स्वयं का मूत्र पीकर स्वस्थ |
अपने आपको फिट रखने के लिए लोग जिम में खूब पसीना बहाते हैं। घंटों वर्कआउट करते हैं। इसके साथ ही वह अपने खाने-पीने का भी खासा ध्यान रखते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे बताने जा रहे हैं जिसने खुद को फिट रखने के लिए कुछ अलग ही तरीका खोज निकाला है। ब्रिटेन के रहने वाले डेव मर्फी (Dave Murphy) पिछले छह सालों से खुद को फिट रखने के लिए कुछ ऐसा कर रहे हैं जिसके बारे में हम और आप कल्पना भी नहीं कर सकते। दरअसल, डेव मर्फी अपना यूरिन पी रहे हैं और ऐसा वो पिछले छह सालों से लगातार कर रहे हैं। मर्फी का कहना है कि इससे उनकी लाइफ स्टाइल काफी हेल्थी हो गई है। पहले वो कई चीजों से परेशान रहते थे। उन्हें अस्थमा के साथ-साथ और भी कई बीमारियों ने अपने शिकंजे में जकड़ रखा था। लेकिन जब से उन्होंने यूरिन पीना शुरू किया तब से उनकी सेहत में जबरदस्त सुधार आया है।
डेव मर्फी के इस कारनामे के बारे में जानकार ज्यादातर लोग हैरान हैं। मर्फी बताते हैं कि यूरिन पीने से उनका वजन 50 किलो कम हो गया है। साथ ही उनकी उम्र इतनी होने के बावजूद भी वो खुद को जवान महसूस करते हैं। वह कहते हैं कि यूरिन थैरेपी के बारे में उन्हें 2011 में पता चला। जिसके बाद उन्होंने इसे अपने लाइफ स्टाइल में शामिल करने का फैसला किया।
इससे मिलने वाले फायदे से वो हैरान रह गए। वह पिछले कई सालों से अस्थमा की बीमारी से पीड़ित थे लेकिन यूरिन के इस्तेमाल से उन्हें अब अस्थमा से मुक्ति मिल गई है। यूरिन पीने के साथ-साथ वो इससे नहाते भी हैं। साथ ही अपने चेहरे पर इसकी मसाज भी करते हैं।
मोरारजी देसाई भी पीते थे अपना मूत्र
समय सब से बड़ा बलवान होता। हम भारतीय स्वतन्त्र होने के बाद भी एक गुलाम की तरह व्यवहार करने से नहीं रह पाते। अक्सर अपने ऐतिहासिक लेखों में स्पष्ट रूप से लिखता रहता हूँ कि "हमारे नेता समाज ने अपनी कुर्सी की खातिर देश को इसके गौरवशाली इतिहास से अज्ञान बना दिया।" और इस सन्दर्भ में आयुर्वेद पद्धति भी एक है। आज(अक्टूबर 30) जनसत्ता ऑनलाइन पर ब्रिटेन के एक व्यक्ति द्वारा स्वयं का मूत्र सेवन के उपरोक्त समाचार को प्रकाशित किया है। एक समय था, जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई ने एक साक्षात्कार में स्वयं का मूत्र सेवन को स्वीकारते हुए यह कहा था कि "विदेशी हमारे मूत्र से डॉलर बनाते हैं।" उस समय शायद हो कोई समाचार पत्र जो "भारत के प्रधानमन्त्री अपना पेशाब पीते हैं" शीर्षक से इस समाचार को प्रकाशित करने से वंचित रह गया हो।
लेकिन बाजार में स्वयं-मूत्र चिकित्सा पद्धति पर पुस्तकें आ गयीं। पुरानी दिल्ली में बडशाह्बुला चौक पर स्थित देहाती पुस्तक भण्डार पर कई माह तक इस मूत्र पद्धति पर पुस्तक के प्राप्ति के लिए बोर्ड लगा रहा।
मोरारजी भाई की सबसे गलती यह थी, कि इस चिकित्सा पद्धति से इलाज के लिए सर्वप्रथम एक हॉस्पिटल की आधारशिला रखनी थी। विपक्ष ने भी इस मुद्दे को हाथों--हाथ लिया। शायद ही कोई आयुर्वेदाचार्य इस मुद्दे पर मोरारजी के पक्ष में खड़ा हुआ हो।
गौ-मूत्र से दवाइयाँ
फिर अभी कुछ समय पूर्व बाबा रामदेव ने जब गौ-मूत्र का दवाइयों में प्रयोग की बात की, अधिकाँश लोगों ने पतंजलि उत्पादों का सेवन करने के विरुद्ध बयानबाजी करनी शुरू कर दी। जबकि गाय के प्रस्ताव में स्पष्ट लिखा है कि "गाय से पेशाब से दवाइयाँ बनती हैं।" जो इस बात को स्पष्ट करता है कि भारतीय नेताओं ने गौरवशाली भारतीय इतिहास को ही धूमिल नहीं किया, बल्कि आयुर्वेद पद्धति को भी धूमिल कर दिया। जिस नेता को देखो उसे बस अपनी कुर्सी की चिन्ता है, न किसी को गौरवशाली भारतीय इतिहास की चिंता और न ही वेदों की। कहने को न जाने कितने हिन्दू सत्ता पक्ष में रहे हैं। लेकिन उन पर हावी रहा हिन्दू संस्कृति का विरोध। कितने हिन्दू नेता या आयुर्वेदाचार्य चाहे उनका सम्बन्ध किसी भी धर्म से हो, रामदेव की बात का समर्थन किया। और जिन आयुर्वेदाचार्यों ने खुलकर रामदेव का समर्थन नहीं किया, क्या आयुर्वेद में प्रभावहीन दवाओं का उत्पादन नहीं कर रहे? क्या उनके द्वारा निर्मित आयुर्वेदिक दवाएं सेवन करनी चाहिए?
यह रामदेव का ही साहस है, कि जिन चीजों के प्रयोग को जो नामी उत्पादक दाँतों के लिए नुकसानदायक बताते थे, आज वह भी धरातल पर आकर देवशक्ति आदि नामों से दन्त पेस्ट का विज्ञापन कर रहे हैं। अपने उत्पाद के गिरते ग्राफ को उठाने भारतीय पद्धति का मजाक बनाने वाले भी अपनाने लगे भारतीय संस्कृति। झुकने वाले बहुत हैं, झुकाने वाला चाहिए।
इससे मिलने वाले फायदे से वो हैरान रह गए। वह पिछले कई सालों से अस्थमा की बीमारी से पीड़ित थे लेकिन यूरिन के इस्तेमाल से उन्हें अब अस्थमा से मुक्ति मिल गई है। यूरिन पीने के साथ-साथ वो इससे नहाते भी हैं। साथ ही अपने चेहरे पर इसकी मसाज भी करते हैं।
मोरारजी देसाई |
समय सब से बड़ा बलवान होता। हम भारतीय स्वतन्त्र होने के बाद भी एक गुलाम की तरह व्यवहार करने से नहीं रह पाते। अक्सर अपने ऐतिहासिक लेखों में स्पष्ट रूप से लिखता रहता हूँ कि "हमारे नेता समाज ने अपनी कुर्सी की खातिर देश को इसके गौरवशाली इतिहास से अज्ञान बना दिया।" और इस सन्दर्भ में आयुर्वेद पद्धति भी एक है। आज(अक्टूबर 30) जनसत्ता ऑनलाइन पर ब्रिटेन के एक व्यक्ति द्वारा स्वयं का मूत्र सेवन के उपरोक्त समाचार को प्रकाशित किया है। एक समय था, जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई ने एक साक्षात्कार में स्वयं का मूत्र सेवन को स्वीकारते हुए यह कहा था कि "विदेशी हमारे मूत्र से डॉलर बनाते हैं।" उस समय शायद हो कोई समाचार पत्र जो "भारत के प्रधानमन्त्री अपना पेशाब पीते हैं" शीर्षक से इस समाचार को प्रकाशित करने से वंचित रह गया हो।
लेकिन बाजार में स्वयं-मूत्र चिकित्सा पद्धति पर पुस्तकें आ गयीं। पुरानी दिल्ली में बडशाह्बुला चौक पर स्थित देहाती पुस्तक भण्डार पर कई माह तक इस मूत्र पद्धति पर पुस्तक के प्राप्ति के लिए बोर्ड लगा रहा।
मोरारजी भाई की सबसे गलती यह थी, कि इस चिकित्सा पद्धति से इलाज के लिए सर्वप्रथम एक हॉस्पिटल की आधारशिला रखनी थी। विपक्ष ने भी इस मुद्दे को हाथों--हाथ लिया। शायद ही कोई आयुर्वेदाचार्य इस मुद्दे पर मोरारजी के पक्ष में खड़ा हुआ हो।
गौ-मूत्र से दवाइयाँ
फिर अभी कुछ समय पूर्व बाबा रामदेव ने जब गौ-मूत्र का दवाइयों में प्रयोग की बात की, अधिकाँश लोगों ने पतंजलि उत्पादों का सेवन करने के विरुद्ध बयानबाजी करनी शुरू कर दी। जबकि गाय के प्रस्ताव में स्पष्ट लिखा है कि "गाय से पेशाब से दवाइयाँ बनती हैं।" जो इस बात को स्पष्ट करता है कि भारतीय नेताओं ने गौरवशाली भारतीय इतिहास को ही धूमिल नहीं किया, बल्कि आयुर्वेद पद्धति को भी धूमिल कर दिया। जिस नेता को देखो उसे बस अपनी कुर्सी की चिन्ता है, न किसी को गौरवशाली भारतीय इतिहास की चिंता और न ही वेदों की। कहने को न जाने कितने हिन्दू सत्ता पक्ष में रहे हैं। लेकिन उन पर हावी रहा हिन्दू संस्कृति का विरोध। कितने हिन्दू नेता या आयुर्वेदाचार्य चाहे उनका सम्बन्ध किसी भी धर्म से हो, रामदेव की बात का समर्थन किया। और जिन आयुर्वेदाचार्यों ने खुलकर रामदेव का समर्थन नहीं किया, क्या आयुर्वेद में प्रभावहीन दवाओं का उत्पादन नहीं कर रहे? क्या उनके द्वारा निर्मित आयुर्वेदिक दवाएं सेवन करनी चाहिए?
यह रामदेव का ही साहस है, कि जिन चीजों के प्रयोग को जो नामी उत्पादक दाँतों के लिए नुकसानदायक बताते थे, आज वह भी धरातल पर आकर देवशक्ति आदि नामों से दन्त पेस्ट का विज्ञापन कर रहे हैं। अपने उत्पाद के गिरते ग्राफ को उठाने भारतीय पद्धति का मजाक बनाने वाले भी अपनाने लगे भारतीय संस्कृति। झुकने वाले बहुत हैं, झुकाने वाला चाहिए।
मशहूर लोग जिन्होंने किया इस यूरेन थेरेपी का इस्तेमाल
- भारत के पांचवें प्रधानमंत्री रहे मोरारजी देसाई इस थेरेपी के समर्थक थे और इसका इस्तेमाल भी करते थे। 1978 में दिये एक साक्षात्कार में देसाई ने 60 मिनट पर यूरीन थेरेपी पर बात की और बताया कि वे खुद भी काफी समय से इसका उपयोग करते थे। मोरारजी देसाई ने कहा था कि यूरीन थएरेपी उस लाखों लोगों के लिये उपयुक्त चिकित्सा समाधान है जो चिकित्सा उपचार का खर्च वहन नहीं कर सकते हैं।
- वहीं कैमरून के स्वास्थ्य मंत्री अरबियन ओलेंगुएना आवनो ने अपने स्वयं के मूत्र पीने के खिलाफ लोगों को चेतावनी दी थी, क्योंकि उस समय कुछ हलकों में माना जाता था कि यूरीन कई बीमारियों के लिये टॉनिक की तरह होता है। मूत्र के साथ जुड़े विषाक्तता के खतरों को देखते हुए उन्होंने लिखा भी था कि, स्वास्थ्य मंत्रालय मूत्र के सेवन के खिलाफ है।
- ब्रिटिश अभिनेत्री सारा माइल्स ने तीस साल तक खुद के मूत्र को पिया। वे मानती थीं कि यह यह एलर्जी के खिलाफ इम्यूनाइज़र का काम करता है और इसके अन्य स्वास्थ्य लाभ भी हैं।
- वहीं मैडोना ने टॉक शो होस्ट डेविड लेटरमैन से बात करते हुए यूरेन थेरेपी बारे में बताया (मज़ाकिया अंदाज़ में) कि वह शॉवर लेते समय अपने पैरों पर पेशाब करती हैं, शायद इससे उनकी एथलीट फुट समस्या का इलाज करने में मदद मिले।
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