आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
अभी कुछ दिन पूर्व, सोशल मीडिया पर एक चर्चित ब्रांड आटे में प्लास्टिक मिले जाने का समाचार प्रसारित किया जा रहा था, कुछ दुकानदारों से बात करने पर जवाब मिला, "ये सब दुश्मनों की दुष्प्रचार है, आटे में प्लास्टिक तो कभी चावल में प्लास्टिक। बेकार की बातें हैं।" लेकिन आज टीवी पर आटा निर्माताओं की तरफ से विज्ञापन देने का क्या अर्थ है? जबकि कोई अन्य ब्राण्ड उस तरह का विज्ञापन नहीं कर रहा, जिस तरह इस ब्राण्ड के आटा निर्माता। यह काम सरकार का था, कि उस ब्राण्ड की गुणवत्ता की जाँच कर खंडन करती, कम्पनी तो अपने व्यवसाय को बचाने में संघर्षरत है, लोगों के विरुद्ध पुलिस में एफआईआर दर्ज कर रही है। लेकिन बिना चिंगारी के कभी धुआँ नहीं होता। भारत में सरकारें आएंगी और जाएंगी, लेकिन खाद्य पदार्थों में मिलावट का कार्यक्रम यथावत चलता रहेगा।
आजकल लोग RO और पैक्ड बोतल का पानी पीना पसंद करते हैं।क्यों? वे इसे हाइजिनिक और साफ मानते हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ये पानी आपके लिए जरा भी सेफ और अच्छा नहीं है। पानी की गुणवत्ता को TDS (Total Dissolved Solids) में मापा जाता है, जो ये बताता है कि पानी में कितने प्रतिशत मिनरल्स है। इन दोनों ही पानी में TDS की मात्रा बहुत कम होती है। ऐसा इसको मीठा रखने के चक्कर में किया जाता है। पानी मीठा लगे इसलिए घर में लगे RO का TDS कम रखवाते हैं।
क्या आरओ है फायदेमंद
कंज्यूमर एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर ने आरओ और पानी को शुद्ध करने वाले विभिन्न उपकरणों की जांच की है. इस दौरान देश के विभिन्न शहरों में आरओ का प्रयोग करने वाले और न करने वाले घरों में बीमार पड़ने वालों का अनुपात 50:50 देखा गया.
अगर TDS 250-350 के बीच में हो तो इसे बेस्ट माना जाता है। 200-300 की रेंज एवरेज होती है। 150 से कम TDS वाले पानी में आवश्यक मिनरल्स की मात्रा बहुत कम हो जाती है। अक्सर बहुत मीठा लगने वाले पानी का TDS 100 से कम होता है।
ऐसा होने पर ये पानी हार्ट पर बुरा असर डालता है। इससे हार्ट डिसीज होने के चांजेस बढ़ने के साथ ही बालों की ग्रोथ और बॉडी के हार्मोन्स पर बुरा असर होता है। ROऔर बोतल में मिलने वाले पानी का TDS बहुत कम होता है।
इसी तरह पैक्ड बोतल में पानी भरने से पहले उसे रिवर ऑसमोसिस प्रोसेस के जरिए फिल्टर किया जाता है। जिससे इसके मिनरल्स निकल जाते हैं।
बोतलबंद पानी भी नहीं है शुद्ध
अगर आपको लगता है कि आप जो मिनरल वॉटर या सप्लाई किए हुए पानी को पी रहे हैं और वह पूरी तरह से शुद्ध है तो आप गलत हैं, इसमें भी शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले जीवाणु गायर्डिया (Giardia) पाया जाता है
.इसलिए देश कीहैल्थ ऑर्गनाइजेशन के द्वारा इसे मिनरल वाटर कहने पर रोक लगाई गई थी। इसलिए इसे मिनरल वॉटर की जगह पैक्ड ड्रिकिंग वाटर कहा जाता है।
न्यूयॉर्क स्थित फ्रेडोनिया विश्वविद्यालय की शोधकर्ता शेरी मेसन ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि बोतल बंद पानी में प्लास्टिक के अवशेष मिले होते हैं। यह दावा उन्होंने दुनियाभर से लिए गए बोतल बंद के नमूनों की जांच के बाद किया है। उनकी ओर से की गई जांच में बताया गया है कि इस बोतल बंद पानी में 93 फीसदी नमूनों में प्लास्टिक के अवशेष मिले।
कई बड़े ब्रांड की बोतल से लिया सैंपल शामिल
भारत समेत दूसरे देशों से लिए गए इन नमूनों में कई बड़े ब्रांड के नमूने शामिल थे। जिन ब्रांड के नमूनों में 93% प्लास्टिक की पहचान हुई, उसमें एक्वा, एक्वाफिना, दासानी, एवियन, नेस्ले प्योर लाइफ और सैन पेलेग्रिनो जैसे प्रमुख ब्रांड शामिल थे। इनमें एक्वा और एक्वाफिना इंडिया में काफी ज्यादा बिकते हैं और लगभग हर दुकान पर मिलते हैं।
भारत सहित 9 देशों से लिए थे सैंपल
मेसन ने इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए भारत के अलावा 9 अन्य देशों से भी पानी के नमूने लिए थे। इन 9 देशों में भारत का पड़ोसी देश चीन के अलावा अमेरिका, ब्राज़ील, इंडोनेशिया, केन्या, लेबनान, मेक्सिको और थाईलैंड जैसे देश भी शामिल हैं।
कैसे अवशेष मिले पानी
शेरी मेसन ने बताया कि प्लास्टिक की बोतल में बंद पानी में पॉलीप्रोपाइलीन, नायलॉन और पॉलीइथाईलीन टेरेपथालेट जैसे अवशेष शामिल होते हैं। रिसर्चर ने बताया कि इन सभी का इस्तेमाल बोतल का ढक्कन बनाने में होता है। ये अवशेष बोतल में पानी भरते समय पानी में शामिल हो जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि इस अध्ययन में हमें जो 65% कण मिले हैं वे वास्तव में टुकड़े के रूप में हैं न कि फाइबर के रूप में। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक बोतल में इन प्लास्टिक के कणों की संख्या जीरो से लेकर 10,000 से अधिक तक हो सकती है।
एक वक्त था जब हम और आप टोटियों और हैंडपंप से आने वाले पानी को यूं ही मुंह लगाकर पी लिया करते थे। हमें किसी चीज की चिंता भी नहीं रहती थी। लेकिन आज तो ऐसा पानी पीना आपके लिए किसी खतरे से कम नहीं। लेकिन बदलते परिवेश में आज सब कुछ बेमानी हो गया है। जिस समय टोटियों और हैंडपंप का पानी पीते तब सरसों का तेल और शुद्ध घी अंगीठी पर रखते ही आसपास के घर तक महक जाते थे, लेकिन आज घर की चारदीवारी में ही पता नहीं चलता, क्यों? किसी नेता ने मंथन करने का प्रयास तक करने का विचार भी नहीं किया होगा। पता नहीं, खाद्य और स्वास्थ्य मंत्रालय क्या कर रहा है? क्या है इन मन्त्रियों का काम, केवल पद लेना? जो गम्भीर चिन्ता का विषय है। चुनावों में जिस पार्टी को देखो, जनहित की बात करती आती है, लेकिन मिलावट का बाजार उतना ही उन्नति कर रहा है, जनता का स्वास्थ्य जाए भाड़ में, इनको वोट चाहिए और जनता को लॉलीपॉप देकर अपनी जीविका और तिजोरी की चिन्ता करते नज़र आते हैं। फिर जो सरकार जनता को पीने का शुद्ध जल न दे सके, ऐसी सरकार का क्या लाभ?
अभी कुछ दिन पूर्व, सोशल मीडिया पर एक चर्चित ब्रांड आटे में प्लास्टिक मिले जाने का समाचार प्रसारित किया जा रहा था, कुछ दुकानदारों से बात करने पर जवाब मिला, "ये सब दुश्मनों की दुष्प्रचार है, आटे में प्लास्टिक तो कभी चावल में प्लास्टिक। बेकार की बातें हैं।" लेकिन आज टीवी पर आटा निर्माताओं की तरफ से विज्ञापन देने का क्या अर्थ है? जबकि कोई अन्य ब्राण्ड उस तरह का विज्ञापन नहीं कर रहा, जिस तरह इस ब्राण्ड के आटा निर्माता। यह काम सरकार का था, कि उस ब्राण्ड की गुणवत्ता की जाँच कर खंडन करती, कम्पनी तो अपने व्यवसाय को बचाने में संघर्षरत है, लोगों के विरुद्ध पुलिस में एफआईआर दर्ज कर रही है। लेकिन बिना चिंगारी के कभी धुआँ नहीं होता। भारत में सरकारें आएंगी और जाएंगी, लेकिन खाद्य पदार्थों में मिलावट का कार्यक्रम यथावत चलता रहेगा।
कहीं नकली दवा, तो कहीं तेल में मिलावट। यदि खाद्य, उपभोक्ता और स्वास्थ्य मंत्रालय/विभाग गंभीरता से जाँच करें, एक बहुत ही लम्बी सूची बनकर तैयार हो जाएगी। होली एवं दीपावली पर नकली दूध, खोया और मिढ़ाइयों के समाचार टीवी पर प्रसारित होते हैं, लेकिन त्यौहार निपटते ही सब कहाँ लुप्त हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता। क्या जनता को अपने त्यौहार पर इन चीजों को त्यागने के लिए संकेत दिए जाते हैं या कोई अन्य कारण, यह तो सरकार ही बता सकती है, क्योकि यह मिलावट का शोर केवल होली और दीपावली पर ही सुनाई देता है, किसी ईद पर नहीं, क्यों? फिर जब कभी बाजार में बिकने वाली दालों के नमूने लेने निरीक्षक आते हैं, बाजार बंद हो जाते हैं, और निरीक्षकों के जाने बाद दुकानें दुबारा खुल जाती हैं, जो सिद्ध करता है कि बाजार में बिकने वाली दालों में भी मिलावट का धंधा चल रहा है। कहाँ तक मिलावट धंधे का दुखड़ा रोया जाए!
आइए आपको बताते हैं कैसे आरओ का पानी भी आपके लिए घातक हो सकता है।
आजकल लोग RO और पैक्ड बोतल का पानी पीना पसंद करते हैं।क्यों? वे इसे हाइजिनिक और साफ मानते हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ये पानी आपके लिए जरा भी सेफ और अच्छा नहीं है। पानी की गुणवत्ता को TDS (Total Dissolved Solids) में मापा जाता है, जो ये बताता है कि पानी में कितने प्रतिशत मिनरल्स है। इन दोनों ही पानी में TDS की मात्रा बहुत कम होती है। ऐसा इसको मीठा रखने के चक्कर में किया जाता है। पानी मीठा लगे इसलिए घर में लगे RO का TDS कम रखवाते हैं।
क्या आरओ है फायदेमंद
कंज्यूमर एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर ने आरओ और पानी को शुद्ध करने वाले विभिन्न उपकरणों की जांच की है. इस दौरान देश के विभिन्न शहरों में आरओ का प्रयोग करने वाले और न करने वाले घरों में बीमार पड़ने वालों का अनुपात 50:50 देखा गया.
अगर TDS 250-350 के बीच में हो तो इसे बेस्ट माना जाता है। 200-300 की रेंज एवरेज होती है। 150 से कम TDS वाले पानी में आवश्यक मिनरल्स की मात्रा बहुत कम हो जाती है। अक्सर बहुत मीठा लगने वाले पानी का TDS 100 से कम होता है।
ऐसा होने पर ये पानी हार्ट पर बुरा असर डालता है। इससे हार्ट डिसीज होने के चांजेस बढ़ने के साथ ही बालों की ग्रोथ और बॉडी के हार्मोन्स पर बुरा असर होता है। ROऔर बोतल में मिलने वाले पानी का TDS बहुत कम होता है।
पीते हैं बोतल का पानी तो हो जाएं सतर्क, रिसर्च में मिला 93% प्लास्टिक
पानी जब RO से फिल्टर होकर साफ होता है तो उसमें से काफी सारे मिनरल्स निकल जाते हैं।इसी तरह पैक्ड बोतल में पानी भरने से पहले उसे रिवर ऑसमोसिस प्रोसेस के जरिए फिल्टर किया जाता है। जिससे इसके मिनरल्स निकल जाते हैं।
बोतलबंद पानी भी नहीं है शुद्ध
अगर आपको लगता है कि आप जो मिनरल वॉटर या सप्लाई किए हुए पानी को पी रहे हैं और वह पूरी तरह से शुद्ध है तो आप गलत हैं, इसमें भी शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले जीवाणु गायर्डिया (Giardia) पाया जाता है
.इसलिए देश कीहैल्थ ऑर्गनाइजेशन के द्वारा इसे मिनरल वाटर कहने पर रोक लगाई गई थी। इसलिए इसे मिनरल वॉटर की जगह पैक्ड ड्रिकिंग वाटर कहा जाता है।
न्यूयॉर्क स्थित फ्रेडोनिया विश्वविद्यालय की शोधकर्ता शेरी मेसन ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि बोतल बंद पानी में प्लास्टिक के अवशेष मिले होते हैं। यह दावा उन्होंने दुनियाभर से लिए गए बोतल बंद के नमूनों की जांच के बाद किया है। उनकी ओर से की गई जांच में बताया गया है कि इस बोतल बंद पानी में 93 फीसदी नमूनों में प्लास्टिक के अवशेष मिले।
कई बड़े ब्रांड की बोतल से लिया सैंपल शामिल
भारत समेत दूसरे देशों से लिए गए इन नमूनों में कई बड़े ब्रांड के नमूने शामिल थे। जिन ब्रांड के नमूनों में 93% प्लास्टिक की पहचान हुई, उसमें एक्वा, एक्वाफिना, दासानी, एवियन, नेस्ले प्योर लाइफ और सैन पेलेग्रिनो जैसे प्रमुख ब्रांड शामिल थे। इनमें एक्वा और एक्वाफिना इंडिया में काफी ज्यादा बिकते हैं और लगभग हर दुकान पर मिलते हैं।
भारत सहित 9 देशों से लिए थे सैंपल
मेसन ने इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए भारत के अलावा 9 अन्य देशों से भी पानी के नमूने लिए थे। इन 9 देशों में भारत का पड़ोसी देश चीन के अलावा अमेरिका, ब्राज़ील, इंडोनेशिया, केन्या, लेबनान, मेक्सिको और थाईलैंड जैसे देश भी शामिल हैं।
कैसे अवशेष मिले पानी
शेरी मेसन ने बताया कि प्लास्टिक की बोतल में बंद पानी में पॉलीप्रोपाइलीन, नायलॉन और पॉलीइथाईलीन टेरेपथालेट जैसे अवशेष शामिल होते हैं। रिसर्चर ने बताया कि इन सभी का इस्तेमाल बोतल का ढक्कन बनाने में होता है। ये अवशेष बोतल में पानी भरते समय पानी में शामिल हो जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि इस अध्ययन में हमें जो 65% कण मिले हैं वे वास्तव में टुकड़े के रूप में हैं न कि फाइबर के रूप में। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक बोतल में इन प्लास्टिक के कणों की संख्या जीरो से लेकर 10,000 से अधिक तक हो सकती है।
बॉडी पर होता है ऐसा असर
साधारण पानी में कैल्शियम, मैग्नीशियम और आयरन जैसे मिनरल्स मौजूद होते हैं। जो हमारी हड्डियों, पेट और दिमाग के लिए जरूरी होते हैं इनकी वहज से ही पानी पीने से हमारी भूख शांत होती है।
नल के पानी को बताया ज्यादा सुरक्षित
शोधकर्ता की इस रिसर्च को अमेरिका की एक गैर-सरकारी संस्था ऑर्ब मीडिया ने जारी किया है। इससे पहले इसी संस्था ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें इसने बताया था कि नल के पानी में भी प्लास्टिक के अवशेष पाए जाते हैं। हालांकि शेरी मेसन के मुताबिक नल का पानी बोतल बंद पानी से ज्यादा सुरक्षित है। शोधकर्ता के मुताबिक नल का पानी बोतल के पानी से ज्यादा अच्छा और सुरक्षित है।
अवलोकन करें:--
नल के पानी को बताया ज्यादा सुरक्षित
शोधकर्ता की इस रिसर्च को अमेरिका की एक गैर-सरकारी संस्था ऑर्ब मीडिया ने जारी किया है। इससे पहले इसी संस्था ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें इसने बताया था कि नल के पानी में भी प्लास्टिक के अवशेष पाए जाते हैं। हालांकि शेरी मेसन के मुताबिक नल का पानी बोतल बंद पानी से ज्यादा सुरक्षित है। शोधकर्ता के मुताबिक नल का पानी बोतल के पानी से ज्यादा अच्छा और सुरक्षित है।
अवलोकन करें:--
बॉटल के पानी में ये मिनरल्स नहीं पाए जाते इसको लगातार पीने से हमारी बॉडी में इन मिनरल्स की कमी होने लगती है।
बॉटल में रखा पानी जब धूप के कॉन्टैक्ट में आता है तो इसमें बॉटल का प्लास्टिक घुलने लगता है। जो बॉडी के हानिकारक होता है और कैंसर और किडनी की बीमारियों की वजह बनता है। बॉटल के पानी में क्लोरेट और क्लोराइट जैसे हानिकारक कैमिकल्स भी मौजूद होते हैं। जो साधारण पानी में बिलकुल नहीं होते।
क्या करें
अगर आप RO का यूज करते हैं तो उसका TDS 200-350 के बीच में रखवाएं।
पानी फिल्टर होने के बाद उसे तांबा, स्टील या मीटी के बर्तन में निकाल कर रख लें। उसके बाद ही इसका यूज करें।
बोतल में मिलने वाला पानी कम से कम पिएं।
आप डिस्पोजल में पीते हैं चाय या पानी
एक समय था जब मिट्टी के बर्तनों को सबसे ज्यादा अहमियत दी जाती थी। मटकाने में दूध पीने का स्वाद कुछ और ही था, जिससे आज की युवा पीढ़ी पूर्णरूप से महरूम है। क्योकि आज हर जगह डिस्पोजल का यूज किया जाता है। हर जगह आज डिस्पोजल ही डिस्पोजल का इस्तेमाल हो रहा है।
अगर आप डिस्पोजल का इस्तेमाल कर रहे हैं तो आप जहर अपने हाथ में लिए घूम रहे हो। जी हां- ये बिल्कुल सही है कि डिस्पोजल एक जहर की तरह है।
डिस्पोजल प्लास्टिक से बनता है। आप यह भी जानते है की प्लास्टिक का कभी अंत नहीं होता है। ऐसे में जब रद्दी प्लास्टिक का विनिर्माण किया जाता है तो उन्हें प्लास्टिक में भी प्रयोग किया जाता है। ऐसे में हम तो सिर्फ डिस्पोजल को देखते है पर वो बना कैसे है शायद हम उसपर गौर भी नहीं करते है।
डिस्पोजल प्लास्टिक से बनता है। आप यह भी जानते है की प्लास्टिक का कभी अंत नहीं होता है। ऐसे में जब रद्दी प्लास्टिक का विनिर्माण किया जाता है तो उन्हें प्लास्टिक में भी प्रयोग किया जाता है। ऐसे में हम तो सिर्फ डिस्पोजल को देखते है पर वो बना कैसे है शायद हम उसपर गौर भी नहीं करते है।
आपको यकीन नहीं होगा पर यह सच है क्योंकि अगर हम किसी प्लास्टिक के ग्लास में कोई गर्म चीज डालते है तो उसके किनारों पर एक चमकीली चीज नजर आती है। यह मोम की परत होती है। जिससे ग्लास पर चमक लाने के उपयोग में लिया जाता है। यदि यह चमक हम अपने सेवन करते है तो हमारी मौत भी हो सकती है या फिर कई प्रकार का इन्फेक्शन हो सकता है।
जब डिस्पोजल गर्म होता है यानि इसके अंदर अगर कोई गर्म चीज डाली जाती है तो इसका प्लास्टिक भी उसमें घुल जाता है। यदि ऐसे में हम ऐसे डिस्पोजल में कोई गर्म चीज का सेवन करते है तो हमारे शरीर में प्लास्टिक चली जाती है। निश्चित तौर पर बाद में हम इन्फेक्शन के शिकार हो जाते है।
यदि आपको यकीन नहीं होता है तो आप किसी भी डिस्पोजल में कोई गर्म चीज डालकर उसे ठंडा करके पियें। आपको उसके स्वाद में कुछ अलग ही स्वाद आएगा। यानि आपको पता चल जाएगा की कैसे डिस्पोजल के गिलास में प्लास्टिक हमारे पेट में चली जाती है।
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