पाकिस्तान की एक अदालत ने सितम्बर 5 को लाहौर जिला सरकार को निर्देश दिया कि वह शादमान चौक का नाम बदलकर स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के नाम पर रखने के संबंध में फैसला करे. ब्रिटिश शासन के दौरान 87 साल पहले स्वतंत्रता सेनानी सरदार भगत सिंह को यहीं फांसी दी गई थी.
भगत सिंह और उनके साथियों – राजगुरू और सुखदेव को पूर्ववर्ती लाहौर जेल में 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी. शादमान चौराहा उसी स्थान पर बना हुआ है.
लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शाहिद जमील खान ने भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष इम्तियाज राशिद कुरैशी की याचिका पर सुनवाई करते हुए लाहौर के उपायुक्त को आदेश दिया कि वह कानून के दायरे में रहते हुए शादमान चौक का नाम बदलकर भगत सिंह के नाम पर रखने के संबंध में फैसला करें.
याचिका दायर करने वाले की दलील है कि भगत सिंह स्वतंत्रता सेनानी हैं. उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर आजादी के लिए कुर्बानी दी है. उन्होंने कहा किया कि पाकिस्तान के संस्थापक कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना ने भी सिंह को श्रद्धांजलि दी थी और कहा था कि उन्होंने पूरे प्रायद्वीप में भगत सिंह जैसा बहादुर व्यक्ति नहीं देखा. उन्होंने कहा, यह न्याय के दृष्टिकोण से सही होगा कि शादमान चौक का नाम भगत सिंह के नाम पर रखा जाए।
भारत जहाँ स्वतन्त्रता सैनानियों को आतंकवादी की उपाधि दी जा रही हो, वहीँ पडोसी देश पाकिस्तान में भारत के स्वतन्त्रता सैनानियों को सम्मान दिया जा रहा है। स्मरणीय हो, कुछ वर्ष पूर्व, पाकिस्तान की अदालत में एक याचिका दायर की गयी थी, कि "जब भगत सिंह और उनके साथियों पर कोई बहस नहीं हुई, फिर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने किस आधार पर फाँसी दी।" याचिकाकर्ता ने भगत सिंह की बहन (अब स्वर्गवासी) को भी गवाही के तौर पर पाकिस्तान बुलवाया था। हालाँकि इतने वर्ष पुरानी फाइलों को निकालने में पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। भारतीय मीडिया जो राजनेताओं के इशारे पर समाचारों को प्रसारित करने में व्यस्त रहती है, कभी इस मुद्दे को देश में गम्भीरता से नहीं उठाया, जो बहुत ही शर्म की बात है। यहाँ नेताओं की जन्म एवं मृत्यु पर खूब शोर शराबा किया जाता है, लेकिन स्वतन्त्रता सैनानियों को नज़रअंदाज़ किया जाता है।
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