'मुन्नाभाई एमबीबीएस' में जिस लड़की ने ज़हीर की लाइफ बदली, उसकी खुद की लाइफ स्टोरी बड़ी इंस्पायरिंग है. फोटो - फिल्म स्टिल
ज़हीर कैंसर से जूझ रहा है। लास्ट स्टेज पर है। ज्यादा समय नहीं है उसके पास। डॉ. अस्थाना के हॉस्पिटल में एडमिट हो जाता है। लेकिन एक मलाल है उसके मन में। सारी ज़िंदगी ‘गुड बॉय’ बना रहा। कभी डांस बार या क्लब जैसी जगहों पर नहीं गया। सिर्फ घर की ज़िम्मेदारियों पर ध्यान दिया, और अब उसके साथ ऐसा हो गया। चाह कर भी बची हुई ज़िम्मेदारियां पूरी नहीं कर सकता। हॉस्पिटल में सोया हुआ है। तभी एक रात कुछ गुंडे आते हैं, कहते हैं कि जो बीत गया, वो बीत गया, जो बीतना है, उसे हंसकर बिता। इसी सब शोरगुल के बीच एक लड़की के हंसने की आवाज आती है।
वो ज़हीर से कहती है, ‘देख ले आंखों में आंखें डाल देख ले' ; वो लड़की थी मुमैत खान। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की वो कथित आइटम गर्ल जिसने ‘शीला की जवानी’, ‘मुन्नी बदनाम हुई’ और ‘साकी साकी’ से पहले बताया कि आइटम नंबर्स आखिर होते क्या है। एक वक्त की सेंसेशन रही मुमैत खान आज कल कहां हैं?
पाकिस्तान से आने पर जब ढूंढने पर भी घर में पैसे नहीं होते थे
अब्दुल रशीद खान, एक पाकिस्तानी पठान, एकदम कंज़र्वेटिव फैमिली से। इंडिया आए। मुलाकात हुई चेन्नई में रहने वाली हसीना खान से। दोनों ने शादी कर ली और बस गए मुंबई में। दोनों को तीन बेटियां हुई। जिनमें से मुमैत सबसे छोटी है। मुमैत का बचपन मुश्किल भरा रहा। पिता महिंद्रा एंड महिंद्रा में काम करने के बाद रिटायर हो चुके थे। उनके रिटायरमेंट के बाद घर की आर्थिक व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी। मुमैत और उनकी बहनों ने काम करने का फैसला किया, ताकि अपनी तरफ से घर की हर संभव मदद की जा सके। लेकिन मुमैत को काम मिलने के पीछे भी बड़ा लंबा चौड़ा किस्मत कनेक्शन था।
जिस दौरान घर पर मुसीबत आई, उस समय मुमैत आठवीं कक्षा में थी। उम्र थी लगभग 13 साल, पढ़ाई में मन लगता नहीं था, कहें तो एवरेज स्टूडेंट थी। स्कूल में एग्ज़ाम हुआ और मुमैत फेल हो गईं, वो भी मराठी में, बस ठान लिया कि कुछ भी हो जाए, आगे नहीं पढ़ना, पढ़ाई छोड़ दी। उनकी बड़ी बहन ज़बाईन उस समय कॉलेज में थी। एक बार उनके कॉलेज में एक फेस्ट ऑर्गनाइज़ हुआ। ज़बाईन भी डांस नंबर में पार्टिसिपेट करना चाहती थी। लेकिन एक मसला था। उन्हें डांस का डी भी ठीक से नहीं आता था। इसलिए वो मुड़ी अपनी छोटी बहन मुमैत की ओर। जानती थी कि डांस को लेकर बचपन से ही मुमैत के अंदर एक कीड़ा है। ज़िद की कि मुन्नू मुझे भी कॉलेज आकर डांस सीखा। मुमैत मान गईं और कॉलेज आकर अपनी बहन को डांस सिखाने लगी। फंक्शन पास आने वाला था। तैयारियां फुल स्विंग पर थी।
स्टेज की लाइटिंग का काम संभाल रहे थे सलीम नाम के शख्स, जो उस वक्त हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कोरियोग्राफर्स के साथ भी काम करते थे। सलीम की नज़र पड़ी जबाईन पर। देखा कि ये नई लड़की अच्छी डांसर है। एक तरफ ये सब चल रहा था। तो दूसरी ओर रेमो डिसूज़ा अपने डांसर्स की टीम बनाने में लगे हुए थे। कुछ समय पहले ही वो अहमद खान से अलग हुए थे। बतौर कोरियोग्राफर अपनी शुरुआत करना चाहते थे। इसलिए एक फीमेल डांसर्स का ग्रुप बनाना चाहते थे। सलीम को ये बात पता थी, इसलिए उन्होंने ज़बाईन को मनाया कि वो रेमो का ग्रुप जॉइन कर लें, लेकिन ज़बाईन की भी एक शर्त थी कि वो तभी जॉइन करेंगी जब उनकी बहन मुमैत को भी ग्रुप का हिस्सा बनाया जाए। सलीम को कोई दिक्कत नहीं थी और दोनों बहनों ने रेमो का ग्रुप जॉइन कर लिया और फिल्मों में बतौर बैकग्राउंड डांसर्स काम करने लगी।
घर पर आकर मां को बताया, मां ने पहले तो मना किया। पिता का हवाला दिया। लेकिन वो खुद भी घर की आर्थिक दशा से परिचित थीं। इशारों-इशारों में बच्चों को अपनी हामी दे दी। दोनों बहनें अपने शूट पर चली गई। शूट पूरा हुआ और दोनों के हिस्से 750-750 रुपए की पेमेंट आई।
‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ के लिए मुमैत के पेरेंट्स से साइन लिया
अगर आईएमडीबी पर मुमैत की फिल्मोग्राफी चेक करेंगे तो आपको करीब 70 फिल्में दिखाई देंगी। कुछ में उन्होंने बतौर डांसर काम किया। कुछ में सपोर्टिंग कैरक्टर अदा किए तो कुछ में लीड। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि मुमैत करीब 150 फिल्मों के लिए कैमरे का सामना कर चुकी है। वो बात अलग है कि इनमें से ज्यादातर में वो बैकग्राउंड डांसर रही। मुमैत ने भले ही 13 साल की उम्र से फिल्मों में बतौर बैकग्राउंड डांसर काम शुरू कर दिया था। लेकिन उन्हें अपने करियर की सबसे बड़ी पहचान दिलाने वाली फिल्म मिली 17 साल की उम्र में। फिल्म थी 2003 में आई ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’, जिसे बना रहे थे फर्स्ट टाइम डायरेक्टर राजकुमार हिरानी। फिल्म में एक आइटम सॉन्ग था, ‘देख ले, आंखों में आंखें डाल देख ले’, जिसके लिए मुमैत को अप्रोच किया गया।
लेकिन यहां एक मसला था, मुमैत उस समय नाबालिग थीं, इसलिए मेकर्स ने उनके पेरेंट्स से बात कर उन्हें ब्रीफ कर दिया। पूरी बात सुनने के बाद मुमैत के पेरेंट्स भी मान गए। मेकर्स ने परमिशन लेटर पर उनके साइन भी ले लिए। आखिरकार फिल्म रिलीज़ हुई। जिसे जनता और क्रिटिक्स दोनों से ही बम्पर रिस्पॉन्स मिला। यहां तक कि बेस्ट पॉपुलर फिल्म का नैशनल अवॉर्ड भी अपने नाम किया. मुमैत का गाना सिर्फ ज़हीर की लाइफ के लिए ही टर्निंग पॉइंट साबित नहीं हुआ। बल्कि उनके करियर को भी इसने पहला मेजर ब्रेकथ्रू दिलाया, क्योंकि इसके बाद उन्हें ऑफर की गई 2005 में आई ‘लकी: नो टाइम फॉर लव’, जहां लीड में थे सलमान खान और स्नेहा उल्लाल। स्नेहा उल्लाल, जिन्हें इंडस्ट्री की दूसरी ऐश्वर्या राय बताया गया था. खैर, बावजूद ऐसी बातों के फिल्म नहीं चली. स्नेहा ऐश्वर्या जैसा मैजिक रिक्रिएट नहीं कर पाई. बाकी बात मुमैत की, तो आप उन्हें फिल्म के ‘लकी लिप्स’ गाने में स्पॉट कर सकते हैं.
मुमैत बैक-टू-बैक फिल्मों पर काम किए जा रही थीं. लेकिन इस पॉइंट पर आकर वो खुद को सिर्फ हिंदी सिनेमा तक सीमित नहीं रखना चाहती थीं. इसलिए रुख किया साउथ की ओर. साउथ की सबसे ग्लैमरस फिल्म इंडस्ट्री यानी टॉलीवुड की ओर. उनकी पहली तेलुगु फिल्म थी ’स्वामी’. अगला ऑफर आया तेलुगु सिनेमा के दिग्गज डायरेक्टर पुरी जगन्नाथ की ओर से. फिल्म थी ‘143’. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ कमाल नहीं दिखा सकी. उसी दौरान एसएस राजामौली भी प्रभास के साथ मिलकर एक फिल्म पर काम कर रहे थे. फिल्म थी ‘छत्रपति’. मुमैत ने फिल्म के गाने ‘मनेला तिंटिविरा’ में परफॉर्म किया था. मुमैत तेलुगु सिनेमा में एक्टिव तौर पर काम कर रही थीं. लेकिन उन्होंने मुंबई से भी अपना बेस पूरी तरह शिफ्ट नहीं किया था. ‘हलचल’, ‘एक खिलाड़ी एक हसीना’ और ‘फाइट क्लब: मेंबर्स ओनली’ जैसी फिल्मों में भी उसी दौरान काम किया. मुमैत को हिंदी सिनेमा में ब्रेकथ्रू पहले ही मिल चुका था. अब बारी थी तेलुगु सिनेमा में भी ऐसे ही एक बड़े ब्रेक की.
जो उन्हें दिया पुरी जगन्नाथ की फिल्म ‘पोकिरी’ ने. महेश बाबू स्टारर फिल्म एक बड़ी ब्लॉकबस्टर साबित हुई. करीब 12 करोड़ रुपए के बजट में बनी और 66 करोड़ रुपए का कलेक्शन किया. फिल्म की सक्सेस को भुनाने के लिए इसे तमिल, कन्नड, हिंदी और बंगाली में भी बनाया गया. तमिल वाले वर्ज़न ‘पोक्किरी’ की लीड में विजय थे. विजय की इस फिल्म में भी मुमैत ने काम किया. वहीं, हिंदी में ‘पोकिरी’ को ‘वॉन्टेड’ के टाइटल से बनाया गया. जहां महेश बाबू वाला रोल निभाया सलमान खान ने. ‘पोकिरी’ में मुमैत ने ‘इपट्टीकिंका’ नाम के गाने में परफॉर्म किया था.
करियर की वो फिल्म मिली, जिसे लिखने वाला केन्द्रीय मंत्री था
मुमैत ने अपने करियर में अधिकांश फिल्मों में बतौर डांसर काम किया. इस वजह से वो टाइपकास्ट भी हुईं. उनकी ओर आने वाले ज्यादातर रोल या तो आइटम नंबर्स होते. या फिर बोल्ड किस्म के रोल जहां उनका काम सिर्फ स्पेशल अपियरेंस तक सीमित रहता. उन्हें लीडिंग लेडी बनने का मौका नहीं मिल रहा था. देर से ही सही लेकिन ये शिकायत भी दूर हुई. तेलुगु फिल्म ‘मैसम आईपीएस’ से. कहानी थी मैसम नाम की लड़की की. बचपन में मां-बाप गुज़र जाते हैं. बहन के साथ रहने लगती है. लेकिन उसका जीजा उसकी बहन को मार डालता है. मैसम बचकर निकल जाती है और आगे जाकर पुलिस ऑफिसर बन जाती है. अपनी बहन की मौत का बदला लेने के लिए. मुमैत ने ही पुलिस ऑफिसर का रोल निभाया. फिल्म कुछ खास नहीं चली. लेकिन इंडस्ट्री में उनके काम के हिस्से सराहना ही आई. ‘मैसम आईपीएस’ किसी भी ऐंगल से कोई महान या यादगार फिल्म नहीं थी. सिवाय एक फैक्टर के. वो थे फिल्म के राइटर. दासरी नारायण राव. वो डायरेक्टर जिन्होंने अपने करियर में 150 से ज्यादा फिल्में डायरेक्ट की. इसी वजह से सबसे ज्यादा फिल्में बनाने का लिम्का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी अपने नाम किया. दासरी ने तेलुगु समेत हिंदी भाषी फिल्में भी डायरेक्ट की. जैसे ‘स्वर्ग नरक’, ‘ज्योति बने ज्वाला’, ‘यादगार’, ‘प्रेम तपस्या’ और ‘सरफरोश’. आमिर वाली ‘सरफरोश’ नहीं बल्कि जीतेंद्र, श्रीदेवी वाली.
साउथ की कई दिग्गज पर्सनैलिटीज़ की तरह दासरी ने भी फिल्मी करियर से ब्रेक लेकर राजनीति का रुख किया. आंध्रप्रदेश कांग्रेस के एमपी रहे दासरी 2004 से लेकर 2006 और अपने दूसरे टर्म में 2006 से लेकर 2008 तक देश के कोयला मंत्री रहे. आगे जाकर कोलगेट स्कैम में उनका नाम भी आया था. जिसके तहत सीबीआई ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी.
काजोल को इमिटेट करने के चक्कर में भयानक एक्सीडेंट हो गया
तारीख 05 जनवरी, 2016. कुछ दिन पहले ही मुमैत गोवा ट्रिप से लौटी थीं. इस दौरान वो ब्रेक पर थीं. खुद को समय देना चाहती थीं. सुबह उठी. शावर लिया और खुद को शीशे में देखने लगीं. शीशे में जो दिखा वो देखकर उन्हें ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ वाली काजोल याद आई. जो खुश हो-होकर ‘मेरे ख्वाबों में जो आए’ गा रही थी. बस बिना ज्यादा सोचे मुमैत भी काजोल को इमिटेट करने लगीं. हूबहू उस गाने की तरह. लेकिन यहीं एक बड़ी चूक हो गई.
मुमैत के कमरे की फ्लोर मार्बल की थी. जिसपर गीले पांव फिसलते थे. काजोल का डांस स्टेप करने के चक्कर में मुमैत का पैर भी फिसला. जिससे उनका सिर सीधा जा लगा अपने वुडन बेड के पैने किनारे पर. चोट लगते ही मुमैत को कुछ भी याद नहीं रहा. आंखें खुली सीधा हॉस्पिटल में. जहां डॉक्टरों ने बताया कि उनके ब्रेन की तीन नर्व्स डैमेज हो चुकी हैं. और उनके ब्रेन में पिछले दो दिनों से लगातार ब्लीडिंग हो रही थी. जिस वजह से वो 14 दिनों तक कोमा में रहीं. डॉक्टरों ने ऑपरेशन किया. नर्व डैमेज की वजह से उनके ब्रेन में 9 टाइटेनियम वायर लगाए गए. ताकि जिन नर्व्स में सूजन आई है, उन्हें सही किया जा सके. सर्जरी हो गई. डॉक्टर ने साफ सलाह दी कि अगले आठ महीने तक चल नहीं पाएंगी. साथ ही दिमाग पर तनाव डालने की कोशिश भी मत कीजिएगा. प्रोटोकॉल के हिसाब से मुमैत को तीन महीनों तक अस्पताल में ही रहना था. लेकिन वो कैसे भी ज़िद कर के करीब एक महीने बाद ही डिस्चार्ज हो गईं.
डॉक्टरों के समझाने पर भी वो नहीं मानी. फिर भी डॉक्टर ने यही कहा कि आप अगले दो सालों तक काम नहीं कर सकतीं. मुमैत ने इसे भी सुन कर अनसुना कर दिया. रूटीन चेकअप के लिए फिर हॉस्पिटल गईं. जहां डॉक्टर ने फिर दोहराया कि फिर से शूट पर जाने की सोचना भी मत. मुमैत का केस ऐसा है कि वो शुरू से बेबाक रही हैं. वो मानती हैं कि उनके दिमाग से लेकर मुंह तक कोई फिल्टर नहीं है. तपाक से डॉक्टर को जवाब दिया. कि अगर मैं काम नहीं करुंगी तो आपके हॉस्पिटल को जो इतना मोटा बिल दिया है, उसकी भरपाई कैसे होगी. मुमैत की सर्जरी की कॉस्ट करीब 27 लाख रुपए थी. उनका बेबाकी से दिया जवाब सुनकर डॉक्टर ने काम करने की परमिशन दे दी. लेकिन पूरी सावधानी के साथ.
आज कल कहां हैं Mumaith Khan?
हिंदी, तमिल और तेलुगु फिल्मों के अलावा मुमैत ने रियलिटी शोज़ में भी काम किया है. वो बिग बॉस तेलुगु सीज़न वन में कंटेस्टेंट थीं. हालांकि, एक ड्रग्स कंट्रोवर्सी में नाम आने के बाद उन्हें शो से बाहर आना पड़ा था. सीबीआई ने उनसे पूछताछ की. जब उनके खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिला तो उन्हें फिर से शो में जाने की परमिशन दे दी गई. हालांकि, बिग बॉस में दोबारा एंट्री के कुछ समय बाद ही वो एलिमिनेट हो गई थीं.
बिग बॉस समेत वो डांस रियलिटी शो ‘झलक दिखला जा’ के छठे सीज़न में भी दिखाई दी थीं. हिंदी फिल्मों से शुरुआत करने वाली मुमैत फिलहाल तेलुगु सिनेमा पर फोकस कर रहीं हैं. उनकी आखिरी मेजर हिंदी फिल्म थी 2012 में आई ‘राउडी राठौड़’. जहां वो ‘आ रे प्रीतम प्यारे’ गाने में दिखाई दी थीं.
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