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राहुल गाँधी की दो सीटों से लड़ने की क्या मजबूरी है?

RAHUL GANDHI WAYNAD SEAT
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
पिछले कुछ चुनावों से कांग्रेस का ग्राफ जिस तेजी से निरन्तर गिर रहा है, शायद ही किसी ने कल्पना की होगी। जिस पर कांग्रेस ने कभी मन्थन नहीं किया, क्योकि कांग्रेस बुद्धिजीवी वर्ग ने भी इस ओर लेशमात्र भी चिन्तन करने का प्रयास नहीं किया। कांग्रेस केवल एक ही परिवार पर निर्भर रही और रहना भी चाहती है। कांग्रेस की इस डूबती नैया में यदि परिवार दोषी है तो बुद्धिजीवी वर्ग भी कम दोषी नहीं। प्रियंका वाड्रा को मैदान में उतार एक और गलती कर दी।  
जब राहुल गाँधी को पार्टी अध्यक्ष बनाने की चर्चा चल रही थी, तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था "जितनी जल्दी हो, राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनाइए", जो आज चरितार्थ हो रहा है। राहुल गाँधी एक विशेष परिवार से है, कोई प्रधानमन्त्री नहीं, फिर कांग्रेस की अपनी पारम्परिक अमेठी के साथ-साथ केरल से चुनाव लड़ने के पीछे क्या रहस्य है? क्या अमेठी में कांग्रेस ने हार स्वीकार कर ली है? प्रधानमन्त्री उम्मीदवार को ही दो सीटों से चुनाव लड़ते देखा है, किसी पार्टी अध्यक्ष को नहीं। अन्य दल भाजपा को हराने के लिए एकजुट हो रहे हैं, लेकिन कांग्रेस को अलग रख रहे हैं? क्या आज कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव लग चुकी है? क्योकि सीपीआई(एम) भी भाजपा को हराने की बात कर रही है, साथ ही साथ वायनाड से राहुल गाँधी को भी हराने की बात कर रही है।   
कांग्रेस पार्टी ने मार्च 31 को ये साफ कर दिया कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के अमेठी के अलावा केरल के वायनाड निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। इसकी आधिकारिक घोषणा के साथ ही कई दिनों से इस पर बने सस्पेंस से भी पर्दा उठा दिया है। इस संबंध में कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व कांग्रेस मंत्री ए के एंटनी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए जानकारी दी। उन्होंने राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने की कई वजहों का भी जिक्र किया।
पार्टी ने बताया कि पिछले कई सप्ताह से कांग्रेस के कार्यकर्ता ये अनुरोध कर रहे थे कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को साउथ में किसी एक सीट से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहिए। खासतौर पर ये अनुरोध कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु से किए जा रहे थे। इससे पहले यहां ये जानना जरूरी है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में वायनाड में कांग्रेस की स्थिति क्या थी।
पिछले दो लोकसभा चुनाव 2009 और 2014 में कांग्रेस को वायनाड सीट पर जीत हासिल हुई थी। 2014 में यहां की सीट पर कांग्रेस को महज 20,870 वोटों के अंतर से जीत हासिल हुई थी। कांग्रेस उम्मीदवार एमआई शानवास को एलडीएफ (सीपीएम) के सत्यन मोकेरी से 1.81 फीसदी ज्यादा वोट मिले थे। यह फासला कुल पड़े वोटों में से था। 
केरल में अभी सीपीएम की सरकार है और राज्य की वायनाड सीट पर अभी कांग्रेस का कब्जा है। 2014 के पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में भी यह सीट कांग्रेस के हिस्से में आई थी। ऐसी स्थिति में राहुल गांधी के यहां चुनाव लड़ने से अब इस सीट पर सभी की नजरें टिक गई हैं। बहरहाल एक नजर डालते हैं इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनावों के सियासी समीकरणों पर-
वायनाड संसदीय क्षेत्र
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि केरल के वायनाड को लोकसभा का संसदीय क्षेत्र बने हुए कुछ ही साल हो रहे हैं। 2008 में इसे लोकसभा का निर्वाचन क्षेत्र बनाया गया था। वायनाड लोकसभा सीट के अंतर्गत सात विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से तीन जिले वायनाड में आते हैं ये हैं- मानाथावाडी, सुल्तानबथेरी और कल्पेट्टा। इनके अलावा एक कोझिकोड जिले का थिरुवंबाडी है और तीन अन्य मलप्पुरम जिले के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र एननाड, नीलांबुर और वांडूर आते हैं। यह सीट पिछले साल से ही खाली है जब यहां के सांसद का निधन हो गया था। 

2009 का लोकसभा चुनाव 
2009 के लोकसभा चुनाव में वायनाड सीट पर कुल 11,02,097 वोट पड़े थे जिसमें कांग्रेस के शानावास को 410,703 वोट मिले थे जो कुल वोट का 49.86 फीसदी था। उन्होंने सीपीआई के एम रामातुल्लम को हराया था जिन्हें 257,265 वोट मिले थे जो कुल वोट का महज 31.23 फीसदी था। इस चुनाव में बीजेपी के सी वासुदेवन मास्टर को 31,687 वोट मिले थे जो कुल पड़े वोटों का मात्र 3.85 फीसदी ही था। 

2014 का लोकसभा चुनाव
2009 की तुलना में 2014 के लोकसभा चुनाव में शानवास को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें 377,035 वोट मिले थे जो कुल वोटों का 30.18 फीसदी था जबकि उनके प्रतिद्वंदी सीपीआई के सत्यम मोकेरी को 356,165 वोट मिले थो जो कुल वोटों का 28.51 फीसदी था। इस चुनाव में भी बीजेपी तीसरे नंबर पर रही। बीजेपी उम्मीदवार पी आर रासमिलनाथ को 80,752 वोट ही मिले थे जो कुल वोटों का महज 6.46 फीसदी था।

क्या है वायनाड का वोट गणित 
केरल के वायनाड जिले की कुल जनसंख्या की बात की जाए तो 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी 8,17,420 है। इसमें से 401,684 पुरुष जबकि महिलाओं की संख्या 415,736 हैं। केरल देश के सबसे साक्षर राज्यों की श्रेणी में पहले स्थान पर आता है ऐसे में वायनाड जिले का साक्षरता प्रतिशत 89.03 प्रतिशत है।

वायनाड में हिंदू आबादी कुल 404,460 (49.48%) है। मुस्लिम आबादी 2,34,185 (28.65%) है। ईसाई) समुदाय की बात करें तो उनकी जनसंख्या 1,74,453 (21.34%) है। अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी 3.99 प्रतिशत जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) की तादाद 18.53 प्रतिशत है। कुल आबादी के 96.14 फीसदी लोग शहरी इलाकों में रहते हैं  वहीं 3.86 प्रतिशत लोग ग्रामीण इलाकों में निवास करते हैं। 

अमेठी में स्मृति को फायदा होगा क्या? 
केरल के वायनाड से राहुल के लड़ने की घोषणा हुई नहीं कि बीजेपी टूट पड़ी। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि- “राहुल हार के डर से अमेठी छोड़कर भाग निकले हैं। जहाज को डूबता देखकर कप्तान भाग गया है।” ये शुरुआत है। पूरे चुनाव के दरम्यान राहुल पर अमेठी छोड़ने के लिए हमले होने तय हैं। खासतौर से अमेठी में तो अब विरोधियों का एजेंडा ही राहुल के दूसरी सीट से चुनाव लड़ने का होगा। बीजेपी की उम्मीदवार स्मृति ईरानी के आरोपों की कल्पना आप अभी से कर सकते हैं। ऐसे में एक सवाल जरूर रहेगा कि क्या राहुल ने इस फैसले से स्मृति ईरानी को अमेठी में ऑक्सीजन दे दिया है? कहीं ऐसा तो नहीं कि समर्थकों के विरोध की आशंका न भी हो, तो चाहने वालों के एक हिस्से के अपेक्षाकृत निष्क्रिय होकर बैठ जाने की आशंका रहेगी? ये अलग बात है कि कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला दावा करते हैं कि- “अमेठी से राहुल का रिश्ता बेजोड़ है। वह सिर्फ जनप्रतिनिधि के तौर पर अमेठी  से जुड़े हुए नहीं हैं। लेकिन ऐसी बातें तो कांग्रेस और कांग्रेसी प्रवक्ता के मुंह से स्वाभाविक ही है। 
दक्षिण का किस्मत कनेक्शन...दादी, मां और अब राहुल 
बहरहाल, इस बार के चुनावी समर के नतीजे जो भी हों, इतिहास खुद को दोहरा जरूर रहा है। इंदिरा गांधी ने 1978 में कर्नाटक की चिकमंगलूर सीट से उपचुनाव जीता था, जबकि सोनिया गांधी ने 1999 में बेल्लारी में सुषमा स्वराज को मात दी थी। एक बात गौर करने लायक है कि तब 1977 में सत्ता खोकर इंदिरा गांधी राजनीतिक तौर से सबसे बड़े संकट के दौर से गुजर रहीं थीं, तो 1999 में सोनिया गांधी अपने परिवार की राजनीतिक विरासत और कांग्रेस के वजूद को बनाए रखने के लिए लड़ रही थीं। और अब 2014 में इतिहास के सबसे बड़े संकट काल से गुजरने के बाद राहुल भी खुद को साबित करने और कांग्रेस को फिर से जीवनदान देने की जंग में उलझे हैं। इंदिरा गांधी ने 1980 में और सोनिया ने 2004 में जीतकर के साथ सत्ता में वापसी की थीं। क्या राहुल के लिए भी दक्षिण का ये किस्मत कनेक्शन काम करेगा? 
राहुल गांधी को हमारी पार्टी बुरी तरह से हार का मुंह दिखाएगी।-- सीपीआई(एम) 
केरल के वायनाड से राहुल गांधी के लोकसभा चुनाव लड़ने की खबर के बाद से राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। केरल के मुख्यमंत्री पीनाराई विजयन ने रविवार को कहा कि राहुल गांधी का वायनाड से चुनाव लड़ने का फैसला लेफ्ट को चैलेंज है यह बीजेपी के खिलाफ उनकी लड़ाई नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यह तय है कि राहुल गांधी को हमारी पार्टी सीपीआई (एम) बुरी तरह से हार का मुंह दिखाएगी। 
अब सीपीआई (एम) (CPI M) के जनरल सेक्रेटरी सीताराम येचुरी का इसपर बयान आया है। उन्होंने राहुल गांधी के केरल के वायनाड से चुनाव लड़ने पर अपना बयान दिया। येचुरी ने कहा हम इस पर स्पष्ट हैं। यह लोकसभा चुनाव बेहद अहम होने वाला है, इस चुनाव में सेकुलर डेमोक्रेसी की हार या जीत का साफ फैसला हो जाएगा। बीजेपी को हटाना हमारी प्राथमिकता है। 
कांग्रेस फैसला करे, क्या करना है 
राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने की खबर पर येचुरी ने कहा कि यहां आकर एलडीएफ के खिलाफ चुनाव लड़ना, इससे वे क्या संदेश देना चाहते हैं ये कांग्रेस को फैसला करना है। कोई भी पार्टी ये निर्णय ले सकती है कि कौन सा उम्मीदवार किस सीट से चुनाव लड़ेगा, लेकिन वे लोगों को क्या संदेश देना चाहते हैं ये उन्हें स्पष्ट करना होगा।
सीपीएम नेता प्रकाश करात ने भी कहा कि लेफ्ट के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का मतलब है कि केरल में कांग्रेस लेफ्ट को टारगेट कर रही है। इस तरह के हालात में हम पुरजोर ढंग से राहुल गांधी का विरोध करने के साथ ये सुनिश्चित करेंगे कि वायनाड में उनकी हार हो।

S Yechury on Rahul Gandhi contesting from Wayanad: Coming here&fighting against LDF, what message this conveys, that Congress has to decide. Any party can decide which candidate will contest from which seat but what's the message they want to convey,they'll have to explain to ppl
इस संबंध में ए के एंटनी ने बताया कि केरल और कर्नाटक के कांग्रेस कार्यकर्ता राहुल गांधी ने वायनाड सीट से लड़ने का आग्रह कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये दक्षिण भारत के कार्यकर्ताओं के लिए उत्साह में इजाफा करने के लिए जरूरी था। इसलिए कार्यकर्ताओं की इच्छा को ध्यान में रखते हुए राहुल गांधी ने ये फैसला लिया।

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