आर.बी.एल.निगम, फिल्म समीक्षक
महज 24 करोड़ रुपए की लागत से बनी लव रंजन निर्देशित फिल्म "सोनू के टीटू की स्वीटी" अब तक कुल 70 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई कर चुकी है। ट्रेड एनालिस्ट गिरीश जौहर ने हाल ही में अपने एक बयान में कहा कि इस फिल्म ने कम से कम यह तो साबित कर दिया है कि यदि अच्छा कंटेंट पेश किया जाए तो दर्शक उसे देखते हैं। जाहिर है यह पहली बार नहीं है कि जब किसी कम बजट वाली फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिजनेस किया। इससे पहले भी कई हल्के बजट वाली फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कमाल बिजनेस किया। आज हम आपको बताते हैं ऐसी ही कुछ फिल्मों बारे में। हम ज्यादातर पुरानी फिल्मों के उदाहरण ले रहे हैं जब निर्देशकों और प्रोड्यूसर्स के पास वीएफएक्स जैसी बाकी हाईटेक तकनीकों के बजाए कंटेंट और म्यूजिक ही मुख्य हथियार हुआ करते थे।
छोटे बजट की जितनी फिल्में 70 के दशक तक बनी उतनी किसी भी दशक में नहीं बनी। और जब बात छोटे बजट की चले तो अभिनेता-निर्माता आई.एस. जौहर को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।जौहर महमूद इन गोवा, जौहर महमूद इन हॉंग कांग, नसबन्दी आदि फिल्मों ने बॉक्सऑफिस पर धमाल मचाया था।
इसके बाद जोड़ी आयी, बी.आर. इशारा और आई.एम. कुन्नू की जिन्होंने ने ढाई-तीन लाख में कई फिल्मों, चेतना, कामना आदि का निर्माण किया। लेकिन सफलता केवल चेतना को ही मिली। इसी फिल्म से अनिल धवन, रेहाना सुल्तान, और शत्रुघन सिन्हा का पदापर्ण हुआ। इस फिल्म के गीत आज भी संगीतप्रेमियों को लुभाते रहते हैं।
निर्माता राम दयाल की प्रभात, बी.के. आदर्श की गीतरहित, सेक्स शिक्षा पर आधारित भारत की फिल्म गुप्त ज्ञान। गुप्त ज्ञान के प्रदर्शन ने वैश्यवृत्ति तक को प्रभावित कर दिया था। वैश्यावृत्ति बाज़ारों में सन्नाटा छा गया था। प्रारम्भ में इस फिल्म को बैन कर दिया गया था, लेकिन तत्कालीन जनसंघ अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी और अन्य प्रमुख नेताओं के प्रयासों उपरान्त ही सेंसर बोर्ड ने फिल्म को पारित किया। महिला कॉलेजों में इस फिल्म के स्पेशल शो आयोजित किये जाने के अलावा दिल्ली के शीला सिनेमा पर लगभग दो सप्ताह दोपहर का शो केवल महिलाओं के लिए सुरक्षित था।
ढाई लाख रूपए में,1975 में निर्मित जय संतोषी माँ आज भी चर्चित पौराणिक कथाओं पर आधारित फिल्म है। फिल्म इतनी सस्ती थी कि कोई वितरक हाथ रखने को तैयार नहीं था। आखिर में फिल्म कमीशन पर दी गयी। परिणाम यह हुआ कि जो लाभ वितरक को मिलना था, जिन सिनेमाघरों पर यह फिल्म चल रही होती थी, बाहर फूलवालों की दुकानें लग जाती थीं। फिल्म शुरू होने से अंत तक स्क्रीन पर फूलों और पैसों की बारिश होती रहती थी। हर शो में हर सिनेमा स्टाफ के हिस्से 10/11 रूपए आते थे, लोग जूते चप्पल सिनेमा में हॉल के बाहर उतारते थे। ठीक यही स्थिति राम माहेश्वरी निर्मित पंजाबी फिल्म नानक नाम जहाज है का था। बल्कि इस में तो कोई भी दर्शक सीट पर बैठने की बजाए जमीन पर बैठते थे। जो आजके दर्शकों के लिए शायद एक सपना ही हो।
फिर पदापर्ण हुआ अभिनेता-निर्माता जोगिन्दर उर्फ़ 'रंगा खुश' का, इन्होने भी छोटे बजट की फिल्मों बिन्दिया और बन्दूक, दो चट्टानें, रंगा खुश आदि का निर्माण किया। दो चट्टानें और मनोज कुमार द्वारा निर्मित रोटी, कपडा और मकान एक ही विषय पर आधारित थी, अंतर केवल इतना था, एक छोटे बजट की थी और दूसरी बड़े बजट की। लेकिन दो चट्टानें भी दर्शकों पर अपना प्रभाव दिखाने में सफल रही। क्योकि इस फिल्म में खाद्य जमाखोरों के भण्डारों का पर्दाफाश किया था।
झनक-झनक पायल बाजे (1955)- वी.सांतारमन के निर्देशन में बनी वसंत देसाई के संगीत से सजी यह फिल्म 1955 की सबसे ज्यादा ग्रॉस कलेक्शन करने वाली फिल्म थी। फिल्म में कोरियोग्राफर संध्या और गोपी कृष्ण को लीड रोल में साइन किया गया था फिल्म ने न सिर्फ नेशनल अवॉर्ड जीता बल्कि चार फिल्मफेयर अवॉर्ड भी जीते।
एक दूजे के लिए (1981)- प्रसाद प्रोडक्शन्स एक बड़ा बैनर था लेकिन उस वक्त यह खराब दौर से गुजर रहा था। इस नॉर्थ इंडियन लव स्टोरी में दो नए चेहरे थे। कमल हासन और रति अग्निहोत्री। कई फ्लॉप फिल्में बना चुके के.बालाचंदर ने इस फिल्म का निर्देशन किया था। यह पहली बार था जब किसी दक्षिण भारतीय गायक (एस.पी. बालसुब्रह्मणम) ने हीरो के लिए पांचों गाने गाए थे।
मैंने प्यार किया (1989)- 1980 के बाद से राजश्री प्रोडक्शन्स 12 फ्लॉप फिल्में दे चुका था और इसके बाद निर्देशक सूरज आर. बड़जातिया ने सलमान खान और भाग्यश्री को लीड रोल में कास्ट करके बनाई फिल्म मैंने प्यार किया। फिल्म में एक युवा हीरो था, एक टीवी की एक्ट्रेस थी, एक नया निर्देशक था और था उन दिनों का एक छोटा म्यूजिक कंपोजर रामलक्ष्मण। कुल मिलाकर यह एक छोटे बजट की फिल्म थी। लेकिन जैसी कि किसी ने कल्पना नहीं की थी। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाल कर गई।
राज (2002)- विक्रम भट्ट हॉरर फिल्में बनाने के मामले में अक्सर एक कामयाब खिलाड़ी साबित हुए हैं। साल 2002 में विक्रम ने महज एक फिल्म पुरानी एक्ट्रेस बिपाशा बसु और फ्लॉप एक्टर डिनो मोर्या को कास्ट करके बनाई एक हॉरर फिल्म जिससे ट्रेड एनालिस्ट्स को भी कोई खास उम्मीद नहीं थी। नदीम-श्रवण के संगीत से सजी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त हिट साबित हुई।
मर्डर (2004)- मुकेश भट्ट के निर्देशन में बनी फिल्म मर्डर इमरान हाशमी और मल्लिका शेरावत को लीड रोल में कास्ट करके बनाई गई एक ऐसी फिल्म थी जिसके बारे में ज्यादातर लोग यही सोच रहे थे कि इतनी बोल्ड फिल्म को देखने कम ही लोग दोस्तों और परिवार के साथ सिनेमाघरों का रुख करेंगे। लेकिन न सिर्फ यह फिल्म हिट हुई बल्कि इसके सीक्वल भी बनाए गए।
मालामाल वीकली (2006)- कम लागत के साथ ज्यादा बिजनेस निकालने की जब भी बात आती है तो कई छोटे बड़े सितारों को एक साथ लेकर बनाई गई फिल्म मालामाल वीकली एक अच्छा उदाहरण है। गांव में रहकर छोटे बड़े धंधों से अपना गुजारा करने वाले कुछ लोगों की यह एक ऐसी कहानी है जिसने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई।
ए वेडनेस्डे (2012)- साल 2012 में आई यह फिल्म तो आपको याद ही होगी। इसमें नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर और जिम्मी शेरगिल अहम भूमिका में थे। फिल्म में कोई गाने नहीं थे लेकिन स्क्रिप्ट बहुत ही दमदार थी। यह फिल्म एक आम आदमी की कहानी थी जो उसके साथ हो रहे अन्याय से अपने तरीके से निपटने का फैसला करता है।
विकी डोनर (2012)- जॉन अब्राहम के प्रोडक्शन में बनी यह फिल्म स्पर्म डोनेशन के एक ऐसे मुद्दे पर बनी थी जिसे आम तौर पर लोग डिसकस तक नहीं करते हैं। लेकिन जिस तरह से फिल्म की कहानी को बुना गया था वह दर्शकों को बहुत पसंद आया और अन्नू कपूर ने एक डॉक्टर के किरदार में गजब कर दिया। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तगड़ा कलेक्शन किया।
महज 24 करोड़ रुपए की लागत से बनी लव रंजन निर्देशित फिल्म "सोनू के टीटू की स्वीटी" अब तक कुल 70 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई कर चुकी है। ट्रेड एनालिस्ट गिरीश जौहर ने हाल ही में अपने एक बयान में कहा कि इस फिल्म ने कम से कम यह तो साबित कर दिया है कि यदि अच्छा कंटेंट पेश किया जाए तो दर्शक उसे देखते हैं। जाहिर है यह पहली बार नहीं है कि जब किसी कम बजट वाली फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिजनेस किया। इससे पहले भी कई हल्के बजट वाली फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कमाल बिजनेस किया। आज हम आपको बताते हैं ऐसी ही कुछ फिल्मों बारे में। हम ज्यादातर पुरानी फिल्मों के उदाहरण ले रहे हैं जब निर्देशकों और प्रोड्यूसर्स के पास वीएफएक्स जैसी बाकी हाईटेक तकनीकों के बजाए कंटेंट और म्यूजिक ही मुख्य हथियार हुआ करते थे।
छोटे बजट की जितनी फिल्में 70 के दशक तक बनी उतनी किसी भी दशक में नहीं बनी। और जब बात छोटे बजट की चले तो अभिनेता-निर्माता आई.एस. जौहर को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।जौहर महमूद इन गोवा, जौहर महमूद इन हॉंग कांग, नसबन्दी आदि फिल्मों ने बॉक्सऑफिस पर धमाल मचाया था।
इसके बाद जोड़ी आयी, बी.आर. इशारा और आई.एम. कुन्नू की जिन्होंने ने ढाई-तीन लाख में कई फिल्मों, चेतना, कामना आदि का निर्माण किया। लेकिन सफलता केवल चेतना को ही मिली। इसी फिल्म से अनिल धवन, रेहाना सुल्तान, और शत्रुघन सिन्हा का पदापर्ण हुआ। इस फिल्म के गीत आज भी संगीतप्रेमियों को लुभाते रहते हैं।
निर्माता राम दयाल की प्रभात, बी.के. आदर्श की गीतरहित, सेक्स शिक्षा पर आधारित भारत की फिल्म गुप्त ज्ञान। गुप्त ज्ञान के प्रदर्शन ने वैश्यवृत्ति तक को प्रभावित कर दिया था। वैश्यावृत्ति बाज़ारों में सन्नाटा छा गया था। प्रारम्भ में इस फिल्म को बैन कर दिया गया था, लेकिन तत्कालीन जनसंघ अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी और अन्य प्रमुख नेताओं के प्रयासों उपरान्त ही सेंसर बोर्ड ने फिल्म को पारित किया। महिला कॉलेजों में इस फिल्म के स्पेशल शो आयोजित किये जाने के अलावा दिल्ली के शीला सिनेमा पर लगभग दो सप्ताह दोपहर का शो केवल महिलाओं के लिए सुरक्षित था।
ढाई लाख रूपए में,1975 में निर्मित जय संतोषी माँ आज भी चर्चित पौराणिक कथाओं पर आधारित फिल्म है। फिल्म इतनी सस्ती थी कि कोई वितरक हाथ रखने को तैयार नहीं था। आखिर में फिल्म कमीशन पर दी गयी। परिणाम यह हुआ कि जो लाभ वितरक को मिलना था, जिन सिनेमाघरों पर यह फिल्म चल रही होती थी, बाहर फूलवालों की दुकानें लग जाती थीं। फिल्म शुरू होने से अंत तक स्क्रीन पर फूलों और पैसों की बारिश होती रहती थी। हर शो में हर सिनेमा स्टाफ के हिस्से 10/11 रूपए आते थे, लोग जूते चप्पल सिनेमा में हॉल के बाहर उतारते थे। ठीक यही स्थिति राम माहेश्वरी निर्मित पंजाबी फिल्म नानक नाम जहाज है का था। बल्कि इस में तो कोई भी दर्शक सीट पर बैठने की बजाए जमीन पर बैठते थे। जो आजके दर्शकों के लिए शायद एक सपना ही हो।
फिर पदापर्ण हुआ अभिनेता-निर्माता जोगिन्दर उर्फ़ 'रंगा खुश' का, इन्होने भी छोटे बजट की फिल्मों बिन्दिया और बन्दूक, दो चट्टानें, रंगा खुश आदि का निर्माण किया। दो चट्टानें और मनोज कुमार द्वारा निर्मित रोटी, कपडा और मकान एक ही विषय पर आधारित थी, अंतर केवल इतना था, एक छोटे बजट की थी और दूसरी बड़े बजट की। लेकिन दो चट्टानें भी दर्शकों पर अपना प्रभाव दिखाने में सफल रही। क्योकि इस फिल्म में खाद्य जमाखोरों के भण्डारों का पर्दाफाश किया था।
झनक-झनक पायल बाजे (1955)- वी.सांतारमन के निर्देशन में बनी वसंत देसाई के संगीत से सजी यह फिल्म 1955 की सबसे ज्यादा ग्रॉस कलेक्शन करने वाली फिल्म थी। फिल्म में कोरियोग्राफर संध्या और गोपी कृष्ण को लीड रोल में साइन किया गया था फिल्म ने न सिर्फ नेशनल अवॉर्ड जीता बल्कि चार फिल्मफेयर अवॉर्ड भी जीते।
एक दूजे के लिए (1981)- प्रसाद प्रोडक्शन्स एक बड़ा बैनर था लेकिन उस वक्त यह खराब दौर से गुजर रहा था। इस नॉर्थ इंडियन लव स्टोरी में दो नए चेहरे थे। कमल हासन और रति अग्निहोत्री। कई फ्लॉप फिल्में बना चुके के.बालाचंदर ने इस फिल्म का निर्देशन किया था। यह पहली बार था जब किसी दक्षिण भारतीय गायक (एस.पी. बालसुब्रह्मणम) ने हीरो के लिए पांचों गाने गाए थे।
मैंने प्यार किया (1989)- 1980 के बाद से राजश्री प्रोडक्शन्स 12 फ्लॉप फिल्में दे चुका था और इसके बाद निर्देशक सूरज आर. बड़जातिया ने सलमान खान और भाग्यश्री को लीड रोल में कास्ट करके बनाई फिल्म मैंने प्यार किया। फिल्म में एक युवा हीरो था, एक टीवी की एक्ट्रेस थी, एक नया निर्देशक था और था उन दिनों का एक छोटा म्यूजिक कंपोजर रामलक्ष्मण। कुल मिलाकर यह एक छोटे बजट की फिल्म थी। लेकिन जैसी कि किसी ने कल्पना नहीं की थी। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाल कर गई।
राज (2002)- विक्रम भट्ट हॉरर फिल्में बनाने के मामले में अक्सर एक कामयाब खिलाड़ी साबित हुए हैं। साल 2002 में विक्रम ने महज एक फिल्म पुरानी एक्ट्रेस बिपाशा बसु और फ्लॉप एक्टर डिनो मोर्या को कास्ट करके बनाई एक हॉरर फिल्म जिससे ट्रेड एनालिस्ट्स को भी कोई खास उम्मीद नहीं थी। नदीम-श्रवण के संगीत से सजी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त हिट साबित हुई।
मर्डर (2004)- मुकेश भट्ट के निर्देशन में बनी फिल्म मर्डर इमरान हाशमी और मल्लिका शेरावत को लीड रोल में कास्ट करके बनाई गई एक ऐसी फिल्म थी जिसके बारे में ज्यादातर लोग यही सोच रहे थे कि इतनी बोल्ड फिल्म को देखने कम ही लोग दोस्तों और परिवार के साथ सिनेमाघरों का रुख करेंगे। लेकिन न सिर्फ यह फिल्म हिट हुई बल्कि इसके सीक्वल भी बनाए गए।
मालामाल वीकली (2006)- कम लागत के साथ ज्यादा बिजनेस निकालने की जब भी बात आती है तो कई छोटे बड़े सितारों को एक साथ लेकर बनाई गई फिल्म मालामाल वीकली एक अच्छा उदाहरण है। गांव में रहकर छोटे बड़े धंधों से अपना गुजारा करने वाले कुछ लोगों की यह एक ऐसी कहानी है जिसने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई।
ए वेडनेस्डे (2012)- साल 2012 में आई यह फिल्म तो आपको याद ही होगी। इसमें नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर और जिम्मी शेरगिल अहम भूमिका में थे। फिल्म में कोई गाने नहीं थे लेकिन स्क्रिप्ट बहुत ही दमदार थी। यह फिल्म एक आम आदमी की कहानी थी जो उसके साथ हो रहे अन्याय से अपने तरीके से निपटने का फैसला करता है।
विकी डोनर (2012)- जॉन अब्राहम के प्रोडक्शन में बनी यह फिल्म स्पर्म डोनेशन के एक ऐसे मुद्दे पर बनी थी जिसे आम तौर पर लोग डिसकस तक नहीं करते हैं। लेकिन जिस तरह से फिल्म की कहानी को बुना गया था वह दर्शकों को बहुत पसंद आया और अन्नू कपूर ने एक डॉक्टर के किरदार में गजब कर दिया। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तगड़ा कलेक्शन किया।
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