आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में शामिल होना कांग्रेस के लिए पचा पाना मुश्किल हो रहा है। एक तरफ प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार को भारत माता का एक महान सपूत बताया तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने ट्विट कर संघ पर हमला करना शुरू कर दिया। कांग्रेस ने ट्वीट कर लिखा कि सभी भारतीयों के लिए यह जानना जरूरी है कि आरएसएस ऐतिहासिक रूप से है क्या और आज क्या सोचता है। भारत के लोगों को कभी नहीं भूलना चाहिए कि उनकी विचारधारा भारत के विचारों के प्रति कितनी विरोधी हैं।
इस ट्वीट के साथ कांग्रेस ने एक आर्टिकल भी पोस्ट किया है, जिसकी हेडिंग दी गई है, 'Never Forget What the RSS Stands For'। इस लेख में संघ के लिए बोली जाने वाली नकारात्मक बातों को उजागर किया है। इसमें लिखा है कि आरएसएस कभी अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा नहीं था।
इसमें लिखा गया है कि आरएसएस के संस्थापक केबी हेडगेवार को खिलाफत आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया था और यह स्वतंत्रता आंदोलन में अंतिम भागीदारी थी। आरएसएस हमेशा औपनिवेशिक शक्ति के अधीन रहे जो ब्रिटिश थे। इस लेख में लिखा गया है कि आरएसएस ने कभी भी तिरंगे का सम्मान नहीं किया है, और हाल ही में उन्होंने अपने मुख्यालय में ध्वज को फहराया है।
राष्ट्रवाद किसी धर्म या जाति से बंधा नहीं--संघ मुख्यालय में प्रणब मुखर्जी
पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी ने जून 7 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मंच पर राष्ट्रीयता, राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर अपनी बात साफ शब्दों में रखी। संघ के दीक्षांत समारोह में दिए अपने भाषण में प्रणब ने कहा कि नफरत और असहिष्णुता हमारी राष्ट्रीय पहचान को धुंधला कर देगी। करीब 30 मिनट के भाषण के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, लोकमान्य तिलक, सुरेंद्र नाथ बैनर्जी और सरदार पटेल का जिक्र किया। इससे पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा- प्रणब को हमने क्यों बुलाया, ये चर्चा आज हर ओर हो रही है। लेकिन, हम सब भारत माता की संतान हैं.. ये कोई नहीं समझता। उन्होंने कहा कि हेडगेवारजी भी कांग्रेस के आंदोलन में शामिल हुए और 2 बार जेल गए। इस कार्यक्रम से पहले प्रणब संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार के पैतृक निवास गए। उन्होंने यहां विजिटर बुक में लिखा- मैं भारत माता की महान संतान को श्रद्धांजलि देने आया हूं।
1. राष्ट्रवाद की बात कहने आया हूं
''मैं यहां राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता पर अपनी बात साझा करने आया हूं। तीनों को अलग-अलग रूप में देखना मुश्किल है। देश यानी एक बड़ा समूह जो एक क्षेत्र में समान भाषाओं और संस्कृति को साझा करता है। राष्ट्रीयता देश के प्रति समर्पण और आदर का नाम है।’’
‘‘भारत खुला समाज है। बौद्ध धर्म पर हिंदुओं का प्रभाव रहा है। यह भारत, मध्य एशिया, चीन तक फैला। मैगस्थनीज आए, हुआन सांग भारत आए। इनके जैसे यात्रियों ने भारत को प्रभावी प्रशासनिक व्यवस्था, सुनियोजित बुनियादी ढांचे और व्यवस्थित शहरों वाला देश बताया।’’
''गांधी जी ने कहा था कि हमारा राष्ट्रवाद आक्रामक, ध्वंसात्मक और एकीकृत नहीं है। डिस्कवरी ऑफ इंडिया में पं. नेहरू ने राष्ट्रवाद के बारे में लिखा था- मैं पूरी तरह मानता हूं कि भारत का राष्ट्रवाद हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई और दूसरे धर्मों के आदर्श मिश्रण में है।''
‘‘यूरोप के मुकाबले भारत में राष्ट्रवाद का फलसफा वसुधैव कुटुंबकम से आया है। हम सभी को परिवार के रूप में देखते हैं। हमारी राष्ट्रीय पहचान जुड़ाव से उपजी है। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में महाजनपदों के नायक चंद्रगुप्त मौर्य थे। 550 ईसवीं तक गुप्तों का शासन खत्म हाे गया। कई सौ सालों बाद मुस्लिम शासक आए। बाद में देश पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1757 में प्लासी की लड़ाई जीतकर राज किया।’’
‘‘ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्रशासन का संघीय ढांचा बनाया। 1774 में गवर्नर जनरल का शासन आया। 2500 साल तक बदलती रही राजनीतिक स्थितियों के बाद भी मूल भाव बरकरार रखा। हर योद्धा ने यहां की एकता को अपनाया। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था- कोई नहीं जानता कि दुनियाभर से भारत में कहां-कहां से लोग आए और यहां आकर भारत नाम की व्यक्तिगत आत्मा में तब्दील हो गए।’’
3. असहिष्णुता से हमारी पहचान धुंधली हो रही
‘‘1895 में कांग्रेस के सुरेंद्रनाथ बैनर्जी ने अपने भाषण में राष्ट्रवाद का जिक्र किया था। महान देशभक्त बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।’’
''हमारी राष्ट्रीयता को रूढ़वादिता, धर्म, क्षेत्र, घृणा और असहिष्णुता के तौर पर परिभाषित करने का किसी भी तरह का प्रयास हमारी पहचान को धुंधला कर देगा। हम सहनशीलता, सम्मान और अनेकता से अपनी शक्ति प्राप्त करते हैं और अपनी विविधता का उत्सव मनाते हैं। हमारे लिए लोकतंत्र उपहार नहीं। बल्कि एक पवित्र काम है। राष्ट्रवाद किसी धर्म, जाति से नहीं बंधा।’’
4. भारत की पहचान विविधता में है
‘‘50 साल के सार्वजनिक जीवन के कुछ सार साझा करना चाहता हूं। देश के मूल विचार में बहुसंख्यकवाद और सहिष्णुता है। ये हमारी समग्र संस्कृति है जो कहती है कि एक भाषा, एक संस्कृति नहीं, बल्कि भारत विविधता में है। 1.3 अरब लोग 122 भाषाएं और 1600 बोलियां बोलते हैं। 7 मुख्य धर्म हैं। लेकिन तथ्य, संविधान और पहचान एक ही है- भारतीय।’’
‘‘मेरा मानना है कि लोकतंत्र में देश के सभी मुद्दों पर सार्वजनिक संवाद होना चाहिए। विभाजनकारी विचारों की हमें पहचान करनी होगी। हम सहमत हो सकते हैं, नहीं भी हो सकते। लेकिन हम विचारों की विविधता और बहुलता को नहीं नकार सकते।’’
5. हिंसा से डर का भाव आता है
‘‘जब किसी महिला या बच्चे के साथ बर्बरता होती है, तो देश का नुकसान होता है। हिंसा से डर का भाव आता है। हमें शारीरिक-मौखिक हिंसा को नकारना चाहिए। लंबे वक्त तक हम दर्द में जिए हैं। शांति, सौहार्द्र और खुशी फैलाने के लिए हमें संघर्ष करना चाहिए।’’
- ‘‘हमने अर्थव्यवस्था की बारीक चीजों और विकास दर के लिए अच्छा काम किया है। लेकिन हमने हैप्पिनेस इंडेक्स में अच्छा काम नहीं किया है। हम 133वें नंबर पर हैं। संसद में जब हम जाते हैं तो गेट नंबर 6 की लिफ्ट के बाहर लिखा है- जनता की खुशी में राजा की खुशी है। ...कौटिल्य ने लोकतंत्र की अवधारणा से काफी पहले जनता की खुशी के बारे में कहा था।’’
मोहन भागवत के भाषण की बड़ी बातें
1. भारत में जन्मा हर व्यक्ति भारत पुत्र
''आज हम प्रणब जी से परिचित हुए। अत्यंत ज्ञान और अनुभव समृद्ध आदरणीय व्यक्तित्व हमारे साथ है। हमने सहज रूप से उन्हें आमंत्रण दिया। उनको कैसे बुलाया और वे क्यों जा रहे हैं। ये चर्चा बहुत है।''
''हिंदू समाज में एक अलग प्रभावी संगठन खड़ा करने के लिए संघ नहीं है। संघ सम्पूर्ण समाज को खड़ा करने के लिए है। विविधता में एकता हजारों सालों से परंपरा रही है। हम यहां पैदा हुए इसलिए भारतवासी नहीं हैं। ये केवल नागरिकता की बात नहीं है। भारत की धरती पर जन्मा हर व्यक्ति भारत पुत्र है।''
2. सब मिलकर काम करें तभी देश बदलेगा
''इस संस्कृति में सारे भेद-स्वार्थ मिटाकर शांति पूर्ण जीवन के लिए अनेक महापुरुषों ने अपनी बलि दी। राष्ट्र का भाग्य बनाने वाले व्यक्ति, विचार, सरकारें नहीं होते। सरकारें बहुत कुछ कर सकती हैं, लेकिन सबकुछ नहीं कर सकती हैं। समाज स्वार्थ को तिलांजलि देकर पुरुषार्थ करने के लिए तैयार होता है तो देश बदलता है।''
3. हेडगेवार कांग्रेस के कांग्रेस के कार्यकर्ता भी रहे
''डॉ. हेडगेवार सभी कार्यों में सक्रिय कार्यकर्ता थे। उनको अपने लिए करने की कोई इच्छा नहीं थी। वे सब कार्यों में रहे। कांग्रेस के आंदोलन में दो बार जेल गए, उसके कार्यकर्ता भी रहे। समाजसुधार के काम में सुधारकों के साथ रहे। धर्म संस्कृति के संरक्षण में संतों के साथ रहे।''
''हेडगेवार जी ने 1911 में उन्होंने सोचना शुरू किया। उन्होंने विजयादशमी के मौके पर 17 लोगों को साथ लेकर कहा कि हिंदू समाज उत्तरदायी समाज है। हिंदू समाज को संगठित करने के लिए संघ का काम आज शुरू हुआ है। संघ लोकतांत्रिक संगठन है।''
प्रणब हेडगेवार को श्रद्धांजलि देने वाले दूसरे राष्ट्रपति
प्रणब दा संघ मुख्यालय में डॉ. हेडगेवार के जन्मस्थान पर गए। इस दौरान भागवत ने उन्हें यहां से जुड़ी जानकारी दी। पूर्व राष्ट्रपति ने यहां विजिटर बुक में लिखा- 'मैं यहां भारत माता के बेटे को श्रद्धांजलि देने आया हूं।'
जुलाई 2014 में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी नागपुर जाकर हेडगेवार को श्रद्धांजलि दी थी। प्रणब ऐसा करने वाले दूसरे पूर्व राष्ट्रपति हैं।
3. असहिष्णुता से हमारी पहचान धुंधली हो रही
‘‘1895 में कांग्रेस के सुरेंद्रनाथ बैनर्जी ने अपने भाषण में राष्ट्रवाद का जिक्र किया था। महान देशभक्त बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।’’
''हमारी राष्ट्रीयता को रूढ़वादिता, धर्म, क्षेत्र, घृणा और असहिष्णुता के तौर पर परिभाषित करने का किसी भी तरह का प्रयास हमारी पहचान को धुंधला कर देगा। हम सहनशीलता, सम्मान और अनेकता से अपनी शक्ति प्राप्त करते हैं और अपनी विविधता का उत्सव मनाते हैं। हमारे लिए लोकतंत्र उपहार नहीं। बल्कि एक पवित्र काम है। राष्ट्रवाद किसी धर्म, जाति से नहीं बंधा।’’
4. भारत की पहचान विविधता में है
‘‘50 साल के सार्वजनिक जीवन के कुछ सार साझा करना चाहता हूं। देश के मूल विचार में बहुसंख्यकवाद और सहिष्णुता है। ये हमारी समग्र संस्कृति है जो कहती है कि एक भाषा, एक संस्कृति नहीं, बल्कि भारत विविधता में है। 1.3 अरब लोग 122 भाषाएं और 1600 बोलियां बोलते हैं। 7 मुख्य धर्म हैं। लेकिन तथ्य, संविधान और पहचान एक ही है- भारतीय।’’
‘‘मेरा मानना है कि लोकतंत्र में देश के सभी मुद्दों पर सार्वजनिक संवाद होना चाहिए। विभाजनकारी विचारों की हमें पहचान करनी होगी। हम सहमत हो सकते हैं, नहीं भी हो सकते। लेकिन हम विचारों की विविधता और बहुलता को नहीं नकार सकते।’’
5. हिंसा से डर का भाव आता है
‘‘जब किसी महिला या बच्चे के साथ बर्बरता होती है, तो देश का नुकसान होता है। हिंसा से डर का भाव आता है। हमें शारीरिक-मौखिक हिंसा को नकारना चाहिए। लंबे वक्त तक हम दर्द में जिए हैं। शांति, सौहार्द्र और खुशी फैलाने के लिए हमें संघर्ष करना चाहिए।’’
- ‘‘हमने अर्थव्यवस्था की बारीक चीजों और विकास दर के लिए अच्छा काम किया है। लेकिन हमने हैप्पिनेस इंडेक्स में अच्छा काम नहीं किया है। हम 133वें नंबर पर हैं। संसद में जब हम जाते हैं तो गेट नंबर 6 की लिफ्ट के बाहर लिखा है- जनता की खुशी में राजा की खुशी है। ...कौटिल्य ने लोकतंत्र की अवधारणा से काफी पहले जनता की खुशी के बारे में कहा था।’’
मोहन भागवत के भाषण की बड़ी बातें
1. भारत में जन्मा हर व्यक्ति भारत पुत्र
''आज हम प्रणब जी से परिचित हुए। अत्यंत ज्ञान और अनुभव समृद्ध आदरणीय व्यक्तित्व हमारे साथ है। हमने सहज रूप से उन्हें आमंत्रण दिया। उनको कैसे बुलाया और वे क्यों जा रहे हैं। ये चर्चा बहुत है।''
''हिंदू समाज में एक अलग प्रभावी संगठन खड़ा करने के लिए संघ नहीं है। संघ सम्पूर्ण समाज को खड़ा करने के लिए है। विविधता में एकता हजारों सालों से परंपरा रही है। हम यहां पैदा हुए इसलिए भारतवासी नहीं हैं। ये केवल नागरिकता की बात नहीं है। भारत की धरती पर जन्मा हर व्यक्ति भारत पुत्र है।''
2. सब मिलकर काम करें तभी देश बदलेगा
''इस संस्कृति में सारे भेद-स्वार्थ मिटाकर शांति पूर्ण जीवन के लिए अनेक महापुरुषों ने अपनी बलि दी। राष्ट्र का भाग्य बनाने वाले व्यक्ति, विचार, सरकारें नहीं होते। सरकारें बहुत कुछ कर सकती हैं, लेकिन सबकुछ नहीं कर सकती हैं। समाज स्वार्थ को तिलांजलि देकर पुरुषार्थ करने के लिए तैयार होता है तो देश बदलता है।''
3. हेडगेवार कांग्रेस के कांग्रेस के कार्यकर्ता भी रहे
''डॉ. हेडगेवार सभी कार्यों में सक्रिय कार्यकर्ता थे। उनको अपने लिए करने की कोई इच्छा नहीं थी। वे सब कार्यों में रहे। कांग्रेस के आंदोलन में दो बार जेल गए, उसके कार्यकर्ता भी रहे। समाजसुधार के काम में सुधारकों के साथ रहे। धर्म संस्कृति के संरक्षण में संतों के साथ रहे।''
''हेडगेवार जी ने 1911 में उन्होंने सोचना शुरू किया। उन्होंने विजयादशमी के मौके पर 17 लोगों को साथ लेकर कहा कि हिंदू समाज उत्तरदायी समाज है। हिंदू समाज को संगठित करने के लिए संघ का काम आज शुरू हुआ है। संघ लोकतांत्रिक संगठन है।''
प्रणब हेडगेवार को श्रद्धांजलि देने वाले दूसरे राष्ट्रपति
प्रणब दा संघ मुख्यालय में डॉ. हेडगेवार के जन्मस्थान पर गए। इस दौरान भागवत ने उन्हें यहां से जुड़ी जानकारी दी। पूर्व राष्ट्रपति ने यहां विजिटर बुक में लिखा- 'मैं यहां भारत माता के बेटे को श्रद्धांजलि देने आया हूं।'
जुलाई 2014 में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी नागपुर जाकर हेडगेवार को श्रद्धांजलि दी थी। प्रणब ऐसा करने वाले दूसरे पूर्व राष्ट्रपति हैं।
इसमें लिखा गया है कि गांधी जी की हत्या के बाद आरएसएस के सदस्यों ने कई जगहों पर आरएसएस सर्कल में मिठाई वितरित की। भारतीय संविधान के लिए आरएसएस को कभी भी ज्यादा सम्मान नहीं था, लेकिन वह मनुस्मृति का पक्ष लेगा। विनायक दामोदर सावरकर ने ब्रिटिश सरकार से माफी मांगी और उनसे निष्ठा की कसम खाई। जेल में उन्होंने कई दया याचिकाओं को लिखा और ब्रिटिश राज के प्रति निष्ठा की शपथ ली।
इस लेख में आरएसएस के खिलाफ और भी कई बातें लिखी गई हैं। आरएसएस ने भी प्रणब मुखर्जी के कार्यक्रम में शामिल होने पर हो रहे हंगामे पर ट्वीट किया, 'विचारों का आदान-प्रदान करने की भारत की पुरानी परम्परा है। सतत संवाद भारत की जीवन शैली है। संघ और प्रणब दा एक-दूसरे की विचारों को स्पष्ट जानते हैं, फिर भी संघ ने निमंत्रण दिया और प्रणब दा ने स्वीकार किया। यही भारतीय परम्परा है।'
1962 के चीन-भारत युद्ध के स्वयंसेवकों ने सरहदों पर रसद पहुंचाने में मदद की। इस पर नेहरू ने 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को न्यौता भेजा था। |
आरएसएस विरोधी रहे नेहरू ने गणतंत्र दिवस परेड के लिए संगठन को बुलाया था
संघ के विरोधी रहे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कई मौकों पर संघ की तारीफ भी की थी। 1962 के चीन-भारत युद्ध के स्वयंसेवकों ने सरहदों पर रसद पहुंचाने में मदद की। इस पर नेहरू ने 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को न्योता भेजा था।
मेरी पार्टी का संघ के साथ वैचारिक मतभेद हो सकता है। पर जब देश संकट में हो तो हम सबको एकजुट होकर काम करना चाहिए। - जवाहर लाल नेहरू, पूर्व पीएम (संघ को बुलाने पर हुई आलोचना के जवाब में)
मेरी पार्टी का संघ के साथ वैचारिक मतभेद हो सकता है। पर जब देश संकट में हो तो हम सबको एकजुट होकर काम करना चाहिए। - जवाहर लाल नेहरू, पूर्व पीएम (संघ को बुलाने पर हुई आलोचना के जवाब में)
इंदिरा गांधी ने वीएचपी एकात्म यात्रा (गंगा जल यात्रा) पर संघ का निमंत्रण स्वीकारा था। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने वरिष्ठ संघ नेता एकनाथ रानाडे के निमंत्रण पर 1977 में विवेकानंद रॉक मेमोरियल का उद्घाटन किया था। |
इंदिरा ने भी संघ के न्योते पर विवेकानंद रॉक मेमोरियल का उद्घाटन किया था
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी वीएचपी की एकात्म यात्रा (गंगा जल यात्रा) पर संघ का निमंत्रण स्वीकारा था। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने वरिष्ठ संघ नेता एकनाथ रानाडे द्वारा निमंत्रण दिए जाने के बाद 1977 में विवेकानंद रॉक मेमोरियल का उद्घाटन किया था।
1946 में आरएसएस को लेकर इंदिरा गांधी ने पिता जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कहा था कि संघ की शक्ति जर्मन मॉडल की तर्ज पर बढ़ रही है। संघ से लगातार हजारों लोग जुड़ रहे हैं।
1946 में आरएसएस को लेकर इंदिरा गांधी ने पिता जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कहा था कि संघ की शक्ति जर्मन मॉडल की तर्ज पर बढ़ रही है। संघ से लगातार हजारों लोग जुड़ रहे हैं।
1967 में बिहार में अकाल पड़ा था। लोगों की मदद के लिए संघ के स्वयंसेवक भी जुटे थे। उस समय अकाल पीड़ितों की सहायता में लगे स्वयंसेवकों के कार्य को देखने जयप्रकाश नारायण पहुंचे थे। |
जेपी भी संघ कार्यक्रम में गए, कहा- संघ फासिस्ट है तो मैं भी एक फासिस्ट हूं
1967 में बिहार में अकाल पड़ा था। लोगों की मदद के लिए संघ के स्वयंसेवक भी जुटे थे। उस समय अकाल पीड़ितों की सहायता में लगे स्वयंसेवकों के कार्य को देखने जयप्रकाश नारायण पहुंचे थे।
संघ के स्वयंसेवको की देशभक्ति किसी प्रधानमंत्री से कम नहीं है। अगर जनसंघ फासिस्ट है तो मैं भी फासिस्ट हूं।- जयप्रकाश नारायण, समाजसेवी (संघ के एक कार्यक्रम में )
1967 में बिहार में अकाल पड़ा था। लोगों की मदद के लिए संघ के स्वयंसेवक भी जुटे थे। उस समय अकाल पीड़ितों की सहायता में लगे स्वयंसेवकों के कार्य को देखने जयप्रकाश नारायण पहुंचे थे।
संघ के स्वयंसेवको की देशभक्ति किसी प्रधानमंत्री से कम नहीं है। अगर जनसंघ फासिस्ट है तो मैं भी फासिस्ट हूं।- जयप्रकाश नारायण, समाजसेवी (संघ के एक कार्यक्रम में )
1967 में बिहार में अकाल पड़ा था। लोगों की मदद के लिए संघ के स्वयंसेवक भी जुटे थे। उस समय अकाल पीड़ितों की सहायता में लगे स्वयंसेवकों के कार्य को देखने जयप्रकाश नारायण पहुंचे थे।
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