भाजपा ने पश्चिम बंगाल लोकसभा चुनाव के लिए एजेंडा जारी किया है-‘ इबार बांग्ला’ (इस बार बंगाल)। वह इस मनोभाव में यूं ही नहीं आई। ममता के खिलाफ भाजपा और संघ लगभग वही तरीके आजमा रहे हैं, जिन तरीकों से कभी ममता ने कामरेडों की सरकार को हटाने की जमीन मजबूत की। वह यहां लगातार फैलती, मजबूत होती जा रही है। ममता ने दुर्गापूजा को अपना जनाधार बढ़ाने और कम्युनिस्टों के खिलाफ माहौल बनाने का माध्यम बनाया था।
‘नो रिफ्यूजल’ में छुपा तृणमूल कांग्रेस का मिजाज
कोलकाता शहर में किराए की सभी टैक्सियों पर ‘नो रिफ्यूजल’ लिखा है। यानी, इनकार नहीं। जो कहा, करो। इसे ममता बनर्जी सरकार ने लिखवाया है। बेशक, यह यात्रियों की सुविधा के लिए है, लेकिन यह सरकार और तृणमूल कांग्रेस के पूरे मिजाज की भी उतनी ही गवाही है कि उसे इनकार या नाफरमानी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं। उसने स्थानीय निकाय चुनाव में खुलकर दिखाया भी कि कैसे लोगों से अपनी बात मनवाई जाती हैै। हालांकि, उसके एकछत्र राज में ऐसे कई सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में अंदरूनी समझौता है?
तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में अंदरूनी समझौते के पीछे के तर्क
कहते हैं कि भाजपा, बंगाल में इस रणनीति पर आगे बढ़ी हुई है कि पहले ममता से कामरेडों का राज खत्म कराओ, फिर ममता को टारगेट कर अपने लिए ठोस गुंजाइश बनाओ? भाजपा की लाइन कामयाब है। 34 साल लगातार राज करने वाले कामरेडों को तीसरे-चौथे पायदान पर धकेल देना हंसी-खेल नहीं है।
माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी कहते हैं-"दोनों, जानबूझकर ऐसा कर रहे। उनके बीच गुप्त समझौता है। ममता के घरवालों के पास इतनी संपत्ति कहां से आ गई? चिटफंड कंपनियों के घोटाले जैसे कई मामले हैं, लेकिन केंद्रीय एजेंसियां क्या कर रहीं हैं?"
माकपा नेता एबी बर्धन भी यही बात कहते हैं-"भाजपा से समझौते के तहत तृणमूल उसे बंगाल में बड़ी चालाकी से मजबूत बना रही है।"
हालांकि, भाजपा के राज्य प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय इन आरोपों को खारिज करते हुए कहते हैं- "वे अपना दोष हमारे मत्थे मढ़ रहे हैं। लोगों ने कामरेडों को उनकी करनी की वजह से नकारा है।"
तृणमूल के प्रदेश महासचिव पार्थ चटर्जी कहते हैं- "माकपा नेता भाजपा को इसलिए मजबूत बता रहे हैं, क्योंकि उनकी स्थिति ठीक नहीं है। वे इस बात से बौखलाए हुए हैं कि माकपा समर्थक भाजपा से जुड़ रहे हैं।"बशीरहाट में सांप्रदायिक हिंसा, रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठ मामले में भी यही बात कही जाती है।
माकपा के प्रदेश सचिव सूर्यकांत मिश्र कहते हैं-"यह ममता और भाजपा के कारनामों का नतीजा है। असल में इससे होने वाले ध्रुवीकरण में दोनों को फायदा दिखा।" लोग भी हिंसा से बेहद नाराज हैं।
पेंट कारोबारी सायन दास कहते हैं-"कम्युनिस्टों के और अभी के शासन में क्या फर्क रह गया? हम शांतिप्रिय लोग हैं। हमें सिर्फ शांति चाहिए, और कुछ नहीं।"
संघ: शाखाएंं 7 साल में 3 गुना बढ़ीं
यहां आरएसएस मजबूत हो रहा है। सात साल में उसकी शाखाएं तीन गुना बढ़ी हैं। 2011 में 580 शाखाएं थीं, अब 1700 से ज्यादा हैं। यह मिदनापुर, बीरभूम, मुर्शिदाबाद जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में बढ़ी हैं। इसका फायदा 2019 में भाजपा को मिल सकता है। 2014 में उसे सिर्फ 2 सीटें मिलीं थीं। माकपा के बराबर। जबकि, 2011 के विधानसभा चुनाव में भाजपा एक भी सीट नहीं जीती। वह 289 सीटों पर लड़ी थी। 285 पर जमानत जब्त हो गई थी।
2019 के लिए चार बड़े दलों की रणनीति : अभी का सीन और बोली
भाजपा: राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि ममता प्रधानमंत्री बनने का सपना छोड़ें। लोगों ने कामरेडों से बचने तृणमूल का सहारा लिया। अब इससे भी ऊब चुके हैं।
माकपा: सीताराम येचुरी के मुताबिक, हमारा नारा है-मोदी हटाओ, देश बचाओ; तृणमूल हटाओ बंगाल बचाओ। भाजपा-तृणमूल सिक्के के दो पहलू हैं।
तृणमूल कांग्रेस:पार्थ चटर्जी का कहना है कि अब हमारा निशाना भाजपा है। हम भाजपा के खिलाफ छोटे दलों की एकता के पक्ष में हैं, लेकिन माकपा से तालमेल नहीं होगा।
कांग्रेस: अधीर रंजन चौधरी ने बताया कि सब भाजपा को रोकने की पहल करें। हम आलाकमान का फैसला मानेंगे। लोकल मसले या स्थिति ध्यान में नहीं रखेंगे।
27% मुस्लिम: ममता और भाजपा, दोनों के लिए मुद्दा
बंगाल में करीब 27% मुसलमान हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "ममता बनर्जी इस आबादी को तुष्ट करने के उपाय करती हैं।" चाहे, मुहर्रम के दिन मां दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक हो या आरएसएस प्रमुख व भाजपा अध्यक्ष के कार्यक्रमों को मंजूरी नहीं देना, भाजपा इसे बड़ा मुद्दा बनाती रही है। हालांकि ममता कहती हैं, "मैं तुष्टीकरण में भरोसा नहीं करती। ऐसी बातें, ऐसे आरोप मुझे बहुत चोट पहुंचाते हैं।"
‘नो रिफ्यूजल’ में छुपा तृणमूल कांग्रेस का मिजाज
कोलकाता शहर में किराए की सभी टैक्सियों पर ‘नो रिफ्यूजल’ लिखा है। यानी, इनकार नहीं। जो कहा, करो। इसे ममता बनर्जी सरकार ने लिखवाया है। बेशक, यह यात्रियों की सुविधा के लिए है, लेकिन यह सरकार और तृणमूल कांग्रेस के पूरे मिजाज की भी उतनी ही गवाही है कि उसे इनकार या नाफरमानी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं। उसने स्थानीय निकाय चुनाव में खुलकर दिखाया भी कि कैसे लोगों से अपनी बात मनवाई जाती हैै। हालांकि, उसके एकछत्र राज में ऐसे कई सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में अंदरूनी समझौता है?
तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में अंदरूनी समझौते के पीछे के तर्क
कहते हैं कि भाजपा, बंगाल में इस रणनीति पर आगे बढ़ी हुई है कि पहले ममता से कामरेडों का राज खत्म कराओ, फिर ममता को टारगेट कर अपने लिए ठोस गुंजाइश बनाओ? भाजपा की लाइन कामयाब है। 34 साल लगातार राज करने वाले कामरेडों को तीसरे-चौथे पायदान पर धकेल देना हंसी-खेल नहीं है।
माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी कहते हैं-"दोनों, जानबूझकर ऐसा कर रहे। उनके बीच गुप्त समझौता है। ममता के घरवालों के पास इतनी संपत्ति कहां से आ गई? चिटफंड कंपनियों के घोटाले जैसे कई मामले हैं, लेकिन केंद्रीय एजेंसियां क्या कर रहीं हैं?"
माकपा नेता एबी बर्धन भी यही बात कहते हैं-"भाजपा से समझौते के तहत तृणमूल उसे बंगाल में बड़ी चालाकी से मजबूत बना रही है।"
हालांकि, भाजपा के राज्य प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय इन आरोपों को खारिज करते हुए कहते हैं- "वे अपना दोष हमारे मत्थे मढ़ रहे हैं। लोगों ने कामरेडों को उनकी करनी की वजह से नकारा है।"
तृणमूल के प्रदेश महासचिव पार्थ चटर्जी कहते हैं- "माकपा नेता भाजपा को इसलिए मजबूत बता रहे हैं, क्योंकि उनकी स्थिति ठीक नहीं है। वे इस बात से बौखलाए हुए हैं कि माकपा समर्थक भाजपा से जुड़ रहे हैं।"बशीरहाट में सांप्रदायिक हिंसा, रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठ मामले में भी यही बात कही जाती है।
माकपा के प्रदेश सचिव सूर्यकांत मिश्र कहते हैं-"यह ममता और भाजपा के कारनामों का नतीजा है। असल में इससे होने वाले ध्रुवीकरण में दोनों को फायदा दिखा।" लोग भी हिंसा से बेहद नाराज हैं।
पेंट कारोबारी सायन दास कहते हैं-"कम्युनिस्टों के और अभी के शासन में क्या फर्क रह गया? हम शांतिप्रिय लोग हैं। हमें सिर्फ शांति चाहिए, और कुछ नहीं।"
42 लोकसभा सीटों की स्थिति
तृणमूल | 34 |
बीजेपी | 02 |
लेफ्ट | 02 |
कांग्रेस | 04 |
अन्य | 00 |
यहां आरएसएस मजबूत हो रहा है। सात साल में उसकी शाखाएं तीन गुना बढ़ी हैं। 2011 में 580 शाखाएं थीं, अब 1700 से ज्यादा हैं। यह मिदनापुर, बीरभूम, मुर्शिदाबाद जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में बढ़ी हैं। इसका फायदा 2019 में भाजपा को मिल सकता है। 2014 में उसे सिर्फ 2 सीटें मिलीं थीं। माकपा के बराबर। जबकि, 2011 के विधानसभा चुनाव में भाजपा एक भी सीट नहीं जीती। वह 289 सीटों पर लड़ी थी। 285 पर जमानत जब्त हो गई थी।
2019 के लिए चार बड़े दलों की रणनीति : अभी का सीन और बोली
भाजपा: राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि ममता प्रधानमंत्री बनने का सपना छोड़ें। लोगों ने कामरेडों से बचने तृणमूल का सहारा लिया। अब इससे भी ऊब चुके हैं।
माकपा: सीताराम येचुरी के मुताबिक, हमारा नारा है-मोदी हटाओ, देश बचाओ; तृणमूल हटाओ बंगाल बचाओ। भाजपा-तृणमूल सिक्के के दो पहलू हैं।
तृणमूल कांग्रेस:पार्थ चटर्जी का कहना है कि अब हमारा निशाना भाजपा है। हम भाजपा के खिलाफ छोटे दलों की एकता के पक्ष में हैं, लेकिन माकपा से तालमेल नहीं होगा।
कांग्रेस: अधीर रंजन चौधरी ने बताया कि सब भाजपा को रोकने की पहल करें। हम आलाकमान का फैसला मानेंगे। लोकल मसले या स्थिति ध्यान में नहीं रखेंगे।
27% मुस्लिम: ममता और भाजपा, दोनों के लिए मुद्दा
बंगाल में करीब 27% मुसलमान हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "ममता बनर्जी इस आबादी को तुष्ट करने के उपाय करती हैं।" चाहे, मुहर्रम के दिन मां दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक हो या आरएसएस प्रमुख व भाजपा अध्यक्ष के कार्यक्रमों को मंजूरी नहीं देना, भाजपा इसे बड़ा मुद्दा बनाती रही है। हालांकि ममता कहती हैं, "मैं तुष्टीकरण में भरोसा नहीं करती। ऐसी बातें, ऐसे आरोप मुझे बहुत चोट पहुंचाते हैं।"
Comments