'आश्रम' के एक दृश्य में बाबा की भूमिका में बॉबी देओल |
भारत में 90 के दशक से फिल्मों से भारतीय संस्कृति और भक्ति सागर का पतन होना शुरू आज तक थमने का नाम नहीं ले रहा। अमिताभ बच्चन अभिनीत गुलशन राय की फिल्म "दीवार" में माँ की भूमिका निभानी वाली निरुपा रॉय को 60 और 70 के दशक में "देवी" के नाम से जाना जाता था, क्योकि उन्होंने अधिकतर धार्मिक फिल्मों में "देवी" का अभिनय करती थी। औरतें मंदिर जाने की बजाए उनकी पूजा करने जाती थीं। अगर वह सुबह जल्दी नहीं उठीं, तो उनके कमरे के द्वार पर हार-फूल अर्पित कर माथा टेक घर जाती थी। जब 80 के दशक में पत्रकारिता शुरू की थी, सबसे पहला लेख Organiser में निरुपा रॉय पर ही प्रकाशित हुआ था।
फिर 70 के दशक में दो बहु-चर्चित धार्मिक फिल्में "जय संतोषी माँ" और पंजाबी में "नानक नाम जहाज है", ऐसी फिल्में प्रदर्शित हुई थीं जिन्होंने 50 के दशक में प्रदर्शित "रामराज्य" फिल्म की याद ताज़ा कर दी थी। "रामराज्य" और "नानक नाम जहाज है" ऐसी फिल्में थीं, जिन्हे दर्शकों ने जमीन पर बैठकर देखी, और तीसरी फिल्म "जय संतोषी माता" इन तीनों फिल्मों में एक ही समानता थी, जिस-जिस सिनेमा हॉल पर ये फिल्में प्रदर्शित होती थी, गेट पर हार-फूल बेचने वाले बैठते थे। "जय संतोषी माँ" फिल्म में तो शो समाप्त होने पर परदे के पास से हार-फूल हटाने पर सिनेमा कर्मचारियों को 150-200 रूपए की कमाई होती थी। फिल्म जगत ने एक से बढ़कर एक धार्मिक फिल्म दी, परन्तु किसी भी फिल्म में हिन्दू धर्म और आस्था को अपमानित नहीं किया। जबकि विश्व विख्यात पहलवान, अभिनेता, निर्माता और निर्देशक दारा सिंह की ज्वाला माता पर आधारित फिल्म आयी थी "भक्ति में शक्ति", इस फिल्म में उन्होंने दर्शाया था की किस तरह मुग़ल अकबर ने ध्यानु भक्त की परीक्षा ली और ज्वाला माता की जोत को बुझाने के लिए क्या-क्या क्रूरता करने उपरांत भी जोत के नहीं बुझने पर नंगे पांव माता को छत्र चढ़ाने गया, जो आज के दौर में शायद कोई निर्माता-निर्देशक दिखाने का साहस करना तो दूर, सोंच भी नहीं पाएगा।
1962 इंडो-चीन युद्ध के बाद "ए मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी...." सदाबहार चर्चित गीत लिखने वाले प्रदीप ने 60 के दशक में "आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की" गीत में लिखा "....मुगलों की ताकत को जिसने तलवारों से तोला था ...." ऐसे गीतों की रचना आज के माहौल में संभव नहीं था।
लेकिन आज बॉलीवुड का हिन्दूफोबिया थमता नहीं दिख रहा है। अभी महेश भट्ट की ‘सड़क-2’ को लेकर विवाद ख़त्म भी नहीं हुआ था कि प्रकाश झा अपनी नई सीरीज ‘आश्रम’ लेकर आ धमके हैं। इसमें वे एक बाबा को विलेन बना कर आस्था और अपराध के संयोग को दिखाने का दावा कर रहे हैं।
अजय देवगन को लेकर ‘अपहरण’, ‘गंगाजल’ ‘राजनीति’ और ‘सत्याग्रह’ जैसे फ़िल्में निर्देशित कर चुके प्रकाश झा इस सीरीज से ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स में कदम रख रहे हैं।
इस सीरीज में मुख्य भूमिका बॉबी देओल की है, जिन्होंने एक बाबा का किरदार निभाया है। इसके ट्रेलर की शुरुआत में ही बाबा का भव्य आश्रम दिखाया जाता है, जहाँ वो कह रहा होता है, “एक रूप, महास्वरूप! मैं आप सबको मोक्ष की राह पर लेकर जाऊँगा। जापनाम! जापनाम!” इसके बाद बाबा और आश्रम की भव्यता और जनता में उनके प्रभाव को लेकर ये दिखाया जाता है कि अंधविश्वासी है।
ट्रेलर में ‘हमारे देश में जब लोग विश्वास करना शुरू करते हैं तो बाढ़ सी आ जाती है” डायलॉग के जरिए ये दिखाने की कोशिश की गई है कि हिन्दुओं में साधु-संतों के सारे शिष्य या अनुयायी मूर्ख होते हैं। बाबा को अलग-अलग तरीके से दिखाया गया है। बाबा को सिंहासन पर बैठे और लोगों को उसका पाँव छूते दिखाया गया है। एक व्यक्ति कहता है कि जब तक बाबा जैसे लोग हैं, हमारे समाज को आगे जाने से कोई नहीं रोक सकता।
इसके बाद फिर बॉलीवुड के उसी घिसे-पिटे ढर्रे पर चलते हुए कहानी में कुछ राजनेताओं की एंट्री होती है और बाबा के बारे में राजनीतिक हलकों में चर्चा होती है। साथ ही बाबा के डायलॉग ‘मैं उपदेश नहीं, सन्देश देता हूँ – शांति का‘ के जरिए उसे डरावना दिखाने का प्रयास किया गया है। इसके बाद बाबा को ‘गॉडमैन’ की जगह ‘कॉनमैन’ कह कर बताया गया है कि वो कितना बड़ा अपराधी है।
दिलचस्प बात ये है कि बाबा को दिखाया तो गया है सूफी वाले लुक्स में लेकिन आश्रम में यज्ञाग्नि, शुद्ध हिंदी और उसके अनुयायियों को देख कर स्पष्ट पता चलता है कि ये सीरीज हिन्दुओं और हिन्दू साधु-संतों को बदनाम करने के लिए बनाई गई है। इसके बाद बाबा को बलात्कारी और खूनी दिखाया जाता है। 9 लड़कियाँ गायब होती हैं और बाबा को अव्वल दर्जे का व्यभिचारी दिखाया जाता है, जो बलात्कार कर के लड़कियों का खून कर देता है।
साथ ही बताया गया है कि आश्रम में आने वाली लड़कियों का बलात्कार किया जाता है और फिर मार डाला जाता है। इसके बाद ‘भक्ति और भ्रष्टाचार’ जैसे टैगलाइन्स देकर बाबा को ज्यादा से ज्यादा बुरा दिखाने की कोशिश होती है। जल अर्पण करती महिलाओं से लेकर बाबा के बोलचाल तक, स्पष्ट पता चलता है कि ये हिन्दुओं को बदनाम करने की साजिश है। ये सीरीज एमेक्स प्लेयर पर रिलीज होगी।
बॉलीवुड में अक्सर पंडितों और साधु-संतों को धोखेबाज और बलात्कारी दिखाया जाता रहा है, जबकि मुस्लिम किरदारों को ईमानदार और देश के लिए मर-मिटने वाला प्रदर्शित किया जाता रहा है। इसी तरह ‘सड़क-2’ में भी महेश भट्ट एक ऐसी कहानी लेकर आ रहे हैं, जिसमें एक साधु को बुरा दिखाया जाएगा और उसके काले कृत्यों का खुलासा किया जाएगा। इसमें भी एक डरावने बाबा को विलेन दिखाया गया है। फ़िलहाल इसका ट्रेलर यूट्यूब पर डिसलाइक का रिकॉर्ड बना रहा है।
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