पाकिस्तान की सियासत में एक-एक करके बड़े सियासतदानों का पत्ता साफ हो रहा है। यही वजह है कि इस बार आम चुनाव के बाद पाकिस्तान की कमान किसी नए चेहरे को मिलनी तय है। काफी हद तक यह मुमकिन है कि पाकिस्तान की सत्ता के शीर्ष पर आने वाला यह चेहरा पहली बार सत्ता पर काबिज होगा। इसकी वजह है कि एक-एक कर देश की सियासत में अहम किरदार निभाने वाले चेहरे इस बार चुनाव से बेदखली का दर्द महसूस कर रहे हैं। इसमें सबसे ताजा नाम पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री खाकन अब्बासी का है। चुनाव न्यायाधिकरण ने उनको रावलपिंडी से भी चुनाव लड़ने से रोक दिया।
इस्लामाबाद से अब्बासी का पर्चा खारिज होने के एक दिन बाद उन पर यह रोक लगाई गई है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ का नामांकन खारिज किया जा चुका है। नवाज शरीफ का चैप्टर पाकिस्तान की सियासत में पहले ही क्लोज हो चुका है। इतना ही नहीं जिन पर वह सबसे ज्यादा भरोसा करते थे वह भी इस चुनाव में खड़े नहीं हो सकते हैं। इनमें उनकी बेटी मरियम का नाम है। इसके अलावा उनकी पत्नी कुलसुम की हालत बेहद नाजुक है, लिहाजा वह भी चुनाव से बाहर हैं। इसका एक अर्थ साफ है कि अब आम चुनाव के बाद पाकिस्तान की कमान कोई अंजान चेहरा पहली बार संभालेगा। यह कौन होगा यह फिलहाल वक्त ही बताएगा।
अब्बासी का नामांकन खारिज
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के नेता अब्बासी ने 25 जुलाई को होने वाले चुनाव के लिए इस्लामाबाद और रावलपिंडी से पर्चा भरा था। शुरू में निर्वाचन अधिकारियों ने इस्लामाबाद से उनका नामांकन खारिज कर दिया, लेकिन रावलपिंडी से पर्चा मंजूर कर लिया। अब्बासी ने राजधानी से अपना नामांकन खारिज किए जाने के खिलाफ इस्लामाबाद हाई कोर्ट के विशेष चुनाव न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया। इस बीच, रावलपिंडी से उनके खिलाफ मैदान में उतरने वाले मसूद अब्बासी ने दूसरे टिब्यूनल के सामने उनकी उम्मीदवारी को चुनौती दे दी। मसूद ने पूर्व प्रधानमंत्री पर नामांकन पत्र में छेड़छाड़ करने और इस्लामाबाद के निकट अवैध रूप से वनभूमि पर कब्जा करने का आरोप लगाया। मसूद की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रहमान लोधी ने अब्बासी के खिलाफ कुछ आपत्तियों को सही माना और रावलपिंडी से भी उनका नामांकन खारिज कर दिया।
इमरान के चुनाव लड़ने को मिली हरी झंडी
गौरतलब है कि भ्रष्टाचार के एक मामले में नवाज शरीफ को अयोग्य ठहराए जाने के बाद अब्बासी को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया गया था। इस बीच, एक अन्य न्यायाधिकरण ने इस्लामाबाद से पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के प्रमुख इमरान खान का नामांकन स्वीकार कर लिया है। इससे पहले निर्वाचन अधिकारी ने उनका नामांकन खारिज कर दिया था, जिसके खिलाफ वे टिब्यूनल गए थे। लाहौर की ट्रिब्यूनल कोर्ट ने इमरान खान को मियांवाली के एनए-95 निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए योग्य करार दे दिया है। पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार डॉन के मुताबिक इमरान खान के पंजाब, खैबर पख्तुनख्वा और सिंध में नेशनल असेंबली के पांच निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की संभावना है। खैबर पख्तून प्रात के एनए-35 बन्नू निर्वाचन क्षेत्र, जहां से इमरान खड़े हैं वहां से उन्हें एक 100 वर्षीय महिला हजरत बीबी चुनौती दे रही है। उन्होंने राष्ट्रीय और प्रांतीय असेंबली सीटों के लिए अपना नामांकन पत्र जमा करवाया है। इसके पहले भी वह एनए-35 बन्नू एरिया से पांच बार चुनाव लड़ चुकी हैं।
इमरान के लिए राह नहीं आसान
हालांकि इमरान के लिए भी चुनाव जीत कर पीएम बनने की राह इतनी आसान दिखाई नहीं दे रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी पूर्व पत्नी रेहम खान जल्द ही अपनी आत्मकथा रिलीज करने वाली हैं। इसको लेकर उन्हें जान की धमकी भी मिल चुकी है। लंदन में दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने इसका खुलासा किया था। इतना ही नहीं इमरान को लेकर उन्होंने काफी कुछ मीडिया में कहा भी है। यह सब इमरान की मुश्किलों को बढ़ा सकती हैं। रेहम ने अपनी किताब में कई खुलासे किए हैं। रेहम की किताब इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि रेहम की ये आत्मकथा पाकिस्तान में उस समय रिलीज होने जा रही है जब पाकिस्तान में आम चुनाव होने जा रहे हैं। रेहम की किताब का पाकिस्तान की सियासत में खौफ इस कदर फैला है कि उन्हें कानूनी नोटिस तक थमाए जा चुके हैं। राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ तक ने ट्वीट करके कहा कि एक महिला को इस तरह की बातें नहीं करनी चाहिए। आपको बता दें कि टीवी पत्रकार रहीं रेहम खान का निकाह 2015 में इमरान से हुआ था। दोनों की शादी महज 9 महीने ही चली थी, जिसके बाद दोनों के बीच तलाक हो गया था।
शाहबाज शरीफ
नवाज शरीफ के अपने परिवार में फिलहाल सियासत से वो खुद उनकी पत्नी कुलसुम नवाज और उनकी बेटी मरियम नवाज बाहर हो चुके हैं। 1950 में लाहौर में पैदा हुए। वह पाकिस्तान के सबसे घनी आबादी वाले प्रांत पंजाब के मुख्यमंत्री हैं। शाहबाज शरीफ 20 फरवरी 1997 से 12 अक्टूबर 1999 तक भी पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। 1999 में मुशर्रफ सरकार पर कब्जा कर लेने के बाद वह सऊदी अरब, में निर्वासित रहे। 11 मई 2004 को उन्होंने पाकिस्तान वापस आने की कोशिश की मगर लाहौर के अल्लामा इकबाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उन्हें वापस भेज दिया गया था। मौजूदा सियासी दौर में शाहबाज के सत्ता संभालने को लेकर उम्मीद काफी कम है। उनके ऊपर भी कई तरह के आरोप लगाए गए हैं। इसके अलावा न्यायपालिका का शिकंजा भी उनके खिलाफ कड़ा हो रहा है। इसके बाद भी यदि उन्हें पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज होने का मौका मिला तो भी यह पहली ही बार होगा।
इस्लामाबाद से अब्बासी का पर्चा खारिज होने के एक दिन बाद उन पर यह रोक लगाई गई है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ का नामांकन खारिज किया जा चुका है। नवाज शरीफ का चैप्टर पाकिस्तान की सियासत में पहले ही क्लोज हो चुका है। इतना ही नहीं जिन पर वह सबसे ज्यादा भरोसा करते थे वह भी इस चुनाव में खड़े नहीं हो सकते हैं। इनमें उनकी बेटी मरियम का नाम है। इसके अलावा उनकी पत्नी कुलसुम की हालत बेहद नाजुक है, लिहाजा वह भी चुनाव से बाहर हैं। इसका एक अर्थ साफ है कि अब आम चुनाव के बाद पाकिस्तान की कमान कोई अंजान चेहरा पहली बार संभालेगा। यह कौन होगा यह फिलहाल वक्त ही बताएगा।
अब्बासी का नामांकन खारिज
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के नेता अब्बासी ने 25 जुलाई को होने वाले चुनाव के लिए इस्लामाबाद और रावलपिंडी से पर्चा भरा था। शुरू में निर्वाचन अधिकारियों ने इस्लामाबाद से उनका नामांकन खारिज कर दिया, लेकिन रावलपिंडी से पर्चा मंजूर कर लिया। अब्बासी ने राजधानी से अपना नामांकन खारिज किए जाने के खिलाफ इस्लामाबाद हाई कोर्ट के विशेष चुनाव न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया। इस बीच, रावलपिंडी से उनके खिलाफ मैदान में उतरने वाले मसूद अब्बासी ने दूसरे टिब्यूनल के सामने उनकी उम्मीदवारी को चुनौती दे दी। मसूद ने पूर्व प्रधानमंत्री पर नामांकन पत्र में छेड़छाड़ करने और इस्लामाबाद के निकट अवैध रूप से वनभूमि पर कब्जा करने का आरोप लगाया। मसूद की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रहमान लोधी ने अब्बासी के खिलाफ कुछ आपत्तियों को सही माना और रावलपिंडी से भी उनका नामांकन खारिज कर दिया।
इमरान के चुनाव लड़ने को मिली हरी झंडी
गौरतलब है कि भ्रष्टाचार के एक मामले में नवाज शरीफ को अयोग्य ठहराए जाने के बाद अब्बासी को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया गया था। इस बीच, एक अन्य न्यायाधिकरण ने इस्लामाबाद से पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के प्रमुख इमरान खान का नामांकन स्वीकार कर लिया है। इससे पहले निर्वाचन अधिकारी ने उनका नामांकन खारिज कर दिया था, जिसके खिलाफ वे टिब्यूनल गए थे। लाहौर की ट्रिब्यूनल कोर्ट ने इमरान खान को मियांवाली के एनए-95 निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए योग्य करार दे दिया है। पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार डॉन के मुताबिक इमरान खान के पंजाब, खैबर पख्तुनख्वा और सिंध में नेशनल असेंबली के पांच निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की संभावना है। खैबर पख्तून प्रात के एनए-35 बन्नू निर्वाचन क्षेत्र, जहां से इमरान खड़े हैं वहां से उन्हें एक 100 वर्षीय महिला हजरत बीबी चुनौती दे रही है। उन्होंने राष्ट्रीय और प्रांतीय असेंबली सीटों के लिए अपना नामांकन पत्र जमा करवाया है। इसके पहले भी वह एनए-35 बन्नू एरिया से पांच बार चुनाव लड़ चुकी हैं।
इमरान के लिए राह नहीं आसान
हालांकि इमरान के लिए भी चुनाव जीत कर पीएम बनने की राह इतनी आसान दिखाई नहीं दे रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी पूर्व पत्नी रेहम खान जल्द ही अपनी आत्मकथा रिलीज करने वाली हैं। इसको लेकर उन्हें जान की धमकी भी मिल चुकी है। लंदन में दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने इसका खुलासा किया था। इतना ही नहीं इमरान को लेकर उन्होंने काफी कुछ मीडिया में कहा भी है। यह सब इमरान की मुश्किलों को बढ़ा सकती हैं। रेहम ने अपनी किताब में कई खुलासे किए हैं। रेहम की किताब इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि रेहम की ये आत्मकथा पाकिस्तान में उस समय रिलीज होने जा रही है जब पाकिस्तान में आम चुनाव होने जा रहे हैं। रेहम की किताब का पाकिस्तान की सियासत में खौफ इस कदर फैला है कि उन्हें कानूनी नोटिस तक थमाए जा चुके हैं। राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ तक ने ट्वीट करके कहा कि एक महिला को इस तरह की बातें नहीं करनी चाहिए। आपको बता दें कि टीवी पत्रकार रहीं रेहम खान का निकाह 2015 में इमरान से हुआ था। दोनों की शादी महज 9 महीने ही चली थी, जिसके बाद दोनों के बीच तलाक हो गया था।
शाहबाज शरीफ
नवाज शरीफ के अपने परिवार में फिलहाल सियासत से वो खुद उनकी पत्नी कुलसुम नवाज और उनकी बेटी मरियम नवाज बाहर हो चुके हैं। 1950 में लाहौर में पैदा हुए। वह पाकिस्तान के सबसे घनी आबादी वाले प्रांत पंजाब के मुख्यमंत्री हैं। शाहबाज शरीफ 20 फरवरी 1997 से 12 अक्टूबर 1999 तक भी पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। 1999 में मुशर्रफ सरकार पर कब्जा कर लेने के बाद वह सऊदी अरब, में निर्वासित रहे। 11 मई 2004 को उन्होंने पाकिस्तान वापस आने की कोशिश की मगर लाहौर के अल्लामा इकबाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उन्हें वापस भेज दिया गया था। मौजूदा सियासी दौर में शाहबाज के सत्ता संभालने को लेकर उम्मीद काफी कम है। उनके ऊपर भी कई तरह के आरोप लगाए गए हैं। इसके अलावा न्यायपालिका का शिकंजा भी उनके खिलाफ कड़ा हो रहा है। इसके बाद भी यदि उन्हें पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज होने का मौका मिला तो भी यह पहली ही बार होगा।
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