिक और यौन पहचान को अपराध के तौर पर पेश किया गया है। यही नहीं, इसे मानसिक बीमारी और यौन विकृति भी बताया गया है। याचिका में आगे कहा गया कि इस तरह की बातें संविधान के अनुच्छेद 21 और 14 का उल्लंघन करती है। साथ ही साथ LGBT समुदाय से आने वाले लोगों के साथ भेदभाव भी करती है।
याचिका में आगे कहा गया है कि इस पाठ्यक्रम को नेशनल मेडिकल बोर्ड ने तैयार किया है और इसमें समलैंगिकता को अप्राकृतिक यौन अपराध बताया गया है। याचिका आगे कहती है कि पाठ्यक्रम में लोगों के ट्रांसजेंडर होने को लैंगिक विकृति के तौर पर पढ़ाया जा रहा है। इस आधार पर याचिका में इस पाठ्यक्रम को अवैज्ञानिक बताते हुए इसमें संशोधन की मांग की गई है।
याचिका में कई किताबों को नाम सहित जिक्र किया गया है. मसलन, बताया गया है कि गायनेकोलॉजी की किताब में होमो और ट्रांस सेक्सुअलटी को असमान्य बताया गया है। यही नहीं, होमो और ट्रांस सेक्सुअल लोगों को को मानसिक तौर पर यौन रोगी भी बताया गया है। इसी तरह से गौतम विश्वास की रिव्यू ऑफ फॉरेंसिक मेडिसिन और टॉक्सिकोलॉजी किताब में समलैंगिकता को यौन अपराध बताया गया है। याचिका के मुताबिक, किताब में यह जानकारी भी गलत दी गई है कि IPC की धारा 377 के मुताबिक समलैंगिकता अपराध है। जबकि सुप्रीम कोर्ट तीन साल पहले ही अपने ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिकता को गैर आपराधिक घोषित कर चुका है।
याचिका के अनुसार, इसी किताब में LGBT समुदाय के लोगों को लेकर और भी आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई है। मसलन कहा गया हा कि लेस्बियन लड़कियां एक दूसरे से जलती हैं और रिजेक्ट हो जाने पर हत्या और आत्महत्या दोनों कर सकती है। लेस्बियन लड़कियां वो होती हैं, जो पुरुषों से घृणा करती हैं और जिन्हें सेक्स की लत होती है। इस याचिका में एक और किताब का जिक्र किया गया है। यह किताब कृष्णन विज की लिखी हुई फॉरेंसिक मेडिसिन और टॉक्सिकोलॉजी प्रिंसिपल्स है। याचिका में कहा गया है कि इस किताब में ट्रांसजेंडर लोगों को प्रॉस्टिट्यूट बताया गया है।
LGBT छात्रों का मानसिक उत्पीड़न
केरल हाई कोर्ट में दाखिल की गई इस याचिका में आगे LGBT समुदाय से आने वाले छात्रों के मानसिक उत्पीड़न की बात कही गई है। बताया गया कि इस तरह की अवैज्ञानिक और अपमानजनक बातों के कारण मेडिकल की पढ़ाई कर रहे LGBT समुदाय के छात्र मानसिक तौर पर परेशान हो जाते है। इस वजह से उन्हें अपनी सेक्सुअल पहचान बताने में भी डर लगता है।
याचिका में पाठ्क्रम की अवैज्ञानिकता और इसके कारण हो रहे भेदभाव पर भी जोर दिया गया और कहा गया,
“इस पाठ्यक्रम में LGBT समुदाय के खिलाफ इतना अधिक भेदभाव हो रहा है कि वो साफ-साफ दिख रहा है। हमारे मेडिकल स्टूडेंट्स को अवैज्ञानिक जानकारी दी जा रही है। ये स्टूडेंट्स कल के डॉक्टर हैं। इनके पास गलत जानकारी होगी, जो समाज के लिए खतरनाक है।”
क्वीररिदम और दिशा ने केरल हाई कोर्ट को बताया कि इस साल जून में उनकी तरफ से नेशनल मेडिकल कमीशन, अंडर ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड, यूजीसी और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को संपर्क किया गया था। दोनों NGO ने अपनी चिंता इन संस्थानों के सामने रखी थी। लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।
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