भारत में प्रधानमंत्री मोदी की तरह पाकिस्तान की इकोनॉमी की भी ओवरहॉलिंग का दावा करने वाले इमरान खान को कट्टरपंथियों के हाथों झुकने के लिए मजबूर होना पड़ा है। हकीकत यह है कि पाकिस्तान में सत्ता किसी भी पार्टी के हाथ में आए, होगा वही जो आर्मी और कट्टरपंथी चाहेंगे। यही कारण है कि पाकिस्तान अमेरिका की मदद पर ही जीवित है। जिस दिन अमेरिका ने मदद करनी बंद कर दी, पाकिस्तान के हालात बत से बत्तर हो जाएँगे। अगर आज पाकिस्तान का नाम है तो केवल अमेरिका द्वारा मिलने वाली मदद की वजह से।
हालत यह हो गई कि इमरान सरकार को अपने द्वारा चुने गए एक अहमदी इकोनॉमिस्ट आतिफ मियां को खुद ही नौकरी से निकालना पड़ा था। यह सब कुछ इमरान के सत्ता में आने के मात्र 15 दिनों के भीतर देखने को मिला है। ऐसे में जानकार नया पाकिस्तान बनाने के इमरान खान के इरादों पर ही सवाल उठा रहे हैं। बता दें कि आतिफ मियां को इमरान सरकार ने अपनी आर्थिक सलाहकार परिषद का सदस्य बनाया था, लेकिन जब कट्टरपंथियों ने इसका विरोध किया तो अमेरिका स्थित प्रिंस्टन विश्वविद्यालय के इस मशहूर अर्थशास्त्री को इस्तीफा देने के लिए कह दिया गया।
दरअसल पाकिस्तान की खराब वित्तीय हालात को दुरुस्त करने और देश की इकोनॉमी को पटरी पर लाने के लिए पाकिस्तान की सरकार ने प्रधानमंत्री इमरान खान की अध्यक्षता में एक इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल का गठन किया था। इस एडवायजरी काउंसिल में विदेश में काम करने वाले कई पाकिस्तानी इकोनॉमिस्ट्स को भी जगह दी गई थी। आतिफ मियां भी इन्हीं में से एक थे। हालांकि आतिफ मियां पाकिस्तान के अहमदी समुदाय से आते हैं, इसलिए देश की कट्टरपंथी पार्टियां उनके चयन का विरोध करने लगीं। इस चयन के खिलाफ पाकिस्तान की संसद में प्रस्ताव भी लाया गया। पहले तो इमरान सरकार ने कहा कि वह कट्टरपंथियों के आगे नहीं झुकेगी, लेकिन मात्र 2 दिन के भीतर ही उसे अपना फैसला पलटने के लिए मजबूर होना पडा।
कौन हैं आतिफ मियां
आतिफ मियां पाकिस्तानी मूल के मशहूर इकोनॉमिस्ट हैं। उनका पूरा नाम डॉक्टर आतिफ आर मियां है। फिलहाल प्रिंसटन विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं। उन्हें इकोनॉमिक्स के नोबल पुरस्कार का दावेदार माना जाता है। वह थॉमस पिकेटी, नॉरिएल रुबीनी और रघुराम राजन की श्रेणी के इकोनॉमिस्ट माने जाते हैं। वर्ष 2014 में आई उनकी किताब हाउस ऑफ डेट बताती है कि कैसे कर्ज के चक्रव्यूह ने 2008 के ग्लोबल आर्थिक संकट को बढ़ावा दिया। कैसे वह आज भी दुनिया भर की इकोनॉमी के लिए चुनौती बना हुआ है। किताब को चौतरफा सराहना मिली। आतिफ मियां गणित और कंप्यूटर साइंस में ग्रेजुएट हैं। उन्होंने MIT से इकोनॉमिक्स में PHD की है।
डॉन का संपादकीय
पाकिस्तान के प्रमुख समाचार पत्र डॉन ने भी सरकार की आलोचना करते हुए एक संपादकीय लिखा है। डॉन का कहना है कि 'आतिफ मियां को ईएसी से हटाने के साथ ही एक सहिष्णु और समावेशी पाकिस्तान के जिन्ना के विजन को एक और झटका लगा है।'
पाकिस्तान में भी मियां की बर्खास्तगी का विरोध
कट्टरपंथियों के दबाव में आकर मात्र 2 दिन के भीतर ही मियां को पद से हटाए जाने का पाकिस्तान के एक धड़े ने विरोध किया है। आतिफ को हटाए जाने के विरोध में आर्थिक सलाहकार परिषद के एक और सदस्य एवं हार्वर्ड विवि के प्रोफेसर असीम एजाज ख्वाजा ने भी इस्तीफा दे दिया है। उनके इस फैसले पर अमेरिका में रह रहे पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने फख्र का इजहार किया है। इमरान खान द्वारा आर्थिक सलाहकार परिषद से आतिफ मियां को हटाने के फैसले का विरोध करने वाले यह सवाल पूछ रहे हैं कि क्या ऐसे ही बनेगा नया पाकिस्तान? आतिफ मियां को हटाने का विरोध इमरान की पहली पत्नी जेमिमा गोल्डस्मिथ ने भी किया है। एक ट्वीट के जरिये उन्होंने कहा है कि इस फैसले का बचाव नहीं किया जा सकता। यह निराशाजनक है। इसके चलते इमरान खान को अधिक शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है।
पेशावर में स्कूली बच्चों पर हमले का विरोध कर चुके है मियां
आतिफ मियां ने 2014 में पेशावर में स्कूल पर हुए तालिबानी हमले के बाद एक फेसम ब्लॉग भी लिखा था। उन्होंने लिखा था कि तालिबान शरिया लागू करना चाहता है। हम कभी नहीं जान सकते कि उसका अर्थ क्या है। उसका वही अर्थ होगा जो तालिबान चाहे। बच्चों की जान लेना विधि मान्य हो सकता है, अगर ईश्वर और तालिबान ऐसा तय करें। हमें समर्पण करना होगा वरना अगली गर्दन हमारी होगी। पश्चिमी दुनिया में मनुष्य और ईश्वर के बीच की रेखा लांघने के लिए फासीवाद शब्द है। ऐसा करने वालों को फासीवादी कहा जाता है। परंतु पाकिस्तान में हम उन्हें मौलाना, अल्लामा और यहां तक कि जनरल और प्रधानमंत्री के नाम से भी जानते हैं। मियां सही हैं। नये पाकिस्तान में शायद ही कुछ नया है।
मोदी की तरह पाकिस्तान की भी सूरत बदलना चाहते थे इमरान
भारत में मोदी की तरह इमरान भी पाकिस्तान की पहचान की बदलना चाहते हैं। इमरान शायद इस बात से अज्ञान हैं कि किसी भी लिए निर्णय को लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छा-शक्ति की जरुरत होती है, और वह उनमे नहीं है। क्योंकि पाकिस्तान का कोई भी शासक कट्टरपंथियों और आर्मी की मर्जी के बिना पत्ता भी हिलाने योग्य नहीं होता। वह जनता और विश्व की निगाह में पाकिस्तान का प्रधानमन्त्री या राष्ट्रपति हो सकता है, लेकिन रहेगा कट्टरपंथी और आर्मी के इशारे पर नाचने वाली कठपुतली। इतिहास साक्षी है, कोई विशेष कहने या सुनने की किसी को जरुरत नहीं। पिछले महीने प्रधानमन्त्री बनने के बाद इमरान ने पाकिस्तानी जनता के नाम पहले संबोधन में पाकिस्तान के मौजूदा हालात और भविष्य की योजनाओं का खाका पेश किया। नए पाकिस्तान के अपने पुराने वादे को दोहराते हुए इमरान खान ने जिन योजनाओं की पेशकश की, उनमें से ज्यादातर योजनाएं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं से मेल खाती हैं। इमरान भी भारत में आयुष्मान स्कीम की तरह पाकिस्तान की पब्लिक को मुफ्त हेल्थ ईंश्योरेंस देना चाहते हैं। उन्होंने भी स्वच्छ भारत की तरह स्वच्छ पाकिस्तान का नारा दिया है। पाकिस्तान का टैक्स बेस बढ़ाना, रोजगार के लिए ज्यादा से ज्यादा युवाओं को रोजगार देना, मेक इन पाकिस्तान जैसे मंसूबे भी मोदी के विजन से मेल खाते हैं।
पाकिस्तान में अहमदी को मुसलमान का दर्जा नहीं
बता दें कि पाकिस्तान में अहमदी समुदाय के लोगों को मुसलमान नहीं माना जाता। पाकिस्तान के पहले नोबेल विजेता प्रोफेसर अब्दुल सलाम भी अहमदी समुदाय के थे। आज पाकिस्तान में उनका कोई नाम नहीं लेता। बहुत पहले उनकी कब्र पर उनके नाम के आगे लिखा मुस्लिम शब्द भी खुरच दिया गया था। पाकिस्तान में पहली नोबेल विजेता मलाला यूसुफ जई को बताया जाता है, जबकि अब्दुल सलाम को यूसूफ जई से बहुत पहले नोबेल मिला था।
हालत यह हो गई कि इमरान सरकार को अपने द्वारा चुने गए एक अहमदी इकोनॉमिस्ट आतिफ मियां को खुद ही नौकरी से निकालना पड़ा था। यह सब कुछ इमरान के सत्ता में आने के मात्र 15 दिनों के भीतर देखने को मिला है। ऐसे में जानकार नया पाकिस्तान बनाने के इमरान खान के इरादों पर ही सवाल उठा रहे हैं। बता दें कि आतिफ मियां को इमरान सरकार ने अपनी आर्थिक सलाहकार परिषद का सदस्य बनाया था, लेकिन जब कट्टरपंथियों ने इसका विरोध किया तो अमेरिका स्थित प्रिंस्टन विश्वविद्यालय के इस मशहूर अर्थशास्त्री को इस्तीफा देने के लिए कह दिया गया।
दरअसल पाकिस्तान की खराब वित्तीय हालात को दुरुस्त करने और देश की इकोनॉमी को पटरी पर लाने के लिए पाकिस्तान की सरकार ने प्रधानमंत्री इमरान खान की अध्यक्षता में एक इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल का गठन किया था। इस एडवायजरी काउंसिल में विदेश में काम करने वाले कई पाकिस्तानी इकोनॉमिस्ट्स को भी जगह दी गई थी। आतिफ मियां भी इन्हीं में से एक थे। हालांकि आतिफ मियां पाकिस्तान के अहमदी समुदाय से आते हैं, इसलिए देश की कट्टरपंथी पार्टियां उनके चयन का विरोध करने लगीं। इस चयन के खिलाफ पाकिस्तान की संसद में प्रस्ताव भी लाया गया। पहले तो इमरान सरकार ने कहा कि वह कट्टरपंथियों के आगे नहीं झुकेगी, लेकिन मात्र 2 दिन के भीतर ही उसे अपना फैसला पलटने के लिए मजबूर होना पडा।
मियां को पाक सरकार ने उस एडवायजरी काउंसिल का सदस्य बनाया था, जो प्रधानमंत्री इमरान खान को आर्थिक मामलों पर सलाह देती। भारत में पीएम मोदी को भी ऐसी ही 5 सदस्यीय काउंसिल सलाह देती है। |
आतिफ मियां पाकिस्तानी मूल के मशहूर इकोनॉमिस्ट हैं। उनका पूरा नाम डॉक्टर आतिफ आर मियां है। फिलहाल प्रिंसटन विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं। उन्हें इकोनॉमिक्स के नोबल पुरस्कार का दावेदार माना जाता है। वह थॉमस पिकेटी, नॉरिएल रुबीनी और रघुराम राजन की श्रेणी के इकोनॉमिस्ट माने जाते हैं। वर्ष 2014 में आई उनकी किताब हाउस ऑफ डेट बताती है कि कैसे कर्ज के चक्रव्यूह ने 2008 के ग्लोबल आर्थिक संकट को बढ़ावा दिया। कैसे वह आज भी दुनिया भर की इकोनॉमी के लिए चुनौती बना हुआ है। किताब को चौतरफा सराहना मिली। आतिफ मियां गणित और कंप्यूटर साइंस में ग्रेजुएट हैं। उन्होंने MIT से इकोनॉमिक्स में PHD की है।
डॉन का संपादकीय
पाकिस्तान के प्रमुख समाचार पत्र डॉन ने भी सरकार की आलोचना करते हुए एक संपादकीय लिखा है। डॉन का कहना है कि 'आतिफ मियां को ईएसी से हटाने के साथ ही एक सहिष्णु और समावेशी पाकिस्तान के जिन्ना के विजन को एक और झटका लगा है।'
पाकिस्तान में भी मियां की बर्खास्तगी का विरोध
कट्टरपंथियों के दबाव में आकर मात्र 2 दिन के भीतर ही मियां को पद से हटाए जाने का पाकिस्तान के एक धड़े ने विरोध किया है। आतिफ को हटाए जाने के विरोध में आर्थिक सलाहकार परिषद के एक और सदस्य एवं हार्वर्ड विवि के प्रोफेसर असीम एजाज ख्वाजा ने भी इस्तीफा दे दिया है। उनके इस फैसले पर अमेरिका में रह रहे पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने फख्र का इजहार किया है। इमरान खान द्वारा आर्थिक सलाहकार परिषद से आतिफ मियां को हटाने के फैसले का विरोध करने वाले यह सवाल पूछ रहे हैं कि क्या ऐसे ही बनेगा नया पाकिस्तान? आतिफ मियां को हटाने का विरोध इमरान की पहली पत्नी जेमिमा गोल्डस्मिथ ने भी किया है। एक ट्वीट के जरिये उन्होंने कहा है कि इस फैसले का बचाव नहीं किया जा सकता। यह निराशाजनक है। इसके चलते इमरान खान को अधिक शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है।
पेशावर में स्कूली बच्चों पर हमले का विरोध कर चुके है मियां
आतिफ मियां ने 2014 में पेशावर में स्कूल पर हुए तालिबानी हमले के बाद एक फेसम ब्लॉग भी लिखा था। उन्होंने लिखा था कि तालिबान शरिया लागू करना चाहता है। हम कभी नहीं जान सकते कि उसका अर्थ क्या है। उसका वही अर्थ होगा जो तालिबान चाहे। बच्चों की जान लेना विधि मान्य हो सकता है, अगर ईश्वर और तालिबान ऐसा तय करें। हमें समर्पण करना होगा वरना अगली गर्दन हमारी होगी। पश्चिमी दुनिया में मनुष्य और ईश्वर के बीच की रेखा लांघने के लिए फासीवाद शब्द है। ऐसा करने वालों को फासीवादी कहा जाता है। परंतु पाकिस्तान में हम उन्हें मौलाना, अल्लामा और यहां तक कि जनरल और प्रधानमंत्री के नाम से भी जानते हैं। मियां सही हैं। नये पाकिस्तान में शायद ही कुछ नया है।
मोदी की तरह पाकिस्तान की भी सूरत बदलना चाहते थे इमरान
भारत में मोदी की तरह इमरान भी पाकिस्तान की पहचान की बदलना चाहते हैं। इमरान शायद इस बात से अज्ञान हैं कि किसी भी लिए निर्णय को लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छा-शक्ति की जरुरत होती है, और वह उनमे नहीं है। क्योंकि पाकिस्तान का कोई भी शासक कट्टरपंथियों और आर्मी की मर्जी के बिना पत्ता भी हिलाने योग्य नहीं होता। वह जनता और विश्व की निगाह में पाकिस्तान का प्रधानमन्त्री या राष्ट्रपति हो सकता है, लेकिन रहेगा कट्टरपंथी और आर्मी के इशारे पर नाचने वाली कठपुतली। इतिहास साक्षी है, कोई विशेष कहने या सुनने की किसी को जरुरत नहीं। पिछले महीने प्रधानमन्त्री बनने के बाद इमरान ने पाकिस्तानी जनता के नाम पहले संबोधन में पाकिस्तान के मौजूदा हालात और भविष्य की योजनाओं का खाका पेश किया। नए पाकिस्तान के अपने पुराने वादे को दोहराते हुए इमरान खान ने जिन योजनाओं की पेशकश की, उनमें से ज्यादातर योजनाएं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं से मेल खाती हैं। इमरान भी भारत में आयुष्मान स्कीम की तरह पाकिस्तान की पब्लिक को मुफ्त हेल्थ ईंश्योरेंस देना चाहते हैं। उन्होंने भी स्वच्छ भारत की तरह स्वच्छ पाकिस्तान का नारा दिया है। पाकिस्तान का टैक्स बेस बढ़ाना, रोजगार के लिए ज्यादा से ज्यादा युवाओं को रोजगार देना, मेक इन पाकिस्तान जैसे मंसूबे भी मोदी के विजन से मेल खाते हैं।
पाकिस्तान में अहमदी को मुसलमान का दर्जा नहीं
बता दें कि पाकिस्तान में अहमदी समुदाय के लोगों को मुसलमान नहीं माना जाता। पाकिस्तान के पहले नोबेल विजेता प्रोफेसर अब्दुल सलाम भी अहमदी समुदाय के थे। आज पाकिस्तान में उनका कोई नाम नहीं लेता। बहुत पहले उनकी कब्र पर उनके नाम के आगे लिखा मुस्लिम शब्द भी खुरच दिया गया था। पाकिस्तान में पहली नोबेल विजेता मलाला यूसुफ जई को बताया जाता है, जबकि अब्दुल सलाम को यूसूफ जई से बहुत पहले नोबेल मिला था।
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