आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
गुजरात में कठिन परिस्थिति में चुनाव जीतने और हिमाचल प्रदेश में घोषित मुख्यमंत्री व प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के चुनाव हार जाने के बाद बीजेपी उप चुनाव में जाने का जोखिम संग संग नही उठाना चाहती। उसका कारण भी है। केन्द्र में अनुमान से अधिक सीटें आने से भाजपा नेता कुछ ज्यादा सत्ता के नशे में चूर हैं। यह कोई आरोप नहीं, कटु सत्य है। आज कमर्ठ कार्यकर्ता पार्टी से दूर हो रहा है, केवल चापलूस नेताओं के इर्दगिर्द घूम रहे हैं।
गुजरात में कठिन परिस्थिति में चुनाव जीतने और हिमाचल प्रदेश में घोषित मुख्यमंत्री व प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के चुनाव हार जाने के बाद बीजेपी उप चुनाव में जाने का जोखिम संग संग नही उठाना चाहती। उसका कारण भी है। केन्द्र में अनुमान से अधिक सीटें आने से भाजपा नेता कुछ ज्यादा सत्ता के नशे में चूर हैं। यह कोई आरोप नहीं, कटु सत्य है। आज कमर्ठ कार्यकर्ता पार्टी से दूर हो रहा है, केवल चापलूस नेताओं के इर्दगिर्द घूम रहे हैं।
नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमन्त्री बनने पूर्व स्पष्ट शब्दों में कहा था, "न खाऊंगा और न खाने दूंगा", उसके बाबजूद स्थानीय नेता भगवान
बीजेपी शीर्ष नेतृत्व के इस फैसले के बाद किसी भी केंद्रीय मंत्री या सांसद का गुजरात और हिमाचल प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की संभावना खत्म हो गई है। गुजरात के मुख्यमंत्री की दौड़ से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, पुरुषोत्तम रूपाला और मनसुख मांडविया बाहर हो गए है। दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री की दौड़ से केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा, सांसद अनुराग ठाकुर और चुनाव हार चुके पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल दौड़ से बाहर हो गए है। इसके साथ ही अब साफ हो गया है कि विजयी विधायक ही दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री बनेंगे।
फिर किसके सिर सजेगा ताज
हिमाचल प्रदेश में बीजेपी का मुख्यमंत्री कौन होगा ? बीजेपी के केंद्रीय पर्यवेक्षक निर्मला सीतारमण, नरेंद्र सिंह तोमर और बिहार सरकार में मंत्री व प्रदेश में पार्टी के प्रभारी मंगल पांडेय 21 दिसंबर को शिमला पहुंचकर पार्टी के नव निर्वाचित विधायकों से मुलाकात करेंगे। सुजानपुर से बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल की हार से हिमाचल प्रदेश में शीर्ष पद के लिए दौड़ शुरू हो गयी है। मुख्यमंत्री पद की दौड़ में आधा दर्जन में, पांचवीं बार विधायक बने जयराम ठाकुर सबसे आगे चल रहे हैं। पांचवीं बार विधायक बने जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे माना जा रहा है। इसके अलावा सातवीं बार चुनाव जीते मोहिंदर सिंह, पांच बार जीत चुके विधायक राजीव बिंदल, पूर्व प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सुरेश भारद्वाज और चौथी बार निर्वाचित कृष्ण कपूर सहित राज्य में बीजेपी के कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं के नाम पर भी विचार हो सकता है। दूसरी तरफ गुजरात में मौजूदा मुख्यमंत्री विजय रुपाणी और उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल की जोड़ी को ही फिलहाल बरकरार रखने की संभावना बढ़ गई है।
अवलोकन करिये:--
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इसके पहले पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने अपनी चाल चल दी है। पार्टी की ओर से पर्यवेक्षकों के दौरे से पहले नव निर्वाचित 44 में से 22 विधायकों ने धूमल का खुला समर्थन किया है। ऐसे में धूमल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए आवाज जोर पकड़ने लगी है और तीन बीजेपी विधायकों ने उनके लिए अपनी सीटें छोड़ने की पेशकश की है। जाहिर है कि विधानसभा चुनाव में हार का स्वाद चखने के बावजूद प्रेम कुमार धूमल पीछे हटने को तैयार नहीं है। राज्य की 68 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी के 44 सदस्य हैं। धूमल अभी भी समीरपुर में हैं और 20 दिसम्बर को पार्टी के कई नेता व विधायक उनसे मिलने गए थे।
गुजरात में 14 सीटों पर भाजपा केवल नोटा के कारण हारी, देखे तालिका हार का
सीट नोटा को वोट अन्तर
1.Chota 5870 1093
Udaipur
2.Dangs 2184 768
3.Dasada 3796 3728
4.Deodar 2988 972
5.Dhanera 3214 2518
6.Kaprada(S 3868 170
7.Mansa 3000 524
8.Modasa 3515 147
9.Morbi 3069 3069
10.Morva 4962 4366
Hadaf
11.Sojitra 3112 2388
12.Talaja 2918 1779
13.Wankner 3170 1361
14.Lunawada 3419 3200
गुस्सा तो था लेकिन जनता भाजपा को हटाना नही चाहती थी. सबक देना चाहती थी. कांग्रेस के प्रति कोई प्रेम नही था
मुश्किल में सीएम रुपानी, विभाग छिनने से भड़के डिप्टी सीएम नितिन पटेल, विधायकों ने भी दी धमकी!
गुजरात में बीजेपी की नयी सरकार के शपथ ग्रहण के महज तीन दिन बाद सीएम विजय रुपानी और डिप्टी सीएम नितिन पटेल के बीच तकरार की खबरें हैं। ये तकरार डिप्टी सीएम नितिन पटेल को मनपसंद विभाग नहीं मिलने के कारण पैदा हुआ है। इसके अलावा वडोदरा के विधायक राजेन्द्र त्रिवेदी भी पार्टी नेतृत्व से नाराज हैं इस वजह है वडोदरा से किसी भी विधायक का कैबिनेट में शामिल नहीं किया जाना। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक भड़के राजेन्द्र त्रिवेदी ने 10 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ने की धमकी दी है। कुछ ऐसी ही धमकी दक्षिण गुजरात के नेताओं ने पार्टी आलाकमान को दी है। बता दें कि 28 दिसंबर को हुए पोर्टफोलियो वितरण में डिप्टी सीएम से तीन अहम विभाग ले लिये गये हैं इनमें वित्त, शहरी विकास और पेट्रोलियम मंत्रालय शामिल है। मंत्रिमंडल बंटवारे से नितिन पटेल इतने नाराज हैं कि उन्होंने शुक्रवार (29 दिसंबर) को अपना पदभार भी नहीं संभाला। मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने सामान्य प्रशासन, गृह, योजना, बंदरगाह एवं खदान सहित कई अन्य विभाग अपने पास रखे हैं । वह शहरी विकास, पेट्रोलियम, जलवायु परिवर्तन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और सूचना एवं प्रसारण विभागों की भी जिम्मेदारी संभालेंगे । वहीं उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल को सड़क एवं निर्माण, स्वास्थ्य, मेडिकल शिक्षा, नर्मदा, कल्पसार एवं कैपिटल परियोजना जैसे विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गई है । वित्त विभाग की जिम्मेदारी सौरभ पटेल को दी गई है उन्हें ऊर्जा विभाग भी सौंपा गया है।
99 सीट लाकर गुजरात में जब बीजेपी सत्ता में आई तो एक बार चर्चा यह भी थी कि बीजेपी आलाकमान नितिन पटेल को सीएम बना सकती है। लेकिन ऐन मौके पर उन्हें फिर से डिप्टी सीएम बना दिया गया। माना जा रहा है कि नितिन पटेल इस बार समझौता करने के मूड में नहीं हैं। नितिन पटेल वित्त और शहरी विकास मंत्रालय को अपने पास रखने को लेकर अड़े हुए हैं। टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक उच्च पदस्थ सूत्र ने कहा कि नितिन पटेल ने गुरुवार को ही अपनी नाराजगी जाहिर कर दी है, उन्होंने कहा कि अगर आलाकमान उनकी मांग नहीं मानती है तो वह यह कहते हुए इस्तीफा दे देंगे कि उनके आत्म सम्मान को ठेस पहुंची है।
मुख्यमंत्री ने इस बार नंबर दो समझे जाने वाले वित्त मंत्रालय को नितिन पटेल के जूनियर सौरभ पटेल को वित्त मंत्रालय दे दिया है, जबकि दो अहम मंत्रालय शहरी विकास और ऊर्जा मंत्रालय सीएम ने खुद अपने पास रख लिये हैं। इस मुद्दे पर नितिन पटेल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, जबकि गुजरात बीजेपी अध्यक्ष के जीतू वघनानी ने कहा है कि कोई विवाद नहीं है और अगर कोई समस्या है तो उसे सुलझा लिया जाएगा।
वास्तव में पुनः रुपाणी को मुख्यमंत्री और नितिन पटेल को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने का निर्णय ही गलत था। गुजरात में जिस उपवन को तत्कालीन मुख्यमंत्री और देश के वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संवारा था, उसे हरा-भरा रखने में केवल अमित शाह ही सक्षम हैं। अन्यथा इन लोगों की लड़ाई में समय पूर्व ही भाजपा के हाथ से गुजरात निकल जाएगा।
प्रधानमंत्री बनने उपरान्त मोदी ने श्रीमति आनंदीबेन के हाथों गुजरात सौंप कर आए, लेकिन कुर्सी के भूखे आनंदी के नीचे से चादर खींचने से नहीं चुके। तब भी केन्द्रीय पदाधिकारियों की आंखे नहीं खुली कि इस तरह आगे आने वाले चुनाव में "बहुत कठिन है डगर पनघट की" होने वाली है। जो सही सिद्ध हुआ। यदि मोदी-अमित ने मेहनत न की होती, गुजरात निकल गया था हाथ से। इस सच्चाई को कोई झुडला नहीं सकता। यह फिर संकेत है, समझ सकते हो तो समझ ले भाजपा। और यदि मध्यावर्धि चुनाव हुए, वर्तमान चुनावों में कांग्रेस फिर 77 सीटें ले ली, लेकिन भाजपा इस कांग्रेस को थाली में सजा कर सत्ता दे देगी। राहुल जिसे अब तक एक "पप्पू" कहा जाता है, बेवकूफ नहीं है, जो गुजरात पर निगाह रखे हुए है। इस लगी आग को कभी भी हवा देकर सरकार को गिरवाने में देर नहीं करने वाला।
हिमाचल में भी कब ऊंट करवट ले ले कहा नहीं जा सकता। मुख्यमंत्री चयन के समय हुआ हंगामा किसी से छुपा नहीं।
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