भारतीय सिनेमा में जैसा मुकाम सुचित्रा सेन का है किसी का नहीं है। वे बंगाली सिनेमा की बहुत बड़ी आइकन हैं।जीवन के आखिरी पैंतीस साल उन्होंने लोगों के बीच आना जाना बंद कर दिया।
दो बार सुचित्रा को सार्वजनिक रूप से घर से बाहर देखा गया। पहली दफा 24 जुलाई 1980 को जब बांग्ला फिल्मों के महानायक उत्तम कुमार का निधन हुआ। अपनी कार से उतरकर वे सीधे उत्तम कुमार के शव के नजदीक आकर मौन खड़ी हो जाती हैं। फूलों की एक माला शव पर समर्पित कर चुपचाप कार में बैठ वापस आ जाती हैं।
दूसरी बार कलकत्ता में 1982 में चल रहे फिल्मोत्सव के दौरान एक फिल्म देखने आई थीं, तब दर्शकों-प्रशंसकों ने परिचित सनग्लास पहने सुचित्रा की झलक भर देखी थी। इन्हीं वजहों से सुचित्रा की तुलना हॉलीवुड की तीस-चालीस के दशक की सर्वाधिक लोकप्रिय तारिका रही ग्रेटा गार्बो से की जाती है।
ग्रेटा ने फिल्मों से संन्यास लेने के बाद न्यूयॉर्क के एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग का एक पूरा माला खरीद लिया था। एक फ्लैट में वे रहती थीं। शेष में उन्होंने ताले लगवाकर बंद कर दिए थे। उनके माले पर लिफ्ट नहीं ठहरती थी क्योंकि उन्होंने अपनी मंजिल का बटन भी बंद करा दिया था। पैंतीस वर्ष तक ग्रेटा गार्बो ने ग्लैमर से दूर गुमनामी के अंधेरे की जिंदगी अकेले बिताई।
वे सार्वजनिक आयोजनों में हिस्सा लेने से यूं विरक्त हो चुकी थीं कि जब उन्हें हिंदी सिनेमा का सबसे बड़ा पुरस्कार दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड दिया जा रहा था तो उन्होंने लेने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें इवेंट में जाना पड़ता। उन्हें पद्मश्री भी मिला और बंगाल सरकार का बंगा बिभूषण। वे पहली भारतीय एक्ट्रेस मानी जाती हैं जिन्हें किसी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सम्मानित किया गया था।
फिल्म ‘सप्तपदी’ के लिए 1963 में मॉस्को फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला था। 17 जनवरी 2011 को कोलकाता में उनकी मृत्यु हो गई थी।
सुचित्रा सेन का जन्म बंगाल के पबना कस्बे में 6 अप्रैल 1931 को हुआ था जो अब बांग्लादेश में पड़ता है। वो मिडिल क्लास परिवार से थीं। उनके पिता ने उन्हें हमेशा शिक्षा के बहुत प्रेरित किया. 1947 में एक उद्योगपति देबनाथ सेनगुप्ता से उनकी शादी कर दी गई। पति देबनाथ ने भी उन्हें फिल्मों में अभिनय करने के लिए प्रोत्साहित किया। पचास का दशक सुचित्रा के करियर के लिए बेहतरीन रहा जिसमें उन्होंने बहुत सी शानदार फ़िल्में की।
उन्होंने अपना डेब्यू बंगाली फिल्म ‘शेष कोथाई’ से किया लेकिन ये कभी रिलीज नहीं हुई। फिर बंगाली सुपरस्टार उत्तम कुमार के साथ उन्होंने क्लासिक फिल्में दीं। उनका करियर बेहतरीन रहा। उन्होंने देवदास, मुसाफिर और आंधी जैसी यादगार हिंदी फिल्मों में भी काम किया।
साठ का दशक आते-आते सुचित्रा और उनके पति के बीच के संबंध लगभग खत्म हो गए। उनके पति अमेरिका रहने लगे। 1969 में एक्सीडेंट में देबनाथ की मौत हो गई। पति की मौत के बाद सुचित्रा अकेली रहने लगी। दूसरी शादी नहीं की और अपनी बेटी मुनमुन सेन की परवरिश की। मुनमुन सेन ने भी एक अभिनेत्री के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनकी बेटियां और सुचित्रा की नातियां रायमा और रिया सेन भी अभिनेत्रियां हैं।
पति दिबानाथ ने ही सुचित्रा को फिल्मों में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया। सुचित्रा ने पहली फिल्म शेष कोथाई (1952) में काम किया था, मगर आज तक यह फिल्म रिलीज नहीं हो पाई। दूसरी फिल्म सात नम्बर कैदी में समर राय के साथ दिखाई दी। तीसरी फिल्म साढ़े चौहत्तर से उत्तम कुमार का साथ मिला, जो बीस साल तक चला।
उनका असली नाम था रोमा
सुचित्रा सेन का जन्म 6 अप्रैल 1931 अथवा 1934 में पाबना (अब बंगला देश) गाँव के मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। तीन भाई और पाँच बहनों में सुचित्रा का क्रम पाँचवाँ है। पिता करुणामय दासगुप्ता और माँ का नाम इन्दिरा था।
बचपन में घर का नाम कृष्णा था। पिता जब हाई स्कूल में भर्ती करने गए तो नाम लिखवाया रोमा। और जब पहली बार स्क्रीन टेस्ट हुआ तो नितीश राय नामक सहायक निर्देशक ने नया नाम दिया- सुचित्रा। 1947 में कलकत्ता के बार-एट-लॉ आदिनाथ सेन के बेटे दिबानाथ सेन के साथ रोमा यानी सुचित्रा की शादी कर दी गई। शादी में दहेज नहीं माँगा गया था, यह उस समय की अनहोनी घटना थी।
वे स्कूल के टाइम से ही नाटकों से जुड़ी हुई थीं। एक बार किसी नाटक के लिए वे स्क्रीन टेस्ट दे रही थीं, तो डायरेक्टर नितीश राय ने उन्हें नया नाम दिया – ‘सुचित्रा’। नाम बदलने को लेकर नितीश ने रोमा से कहा, “तुम बहुत खूबसूरत हो और सुचित्रा नाम तुम पर बिलकुल जंचता है।” फिर इसके बाद से वो ताउम्र सुचित्रा के नाम से ही जानी जाती रहीं।
पारो के किरदार के लिए वे तीसरी पसंद थीं
हिंदी फिल्मों में सुचित्रा ने सबसे पहले बिमल रॉय की फिल्म ‘देवदास’ (1955) में काम किया था।इसमें उन्होंने पारो का किरदार निभाया था। इसके पीछे भी एक कहानी है। दरअसल बिमल पारो के किरदार के लिए मीना कुमारी को लेना चाहते थे लेकिन वे दूसरी फिल्म में बिजी थीं और डेट्स नहीं थी तो मीना ने मना कर दिया। पारो के रोल में बिमल की दूसरी पसंद मधुबाला थीं लेकिन उनके होने वाले देवदास दिलीप कुमार और मधुबाला की बन नहीं रही थी। दोनों इस अवधि में मुग़ल-ए-आज़म की शूटिंग करते आ रहे थे और इसी के सेट पर उनमें अनबन होने लगी थी। लिहाजा पारो का किरदार सुचित्रा सेन को दे दिया गया।
एक बार दिलीप कुमार ने सुचित्रा की तारीफ करते हुए कहा था, “पहली बार मैंने किसी महिला की खूबसूरती और बुद्धि दोनों एक साथ महसूस कीं। उनकी आंखें कमाल की थीं। उनमें एक अजीब सी नजाकत थी। जब देवदास के सेट पर पहली दफा बिमल रॉय ने उनसे मेरी मुलाकात कराई, तब मैं उन्हें देखता रह गया था।उनकी डायलॉग डिलीवरी में एक अलग सी क़ैफियत थी। जिसकी तारीफ फिल्म के सेट पर बिमल राय भी किया करते थे।”
जब सुचित्रा सेन से इंदिरा गांधी डर गई थीं
उनकी 1975 में रिलीज होने वाली नामी फिल्म थी ‘आंधी’। तब देश में इमरजेंसी का दौर चल रहा था। इसमें सुचित्रा के किरदार आरती को लोगों ने इंदिरा गांधी से जोड़कर देखा था। इस वजह से जबरदस्त विवाद शुरू हो गया और फिल्म को बैन कर दिया गया। स्थिति ये हो गई कि इमरजेंसी खत्म होने के बाद ही फिल्म रिलीज हो पाई।
दरअसल निर्माता जे. ओमप्रकाश ने डायरेक्टर गुलजार के सामने सुचित्रा सेन और संजीव कुमार को लेकर एक फिल्म बनाने का प्रस्ताव रखा था। इसकी पटकथा सचिन भौमिक ने लिखी थी जो गुलजार को पसंद नहीं आई और उन्होंने खुद एक पटकथा लिखनी शुरू की। ये कहानी एक ताकतवर महिला राजनेता और एक फाइव स्टार होटल के मालिक के संबंधों पर आधारित थी।
स्क्रिप्ट लिखने के बाद गुलजार को पता चला कि ‘काली आंधी’ नाम से कमलेश्वर ने एक उपन्यास लिखा है। फिर गुलजार ने कमलेश्वर से अनुरोध किया कि उनकी कहानी फिल्म में शामिल करने की मंजूरी दे। तब जाकर भौमिक-गुलजार-कमलेश्वर की तिकड़ी की स्क्रिप्ट पर ‘आंधी’ बनी। आज भी लोग सुचित्रा को ‘आंधी’ से रिलेट करके याद करते हैं।
जब ये फिल्म इंदिरा गांधी के शासन में बैन कर दी गई तो समीक्षकों ने कहा कि “सुचित्रा ने अपने अभिनय से इंदिरा गांधी को डरा दिया है।”
हर एंगल से ब्यूटीफुल
सुचित्रा सेन की निजी धरोहर उनका सौन्दर्य रहा है। ऐसा फोटोजनिक फेस कम देखने को मिलता है। कैमरे के किसी भी कोण से सुचित्रा को निहारा जाए तो उनकी सुंदरता बढ़ते चन्द्रमा की तरह और अधिक सुंदर होती जाएगी। इसीलिए सुचित्रा की अधिकांश फिल्मों में सिनेमाटोग्राफर्स ने उनके चेहरे के क्लोज-अप्स का ज्यादा इस्तेमाल किया है। उनका क्लोज-अप में चेहरा देखना एक सम्मोहक शक्ति के वश में हो जाने जैसा है।
फिल्म जगत की सफलतम सुचित्रा और उत्तम कुमार की जोड़ी
अपनी सुंदरता के जरिये सुचित्रा ने बंगला फिल्मों को बेहद रोमांटिक बनाया और अपने प्रिय नायक उत्तम कुमार के साथ उन्होंने बीस बरसों तक दर्शकों को रोमांस की रोशनी से लगातार नहलाया। फिल्मों में दो कलाकारों की जोड़ी बनने का सीधा मतलब होता है कि रील-लाइफ का रोमांस रियल-लाइफ में भी पंख पसारने लगता है, लेकिन इकतीस फिल्मों में उत्तम कुमार के साथ लगातार काम करने, सफलता पाने और लोकप्रियता बटोरने के बावजूद उत्तम-सुचित्रा को लेकर प्रिंट मीडिया में कभी कोई गॉसिप या स्कैंडल नहीं छपे।
दोनों कलाकारों ने पत्नी या प्रेमिका के किरदारों को परदे तक ही सीमित रखा। इसके दो कारण और भी हैं। पहला यह कि सुचित्रा निजी जीवन में हमेशा से अंतरमुखी रही हैं। प्रेस से एक दूरी बनाए रखी। फिजूल की पार्टियों में जाना और हर किसी से मिलना-जुलना उन्हें नापसंद था। दूसरे, उत्तम कुमार का आत्मीय रिश्ता सुप्रिया देवी से इतना गहरा था कि दूसरी स्त्री के बारे में उत्तम कुमार ने सोचा तक नहीं।
सात फिल्में हिंदी में
हिन्दी सिनेमा के दर्शकों के लिए सुचित्रा की पहचान सिर्फ सात फिल्मों से हैं। सबसे पहले बिमल राय की फिल्म देवदास (1955) में उन्होंने पार्वती (पारो) का रोल किया और फिल्म को यादगार बनाया। बिमल राय पहले इस रोल के लिए मीना कुमारी को लेना चाहते थे।
सुचित्रा की हिन्दी में दूसरी फिल्म ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में बनी मुसाफिर (1957) है। इसमें दिलीप कुमार से भी सीनियर हीरो शेखर, सुचित्रा के नायक बने। इसके बाद चम्पाकली (1957) फिल्म में भारत भूषण के साथ सुचित्रा ने काम किया। ये दोनों कमजोर फिल्में साबित हुईं।
देव आनंद के साथ सुचित्रा की दो फिल्में हैं- बम्बई का बाबू और सरहद (1960)। लेकिन देव आनंद ने सुचित्रा के अभिनय की तारीफ फिल्म आँधी के लिए की है। दरअसल देखा जाए, तो सुचित्रा सेन की अभिनय क्षमता, बॉडी लैंग्वेज और मैनेरिज्म का सही उपयोग गुलजार साहब ने फिल्म आँधी में काम किया है। संजीव कुमार के साथ उनकी जोड़ी लाजवाब रही और हिन्दी दर्शकों के एक बड़े समूह ने पहली बार सुचित्रा के सौन्दर्य और अभिनय प्रतिभा को नजदीक से देखा, जाना और समझा।
आँधी और सरहद के बीच फिल्मकार असित सेन की हिन्दी फिल्म ममता (1966) में सुचित्रा ने माँ और बेटी के दोहरे किरदार को निभाया है। अशोक कुमार के साथ धर्मेन्द्र ने प्रेमी का रोल इस फिल्म में निभाया था।
आँधी फिल्म 1975 में रिलीज होते ही इमरजेंसी की शिकार हो गई। उसकी नायिका आरती (सुचित्रा सेन) के किरदार को सीधे प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी के जीवन से जोड़ा गया। फिल्म पर प्रतिबंध लगा और इमरजेंसी हटने के बाद जब आँधी रिलीज हुई, तो उसे हर वर्ग के दर्शकों का भरपूर समर्थन मिला।
सुचित्रा की हिन्दी के उच्चारण ठीक नहीं थे। यूनिट के सदस्यों ने गुलजार से संवाद डब करने की बात कही। गुलजार ने कहा कि सुचित्रा सेन जो हैं और जैसे उनके उच्चारण हैं, उसके साथ छेड़छाड़ करना एक महान अभिनेत्री के साथ नाइंसाफी होगी।
आँधी के ठीक बाद सुचित्रा ने सिर्फ दो बंगला फिल्मों में अभिनय किया और अपनी लोकप्रियता के शिखर पर रहते हुए संन्यास की घोषणा से सबको चौंका दिया। प्रणय पाश (1978) उनकी आखिरी बांग्ला फिल्म है, जिसमें सौमित्र चटर्जी उनके नायक रहे हैं।
दो बार सुचित्रा को सार्वजनिक रूप से घर से बाहर देखा गया। पहली दफा 24 जुलाई 1980 को जब बांग्ला फिल्मों के महानायक उत्तम कुमार का निधन हुआ। अपनी कार से उतरकर वे सीधे उत्तम कुमार के शव के नजदीक आकर मौन खड़ी हो जाती हैं। फूलों की एक माला शव पर समर्पित कर चुपचाप कार में बैठ वापस आ जाती हैं।
दूसरी बार कलकत्ता में 1982 में चल रहे फिल्मोत्सव के दौरान एक फिल्म देखने आई थीं, तब दर्शकों-प्रशंसकों ने परिचित सनग्लास पहने सुचित्रा की झलक भर देखी थी। इन्हीं वजहों से सुचित्रा की तुलना हॉलीवुड की तीस-चालीस के दशक की सर्वाधिक लोकप्रिय तारिका रही ग्रेटा गार्बो से की जाती है।
ग्रेटा ने फिल्मों से संन्यास लेने के बाद न्यूयॉर्क के एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग का एक पूरा माला खरीद लिया था। एक फ्लैट में वे रहती थीं। शेष में उन्होंने ताले लगवाकर बंद कर दिए थे। उनके माले पर लिफ्ट नहीं ठहरती थी क्योंकि उन्होंने अपनी मंजिल का बटन भी बंद करा दिया था। पैंतीस वर्ष तक ग्रेटा गार्बो ने ग्लैमर से दूर गुमनामी के अंधेरे की जिंदगी अकेले बिताई।
सौंदर्य और अभिनय की आंधी
1978 में फिल्मों से संन्यास लेकर सुचित्रा भी ऐसा ही जीवन जी रही हैं। कुछ वर्ष पहले दादा साहेब फालके अवॉर्ड के लिए उनसे सम्पर्क किया गया था। सुचित्रा ने प्रस्ताव यह कहकर ठुकरा दिया था कि वे अवॉर्ड लेने घर से बाहर नहीं निकलेंगी। भारतीय सिनेमा के इतिहास में सुचित्रा सेन एक नाम न रहकर अब एक घटना बन गया है।वे सार्वजनिक आयोजनों में हिस्सा लेने से यूं विरक्त हो चुकी थीं कि जब उन्हें हिंदी सिनेमा का सबसे बड़ा पुरस्कार दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड दिया जा रहा था तो उन्होंने लेने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें इवेंट में जाना पड़ता। उन्हें पद्मश्री भी मिला और बंगाल सरकार का बंगा बिभूषण। वे पहली भारतीय एक्ट्रेस मानी जाती हैं जिन्हें किसी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सम्मानित किया गया था।
फिल्म ‘सप्तपदी’ के लिए 1963 में मॉस्को फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला था। 17 जनवरी 2011 को कोलकाता में उनकी मृत्यु हो गई थी।
सुचित्रा सेन का जन्म बंगाल के पबना कस्बे में 6 अप्रैल 1931 को हुआ था जो अब बांग्लादेश में पड़ता है। वो मिडिल क्लास परिवार से थीं। उनके पिता ने उन्हें हमेशा शिक्षा के बहुत प्रेरित किया. 1947 में एक उद्योगपति देबनाथ सेनगुप्ता से उनकी शादी कर दी गई। पति देबनाथ ने भी उन्हें फिल्मों में अभिनय करने के लिए प्रोत्साहित किया। पचास का दशक सुचित्रा के करियर के लिए बेहतरीन रहा जिसमें उन्होंने बहुत सी शानदार फ़िल्में की।
उन्होंने अपना डेब्यू बंगाली फिल्म ‘शेष कोथाई’ से किया लेकिन ये कभी रिलीज नहीं हुई। फिर बंगाली सुपरस्टार उत्तम कुमार के साथ उन्होंने क्लासिक फिल्में दीं। उनका करियर बेहतरीन रहा। उन्होंने देवदास, मुसाफिर और आंधी जैसी यादगार हिंदी फिल्मों में भी काम किया।
साठ का दशक आते-आते सुचित्रा और उनके पति के बीच के संबंध लगभग खत्म हो गए। उनके पति अमेरिका रहने लगे। 1969 में एक्सीडेंट में देबनाथ की मौत हो गई। पति की मौत के बाद सुचित्रा अकेली रहने लगी। दूसरी शादी नहीं की और अपनी बेटी मुनमुन सेन की परवरिश की। मुनमुन सेन ने भी एक अभिनेत्री के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनकी बेटियां और सुचित्रा की नातियां रायमा और रिया सेन भी अभिनेत्रियां हैं।
पति दिबानाथ ने ही सुचित्रा को फिल्मों में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया। सुचित्रा ने पहली फिल्म शेष कोथाई (1952) में काम किया था, मगर आज तक यह फिल्म रिलीज नहीं हो पाई। दूसरी फिल्म सात नम्बर कैदी में समर राय के साथ दिखाई दी। तीसरी फिल्म साढ़े चौहत्तर से उत्तम कुमार का साथ मिला, जो बीस साल तक चला।
उनका असली नाम था रोमा
सुचित्रा सेन का जन्म 6 अप्रैल 1931 अथवा 1934 में पाबना (अब बंगला देश) गाँव के मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। तीन भाई और पाँच बहनों में सुचित्रा का क्रम पाँचवाँ है। पिता करुणामय दासगुप्ता और माँ का नाम इन्दिरा था।
बचपन में घर का नाम कृष्णा था। पिता जब हाई स्कूल में भर्ती करने गए तो नाम लिखवाया रोमा। और जब पहली बार स्क्रीन टेस्ट हुआ तो नितीश राय नामक सहायक निर्देशक ने नया नाम दिया- सुचित्रा। 1947 में कलकत्ता के बार-एट-लॉ आदिनाथ सेन के बेटे दिबानाथ सेन के साथ रोमा यानी सुचित्रा की शादी कर दी गई। शादी में दहेज नहीं माँगा गया था, यह उस समय की अनहोनी घटना थी।
वे स्कूल के टाइम से ही नाटकों से जुड़ी हुई थीं। एक बार किसी नाटक के लिए वे स्क्रीन टेस्ट दे रही थीं, तो डायरेक्टर नितीश राय ने उन्हें नया नाम दिया – ‘सुचित्रा’। नाम बदलने को लेकर नितीश ने रोमा से कहा, “तुम बहुत खूबसूरत हो और सुचित्रा नाम तुम पर बिलकुल जंचता है।” फिर इसके बाद से वो ताउम्र सुचित्रा के नाम से ही जानी जाती रहीं।
पारो के किरदार के लिए वे तीसरी पसंद थीं
हिंदी फिल्मों में सुचित्रा ने सबसे पहले बिमल रॉय की फिल्म ‘देवदास’ (1955) में काम किया था।इसमें उन्होंने पारो का किरदार निभाया था। इसके पीछे भी एक कहानी है। दरअसल बिमल पारो के किरदार के लिए मीना कुमारी को लेना चाहते थे लेकिन वे दूसरी फिल्म में बिजी थीं और डेट्स नहीं थी तो मीना ने मना कर दिया। पारो के रोल में बिमल की दूसरी पसंद मधुबाला थीं लेकिन उनके होने वाले देवदास दिलीप कुमार और मधुबाला की बन नहीं रही थी। दोनों इस अवधि में मुग़ल-ए-आज़म की शूटिंग करते आ रहे थे और इसी के सेट पर उनमें अनबन होने लगी थी। लिहाजा पारो का किरदार सुचित्रा सेन को दे दिया गया।
एक बार दिलीप कुमार ने सुचित्रा की तारीफ करते हुए कहा था, “पहली बार मैंने किसी महिला की खूबसूरती और बुद्धि दोनों एक साथ महसूस कीं। उनकी आंखें कमाल की थीं। उनमें एक अजीब सी नजाकत थी। जब देवदास के सेट पर पहली दफा बिमल रॉय ने उनसे मेरी मुलाकात कराई, तब मैं उन्हें देखता रह गया था।उनकी डायलॉग डिलीवरी में एक अलग सी क़ैफियत थी। जिसकी तारीफ फिल्म के सेट पर बिमल राय भी किया करते थे।”
जब सुचित्रा सेन से इंदिरा गांधी डर गई थीं
उनकी 1975 में रिलीज होने वाली नामी फिल्म थी ‘आंधी’। तब देश में इमरजेंसी का दौर चल रहा था। इसमें सुचित्रा के किरदार आरती को लोगों ने इंदिरा गांधी से जोड़कर देखा था। इस वजह से जबरदस्त विवाद शुरू हो गया और फिल्म को बैन कर दिया गया। स्थिति ये हो गई कि इमरजेंसी खत्म होने के बाद ही फिल्म रिलीज हो पाई।
दरअसल निर्माता जे. ओमप्रकाश ने डायरेक्टर गुलजार के सामने सुचित्रा सेन और संजीव कुमार को लेकर एक फिल्म बनाने का प्रस्ताव रखा था। इसकी पटकथा सचिन भौमिक ने लिखी थी जो गुलजार को पसंद नहीं आई और उन्होंने खुद एक पटकथा लिखनी शुरू की। ये कहानी एक ताकतवर महिला राजनेता और एक फाइव स्टार होटल के मालिक के संबंधों पर आधारित थी।
स्क्रिप्ट लिखने के बाद गुलजार को पता चला कि ‘काली आंधी’ नाम से कमलेश्वर ने एक उपन्यास लिखा है। फिर गुलजार ने कमलेश्वर से अनुरोध किया कि उनकी कहानी फिल्म में शामिल करने की मंजूरी दे। तब जाकर भौमिक-गुलजार-कमलेश्वर की तिकड़ी की स्क्रिप्ट पर ‘आंधी’ बनी। आज भी लोग सुचित्रा को ‘आंधी’ से रिलेट करके याद करते हैं।
जब ये फिल्म इंदिरा गांधी के शासन में बैन कर दी गई तो समीक्षकों ने कहा कि “सुचित्रा ने अपने अभिनय से इंदिरा गांधी को डरा दिया है।”
हर एंगल से ब्यूटीफुल
सुचित्रा सेन की निजी धरोहर उनका सौन्दर्य रहा है। ऐसा फोटोजनिक फेस कम देखने को मिलता है। कैमरे के किसी भी कोण से सुचित्रा को निहारा जाए तो उनकी सुंदरता बढ़ते चन्द्रमा की तरह और अधिक सुंदर होती जाएगी। इसीलिए सुचित्रा की अधिकांश फिल्मों में सिनेमाटोग्राफर्स ने उनके चेहरे के क्लोज-अप्स का ज्यादा इस्तेमाल किया है। उनका क्लोज-अप में चेहरा देखना एक सम्मोहक शक्ति के वश में हो जाने जैसा है।
फिल्म जगत की सफलतम सुचित्रा और उत्तम कुमार की जोड़ी
अपनी सुंदरता के जरिये सुचित्रा ने बंगला फिल्मों को बेहद रोमांटिक बनाया और अपने प्रिय नायक उत्तम कुमार के साथ उन्होंने बीस बरसों तक दर्शकों को रोमांस की रोशनी से लगातार नहलाया। फिल्मों में दो कलाकारों की जोड़ी बनने का सीधा मतलब होता है कि रील-लाइफ का रोमांस रियल-लाइफ में भी पंख पसारने लगता है, लेकिन इकतीस फिल्मों में उत्तम कुमार के साथ लगातार काम करने, सफलता पाने और लोकप्रियता बटोरने के बावजूद उत्तम-सुचित्रा को लेकर प्रिंट मीडिया में कभी कोई गॉसिप या स्कैंडल नहीं छपे।
दोनों कलाकारों ने पत्नी या प्रेमिका के किरदारों को परदे तक ही सीमित रखा। इसके दो कारण और भी हैं। पहला यह कि सुचित्रा निजी जीवन में हमेशा से अंतरमुखी रही हैं। प्रेस से एक दूरी बनाए रखी। फिजूल की पार्टियों में जाना और हर किसी से मिलना-जुलना उन्हें नापसंद था। दूसरे, उत्तम कुमार का आत्मीय रिश्ता सुप्रिया देवी से इतना गहरा था कि दूसरी स्त्री के बारे में उत्तम कुमार ने सोचा तक नहीं।
सात फिल्में हिंदी में
हिन्दी सिनेमा के दर्शकों के लिए सुचित्रा की पहचान सिर्फ सात फिल्मों से हैं। सबसे पहले बिमल राय की फिल्म देवदास (1955) में उन्होंने पार्वती (पारो) का रोल किया और फिल्म को यादगार बनाया। बिमल राय पहले इस रोल के लिए मीना कुमारी को लेना चाहते थे।
सुचित्रा की हिन्दी में दूसरी फिल्म ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में बनी मुसाफिर (1957) है। इसमें दिलीप कुमार से भी सीनियर हीरो शेखर, सुचित्रा के नायक बने। इसके बाद चम्पाकली (1957) फिल्म में भारत भूषण के साथ सुचित्रा ने काम किया। ये दोनों कमजोर फिल्में साबित हुईं।
फिल्म बम्बई का बाबू |
आँधी और सरहद के बीच फिल्मकार असित सेन की हिन्दी फिल्म ममता (1966) में सुचित्रा ने माँ और बेटी के दोहरे किरदार को निभाया है। अशोक कुमार के साथ धर्मेन्द्र ने प्रेमी का रोल इस फिल्म में निभाया था।
आँधी फिल्म 1975 में रिलीज होते ही इमरजेंसी की शिकार हो गई। उसकी नायिका आरती (सुचित्रा सेन) के किरदार को सीधे प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी के जीवन से जोड़ा गया। फिल्म पर प्रतिबंध लगा और इमरजेंसी हटने के बाद जब आँधी रिलीज हुई, तो उसे हर वर्ग के दर्शकों का भरपूर समर्थन मिला।
सुचित्रा की हिन्दी के उच्चारण ठीक नहीं थे। यूनिट के सदस्यों ने गुलजार से संवाद डब करने की बात कही। गुलजार ने कहा कि सुचित्रा सेन जो हैं और जैसे उनके उच्चारण हैं, उसके साथ छेड़छाड़ करना एक महान अभिनेत्री के साथ नाइंसाफी होगी।
आँधी के ठीक बाद सुचित्रा ने सिर्फ दो बंगला फिल्मों में अभिनय किया और अपनी लोकप्रियता के शिखर पर रहते हुए संन्यास की घोषणा से सबको चौंका दिया। प्रणय पाश (1978) उनकी आखिरी बांग्ला फिल्म है, जिसमें सौमित्र चटर्जी उनके नायक रहे हैं।
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