आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
महात्मा गांधी के निजी सहायक ने करीब दो दशक पहले यह बयान देकर हलचल मचा थी कि ‘हे राम’ बापू के आखिरी शब्द नहीं थे। लेकिन जनवरी 30 को उन्होंने कहा कि उस समय उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया था।
वेंकट कल्याणम 1943 से 1948 तक बापू के निजी सचिव थे। उन्होंने पीटीआई से कहा, ‘मैंने कभी नहीं कहा कि गांधीजी ने ‘हे राम’नहीं बोला था। मैंने यह कहा था कि मैंने उन्हें ‘हे राम’कहते नहीं सुना...हो सकता है कि महात्मा गांधी ने वैसा कहा हो...मैं नहीं जानता।’ कल्याणम अब 96 साल के हो गए हैं और वह 30 जनवरी 1948 की उस घटना का गवाह होने का दावा करते हैं।
शोरगुल के कारण मैं कुछ नहीं सुन सका
उन्होंने कहा कि वह ‘घटना के बाद शोरगुल के कारण वह कुछ नहीं सुन सके। ’उन्होंने कहा, ‘महात्मा गांधी को जब गोली लगी, हर कोई चिल्ला रहा था। मैं उस शोर में कुछ नहीं सुन सका। हो सकता है कि उन्होंने हे राम बोला हो। मैं नहीं जानता।’ उन्होंने 2006 में कोल्लम में एक संवाददाता सम्मेलन में यह कह कर पूरे देश को चौंका दिया था कि जब नाथूराम गोडसे की गोलियां लगने से महात्मा गांधी गिर गए थे, तब उन्होंने ‘हे राम’नहीं बोला था। महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने उस समय कल्याणम के बयान को खारिज कर दिया था।
सच्चाई यह है कि जिस तुष्टिकरण के पुजारियों को गाँधी का मरना बर्दाश्त नहीं नहीं हो पा रहा, यही कारण है कि कल्याणम अपनी बात से मुकर गए, क्योकि उन्हें मालूम है की उनका कोई साथ देने वाला नहीं, कोई यकीन भी नहीं करने वाला क्योकि तुष्टिकरण के और पाठ पढ़ाने वाले को इस दुनियाँ से विदा कर दिया गया था।
इस सन्दर्भ में निम्न लेख का अवलोकन करें। और गाँधी के अंधभक्तों से पूछिए कि स्वतन्त्र भारत में इतने बड़े नरसंहार की क्या जाँच हुई और 1984 सिख नरसंहार पर तो आरोपियों की सूची बनायीं जा सकती है, लेकिन चितपावन ब्राह्मणों के नरसंहार पर चुप्पी क्यों? इसलिए कि नाथूराम गोडसे चितपावन ब्राह्मण था?
उन्होंने कहा कि वह ‘घटना के बाद शोरगुल के कारण वह कुछ नहीं सुन सके। ’उन्होंने कहा, ‘महात्मा गांधी को जब गोली लगी, हर कोई चिल्ला रहा था। मैं उस शोर में कुछ नहीं सुन सका। हो सकता है कि उन्होंने हे राम बोला हो। मैं नहीं जानता।’ उन्होंने 2006 में कोल्लम में एक संवाददाता सम्मेलन में यह कह कर पूरे देश को चौंका दिया था कि जब नाथूराम गोडसे की गोलियां लगने से महात्मा गांधी गिर गए थे, तब उन्होंने ‘हे राम’नहीं बोला था। महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने उस समय कल्याणम के बयान को खारिज कर दिया था।
सच्चाई यह है कि जिस तुष्टिकरण के पुजारियों को गाँधी का मरना बर्दाश्त नहीं नहीं हो पा रहा, यही कारण है कि कल्याणम अपनी बात से मुकर गए, क्योकि उन्हें मालूम है की उनका कोई साथ देने वाला नहीं, कोई यकीन भी नहीं करने वाला क्योकि तुष्टिकरण के और पाठ पढ़ाने वाले को इस दुनियाँ से विदा कर दिया गया था।
इस सन्दर्भ में निम्न लेख का अवलोकन करें। और गाँधी के अंधभक्तों से पूछिए कि स्वतन्त्र भारत में इतने बड़े नरसंहार की क्या जाँच हुई और 1984 सिख नरसंहार पर तो आरोपियों की सूची बनायीं जा सकती है, लेकिन चितपावन ब्राह्मणों के नरसंहार पर चुप्पी क्यों? इसलिए कि नाथूराम गोडसे चितपावन ब्राह्मण था?
महात्मा गाँधी को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को ब्रिटिश सरकार को सुपुर्द करने के अनुबंध करने की इजाजत किसने दी थी? क्या यह अनुबन्ध देशहित में था? है किसी गाँधी भक्त के पास इसका जवाब?
इसमें दो राय नहीं कि गोली लगने पर 'हे राम' महात्मा गाँधी के मुँह से नहीं निकला था। समाधि पर 'हे राम' लिखे जाने पर नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे ने आपत्ति दर्ज की थी, जिसे महात्मा गाँधी के अंधभक्तों ने नज़रअंदाज़ कर, सच्चाई को उजागर नहीं होने दिया। जो आज भी हो रहा है। सरकारें आएँगी, चली जाएँगी, परन्तु गाँधी को मारे जाने की सच्चाई कोई अन्धभक्त ज़ाहिर नहीं होने देगा। क्योकि जिस तुष्टिकरण का बीज महात्मा गाँधी ने बोया था, आज खूब फलफूल रहा है और यह हर पार्टी और हर नेता को भाता भी है। आज़ादी के सैनानियों को तो विदेशी यानि ब्रिटिश सरकार ने फाँसी पर लटकाया था। लेकिन नाथूराम गोडसे ने भविष्य में भारत को खण्डित होने से बचाने की खातिर महात्मा गाँधी का वध कर फाँसी के फंदे को चूमना ही देश की आज़ादी के हित में उचित समझा।
नाथूराम गोडसे दूरदर्शी था, गाँधी केवल मुस्लिम हितैषी
अब मेरे पिताश्री एम.बी.एल.निगम की आँखों देखी
एम.बी.एल.निगम |
वैसे इस विषय पर सेवानिर्वित उपरान्त एक हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते 12 अंको की श्रृंखला "गोडसे ने गाँधी को मारा क्यों?" का लेखन किया था।
महात्मा गाँधी के अंधभक्त देश को बताने का साहस कर पाएँगे कि : एक, "30 मार्च को, लाहौर में कांग्रेस अधिवेशन से पूर्व, महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार से भगत सिंह के लिए क्या बोला था?" दो, जलियाँवाला बाग़ में नरसंहार करवाने वाले जनरल डायर को शहीद उद्धम सिंह ने ब्रिटेन जाकर गोली से मार जलियांवाला बाग़ का बदला लिया, "तब महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार से शहीद उद्धम सिंह के लिए क्या शब्द बोले थे?" तीन, जयपुर में पुलिस की गोली का शिकार हुए शहीद जतिन दास को श्रद्धांजली देने के लिए जब कहा गया "तब गाँधी(जो इन दिनों जयपुर में ही थे) ने क्या कहा था?" चार, "पाकिस्तान से जान बचाकर आए हिन्दुओं के लिए गाँधी ने क्या शब्द बोले थे?"
महाभारत का एक श्लोक अधूरा पढा जाता है क्यों ? शायद गांधी Ji की वजह से..
"अहिंसा परमो धर्मः"
जबकि पूर्ण श्लोक इस तरह से है:-
"अहिंसा परमो धर्मः,
धर्म हिंसा तदैव च l
धर्म हिंसा तदैव च l
अर्थात - अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है..
किन्तु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है.
किन्तु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है.
गांधीजी ने सिर्फ इस श्लोक को ही नहीं बल्कि उसके अलावा उन्होंने एक प्रसिद्ध भजन को भी बदल दिया...
"रघुपति राघव राजा राम"
इस प्रसिद्ध-भजन का नाम है.
."राम-धुन" .
जो कि बेहद लोकप्रिय भजन था.. गाँधी ने इसमें परिवर्तन करते हुए "अल्लाह" शब्द जोड़ दिया..
."राम-धुन" .
जो कि बेहद लोकप्रिय भजन था.. गाँधी ने इसमें परिवर्तन करते हुए "अल्लाह" शब्द जोड़ दिया..
गाँधीजी द्वारा किया गया परिवर्तन और असली भजन👇
गाँधीजी का भजन
रघुपति राघव राजाराम,
पतित पावन सीताराम
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,
सब को सन्मति दे भगवान...
पतित पावन सीताराम
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,
सब को सन्मति दे भगवान...
जबकि असली राम धुन भजन...
"रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम
सुंदर विग्रह मेघाश्याम
गंगा तुलसी शालीग्राम
भद्रगिरीश्वर सीताराम
भगत-जनप्रिय सीताराम
जानकीरमणा सीताराम
जयजय राघव सीताराम"
पतित पावन सीताराम
सुंदर विग्रह मेघाश्याम
गंगा तुलसी शालीग्राम
भद्रगिरीश्वर सीताराम
भगत-जनप्रिय सीताराम
जानकीरमणा सीताराम
जयजय राघव सीताराम"
बड़े-बड़े पंडित तथा वक्ता भी इस भजन को गलत गाते हैं, यहां तक कि मंदिरो में भी उन्हें रोके कौन?
'श्रीराम को सुमिरन' करने के इस भजन को जिन्होंने बनाया था उनका नाम था "पंडित लक्ष्मणाचार्य जी"
ये भजन "श्री नमः रामनायनम"
नामक हिन्दू-ग्रन्थ से लिया गया है।
नामक हिन्दू-ग्रन्थ से लिया गया है।
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