आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
गणतंत्र दिवस के मौके पर उत्तर प्रदेश के कासगंज में फैली हिंसा अब थम गई है। शहर अब धीरे-धीरे सामान्य स्थिति की तरफ लौट रहा है। इसी बीच उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने बड़ा बयान दिया है। राज्यपाल ने कहा कि जो कासगंज में हुआ है वो किसी को भी शोभा नहीं देता है। राम नाईक ने कड़ा बयान देते हुए कहा कि कासगंज की यह घटना उत्तर प्रदेश के लिए कलंक साबित हुई है। सरकार उसकी जांच कर रही है।
उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे दोबारा ऐसा कुछ ना हो। गौरतलब है कि कासगंज हिंसा पर राज्यपाल का यह बयान योगी सरकार के लिए एक कड़ा संदेश साबित हो सकता है।
आज कासगंज काण्ड नहीं होता।
मुज़फ्फरनगर दंगे में, यदि तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आर्मी द्वारा तलाशी अभियान में बाधा नहीं डाली होती, और मुलायम सिंह ने उस पुलिस अधिकारी जिसने कहा था "पहले मै मुसलमान हूँ और बाद में पुलिस अधिकारी" की पीठ थपथपाने की बजाए, उस पर सख्त कार्यवाही की होती तो आज कासगंज काण्ड नहीं होता।
अब वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चाहिए कि केवल कासगंज ही नहीं, इसके अगल-बगल के ज़िलों की भी तलाशी ली जाए और जहाँ से भी असला बरामद हो, उन्हें गिरफ्तार कर, असला दिलवाने वाले को भी गिरफ्तार करें। अन्यथा उत्तर प्रदेश के किसी भी ज़िले में कब मुज़फ्फरनगर या कासगंज दोहराने में दंगाइयों को संकोच नहीं होगा।
उधर, मृतक चंदन गुप्ता के परिजनों ने 20 लाख मुआवजे का चेक लेने से इनकार कर दिया है। मिली जानकारी के अनुसार, मृतक चंदन गुप्ता के परिजन हिंसा के बाद से धरने पर बैठे है। सोमवार(जनवरी 29) को कासगंज के डीएम आरपी सिंह समेत आला अधिकारी मृतक चंदन के परिजनों को मुआवजे का चेक देने पहुंचे थे। लेकिन उन्होंने चेक लेने से मना कर दिया कि "जब तक दोषी गिरफ्तार नहीं किए जाते, एक भी पैसा नहीं लेंगे।"
2014 मुज़फ्फरनगर दंगों की तरह 2019 की तैयारी है कासगंज
--पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट
उत्तर प्रदेश के कासगंज में गणतंत्र दिवस पर भड़की हिंसा के बाद राजनीति तेज हो गई है। पक्ष-विपक्ष के साथ कई संगठनों और पूर्व अफसरों ने भी आरोप-प्रत्यारोप लगाने शुरू किए हैं। गुजरात के बर्खास्त आईपीएस अफसर संजीव भट्ट ने उत्तर प्रदेश की कासगंज हिंसा के पीछे राजनीतिक साजिश की ओर इशारा किया है। उनके ट्वीट पर लोगों की तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आ रहीं हैं। संजीव भट्ट ने 28 जनवरी को 12.52 मिनट पर ट्वीट कर कहा है- ‘‘ कासगंज तो शुरुआत है, यह लो-ग्रेड सांप्रदायिक बुखार 2019 के लोकसभा चुनाव तक जारी रहेगा। ठीक उसी तरह जैसे 2014 के लिए मुजफ्फरनगर कांड हुआ था।
यूपी के छोटे जिले कासगंज में गणतंत्र दिवस के मौके पर उस वक्त हिंसा भडक गई थी, जब कुछ लोग तिरंगा यात्रा निकाल रहे थे। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक रास्ता मांगे जाने को लेकर हुई कहासुनी बड़े फसाद में बदल गई और उस दौरान चली गोली में चंदन गुप्ता नामक युवक की मौत हो गई, वहीं एक अन्य युवक राहुल उपाध्याय घायल हो गए थे। उसकी भी जनवरी 28 को मृत्यु हो गयी।
जो नेता टीवी चर्चाओं में हिन्दुओं पर भड़काऊ नारे लगाने के आरोप लगाकर, अपने वोट बैंक को बचाने का प्रयत्न कर रहे हैं, इस बात का जवाब दें "जब उनका वोट बैंक भी राष्ट्रीय ध्वज फहराने की तैयारी कर रहे थे, अगर रास्ता दे देते और उनके स्वर में स्वर मिलाकर "वन्दे मातरम और भारत माता की जय" बोल देते, यह दंगा ही नहीं होता। ऐसे में योगी सरकार को चाहिए कि जो भी नेता भड़काऊ नारे लगाने की बात बोल रहे है, का संज्ञान लेकर उनसे प्रमाण माँगे। और प्रमाण न देने की स्थिति में उन पर भी सख्त कार्यवाही की जाए।
अवलोकन करिये :--
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चंदन के अंतिम संस्कार के बाद भी कस्बे में हिंसा भड़क उठी और दुकानें आदि जलाने की घटना हुई। चार दिन से लगातार कासगंज में तनावपूर्ण शांति बनी हुई है।कानून-व्यवस्था की बहाली के लिए पुलिस ने अब तक दोनों पक्षों से 112 लोगों को गिरफ्तार किया है। इस घटना में सात लोगों के खिलाफ नामजद केस दर्ज है।
पुलिस अफसरों के मुताबिक वीडियो फुटेज के आधार पर हिंसा में शामिल लोगों को चिह्नित कर गिरफ्तार किया जा रहा है। मुख्य आरोपी शकील फरार बताया जाता है। उसके घर से देसी बम और पिस्टल बरामद होने की बात कही जा रही।
नवनियुक्त डीजीपी ओपी सिंह ने स्थिति को नियंत्रण में बताया है। कहा है कि कस्बे में तनावपूर्ण शांति है। हिंसा में शामिल लोगों को चिह्नित कर गिरफ्तार किया जा रहा। कासगंज में नेताओं के जाने पर भी रोक लगा दी गई है। ताकि कोई आम जनता की भावनाएं भड़काने का काम न करे।
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