माँ शिरीन मोहम्मद अली |
निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट का कहना है कि वे नहीं जानते कि पिता कैसा होता है, क्योंकि वे एक मुस्लिम महिला के नाजायज बेटे हैं। भट्ट ने यह बात हाल ही में एक अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट को दिए इंटरव्यू के दौरान कही। इसे महेश भट्ट का अब तक का सबसे प्राइवेट इंटरव्यू कहा जा रहा है। इस इंटरव्यू के दौरान उन्होंने पिता नाना भाई भट्ट से अपने रिश्ते को लेकर बात की।
महेश का जन्म 20 सितंबर 1948 को मुंबई में हुआ था। कॉन्ट्रोवर्सी, ड्रामा और सस्पेंस उनकी फिल्मों में ही नहीं बल्कि रियल लाइफ का भी अहम हिस्सा रहा है।
भट्ट बोले- मेरे पास पिता से जुड़ी कोई याद नहीं
महेश भट्ट ने कहा, "मेरे पास पिता से जुड़ी कोई याद नहीं। इसलिए नहीं पता कि पिता की भूमिका क्या होनी चाहिए। मैं एक सिंगल मुस्लिम महिला शिरीन मोहम्मद अली का नाजायज बेटा हूं।" इसके बाद उनसे पूछा गया कि मुस्लिम महिला के बेटे होने के बावजूद उनका नाम महेश भट्ट कैसे हो गया? तब वे बोले, "मुझे याद है, जब मैंने मां से अपने नाम का मतलब पूछा था तो उन्होंने कहा था कि वे मेरे पिता से पूछकर बताएंगी, क्योंकि उन्होंने ही मुझे यह नाम दिया। मैंने इंतजार किया और फिर एक दिन मां ने बताया कि महेश का अर्थ देवों के देव होता है।"
पसंद नहीं था अपना नाम
महेश भट्ट आगे कहते हैं, "एक बच्चे के तौर पर मुझे यह नाम पसंद नहीं आया। मेरे अंदर गुस्सा था, क्योंकि देवों के देव (भगवान शंकर) ने तो अपने ही बेटे गणेश का सिर काट दिया था। मैं चाहता था कि मेरा नाम गणेश होना चाहिए। क्योंकि बचपन में मैं भगवान गणेश की तरह ही तकिए में सिर छुपाकर सोता था। वे मेरे फेवरेट रहे हैं। गणेश की तरह मेरे पिता भी मेरे लिए अजनबी थे। वे मेरे लिए होकर भी नहीं थे। बस उनका सरनेम मुझे मिला, जिसकी वजह से आज मैं महेश भट्ट हूं।" बता दें कि महेश भट्ट ने 'अर्थ', 'जख्म' और 'हमारी अधूरी कहानी' जैसी फिल्मों में अपनी पर्सनल लाइफ दिखाने की कोशिश की है।
गुजराती ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे महेश भट्ट के पिता
महेश भट्ट की मां शिरीन मोहम्मद अली गुजराती फिल्म इंडस्ट्री की एक्ट्रेस थीं और गुजराती ब्राह्मण फैमिली से ताल्लुक रखने वाले पिता नाना भाई भट्ट डायरेक्टर और प्रोड्यूसर थे। 1985 में उन्होंने फिल्म 'कब्जा' को प्रोड्यूस किया था। बतौर डायरेक्टर नाना भाई भट्ट को 'चालीस करोड़' (1946), 'लक्ष्मी नारायण' (1951), 'मिस्टर एक्स' (1957) और 'आधी रात के बाद' (1965) जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है। 1999 में हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया था। बताया जाता है कि सामाजिक दबाव के चलते नाना भाई शिरीन से शादी नहीं कर पाए थे।
महेश भट्ट: कैमरे के लेंस से जिंदगी की तह में झांकने वाला डायरेक्टर
महेश भट्ट और परवीन बॉबी (फाइल फोटो) |
20 साल की उम्र में भट्ट साहब की शादी हो गई थी, बाद में तलाक हुआ. महेश भट्ट और किरण की बेटी एक्टर-डायरेक्टर पूजा भट्ट और बेटा राहुल भट्ट हैं. इसके बाद महेश ने सोनी राजदान से शादी की. किरण के साथ तलाक में समय लग रहा था, इस बीच वह धर्म बदलकर मुसलमान बन गए. सोनी और वह आलिया और शाहीन के पेरेंट्स हैं.
स्टारडस्ट मैग्जीन को दिए एक इंटरव्यू में महेश ने कहा था, ‘मैं दोगला हूं.’ इससे दुनिया को पता चला कि उनकी मां शिरीन मोहम्मद अली की फिल्म प्रोड्यूसर-डायरेक्टर नानाभाई भट्ट से शादी नहीं हुई थी. महेश भट्ट की जिंदगी का फलसफा है कि मोहब्बत और जंग में सब जायज है. आप उन्हें पसंद करें या नापसंद, उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते.
26 साल की उम्र में भट्ट ने निर्देशक के तौर पर फिल्म 'मंजिलें और भी हैं' से अपना डेब्यू किया। इसके बाद 1979 में आई 'लहू के दो रंग' जिसमें शबाना आजमी और विनोद खन्ना मुख्य भूमिका में थे। इसने 1980 के फिल्मफेयर अवार्ड्स में दो पुरस्कार जीते, फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया। अब तक वह 47 फिल्मों का डायरेक्शन कर चुके हैं। इनमें कई ओरिजनल फिल्में थीं, जिन्हें बहुत सराहा गया। कई हॉलीवुड की नकल थीं, जिनका डायरेक्शन भट्ट ने किसी चीते की फुर्ती से किया था। वह अच्छे फिल्ममेकर हैं, लेकिन महान नहीं. भट्ट की सबसे अच्छी फिल्में उनकी अपनी जिंदगी पर आधारित रही हैं।
महेश भट्ट का ख्याल आते ही आपको अर्थ फिल्म की याद आती है. इसमें शबाना आजमी ने ऐसी बीवी का रोल अदा किया था, जिसका पति दूसरी औरत से प्रेम करता है. फिल्म में स्मिता पाटिल दूसरी औरत बनी हैं. फिल्म में पति का किरदार कुलभूषण खरबंदा ने निभाया है, जो बिना रीढ़ के नजर आते हैं.
अर्थ फिल्म में महेश भट्ट के साथ शबाना आजमी और स्मिता पाटिल |
महेश भट्ट ने बेटी पूजा भट्ट को किया था लिपलॉक
महेश भट्ट ने अपनी लव लाइफ को पर्दे पर उतारने की कोशिश की है। 1990 में वह आशिकी लेकर आए, जिसमें हीरो जिस नायिका से प्रेम करता है, उसे गंवा देता है. किरण भट्ट के साथ अफेयर पर आधारित थी। इसके अलावा कहा जाता है कि 'वो लम्हे' की स्टोरी भी महेश और परवीन के अफेयर पर आधारित थी। उनकी यादगार फिल्मों में 1984 में आई सारांश भी है. यह मुंबई के शिवाजी पार्क इलाके में रहने वाले बुजुर्ग माता-पिता की कहानी है, जो न्यूयॉर्क में लूट की एक वारदात में अपने बेटे को गंवा देते हैं. इस फिल्म में भट्ट ने मध्यवर्गीय महाराष्ट्रीय परिवार का जीवंत चित्रण किया है, जिसका तजुर्बा उन्हें अपने बड़े होने के दौरान हुआ था.कुछ समय के बाद परवीन से उनका रिश्ता बिगड़ गया देखे वीडियो।
उनकी जगह विशेष फिल्म्स में विक्रम भट्ट ने ली. मुझे लगता है कि पूजा भट्ट शायद किसी दिन अपने पिता की बायोग्राफी लिखेंगी, जिसमें उनके द्वंद्व का जिक्र होगा.
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