बकरी को शेर कैसे बनाएँ ?
ये बात है दिल्ली की Amity University में बीए कर रही छात्रा 'अवंतिका चौहान' ( बदला हुआ नाम ) की जो कि राजस्थान के अलवर से यहाँ पढ़ाई करने आई थी । कट्टर कृष्ण भक्त और इस्कौन नाम की संस्था से जुड़ी थी । हर समय अपने ठाकुर जी ! अपने लड्डू गोपाल ! को साथ रखती थी । कालेज के होस्टल में भी साथ लेकर गई थी । उसके लिये धर्म मात्र "हरे कृष्णा हरे कृष्णा ! कृष्णा कृष्णा हरे हरे " जपने का नाम ही था । इतनी पक्की कृष्ण भक्त थी कि वो हर रविवार को दिल्ली के पंजाबी बाग में बने एक इस्कौन मंदिर में जाती थी । तो हुआ कुछ ऐसा कि उसके होस्टल में एक हैदराबाद की मुस्लिम छात्रा रहने आई जिसका नाम 'हफ्सा' था । वो एक कट्टर विचारों वाली मुस्लिम लड़की थी जो दिन में दो बार नमाज़ पढ़ती थी और ज़ाकिर नायक की सबसे बड़ी प्रशंसक ।
अवंतिका को आसान शिकार जानकर उसने उसे अपने जाल में फँसाने का सोचा । तो उसे दिन रात होस्टल के कमरे में इस्लाम की अच्छाईयाँ गिनाने लगी और ज़ाकिर की वीडियो भी दिखाने लगी । पहले तो अवंतिका को थोड़ा अटपटा सा लगा लेकिन बाद में लगातार हफ्सा के इस्लामी चर्चे उस पर प्रभाव छोड़ने लगे । उसे भी इस्लाम की तौहीद और एकता की बातें अच्छा लगने लगीं और ऊपर से ज़ाकिर नायक की एकतरफा बातें प्रभावित करने लगी । लगभग तीन महीने में ही वो ज़ाकिर नायक की इतनी प्रशंसक बन गई कि उसकी कृष्ण भक्ति ठंडे बस्ते में चली गई । रविवार को जो मंदिर जाती थी वो भी बंद हो गया । ऊपर से हफ्सा के तीखे चुभने वाले प्रश्नों से तंग आ चुकी थी । उन प्रश्नों का उत्तर वो अपने इस्कौन के स्वामी जी से प्राप्त करने को गई लेकिन उन्होंने भी "ओ३म् नमो भगवते वायुदेवाय" बोलकर इति श्री कर दी और कोई उत्तर नहीं दिया । हफ्सा दिन ब दिन उसके कृष्ण और उनकी लीलाओं पर प्रश्न करने लगी और कोई उत्तर न पाकर अवंतिका इस्लाम की ओर झुकती चली गई अवंतिका ने अपने कालेज के कुछ हिन्दूवादी मित्रो से भी समाधान माँगा लेकिन अज्ञानता के कारण वे लोग अवंतिका का कोई समाधान कर न पाए । एक दिन इसी प्रकार उसी कालेज में पढ़ने वाले आर्य भाई नवीन कुमार से उनका संपर्क हुआ और उनको अपनी शंकाएँ बताईं । तो नवीन जी ने उनको अच्छे से तर्कपूर्वक वैदिक सिद्धांतों के द्वारा उनका समाधान किया और इस्लाम की हर प्रकार से समीक्षा की साथ ही महेन्द्रपाल आर्य जी के कई वीडियो भी दिखाए । कई दिन तक ये संवाद चला और नवीन जी ने अमर स्वामी प्रकाशन वाली इस्लामी खंडन पुस्तकों के साथ साथ कई सैद्धांतिक पुस्तकें और सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने को दी । ये सब उत्तर पाकर तो अवंतिका के चेहरे पर जैसे चमक आ गई । तो उसने वही उत्तर हफ्सा को देने शुरू किए और इस्लाम की पोल खोलने वाले प्रश्नों की झड़ी लगा दी । हफ्सा बौखला गई और समझ नहीं पा रही थी कि ये अवंतिका में अचानक से इतने प्रश्न करने की क्षमता कहाँ से आ गई ? तो उसने जांचा तो पाया कि ये भी आर्या हो चुकी है । ये जानते ही हफ्सा पीछे हट गई और जो ज्ञान रोज इस्लाम पर देती थी वो बंद कर दिया । क्योंकि वो समझ चुकी थी कि एक बार फिर सत्यार्थ प्रकाश ने उनके हिन्दू लड़की के इस्लामीकरण के मंसूबों पर पानी फेर दिया ।
*अपने परिवार की सुरक्षा के लिए जल्दी से मंगाएं और शुरू से ही पढना शुरू करें, कई बार पढ़ें। और हाँ, किसी माँ बहन की कोई चोटी भी नहीं काट पायेगा।*
क्या है सत्यार्थ प्रकाश🚩
क्यों पढ़े सत्यार्थ प्रकाश* 🚩
ऐसा क्या है इस सत्यार्थ प्रकाश में कि
1 जिसे पड़ कर बड़े बड़े *मौलवी भी आर्य बन गए जैसे वर्तमान में महेन्द्रपाल आर्य* जो की बडोत में फारसी भाषा के विद्वान मौलवी थे आज जाकिर नायक भी इनसे डिबेट करने से कतराता है।
2. जिसे पढ़ कर *फरहाना ताज दुबई छोड़ के भारत आगयी* और मुस्लिमो में आर्य समाज वैदिक धर्म का प्रचार कर रही है
1 जिसे पड़ कर बड़े बड़े *मौलवी भी आर्य बन गए जैसे वर्तमान में महेन्द्रपाल आर्य* जो की बडोत में फारसी भाषा के विद्वान मौलवी थे आज जाकिर नायक भी इनसे डिबेट करने से कतराता है।
2. जिसे पढ़ कर *फरहाना ताज दुबई छोड़ के भारत आगयी* और मुस्लिमो में आर्य समाज वैदिक धर्म का प्रचार कर रही है
3 जिसे पढ़ कर *लाला लाजपत राय* ने वकालत छोड़ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में पूरा जीवन लगा दिया
4 जिसे पढ़ कर *पंडित लेखराम* ने अपने मरते हुए बच्चे को भी छोड़ कर , मुस्लिम होने जा रहें लोगो को बचाने निकल पडे और ट्रेन न रुकने पर उसमे से छलांग लगा दी और उन्हेँ मुस्लिम होने से बचा लिया
4 जिसे पड़ कर *पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी* जो उस समय जगदीश चन्द्र बसु के आलावा विज्ञानं के इकलौते प्रोफेसर थे को ऐसा पागल कर दिया की वे अपने शरीर पर आर्यसमाज के नियम के लिखे कपड़े को पहन कर नुक्क्डो पर सत्यार्थ प्रकाश बाटा करते थे
5 जिसे पढ़ कर *राम प्रसाद बिस्मिल* जो की एक जमाने में बुरे व्यसनों में फसे थे सच्चे देश भक्त बन गए और पिता जी के कहने पर की
आर्यसमाज छोड़ दे या मेरा घर छोड़ दे
तो तत्काल घर छोड़ कर चल दिए
पिता जी ने कहा ये कपड़े भी मेरे दिए हे तो उन्हें भी उतार कर बन्डी में ही चल दिए
आर्यसमाज छोड़ दे या मेरा घर छोड़ दे
तो तत्काल घर छोड़ कर चल दिए
पिता जी ने कहा ये कपड़े भी मेरे दिए हे तो उन्हें भी उतार कर बन्डी में ही चल दिए
6 जिसे पढ़ कर *व्यसनी मांसाहारी मुंशीराम बदल गए और सन्यासी श्रद्धानन्द बनकर* अंग्रेजो की गोलियों के आगे सीना तान के खड़े हो गए
और दिल्ली आगरा के लगभग सवा तीन लाख मुसलमानो को शुद्धि आंदोलन से फिर से आर्य हिन्दु बना कर कट्टर मुस्लिम की गोली खा कर शहीद हो गए
और दिल्ली आगरा के लगभग सवा तीन लाख मुसलमानो को शुद्धि आंदोलन से फिर से आर्य हिन्दु बना कर कट्टर मुस्लिम की गोली खा कर शहीद हो गए
7 जिसे पढ़ कर *वीर सावरकर* ने कहा कि जब तक ये पुस्तक भारतीयो के पास है तब तक कोई विधर्मी अपने मत की शेखी नही बघार सकता
8 जिसे पढ़ कर *भगतसिह के दादा अर्जुनसिंह कट्टर आर्यसमाजी* हो गए और अपने सब बेटो को देशभक्त बना गए और देश को भगत सिंह जेसा वीर दे गए
9 *योगी आदित्यनाथ कहते है* की जब भी किसी मुसलमान की सनातन धर्म में वापसी करानी होती है में उसे पढने के लिए सत्यार्थ प्रकाश देता हूँ ।।
11 जिसे पढ़ कर आज भी कुछ लोग रात रात भर जागकर हिन्दुओ को जगाने के लिए वैदिक सिद्धांत समझाने के लिए तत्पर रहते है
तो मित्रो सोचिये ऐसा क्या है इस ग्रन्थ में,
यदि जानना चाहते हो तो इसे एक बार पढ़ के देखो।
यदि जानना चाहते हो तो इसे एक बार पढ़ के देखो।
ये आपको कहीं भी आर्य समाज में मिल जायेगा अथवा प्ले स्टोर से इसे डाउनलोड कर सकते है ये ऑडियो में भी उपलब्ध है या एप के रूप में भी डाउनलोड कर सकते है।
*पौराणिक पंडित* --- सत्यार्थ प्रकाश कभी मत पढ़ना भाई ! नहीं तो पाप लगेगा, मुल्ले बन जाओगे,अवतारों से देवी देवताओं से विश्वास उठ जाएगा और नास्तिक बन जाओगे।
*पादरी*--- सत्यार्थ प्रकाश मत पढ़ना। दिमाग उलट जाएगा। पढ़ने की वस्तु नहीं वह। फिर यीशु परमेश्वर गलत लगने लगेगा।
*मौलवी* --- सत्यार्थ प्रकाश मत पढ़ना। सुना है जो पढ़ता है वह काफिर बन जाता है। कुरान में गलतियाँ नजर आने लगती हैं। आर्य समाजी लोग सबसे बड़े काफ़िर है हमारे अल्लाह के लिए मत पढ़ना। हम जो कहते है बस वही पढ़ो।
*वाममार्गी*- जिसमें वामपंथी, महावीर,बुद्ध, अम्बेडकरवादी, ओशोवादी,रामपपालिये आदि आते हैं का भी यही कहना है कि सत्यार्थप्रकाश मत पढो क्यों कि इसे पढ कर तुम वेदों को ईश्वरीरय मानने लग जाओगे और यज्ञादि कर्मकाण्डों में उलझ कर अपने जीवन का कीमती समय व कीमती घी को बर्बाद करने लगोगे ।
*वैदिक धर्मी आर्य-* भाई ! तन्त्र,पुराण,कुरान,
बाइबल,सत्यार्थप्रकाश, उपनिषद सब पढ कर देख लो जो बुद्धि के अनुकूल हो तर्क संगत लगे उसे मान लेना। कोई जबरदस्ती नहीं। हमें बुद्धि मिली है, सोचने, विचारने के लिए। आँख मूंद कर बात मानने के लिए नहीं। भाई ! वास्तिवकता तो यह है कि
सत्यार्थप्रकाश में एक ओर वेदों उपनिषदों, दर्शनों का सरल भाषा में सार है तो दूसरी ओर तन्त्र, पुरान, कुरान, बाईबल व जैन बौद्ध आदि अनार्ष ग्रन्थों की पोल खोली गई है जिस कारण ये सब लोग घबराते हैं, सत्यार्थप्रकाश को कचरा बताते हैं, उसे पढने को मना करते हैं और यज्ञ जैसी उपयोगी व वैज्ञानिक प्रक्रिया को तो ये लोग जानना ही नहीं चाहते ।
पुनर्जन्म, मजहब, पंथ, सम्प्रदाय व धर्म के आलोक में
मित्रो, सतीशचंद गुप्ता जी द्वारा उठाया गया पुनर्जन्म पर आक्षेप की मरणोत्तर जीवन : तथ्य और सत्य में वे स्वयं भी स्वीकार करते हैं की पुनर्जन्म होता है, मगर खेद की खुद अपनी ही बात को नकार भी देते हैं, पिछली पोस्ट में भी सिद्ध किया गया था की पुनर्जन्म होता है, ये कोई ख्याली पुलाव नहीं है, सभी मजहबो में पुनर्जन्म माना जाता है, क्योंकि पुनर्जन्म के आभाव में मनुष्य की किये कर्मो का फल कैसे भोग किया जा सकेगा ? इसका प्रामाणिक और संतोषजनक जवाब आज तक कोई व्यक्ति नहीं दे पाया है, देखिये हम पहले भी बता चुके हैं दुबारा बताते हैं :
दुनिया मैं मौजूद लगभग सभी मजहब, पंथ, मत, समुदाय, पुनर्जन्म को पूर्णरूपेण अथवा आंशिक रूप से मानते हैं,
हिन्दू मत, बुद्ध मत, सिख मत, जैन मत सभी मतों सम्प्रदायों में पुनर्जन्म को माना जाता है, मानने का तरीका और प्रक्रिया किंचित भेद है, पर माना जाता है।
लेकिन ईसाई और इस्लाम मत की ये मान्यता है, की मरणोपरांत आत्मा, कब्र में विश्राम करती है, और आखरी दिन आने पर अल्लाह के हुक्म से उठ खड़ी होगी। लेकिन यहाँ भी वो ये मानते हैं की आत्मा को पुनः एक नया शरीर मिलेगा, और वो अपने किये कर्मो के फल उसी शरीर में जन्नत व जहन्नम में भोगेगी। क्या ये पुनर्जन्म नहीं ? क्योंकि पुनर्जन्म का तो कांसेप्ट ही है कर्मो का फल भोग करने हेतु नया शरीर धारण करना, भले ही ये प्रक्रिया थोड़ी अलग हो, लेकिन है तो पुनर्जन्म ही।
लेकिन यहाँ भी एक आक्षेप खड़ा हो जाता है, क्योंकि ईसाई और मुस्लिम दोनों ही सम्प्रदाय का मानना है की ईसाई मसीह साहब जो बड़े पैगम्बर हुए हैं, वो इसी धरती पर आखरी दिन आने से पहले आएंगे, यानी वो पुनः इसी धरती पर प्रकट होंगे, तो मेरे भाइयो ये तो बताओ की जब ईसा मसीह साहब आएंगे तो वो पुनर्जन्म न होगा ? जब आप पुनर्जन्म को नहीं मानते, तो ईसा मसीह साहब कैसे पुनः वापस आएंगे ?
खैर ये तो ईसाई और मुस्लिम बंधुओ पर छोड़ते हैं, हम आपको दिखाते हैं, क़ुरान और बाइबिल के पुनर्जन्म पर क्या विचार हैं, देखिये :
13 यूहन्ना तक सारे भविष्यद्वक्ता और व्यवस्था भविष्यद्ववाणी करते रहे।
14 और चाहो तो मानो, एलिय्याह जो आनेवाला था, वह यही है।
(बाइबिल मत्ती ११:१३-१४)
यहाँ इस अध्याय में पैगम्बर ईसा यूहन्ना को एलिय्याह का पुनर्जन्म बता रहे हैं।
इसके बारे में और भी सटीकता से ईसा मसीह ने मत्ती के ही अध्याय १७ में और भी अधिक विस्तार से बताया है देखिये :
11 उस ने उत्तर दिया, कि एलिय्याह तो आएगा: और सब कुछ सुधारेगा।
12 परन्तु मैं तुम से कहता हूं, कि एलिय्याह आ चुका; और उन्होंने उसे नहीं पहचाना; परन्तु जैसा चाहा वैसा ही उसके साथ किया: इसी रीति से मनुष्य का पुत्र भी उन के हाथ से दुख उठाएगा।
13 तब चेलों ने समझा कि उस ने हम से यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के विषय में कहा है।
(बाइबिल मत्ती १७:११-१३)
यहाँ सुस्पष्ट हो गया की जो एलिय्याह का पुनर्जन्म होना था वो यूहन्ना के रूप में हुआ।
ऐसी ही अनेक जगहों पर बाइबिल में पुनर्जन्म के प्रमाण मिलते हैं :
5 देखो, यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन के आने से पहिले, मैं तुम्हारे पास एलिय्याह नबी को भेजूंगा।
(बाइबिल मलाकी ४:५)
यहाँ एलिय्याह को ही यहोवा ने भेजने का वादा किया जिसकी पुष्टि ऊपर की आयतो में ईसा मसीह खुद करते हैं, अतः ईसाई बंधुओ को पुनर्जन्म के विषय में कोई शंका नहीं रखनी चाहिए, ईसाई बंधुओ को अपनी बाइबिल का विश्लेषण करना चाहिए।
अब इस्लामिक नजरिये से दिखाते हैं :
इस्लाम में कुछ फ़िरक़े ऐसे भी हैं जो पुनर्जन्म पर विशवास रखते हैं, उनमे दो मुख्य हैं हालांकि ये फ़िरक़े जनसँख्या के हिसाब से बहुत कम हैं, पर फिर भी ये मुस्लिम होते हुए भी पुनर्जन्म पर आस्था रखते हैं,
शिया मुस्लिमो में अल्विया एक समुदाय है जिनकी मान्यता है की वो अपने बुरे कर्मो के आधार पर मनुष्यो में ईसाई व पशु योनि प्राप्त कर सकते हैं। (Wasserman J. The templars and the assassins: The militia of heaven: Inner Traditions International. 2001:133–7)
वहीँ मुस्लिमो में एक और समुदाय होता है गुलात, इनकी भी मान्यता है की पुनर्जन्म होते है, क्योंकि गुलात पंथ के संस्थापक का विशेष परिस्थिति में पुनर्जन्म हुआ था जिसे हुलुल कहते हैं, इसलिए इस मुस्लिम पंथ का पुनर्जन्म में विश्वास है (Wilson PL. Scandal: Essays in Islamic Heresy. Brooklyn, NY: Autonomedia; 1988)
अब हम कुछ क़ुरानी आयतो से समझाने की कोशिश करते हैं :
(हे लोगो !) तुम अल्लाह की बातो का कैसे इंकार कर सकते हो ? सच तो यह है की तुम मुर्दा थे, उसने तुम्हे जिन्दा किया। (फिर एक दिन ऐसा आएगा की) वह तुम्हे मौत देगा, फिर तुम्हे जीवित करेगा। इसके बाद तुम्हे उसी की और लौटाया जायेगा
(क़ुरान २:२९)
क्या यहाँ से मुस्लिम भाइयो को स्पष्ट पुनर्जन्म नहीं दिखाई देता ? यहाँ अल्लाह मियां स्पष्ट रूप से कहते हैं की तुम पहले मुर्दा थे, फिर जीवित किया, फिर मौत देगा, फिर जीवित करेगा। ये तो स्पष्ट पुनर्जन्म है।
इसके अतिरिक्त पिछले लेख में भी विज्ञानिक और वैज्ञानिको के निष्कर्ष आधार पर भी पुनर्जन्म सिद्ध होता है, तथा क़ुरान की अनेक आयतो का संदर्भ भी दिया गया है।
जहाँ तक प्रथम सृष्टि के ४ ऋषियों की बात है तो ऋषि ने सत्यार्थ प्रकाश में ही लिखा है की जीव अनादि हैं, जब जीव अनादि हैं तो उनके कर्म भी अनादि हुए, उनके जो भोग होंगे वो उन्हें कर्मफल रूप भोगने ही हैं, जब प्रथम सृष्टि, यहाँ प्रथम सृष्टि का अर्थ ये नहीं की ये सृष्टि ही प्रथम है, सृष्टि तो स्वरुप से अनादि है जैसे रात के बाद दिन, और दिन के बाद रात, तथा रात से पहले दिन, दिन से पहले रात रहती है, इसमें प्रथम क्या आया ? लेकिन प्रथम का अर्थ है की जब प्रथम मन्वन्तर यानी इस सृष्टि का प्रथम मन्वन्तर आया तब ४ ऋषियों के ह्रदय में वेद ज्ञान प्रकाशित हुआ। इसी प्रकार सभी जीवो के कर्म और उनके फलभोग होते हैं। ये सृष्टि तो स्वरुप से ही अनादि है, इस बात को अल्लाह मियां खुद कुरान में स्वीकार करते हैं, फिर आक्षेपकर्ता को तो हमें बताना चाहिए :
यदि पुनर्जन्म नहीं होता, तो जो मनुष्य अंधे, लंगड़े, बेहरे अनेको बीमारियो से ग्रस्त होते हैं, वो क्या अल्लाह की मर्जी है ?
यदि पुनर्जन्म नहीं होता तो जो बच्चे पैदा होते ही मृत्यु की गोद में सो जाते हैं, उनमे उन बच्चो का क्या दोष ? क्या ये एक माता पिता को दुःख अल्लाह की मर्जी से होता है ?
जो पुनर्जन्म नहीं होता तो जो गरीब और अमीर हैं वो किस कारण ? क्या अल्लाह भेदभाव करता है ?
जो पुनर्जन्म नहीं होता तो लाखो, करोडो, वर्षो से जो आत्माए कब्र में सो रही, अथवा जो आत्यमाये आज कब्र में सो रही उन्होंने जो कर्म किये उनके फल उन्हें करोडो वर्षो बाद, न्याय के दिन मिलेंगे, तो क्या ये लचर क़ानून व्यवस्था नहीं ? क्योंकि अंग्रेजी की एक कहावत है, जस्टिस डिले, मीन्स जस्टिस डिनाई, अर्थात न्याय को लम्बा लटकाना न्याय नही करना के सामान है।
एक बात और यदि पुनर्जन्म नहीं होता, तो जो जीव अभी सुख दुःख प्राप्त कर रहे वो किस कर्मो के आधार पर ? जबकि न्याय तो केवल न्याय के दिन होगा। क्या ये तर्कसम्मत है ?
हम तो चाहेंगे, आक्षेपकर्ता सच्चाई को जानने का प्रयास करे, महज थोड़ी झूठी प्रतिष्ठा पाने को सच्ची बातो पर भी आक्षेप करने विद्वानो का काम नहीं।
“ग्यारहवे अध्याय का जवाब पार्ट 2”
इस्लाम में बुरका प्रथा की शुरुआत और बुर्के से होने वाली हानियां
पिछली लेख में आपने जाना की भारतीय संस्कृति तथा वैदिक सभ्यता में कहीं भी पर्दा प्रथा नहीं पायी जाती, ये प्रथा विशुद्ध रूप से इस्लामी समाज की देन है, और हिन्दू जाति को अपनी बहन बेटियो की सुरक्षा हेतु पर्दा प्रथा का आरम्भ करना पड़ा, इसी विषय पर आज हम आपको समझाने की कोशिश करेंगे की आखिर इस्लाम में बुरका प्रथा की शुरुआत कैसे हुई और बुर्के से होने वाली हानियां तथा बुर्के का महिलाओ पर प्रभाव आदि।
आइये पहले देखते हैं बुरका प्रथा पर मुस्लिम समाज की मान्य मजहबी पुस्तक "क़ुरान" क्या कहती है :
और मोमिन महिलाओ से कह दे की वे भी अपनी आँखे नीची रखा करे और अपने गुप्त अंगो की रक्षा किया करे एवं अपने सौंदर्य को प्रकट न किया करे सिवाय उस के जो मज़बूरी और बेबसी से आप ही आप जाहिर (जैसे शरीर का लम्बा, छोटा, मोटा व दुबलापन होना) हो जाये और अपनी ओढ़नियो को अपनी छातियो पर से गुजर कर और उसे ढक कर पहना करे तथा वे केवल अपनी पतियों, अपने पिताओ या अपने पतियों के पिताओ या अपने पुत्रो या अपने पतियों के पुत्रो या अपने भाइयो या अपने भाइयो के पुत्रो (भतीजो) या अपनी बहनो के पुत्रो या अपने जैसी स्त्रियों या जिन के स्वामी उन के दाहिने हाथ हुए हैं (अर्थात लौंडिया) या ऐसे अधीन व्यक्तियों (अर्थात नौकर चाकर) पर जो अभी युवावस्था को नहीं पहुंचे या ऐसे बच्चो पर जिन्हे अभी स्त्रियों के विशेष सम्बन्धो का ज्ञान नहीं हुआ, अपना सौंदर्य प्रकट कर सकती हैं तथा इन के सिवा किसी पर भी जाहिर न करे और अपने पाँव (धरती पर जोर से) इसलिए न मारा करे की वह चीज़ जाहिर हो जाये जिसे वे अपने सौंदर्य में से छिपा रही है। और हे मोमिनो ! तुम सब के सब अल्लाह की और झुक जाओ ताकि तुम सफलता पा सको।
(क़ुरान २४:३२)
कुछ पॉइंट जो इन आयतो पर उठ खड़े होते हैं जरा गौर करिये :
1. क्या बिना बुरका पहने किसी महिला की सुंदरता इतनी होती है की पुरुष अपना नियंत्रण खो बैठता है ? यदि ये बात सही है तो फिर जो इसी आयत में बताया की अपने भाई, पिता आदि के आगे बिना बुरका भी बैठो, ये कैसे संभव है ?
2. महिलाये पुरुषो की तरफ आकर्षित नहीं होती, ये कटु सत्य है, और पूरी दुनिया की महिलाओ में एक बड़ा भाग उन महिलाओ का है जो कामुक नहीं होती। बेहद ही कम संख्या में ऐसी असभ्य महिलाये पायी जाती हैं जो अत्यधिक कामुक हो।
3. महिलाये, पुरुषो की तुलना में अधिक संयमी और स्व नियंत्रक होती हैं, ऐसे में भी बुरका उढ़ाने और सौंदर्य छिपाने का कोई औचित्य नहीं, बेहतर होता की पुरुषो को दिशा निर्देश जारी किये जाते, मगर खेद की पुरुषो के लिए कोई दिशा निर्देश क़ुरान में नहीं पाये जाते।
अब तक आप समझ गए होंगे की बुरखा प्रथा से महिलाओ की सुंदरता छुपने और छेड़छाड़ उत्पीड़न बंद होना संभव नहीं, क्योंकि बिना पुरुषो को सभ्यता सिखाये ये सब बंद नहीं हो सकता, क्योंकि महिलये वैसे ही संयमी होती है, कोई कम संख्या की कामुक महिलाये मात्र एक अपवाद है, यदि क़ुरान ये समझाना चाह रहा है की महिलाये कामुक और असंयमी होती है, तो ये क़ुरान के अल्लाह मियां और मुहम्मद साहब का दुनिया की सभी महिलाओ पर बेमाना इल्जाम है, लेकिन अल्लाह मिया और मुहम्मद साहब ऐसे तो न हुए होंगे, इसलिए सच्चाई जानना जरुरी है, आइये हम दिखाते हैं की ये आयते आखिर क़ुरआन के जरिये क्यों नाजिल हुई, देखिये :
मुहम्मद साहब की पत्नी आयशा ने बताया की पैगम्बर साहब की पत्निया अल मनासी के विशाल खुली जगह जो बकि अत मदीना के नजदीक थी, रात्रि में पेशाब करने हेतु जाती थी। उमर साहब ने पैगम्बर साहब को बोला अपनी पत्नियों को परदे में रखिये लेकिन अल्लाह के रसूल ने ऐसा न किया। एक रात ऐसा हुआ कि पैगम्बर साहब की एक पत्नी जिनका नाम सउदा बिन्त ज़मआ था जो एक लम्बी महिला थी इशा के समय बाहर (पेशाब करने) गयी। उमर साहब ने महिला को सम्बोधन करते हुए कहा कहा "मैंने तुम्हे पहचान लिया है, तुम सउदा हो", ऐसा उन्होंने कहा क्योंकि वो बेसब्री से इन्तेजार कर रहे थे अल हिजाब (मुस्लिम महिलाओ द्वारा परदे का अवलोकन) आयतो के नाजिल होने की। इसलिए अल्लाह ने अल हिजाब (आँखे छोड़ पूर्ण शरीर को चादर से ढकना) आयत नाजिल की।
(सही बुखारी, जिल्द १, किताब ४ हदीस १४८)
बिलकुल यही हदीस, सही बुखारी में जिल्द ८ किताब ७४ हदीस २५७ में भी द्रष्टव्य है, इसके अतिरिक्त सही मुस्लिम किताब २६ हदीस ५३९७ भी यही बताती है की महिलाओ को बुरखा पहनने वाली आयत, उमर साहब द्वारा पेशाब जाती महिलाओ को पहचानने से बचाने हेतु नाजिल की गयी।
अब जरा कुछ समझने की कोशिश करते हैं, देखिये :
1. उपरोक्त हदीसो से ज्ञात होता है कि उमर साहब बार बार पैगम्बर मुहम्मद साहब से महिलाओ को चादर (बुरखा) से ढकने वाली आयते अल्लाह से नाजिल करने को दोहरा रहे थे ताकि क़ुरान में महिलाओ के लिए चादर (बुरखा) से ढकना अनिवार्य हो जाए।
2. उपरोक्त हदीसो से साफ़ ज्ञात है की ये अल हिजाब की आयते अल्लाह द्वारा नाजिल नहीं की गयी, क्योंकि ये उमर साहब की मांग थी जिसे मुहम्मद साहब ने पूरा किया।
3. उमर साहब ने मुहम्मद साहब की एक पत्नी जो खुद को राहत देने (पेशाब) करने गयी थी, उनका पीछा किया, न केवल पीछा किया, बल्कि "सउदा" नाम से भी पुकारा जो किसी भी हालत में ठीक नहीं था, क्योंकि मुहम्मद साहब की पत्निया मुस्लिमो की माँ सामान है।
4. सउदा जो मुहम्मद साहब की पत्नी थी उन्होंने घर जाकर, उमर साहब द्वारा किये बेहूदे और शर्मिंदगी वाले काम की शिकायत मुहम्मद साहब से की थी (सही बुखारी जिल्द ६ किताब ६० हदीस ३१८) (सही मुस्लिम किताब २६ हदीस ५३९५)
5. इन सब कार्यो के बाद ही और जो उमर साहब चाहते थे, उसे पूरा करने हेतु हिजाब वाली आयते नाजिल की गयी।
इन सबको पढ़ने से निष्कर्ष निकलता है की उमर साहब की हिजाब आयतो की मांग से पहले तो मुहम्मद साहब खुद भी राजी नहीं थे, मगर उमर साहब के कामो के बाद अल्लाह तक राजी हो गया जो हिजाब की आयत उतारी ? क्या ये इंसाफ है ?
लेकिन एक और चौंकाने वाली बात का खुलासा हदीस में होता है, की हिजाब वाली आयते नाजिल होने बाद, मुहम्मद साहब की पत्निया बुर्के में आने जाने लगी, मगर उमर साहब को इससे भी चैन नहीं आया, वो फिर भी मुहम्मद साहब की पत्नी का पीछा करते रहे, देखिये (सही बुखारी जिल्द ६ किताब ६० हदीस ३१८)
जरा सोचिये क्या हिजाब या बुरखा यहाँ महिलाओ के काम आया ?
उपरोक्त क़ुरानी आयतो में बताया है की बुरका, महिलाओ को पुरुषो की अवांछित वासनामयी दृष्टि से बचाव करता है, आइये इस विषय पर भी इस हदीस का अवलोकन करे :
मुहम्मद साहब की पत्नी आयशा ने बताया की एक नपुंसक (हिजड़ा पुरुष) पैगम्बर साहब की पत्नियों के यहाँ आया जाया करता था और उनको (पैगंबर) को इस बात पर कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि वो नपुंसक (हिजड़ा) बिना किसी वासनामयी इच्छा के आता था। एक दिन जब वह नपुंसक, पैगम्बर साहब की कुछ पत्नियों के पास बैठकर महिलाओ की शारीरिक विशेषताओ के बारे में बता रहा रहा तभी मुहम्मद साहब आ गए और उन्होंने ये सब सुन कर कहा "मुझे नहीं पता था, ये इन बातो को भी जानता है, अतः अब इससे सेवा करवाना वर्जित है।" उन्होंने (आयशा) ने कहा : तब उन्होंने (पैगम्बर) साहब ने उस (नपुंसक) से भी पर्दा (बुरखा) करने का आदेश दिया।
(सही मुस्लिम किताब २६ हदीस ५४१६)
उपरोक्त हदीस से ज्ञात होता है की बुरखा की प्रथा, किसी भी हालत में अवांछित वासनामयी दृष्टि से बचाव हेतु भी नहीं है, क्योंकि एक नपुंसक स्त्रियों के प्रति कैसे वासनामयी हो सकता है ? यहाँ एक बात और ध्यान देने वाली है की बुरखे की शुरुआत मुस्लिम (आज्ञाकारी, ईमानवाला) पुरुष से ही मुस्लिम (आज्ञाकारी, ईमानवाली) महिला को छेड़ छाड़ से बचाने हेतु शुरू की गयी।
आइये अब कुछ आंकड़ो पर नजर डालते हैं, मुस्लिमो का ये दावा भी हवा हवाई है की बुरखे से महिलाये छेड़ छाड़ जैसे उत्पीड़न से बचती हैं क्योंकि गैर इस्लामिक समाज में महिलाये बिना बुरखा स्वतंत्रता से घूमती हैं जिनसे छेड़ छाड़ की घटनाएं इस्लामिक देश के समाज से काफी कम है, उदाहरण के लिए इजिप्ट देश में महिला और युवा लड़कियों को हर २०० मीटर पर ही ७ बार छेड़ छाड़ होने का रिकॉर्ड दर्ज है (Egypt’s NCW chief says women harassed 7 times every 200 meters - GhanaMed, September 6, 2012) (Manar Ammar - Sexual harassment awaits Egyptian girls outside schools - Bikya Masr, September 10, 2012) वहीँ दूसरी और बलात्कार की घटनाओ में सऊदी अरब जहाँ हिजाब को सख्ती से लागू किया गया है, दुनिया में highest rape scales in the world ("The High Rape-Scale in Saudi Arabia", WomanStats Project (blog), January 16, 2013 (archived).) में शुमार है। यहाँ एक बात आपको और सोचनी चाहिए, वे लोग जो कहते हैं की बुरखे से महिलाओ को छेड़ छाड़ से निजाद मिलती है इसलिए पहनना चाहिए तो जरा इजिप्ट के आंकड़े पर भी नजर डाल ले क्योंकि जो महिलाये छेड़ छाड़ का शिकार हुई वो अधिकांश तौर पर मुस्लिम थी और हिजाब पहने थी (Magdi Abdelhadi - Egypt's sexual harassment 'cancer' - BBC News, July 18, 2008)
अब स्वयं सोचिये क्या बुरखा किसी भी प्रकार से ऐसी विकृत मानसिक लोगो से निजात दिलवा सकता है ? जरुरी है समाज को ऐसे विकृत मानसिक लोगो से निजाद दिलाना, महिलाओ को बुर्के में कैद करना इस समस्या का समाधान नहीं है, क्योंकि महिलाओ को बुरका पहनने से सेहत का खतरा है, देखिये :
हम जानते हैं विटामिन डी मानव स्वास्थ्य के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व है जो वसा में घुलनशील विटामिन है, विटामिन डी किसी भी खाद्य पदार्थ में प्राकर्तिक तौर पर नहीं पाया जाता, यह केवल सूर्य की किरणों से त्वचा पर प्रतिक्रिया होने से विटामिन डी का संश्लेषण होता है जो शरीर के लिए महत्वपूर्ण है। विटामिन डी मजबूत हड्डियों के लिए अतयन्तावश्यक है क्योंकि यह आहार में मौजूद कैल्शियम को प्रयोग में लाता है जिससे हड्डिया मजबूत होती हैं, इसकी कमी से "रिकेट" नामक रोग होता है। इस बीमारी में बोन टिशू एक रोग जिसमे बोन टिशू ठीक तरह से मिनरलाइज नहीं हो पाते, जो आगे चलकर हड्डियों को कमजोर तथा हड्डी विकृति जैसी भयंकर स्थिति उत्पन्न कर देता है।
इस रोग के लक्षण अनेको मुस्लिम बहुल देशो में विटामिन डी की कमी के चलते महिलाओ में पाये गए, सऊदी अरब में किंग फहद यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में की गयी शोध में पाया गया की जो ५२ महिलाओं पर टेस्ट किया गया उनमे सभी महिलाओ में विटामिन डी का स्तर बहुत कम पाया गया जो अनेको गंभीर स्वास्थ्य समस्याए उत्पन्न कर सकता है, जबकि ये एक ऐसा देश है जहाँ सबसे ज्यादा धुप निकलती है पूरी दुनिया के मुकाबले (Elsammak, M.Y., et al., Vitamin D deficiency in Saudi Arabs. Hormone and Metabolic Research, 2010. 42(5): p. 364-368.)
जॉर्डन में किये गए अध्यन के मुताबिक वे महिलाये जो पूरी तरह से इस्लामी वेश भूषा (बुरखा) पहनती थी, 83.3% उनमे विटामिन डी की कमी पायी गयी, ये अध्ययन दोपहर के समय किया गया था। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात ये थी की मात्र 18.2% पुरुषो में ही विटामिन डी की कमी पायी गयी, यहाँ ध्यान रहे, पुरुष बुरखा नहीं पहनते (Elsammak, M.Y., et al., Vitamin D deficiency in Saudi Arabs. Hormone and Metabolic Research, 2010. 42(5): p. 364-368.)
एक बात और बताना चाहूंगा की जॉर्डन भी ऐसी ही जगह है जहाँ अरब देश की भांति सूरज की धुप ज्यादा रहती है। तब भी ऐसी स्थिति में केवल महिलाओ में ही विटामिन डी की कमी पाया जाना ये सिद्ध करता है की बुरका प्रथा महिलाओ के स्वास्थ्य हेतु भी खतरनाक है।
अब हम अंत में यही कहेंगे की बुरखा प्रथा न तो खुदाई आदेश है, न ही बुरखा छेड़ छाड़ से ही बचाव करता है, न ही ये महिलाओ की स्वयं की पसंद है, न ही ये महिलाओ के स्वास्थ्य हेतु ही कोई अच्छा कार्य है। अतः मेरी सभी बंधुओ से विनम्र प्रार्थना है, कृपया इन पाखंडो को छोड़ सत्य सनातन वैदिक धर्म की शरण में आओ, जहाँ महिला और पुरुषो दोनों को ही बराबर अधिकार हैं, कोई छुपने छुपाने की वस्तु नहीं, स्त्री जाति हमारा गौरव है।
आओ लौटो वेदो की और
शायद यही कारण है कि मुस्लिम देशों में सत्यार्थ प्रकाश प्रतिबंधित है और आज तक किसी भी भारतीय सरकार ने इस मुद्दे पर आवाज़ तक नहीं उठाई। जबकि भारत में किसी भी इस्लामिक पुस्तक पर प्रतिबन्ध नहीं।
बाइबल,सत्यार्थप्रकाश, उपनिषद सब पढ कर देख लो जो बुद्धि के अनुकूल हो तर्क संगत लगे उसे मान लेना। कोई जबरदस्ती नहीं। हमें बुद्धि मिली है, सोचने, विचारने के लिए। आँख मूंद कर बात मानने के लिए नहीं। भाई ! वास्तिवकता तो यह है कि
सत्यार्थप्रकाश में एक ओर वेदों उपनिषदों, दर्शनों का सरल भाषा में सार है तो दूसरी ओर तन्त्र, पुरान, कुरान, बाईबल व जैन बौद्ध आदि अनार्ष ग्रन्थों की पोल खोली गई है जिस कारण ये सब लोग घबराते हैं, सत्यार्थप्रकाश को कचरा बताते हैं, उसे पढने को मना करते हैं और यज्ञ जैसी उपयोगी व वैज्ञानिक प्रक्रिया को तो ये लोग जानना ही नहीं चाहते ।
पुनर्जन्म, मजहब, पंथ, सम्प्रदाय व धर्म के आलोक में
मित्रो, सतीशचंद गुप्ता जी द्वारा उठाया गया पुनर्जन्म पर आक्षेप की मरणोत्तर जीवन : तथ्य और सत्य में वे स्वयं भी स्वीकार करते हैं की पुनर्जन्म होता है, मगर खेद की खुद अपनी ही बात को नकार भी देते हैं, पिछली पोस्ट में भी सिद्ध किया गया था की पुनर्जन्म होता है, ये कोई ख्याली पुलाव नहीं है, सभी मजहबो में पुनर्जन्म माना जाता है, क्योंकि पुनर्जन्म के आभाव में मनुष्य की किये कर्मो का फल कैसे भोग किया जा सकेगा ? इसका प्रामाणिक और संतोषजनक जवाब आज तक कोई व्यक्ति नहीं दे पाया है, देखिये हम पहले भी बता चुके हैं दुबारा बताते हैं :
दुनिया मैं मौजूद लगभग सभी मजहब, पंथ, मत, समुदाय, पुनर्जन्म को पूर्णरूपेण अथवा आंशिक रूप से मानते हैं,
हिन्दू मत, बुद्ध मत, सिख मत, जैन मत सभी मतों सम्प्रदायों में पुनर्जन्म को माना जाता है, मानने का तरीका और प्रक्रिया किंचित भेद है, पर माना जाता है।
लेकिन ईसाई और इस्लाम मत की ये मान्यता है, की मरणोपरांत आत्मा, कब्र में विश्राम करती है, और आखरी दिन आने पर अल्लाह के हुक्म से उठ खड़ी होगी। लेकिन यहाँ भी वो ये मानते हैं की आत्मा को पुनः एक नया शरीर मिलेगा, और वो अपने किये कर्मो के फल उसी शरीर में जन्नत व जहन्नम में भोगेगी। क्या ये पुनर्जन्म नहीं ? क्योंकि पुनर्जन्म का तो कांसेप्ट ही है कर्मो का फल भोग करने हेतु नया शरीर धारण करना, भले ही ये प्रक्रिया थोड़ी अलग हो, लेकिन है तो पुनर्जन्म ही।
लेकिन यहाँ भी एक आक्षेप खड़ा हो जाता है, क्योंकि ईसाई और मुस्लिम दोनों ही सम्प्रदाय का मानना है की ईसाई मसीह साहब जो बड़े पैगम्बर हुए हैं, वो इसी धरती पर आखरी दिन आने से पहले आएंगे, यानी वो पुनः इसी धरती पर प्रकट होंगे, तो मेरे भाइयो ये तो बताओ की जब ईसा मसीह साहब आएंगे तो वो पुनर्जन्म न होगा ? जब आप पुनर्जन्म को नहीं मानते, तो ईसा मसीह साहब कैसे पुनः वापस आएंगे ?
खैर ये तो ईसाई और मुस्लिम बंधुओ पर छोड़ते हैं, हम आपको दिखाते हैं, क़ुरान और बाइबिल के पुनर्जन्म पर क्या विचार हैं, देखिये :
13 यूहन्ना तक सारे भविष्यद्वक्ता और व्यवस्था भविष्यद्ववाणी करते रहे।
14 और चाहो तो मानो, एलिय्याह जो आनेवाला था, वह यही है।
(बाइबिल मत्ती ११:१३-१४)
यहाँ इस अध्याय में पैगम्बर ईसा यूहन्ना को एलिय्याह का पुनर्जन्म बता रहे हैं।
इसके बारे में और भी सटीकता से ईसा मसीह ने मत्ती के ही अध्याय १७ में और भी अधिक विस्तार से बताया है देखिये :
11 उस ने उत्तर दिया, कि एलिय्याह तो आएगा: और सब कुछ सुधारेगा।
12 परन्तु मैं तुम से कहता हूं, कि एलिय्याह आ चुका; और उन्होंने उसे नहीं पहचाना; परन्तु जैसा चाहा वैसा ही उसके साथ किया: इसी रीति से मनुष्य का पुत्र भी उन के हाथ से दुख उठाएगा।
13 तब चेलों ने समझा कि उस ने हम से यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के विषय में कहा है।
(बाइबिल मत्ती १७:११-१३)
यहाँ सुस्पष्ट हो गया की जो एलिय्याह का पुनर्जन्म होना था वो यूहन्ना के रूप में हुआ।
ऐसी ही अनेक जगहों पर बाइबिल में पुनर्जन्म के प्रमाण मिलते हैं :
5 देखो, यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन के आने से पहिले, मैं तुम्हारे पास एलिय्याह नबी को भेजूंगा।
(बाइबिल मलाकी ४:५)
यहाँ एलिय्याह को ही यहोवा ने भेजने का वादा किया जिसकी पुष्टि ऊपर की आयतो में ईसा मसीह खुद करते हैं, अतः ईसाई बंधुओ को पुनर्जन्म के विषय में कोई शंका नहीं रखनी चाहिए, ईसाई बंधुओ को अपनी बाइबिल का विश्लेषण करना चाहिए।
अब इस्लामिक नजरिये से दिखाते हैं :
इस्लाम में कुछ फ़िरक़े ऐसे भी हैं जो पुनर्जन्म पर विशवास रखते हैं, उनमे दो मुख्य हैं हालांकि ये फ़िरक़े जनसँख्या के हिसाब से बहुत कम हैं, पर फिर भी ये मुस्लिम होते हुए भी पुनर्जन्म पर आस्था रखते हैं,
शिया मुस्लिमो में अल्विया एक समुदाय है जिनकी मान्यता है की वो अपने बुरे कर्मो के आधार पर मनुष्यो में ईसाई व पशु योनि प्राप्त कर सकते हैं। (Wasserman J. The templars and the assassins: The militia of heaven: Inner Traditions International. 2001:133–7)
वहीँ मुस्लिमो में एक और समुदाय होता है गुलात, इनकी भी मान्यता है की पुनर्जन्म होते है, क्योंकि गुलात पंथ के संस्थापक का विशेष परिस्थिति में पुनर्जन्म हुआ था जिसे हुलुल कहते हैं, इसलिए इस मुस्लिम पंथ का पुनर्जन्म में विश्वास है (Wilson PL. Scandal: Essays in Islamic Heresy. Brooklyn, NY: Autonomedia; 1988)
अब हम कुछ क़ुरानी आयतो से समझाने की कोशिश करते हैं :
(हे लोगो !) तुम अल्लाह की बातो का कैसे इंकार कर सकते हो ? सच तो यह है की तुम मुर्दा थे, उसने तुम्हे जिन्दा किया। (फिर एक दिन ऐसा आएगा की) वह तुम्हे मौत देगा, फिर तुम्हे जीवित करेगा। इसके बाद तुम्हे उसी की और लौटाया जायेगा
(क़ुरान २:२९)
क्या यहाँ से मुस्लिम भाइयो को स्पष्ट पुनर्जन्म नहीं दिखाई देता ? यहाँ अल्लाह मियां स्पष्ट रूप से कहते हैं की तुम पहले मुर्दा थे, फिर जीवित किया, फिर मौत देगा, फिर जीवित करेगा। ये तो स्पष्ट पुनर्जन्म है।
इसके अतिरिक्त पिछले लेख में भी विज्ञानिक और वैज्ञानिको के निष्कर्ष आधार पर भी पुनर्जन्म सिद्ध होता है, तथा क़ुरान की अनेक आयतो का संदर्भ भी दिया गया है।
जहाँ तक प्रथम सृष्टि के ४ ऋषियों की बात है तो ऋषि ने सत्यार्थ प्रकाश में ही लिखा है की जीव अनादि हैं, जब जीव अनादि हैं तो उनके कर्म भी अनादि हुए, उनके जो भोग होंगे वो उन्हें कर्मफल रूप भोगने ही हैं, जब प्रथम सृष्टि, यहाँ प्रथम सृष्टि का अर्थ ये नहीं की ये सृष्टि ही प्रथम है, सृष्टि तो स्वरुप से अनादि है जैसे रात के बाद दिन, और दिन के बाद रात, तथा रात से पहले दिन, दिन से पहले रात रहती है, इसमें प्रथम क्या आया ? लेकिन प्रथम का अर्थ है की जब प्रथम मन्वन्तर यानी इस सृष्टि का प्रथम मन्वन्तर आया तब ४ ऋषियों के ह्रदय में वेद ज्ञान प्रकाशित हुआ। इसी प्रकार सभी जीवो के कर्म और उनके फलभोग होते हैं। ये सृष्टि तो स्वरुप से ही अनादि है, इस बात को अल्लाह मियां खुद कुरान में स्वीकार करते हैं, फिर आक्षेपकर्ता को तो हमें बताना चाहिए :
यदि पुनर्जन्म नहीं होता, तो जो मनुष्य अंधे, लंगड़े, बेहरे अनेको बीमारियो से ग्रस्त होते हैं, वो क्या अल्लाह की मर्जी है ?
यदि पुनर्जन्म नहीं होता तो जो बच्चे पैदा होते ही मृत्यु की गोद में सो जाते हैं, उनमे उन बच्चो का क्या दोष ? क्या ये एक माता पिता को दुःख अल्लाह की मर्जी से होता है ?
जो पुनर्जन्म नहीं होता तो जो गरीब और अमीर हैं वो किस कारण ? क्या अल्लाह भेदभाव करता है ?
जो पुनर्जन्म नहीं होता तो लाखो, करोडो, वर्षो से जो आत्माए कब्र में सो रही, अथवा जो आत्यमाये आज कब्र में सो रही उन्होंने जो कर्म किये उनके फल उन्हें करोडो वर्षो बाद, न्याय के दिन मिलेंगे, तो क्या ये लचर क़ानून व्यवस्था नहीं ? क्योंकि अंग्रेजी की एक कहावत है, जस्टिस डिले, मीन्स जस्टिस डिनाई, अर्थात न्याय को लम्बा लटकाना न्याय नही करना के सामान है।
एक बात और यदि पुनर्जन्म नहीं होता, तो जो जीव अभी सुख दुःख प्राप्त कर रहे वो किस कर्मो के आधार पर ? जबकि न्याय तो केवल न्याय के दिन होगा। क्या ये तर्कसम्मत है ?
हम तो चाहेंगे, आक्षेपकर्ता सच्चाई को जानने का प्रयास करे, महज थोड़ी झूठी प्रतिष्ठा पाने को सच्ची बातो पर भी आक्षेप करने विद्वानो का काम नहीं।
“ग्यारहवे अध्याय का जवाब पार्ट 1”
इस्लाम, नारी और महिला विकास का अवरोधक बुरका
सत्यार्थ प्रकाश समीक्षा की समीक्षा पुस्तक में सतीशचंद गुप्ता जी एक अध्याय प्रस्तुत करते हैं "क्या पर्दा नारी के हित में नहीं है ?" अपनी परदे वाली थियोरी को जायज़ (वैध) सिद्ध करने के चक्कर में लेखक इतने मशगूल हुए की बिना सिद्धांतो के ही कुतर्क और मिथ्या भाषण करते हुए, वर्तमान युग में भारतीय नारी का उद्धार करने वाले ऋषि दयानंद को इस्लाम और मुसलमानो का कटु आलोचक बना दिया। क्या ये समाज को सच्चाई दिखाने की जगह खुद ही सच्चाई पर पर्दा डालने वाली बात न हुई ? लेखक को चाहिए था की नारी की मनोस्थति को समझते हुए उसकी भावनाओ का सम्मान करते, मगर इस्लामी धारणा से ओतप्रोत हुए लेखक ने सच को नकारते हुए, विशुद्ध रूप से मजहबी कट्टरता का परिचय देकर सम्पूर्ण नारी जाती का अपमान कर दिया। क्या ये आक्षेपकर्ता का मानसिक दिवालियापन नहीं है ?
देखिये, पर्दा प्रथा न तो भारतीय संस्कार हैं, न ही ये शब्द ही भारतीय हिंदी भाषा से सम्बंधित है, "पर्दा" शब्द स्वयं विदेशी है जो फ़ारसी भाषा से है, संपादक "डॉ सैयद असद अली" प्रकाशक राजपाल इन संस, दिल्ली से प्रकाशित "व्यवहारिक उर्दू हिंदी शब्दकोष" पृष्ठ संख्या १८८ में शब्द "पसेपर्दा" आता है, जो "फ़ारसी पुल्लिंग" शब्द है। जिसका अर्थ है आड़ में। तो ये बात तो स्पष्ट है की पर्दा शब्द खुद में ही विदेशी शब्द है, तो इसका मूल भी भारतीय नहीं हो सकता, वैदिक संस्कृति में नारी को सम्मान का सूचक "देवी" कहा गया है, जो कभी भी छुपाने की वस्तु वाले नजरिये से नहीं देखी गयी। क्योंकि "औरत" शब्द अरबी है जो अरबी धातु औराह या आईन-वाव-रा (ayn-waw-ra) से जिसका मतलब है कानापन या एक आंख से देखना से बना है। सीधा सीधा अर्थ है, शायद अरब के लोग नारी को केवल भोग की वस्तु या शारीरिक सम्बन्ध बनाने वाली नजर से ही देखते थे, जिस कारण नारी को "औरत" शब्द यानी छुपाने वाली बना दिया ताकि ऐसी दुष्ट और काम वासनामयी नजरो से बचा सके।
जबकि भारतीय पद्धति में महिला को देवी का दर्जा प्राप्त है, जिससे ज्ञात होता है की भारतीय परंपरा और संस्कार नारियो के प्रति कितने उदारशील और संस्कारी थे। अब जो बात है पर्दा की तो किसी भी वैदिक साहित्य में महिला को छुपाने या पर्दा करने का विवरण प्राप्त नहीं होता देखिये :
निरुक्त में पर्दा प्रथा का विवरण कहीं मौजूद नहीं।
निरुक्तानुसार संपत्ति संबंधी मामले निपटाने के लिए न्यायालयों में स्त्रियों के आने जाने के लिए कहीं पर्दा व्यवस्था का विवरण नहीं, बल्कि अधिकार है।
रामायण और महाभारत काल में भी महिलाओ की पर्दा प्रथा नहीं पायी जाती, इसके उल्ट रावण की बहन जब श्री राम और लक्ष्मण के सामने आई तब भी कोई पर्दा न था, जब रावण माता सीता को ले जाकर, अशोक वाटिका में रखा वहा भी कोई पर्दा व्यवस्था नहीं थी। रामायण और महाभारत कालीन इतिहास में स्वयंवर होते थे, तब भी पर्दा व्यवस्था का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता।
इन सब तथ्यों से ज्ञात हो जाता है की आर्य सभ्यता में पर्दा व्यवस्था थी ही नहीं, क्योंकि आर्य जाति सदैव सदाचारी और संयमी रही है, अतः पुरुषो को अपनी इन्द्रियों को वश में करना ही सदाचार है, महिलाओ को ढक कर, छिपा कर पुरुष इन्द्रियों को वश में नहीं कर सकता, खैर ये ढकने और छिपाने जैसी प्रथा से पुरुष की इन्द्रिय संयम में रहती हैं और पुरुष सदाचार की शिक्षा प्राप्त करता है, इतना विज्ञानं अरबी सभ्यता में ही था।
अब हम आपको वेद से प्रमाण दिखाते हैं, देखिये :
सुमंगलीरियं वधुरिमा समेत पश्यत
सौभाग्यमस्यै दत्वायाथास्तं वि परेतन
सौभाग्यमस्यै दत्वायाथास्तं वि परेतन
ऋग्वेद (10.85.33)
हे विवाह में उपस्थित भद्र स्त्री पुरुषो ! यह वधु शुभा और सौभाग्यशालिनी है। आप लोग आइये, देखिये और इसे सौभाग्य का आशीर्वाद देकर अनन्तर अपने अपने घरो को जाइए।
यहाँ स्पष्ट है की पर्दा प्रथा का कोई औचित्य भारतीय संस्कृति में महिलाओ के लिए निर्धारित नहीं किया गया। बल्कि आश्वलायनगृह्यसूत्र (1/8/7) के अनुसार वधु को अपने घर ले आते समय वर को चाहिए कि वह प्रत्येक निवेश स्थान (रुकने के स्थान) पर दर्शकों को ऋग्वेद के उपर्युक्त मंत्र के साथ दिखाए। इससे स्पष्ट है कि वैदिक सभ्यता (भारतीय संस्कृति) में वधुओं द्वारा अवगुण्ठन (पर्दा) नहीं धारण किया जाता था, प्रत्युत वे सबके सामने निरावगुण्ठन आती थी। पर्दा प्रथा का उल्लेख सबसे पहलेे महाकाव्यों में हुआ है पर उस समय यह केवल कुछ राजपरिवारों तक ही सीमित था। (धर्मशास्त्र का इतिहास पृ.336)
अब मूल सवाल यह है की ये पर्दा प्रथा जैसी कुप्रथा हमारे भारतीय समाज में कैसे दाखिल हुई ? इसका जवाब हमें हुतात्मा पंडित लेखराम कृत "महर्षि दयानंद सरस्वती का जीवन चरित्र" नामक पुस्तक में बेहद तर्कपूर्ण आधार पर मिलता है, जहाँ महर्षि ने एक शंकालु की शंका समाधान करते हुए कहा :
"स्त्रियों को परदे में रखना आजन्म कारागार में डालना है। जब उनको विद्या होगी वह स्वयं अपनी विद्या के द्वारा बुद्धिमती होकर प्रत्येक प्रकार के दोषो से रहित और पवित्र रह सकती हैं। परदे में रहने से सतीत्व रक्षा नहीं कर सकती और बिना विद्या प्राप्ति के बुद्धिमती नहीं हो सकती हैं और परदे में रखने की प्रथा इस प्रकार प्रचलित हुई की जब इस देश के शासक मुग़ल हुए तो उन्होंने शासन की शक्ति से जिस किसी की बहु बेटी को अच्छी रूपवती देखा उसको अपने शासनाधिकार से बलात छीन लिया और दासी बना लिया। उस समय हिन्दू विवश थे, इस कारण उनमे सामना करने की सामर्थ्य न थी। इसलिए अपने सम्मान की रक्षा के लिए उन्होंने अपनी स्त्रियों और बहु बेटियो को घर से बाहर जाने का निषेध कर दिया। सो मूर्खो ने उसको पूर्वजो का आचार समझ लिया। देखो, मेमो अर्थात अंग्रेज की स्त्रियों को, वे भारत की स्त्रियों की अपेक्षा कितनी साहसी, विद्यावती और सदाचारिणी होती हैं।"
ऋषि ने जो समझाया उसे न समझकर पूर्वाग्रह से ग्रसित हो आक्षेपकर्ता ने कुछ और ही समझा, स्त्रियों को परदे में रखना आजन्म कारागार है, क्योंकि ये महिला की इच्छा विरुद्ध है, अनेको मुस्लिम महिलाये ही बुरखा का विरोध करती हैं, यहाँ तक की अनेको मुस्लिम महिलाओ ने तो नग्न तक होकर विरोध किया है, ऐसी अनेको खबरों से फ्रांस, ब्रिटेन आदि देशो के समाचार पत्र भरे पड़े हैं। हम नग्न्ता का समर्थन तो बिलकुल नहीं करते, विरोध सदैव ही शालीन और मर्यादित होना चाहिए, लेकिन शायद उन मुस्लिम महिलाओ को नग्न्ता की राह दिखाने वाला भी बुरखा ही था जिसमे उन्हें घुटन महसूस हो रही थी। खैर हम ऋषि की दूसरी बात समझते हैं, उन्होंने कहा महिला कभी भी परदे से अपनी सतीत्व रक्षा नहीं कर सकती, ये कटु सत्य है, क्योंकि भारत में ही अनेको मुस्लिम परिवारो में मुस्लिम बहु की इज्जत को तार तार करने में उसके ही अपने मुस्लिम ससुर का योगदान था। मुजफ्फरनगर उ० प्र० में इमराना का केस मात्र एक उदहारण है, मुस्लिम पति नूर इलाही की जो पत्नी इमराना थी, उसके ससुर अली मोहम्मद ने बलात्कार किया था, तब इस्लामी कानून अनुसार दारुल उलूम देवबंद ने एक फतवा निकाला जो दुनिया से मानवता शर्मसार करने वाला था, इस कानून में पीड़ित महिला जो ससुर की हैवानियत का शिकार हुई थी, उसे उस हैवान की पत्नी बना दिया गया, और जो उसका पति था, जिससे उस महिला को पांच बच्चे थे, उसे बेटा बना दिया, अंततः पीड़ित ने भारतीय संविधान का दरवाजा खटखटाया और पीड़िता को इंसाफ मिला। अब सवाल ये है, क्या बुरखा यहाँ स्त्री की सतीत्व रक्षा कर पाया ? क्या ये जरुरी नहीं था, की पुरुष अपनी इन्द्रियों को वश में करना सीखे। महिलाओ को शिक्षित करने से ही महिलाओ का शोषण रुकेगा, क्योंकि महिलाओ को जो अधिकार प्राप्त हैं, वो शरिया कानून नहीं देता, क्योंकि इस्लाम में महिलाओ का पढ़ना लिखना हराम है, महिलाओ का नौकरी करना हराम है, महिलाओ का पर पुरुषो (ऑफिस सहकर्मी) के साथ बैठना, काम करना, सब हराम है। खैर इस विषय पर हम अगले लेख में विचार करेंगे। आप अभी केवल ये सोचिये की यदि महिला शिक्षित होकर नौकरी करना चाहे तो क्या वो ऑफिस में बुरखा पहने हुए, बैठ सकती है ? क्या ये एक प्रकार का मानसिक अत्याचार नहीं है ? क्या पुरुष को भी बुरखे में रहने की आज्ञा है ? यदि नहीं, तो क्यों एक नारी पर अत्याचार किया जाता है, वो भी मजहब के नाम पर ? फिर भी कहते हैं की महिला और पुरुष को इस्लाम में समान अधिकार प्राप्त हैं ? क्या ये एक प्रकार का बेहूदा मजाक नहीं ?
यही बात यहाँ महर्षि ने बताई, की महिला को शिक्षित होना चाहिए, ताकि वो अपने अधिकार प्राप्त कर सके, मगर खेद की इस्लाम में महिलाओ का पढ़ना लिखना, उनको अधिकार देना इस्लामी शरिया में हराम है, पाकिस्तान की मलाला युसूफ ज़ई से ज्यादा इस बात को कोई नहीं समझ सकता।
उपरोक्त तथ्यों से सिद्ध है की भारतीय सभ्यता में तो पर्दा का कोई रोल नहीं, ये कुप्रथा विशुद्ध रूप से मुस्लिम शासको के कारण ही भारतीय परिवेश में दाखिल हुई। ऋषि ने जो तर्क दिया था, उसका ही समर्थन करते हुए "भारतरत्न पांडुरंग वामन काणे" ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री आफ धर्मशास्त्र (धर्मशास्त्र का इतिहास) में पृष्ठ ३३७ में लिखते हैं :
"उत्तरी भारत एवं पूर्वी भारत में पर्दा की प्रथा जो सर्वसाधारण में पाई जाती है, उसका आरंभ मुसलमानों के आगमन से हुआ।
इसके तीन कारण थे-
हिन्दू स्त्रियों को सुरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से।
विजेता शासकों की शैली का चाहे-अनचाहे तरीके से अनुसरण।
विपरीत परिस्थितियों के कारण स्त्रियों में बढ़ती अशिक्षा और मुस्लिम शासकों के राज में गिरता स्तर।
इतिहास को आप छुपा नहीं सकते, इस विषय पर अनेको लेखको ने स्वतंत्रता से लिखते हुए अपनी सहमति दी है, क्योंकि मुस्लिम शासक और आक्रांता, इस देश में आक्रमण करते और पुरुषो को मारकर, उनकी स्त्रियों को उठा ले जाते तथा अरब आदि देशो में गुलाम दासी के तौर पर दो दो दिनार में बेच देते थे, ये तो इतिहास था, मगर इतिहास फिर दुहरा गया, सीरिया में इस्लामी आतंकी संगठन ने यजीदी महिलाओ को निर्वस्त्र करके गली मोहल्ले में बोली लगाकर १०० डॉलर में बेचा, ये तो अभी हाल की ही खबर है, बिलकुल यही परिस्थिति मुग़ल काल में भी थी राजपुताना में मौजूद अनेको जौहर स्थल इसके साक्षात प्रमाण हैं। इतिहास साक्षी है, की मुस्लिमो की बादशाहत दौरान हिन्दू महिलाओ को अगवा कर बलात्कार किया जाता था, डॉ श्रीवास्तव अपनी पुस्तक अकबर द मुग़ल पृष्ठ ६३ में लिखते हैं "when people Deosa and other places on Akbar's route fled away on his approach" अब यहाँ शंका ये है यदि राजा भारमल की पुत्री जोधा का विवाह वधु पक्ष की मर्जी से हुआ था तो अकबर के आने पर जनता भाग क्यों गयी ? जाहिर है, वो विवाह था ही नहीं, ये स्पष्ट है की अकबर ने राजा भारमल की पुत्री की सुंदरता के प्रसिद्द किस्से सुने थे, इसीलिए उसे पाने को राजा भारमल पर आक्रमण किया, यही हाल सती रानी दुर्गावती की कहानी का भी है, हालांकि जौहर करने से दो महिलाये बच गयी थी एक दुर्गावती की बहन कमलावती और दूसरी राजा पुरंगद की बेटी थी जिन्हे अकबर के हरम में पंहुचा दिया गया था (जे एम शेलत, अकबर 1964)
अनेको इतिहासिक दस्तावेजो से ये सिद्ध है की उत्तर भारतीय हिन्दू परिवारो में पर्दा प्रथा मौजूद नहीं थी, ये कुप्रथा हिन्दू समाज में मुस्लिम आक्रंताओ से हिन्दू महिलाओ को बचाने के लिए अपनाया गया, नवाब वज़ीर लखनऊ का तत्कालीन नवाब सुन्दर हिन्दू महिलाओ को अगवा कर उनको प्रताड़ित किया करता था, और जबरन मुसलमान बनवाता था (इट इज कॉन्टिनुएड, अशोक पंत, पृष्ठ १३०)
औरंगजेब के समय तत्कालीन प्रधान मंत्री का नवासा मिर्ज़ा तवाख्खुर ने हिन्दुओ की दुकानो को नष्ट किया और हिन्दू महिलाओ को अगवा कर बलात्कार किया (India & South East Asia to 1800 सांडर्सन बेक)
औरंगजेब के समय तत्कालीन प्रधान मंत्री का नवासा मिर्ज़ा तवाख्खुर ने घनश्याम जो नवविाहित वधु को डोली में बैठा कर घर ला रहा था, उसे अपने घर के गेट के सामने ही लूट लिया, २ हिन्दू मार दिए गए और घनश्याम की पत्नी को मिर्ज़ा तवाख्खुर अपने घर ले गया (Ahkam-i-Alamgiri)
The Afghan ruler Ahmad Shah Abdali attacked India in 1757 AD and made his way to the holy Hindu city of Mathura, the Bethlehem of the Hindus and birthplace of Krishna.
The atrocities that followed are recorded in the contemporary chronicle called : ‘Tarikh-I-Alamgiri’ :
“Abdali’s soldiers would be paid 5 Rupees (a sizeable amount at the time) for every enemy head brought in. Every horseman had loaded up all his horses with the plundered property, and atop of it rode the girl-captives and the slaves. The severed heads were tied up in rugs like bundles of grain and placed on the heads of the captives…Then the heads were stuck upon lances and taken to the gate of the chief minister for payment.
“It was an extraordinary display! Daily did this manner of slaughter and plundering proceed. And at night the shrieks of the women captives who were being raped, deafened the ears of the people…All those heads that had been cut off were built into pillars, and the captive men upon whose heads those bloody bundles had been brought in, were made to grind corn, and then their heads too were cut off. These things went on all the way to the city of Agra, nor was any part of the country spared.”
कितने ही प्रमाण दिए जा सकते हैं, जो सिद्ध करते हैं, की हिन्दू महिलाओ पर मुस्लिम आक्रंताओ द्वारा कितना अत्याचार किया गया, की इससे हमारी सभ्यता और संस्कृति में अनेको परिवर्तन आ गए। जिनमे मुख्य रूप से :
पर्दा कुप्रथा का भारतीय महिलाओ द्वारा अपनाना मुख्य है।
बाल विवाह, ताकि हिन्दू महिलाओ को शोषण से बचा सके।
सती प्रथा, ये जौहर का परिणाम था जिसे स्वेच्छा से अपनाया जाने लगा ताकि मृत हिन्दू पति के बाद हिन्दू महिला की आबरू बच सके।
बाल विवाह, ताकि हिन्दू महिलाओ को शोषण से बचा सके।
सती प्रथा, ये जौहर का परिणाम था जिसे स्वेच्छा से अपनाया जाने लगा ताकि मृत हिन्दू पति के बाद हिन्दू महिला की आबरू बच सके।
इसके अतरिक्त सतीशचंद गुप्ता से पूछना चाहेंगे की, जो पर्दा प्रथा हालिया हिन्दू समाज में पायी जाती है, वह केवल घूंघट या सर पर पल्लू रख कर देखि जाती है, लेकिन जो पर्दा प्रथा का समर्थन आक्षेपकर्ता ने किया वो बुरखा है, वो किसी भी लिहाज से घूँघट का कार्य तो करता नहीं, फिर बुरखा की बराबरी घूँघट से करना मानसिक दिवालियापन ही है। क्योंकि हालिया समय में हिन्दू समाज में घूँघट या सर पर पल्लू रखना एक नजरिये से देखे तो आदर सूचक ही लगता है जो बड़े बुजुर्गो के सम्मान हेतु रखते हैं, लेकिन बुरखा घूँघट या पर्दा की बराबरी नहीं कर सकता, फिर क्यों बराबर जोड़ा गया ?
अब हम इस लेख में ज्यादा तो अब नहीं लिख सकते, क्योंकि बड़ा हो जाएगा, अतः अब हम अगले लेख में देखेंगे, कि :
बुरका प्रथा मुस्लिम समाज में कैसे आया ?
बुरखे की हानिया और आज का आतंकवाद
बुरखे से महिलाओ को होने वाली बीमारियां तथा बुरखे पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण
बुरखे के कारण मुस्लिम महिलाओ की स्थति
महिला विकास में अवरोधक बुरखा
और क्या बुरखा महिलाओ के प्रति छेड़ छाड़ और बलात्कार रोक पाता है ?
“ग्यारहवे अध्याय का जवाब पार्ट 2”
इस्लाम में बुरका प्रथा की शुरुआत और बुर्के से होने वाली हानियां
पिछली लेख में आपने जाना की भारतीय संस्कृति तथा वैदिक सभ्यता में कहीं भी पर्दा प्रथा नहीं पायी जाती, ये प्रथा विशुद्ध रूप से इस्लामी समाज की देन है, और हिन्दू जाति को अपनी बहन बेटियो की सुरक्षा हेतु पर्दा प्रथा का आरम्भ करना पड़ा, इसी विषय पर आज हम आपको समझाने की कोशिश करेंगे की आखिर इस्लाम में बुरका प्रथा की शुरुआत कैसे हुई और बुर्के से होने वाली हानियां तथा बुर्के का महिलाओ पर प्रभाव आदि।
आइये पहले देखते हैं बुरका प्रथा पर मुस्लिम समाज की मान्य मजहबी पुस्तक "क़ुरान" क्या कहती है :
और मोमिन महिलाओ से कह दे की वे भी अपनी आँखे नीची रखा करे और अपने गुप्त अंगो की रक्षा किया करे एवं अपने सौंदर्य को प्रकट न किया करे सिवाय उस के जो मज़बूरी और बेबसी से आप ही आप जाहिर (जैसे शरीर का लम्बा, छोटा, मोटा व दुबलापन होना) हो जाये और अपनी ओढ़नियो को अपनी छातियो पर से गुजर कर और उसे ढक कर पहना करे तथा वे केवल अपनी पतियों, अपने पिताओ या अपने पतियों के पिताओ या अपने पुत्रो या अपने पतियों के पुत्रो या अपने भाइयो या अपने भाइयो के पुत्रो (भतीजो) या अपनी बहनो के पुत्रो या अपने जैसी स्त्रियों या जिन के स्वामी उन के दाहिने हाथ हुए हैं (अर्थात लौंडिया) या ऐसे अधीन व्यक्तियों (अर्थात नौकर चाकर) पर जो अभी युवावस्था को नहीं पहुंचे या ऐसे बच्चो पर जिन्हे अभी स्त्रियों के विशेष सम्बन्धो का ज्ञान नहीं हुआ, अपना सौंदर्य प्रकट कर सकती हैं तथा इन के सिवा किसी पर भी जाहिर न करे और अपने पाँव (धरती पर जोर से) इसलिए न मारा करे की वह चीज़ जाहिर हो जाये जिसे वे अपने सौंदर्य में से छिपा रही है। और हे मोमिनो ! तुम सब के सब अल्लाह की और झुक जाओ ताकि तुम सफलता पा सको।
(क़ुरान २४:३२)
कुछ पॉइंट जो इन आयतो पर उठ खड़े होते हैं जरा गौर करिये :
1. क्या बिना बुरका पहने किसी महिला की सुंदरता इतनी होती है की पुरुष अपना नियंत्रण खो बैठता है ? यदि ये बात सही है तो फिर जो इसी आयत में बताया की अपने भाई, पिता आदि के आगे बिना बुरका भी बैठो, ये कैसे संभव है ?
2. महिलाये पुरुषो की तरफ आकर्षित नहीं होती, ये कटु सत्य है, और पूरी दुनिया की महिलाओ में एक बड़ा भाग उन महिलाओ का है जो कामुक नहीं होती। बेहद ही कम संख्या में ऐसी असभ्य महिलाये पायी जाती हैं जो अत्यधिक कामुक हो।
3. महिलाये, पुरुषो की तुलना में अधिक संयमी और स्व नियंत्रक होती हैं, ऐसे में भी बुरका उढ़ाने और सौंदर्य छिपाने का कोई औचित्य नहीं, बेहतर होता की पुरुषो को दिशा निर्देश जारी किये जाते, मगर खेद की पुरुषो के लिए कोई दिशा निर्देश क़ुरान में नहीं पाये जाते।
अब तक आप समझ गए होंगे की बुरखा प्रथा से महिलाओ की सुंदरता छुपने और छेड़छाड़ उत्पीड़न बंद होना संभव नहीं, क्योंकि बिना पुरुषो को सभ्यता सिखाये ये सब बंद नहीं हो सकता, क्योंकि महिलये वैसे ही संयमी होती है, कोई कम संख्या की कामुक महिलाये मात्र एक अपवाद है, यदि क़ुरान ये समझाना चाह रहा है की महिलाये कामुक और असंयमी होती है, तो ये क़ुरान के अल्लाह मियां और मुहम्मद साहब का दुनिया की सभी महिलाओ पर बेमाना इल्जाम है, लेकिन अल्लाह मिया और मुहम्मद साहब ऐसे तो न हुए होंगे, इसलिए सच्चाई जानना जरुरी है, आइये हम दिखाते हैं की ये आयते आखिर क़ुरआन के जरिये क्यों नाजिल हुई, देखिये :
मुहम्मद साहब की पत्नी आयशा ने बताया की पैगम्बर साहब की पत्निया अल मनासी के विशाल खुली जगह जो बकि अत मदीना के नजदीक थी, रात्रि में पेशाब करने हेतु जाती थी। उमर साहब ने पैगम्बर साहब को बोला अपनी पत्नियों को परदे में रखिये लेकिन अल्लाह के रसूल ने ऐसा न किया। एक रात ऐसा हुआ कि पैगम्बर साहब की एक पत्नी जिनका नाम सउदा बिन्त ज़मआ था जो एक लम्बी महिला थी इशा के समय बाहर (पेशाब करने) गयी। उमर साहब ने महिला को सम्बोधन करते हुए कहा कहा "मैंने तुम्हे पहचान लिया है, तुम सउदा हो", ऐसा उन्होंने कहा क्योंकि वो बेसब्री से इन्तेजार कर रहे थे अल हिजाब (मुस्लिम महिलाओ द्वारा परदे का अवलोकन) आयतो के नाजिल होने की। इसलिए अल्लाह ने अल हिजाब (आँखे छोड़ पूर्ण शरीर को चादर से ढकना) आयत नाजिल की।
(सही बुखारी, जिल्द १, किताब ४ हदीस १४८)
बिलकुल यही हदीस, सही बुखारी में जिल्द ८ किताब ७४ हदीस २५७ में भी द्रष्टव्य है, इसके अतिरिक्त सही मुस्लिम किताब २६ हदीस ५३९७ भी यही बताती है की महिलाओ को बुरखा पहनने वाली आयत, उमर साहब द्वारा पेशाब जाती महिलाओ को पहचानने से बचाने हेतु नाजिल की गयी।
अब जरा कुछ समझने की कोशिश करते हैं, देखिये :
1. उपरोक्त हदीसो से ज्ञात होता है कि उमर साहब बार बार पैगम्बर मुहम्मद साहब से महिलाओ को चादर (बुरखा) से ढकने वाली आयते अल्लाह से नाजिल करने को दोहरा रहे थे ताकि क़ुरान में महिलाओ के लिए चादर (बुरखा) से ढकना अनिवार्य हो जाए।
2. उपरोक्त हदीसो से साफ़ ज्ञात है की ये अल हिजाब की आयते अल्लाह द्वारा नाजिल नहीं की गयी, क्योंकि ये उमर साहब की मांग थी जिसे मुहम्मद साहब ने पूरा किया।
3. उमर साहब ने मुहम्मद साहब की एक पत्नी जो खुद को राहत देने (पेशाब) करने गयी थी, उनका पीछा किया, न केवल पीछा किया, बल्कि "सउदा" नाम से भी पुकारा जो किसी भी हालत में ठीक नहीं था, क्योंकि मुहम्मद साहब की पत्निया मुस्लिमो की माँ सामान है।
4. सउदा जो मुहम्मद साहब की पत्नी थी उन्होंने घर जाकर, उमर साहब द्वारा किये बेहूदे और शर्मिंदगी वाले काम की शिकायत मुहम्मद साहब से की थी (सही बुखारी जिल्द ६ किताब ६० हदीस ३१८) (सही मुस्लिम किताब २६ हदीस ५३९५)
5. इन सब कार्यो के बाद ही और जो उमर साहब चाहते थे, उसे पूरा करने हेतु हिजाब वाली आयते नाजिल की गयी।
इन सबको पढ़ने से निष्कर्ष निकलता है की उमर साहब की हिजाब आयतो की मांग से पहले तो मुहम्मद साहब खुद भी राजी नहीं थे, मगर उमर साहब के कामो के बाद अल्लाह तक राजी हो गया जो हिजाब की आयत उतारी ? क्या ये इंसाफ है ?
लेकिन एक और चौंकाने वाली बात का खुलासा हदीस में होता है, की हिजाब वाली आयते नाजिल होने बाद, मुहम्मद साहब की पत्निया बुर्के में आने जाने लगी, मगर उमर साहब को इससे भी चैन नहीं आया, वो फिर भी मुहम्मद साहब की पत्नी का पीछा करते रहे, देखिये (सही बुखारी जिल्द ६ किताब ६० हदीस ३१८)
जरा सोचिये क्या हिजाब या बुरखा यहाँ महिलाओ के काम आया ?
उपरोक्त क़ुरानी आयतो में बताया है की बुरका, महिलाओ को पुरुषो की अवांछित वासनामयी दृष्टि से बचाव करता है, आइये इस विषय पर भी इस हदीस का अवलोकन करे :
मुहम्मद साहब की पत्नी आयशा ने बताया की एक नपुंसक (हिजड़ा पुरुष) पैगम्बर साहब की पत्नियों के यहाँ आया जाया करता था और उनको (पैगंबर) को इस बात पर कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि वो नपुंसक (हिजड़ा) बिना किसी वासनामयी इच्छा के आता था। एक दिन जब वह नपुंसक, पैगम्बर साहब की कुछ पत्नियों के पास बैठकर महिलाओ की शारीरिक विशेषताओ के बारे में बता रहा रहा तभी मुहम्मद साहब आ गए और उन्होंने ये सब सुन कर कहा "मुझे नहीं पता था, ये इन बातो को भी जानता है, अतः अब इससे सेवा करवाना वर्जित है।" उन्होंने (आयशा) ने कहा : तब उन्होंने (पैगम्बर) साहब ने उस (नपुंसक) से भी पर्दा (बुरखा) करने का आदेश दिया।
(सही मुस्लिम किताब २६ हदीस ५४१६)
उपरोक्त हदीस से ज्ञात होता है की बुरखा की प्रथा, किसी भी हालत में अवांछित वासनामयी दृष्टि से बचाव हेतु भी नहीं है, क्योंकि एक नपुंसक स्त्रियों के प्रति कैसे वासनामयी हो सकता है ? यहाँ एक बात और ध्यान देने वाली है की बुरखे की शुरुआत मुस्लिम (आज्ञाकारी, ईमानवाला) पुरुष से ही मुस्लिम (आज्ञाकारी, ईमानवाली) महिला को छेड़ छाड़ से बचाने हेतु शुरू की गयी।
आइये अब कुछ आंकड़ो पर नजर डालते हैं, मुस्लिमो का ये दावा भी हवा हवाई है की बुरखे से महिलाये छेड़ छाड़ जैसे उत्पीड़न से बचती हैं क्योंकि गैर इस्लामिक समाज में महिलाये बिना बुरखा स्वतंत्रता से घूमती हैं जिनसे छेड़ छाड़ की घटनाएं इस्लामिक देश के समाज से काफी कम है, उदाहरण के लिए इजिप्ट देश में महिला और युवा लड़कियों को हर २०० मीटर पर ही ७ बार छेड़ छाड़ होने का रिकॉर्ड दर्ज है (Egypt’s NCW chief says women harassed 7 times every 200 meters - GhanaMed, September 6, 2012) (Manar Ammar - Sexual harassment awaits Egyptian girls outside schools - Bikya Masr, September 10, 2012) वहीँ दूसरी और बलात्कार की घटनाओ में सऊदी अरब जहाँ हिजाब को सख्ती से लागू किया गया है, दुनिया में highest rape scales in the world ("The High Rape-Scale in Saudi Arabia", WomanStats Project (blog), January 16, 2013 (archived).) में शुमार है। यहाँ एक बात आपको और सोचनी चाहिए, वे लोग जो कहते हैं की बुरखे से महिलाओ को छेड़ छाड़ से निजाद मिलती है इसलिए पहनना चाहिए तो जरा इजिप्ट के आंकड़े पर भी नजर डाल ले क्योंकि जो महिलाये छेड़ छाड़ का शिकार हुई वो अधिकांश तौर पर मुस्लिम थी और हिजाब पहने थी (Magdi Abdelhadi - Egypt's sexual harassment 'cancer' - BBC News, July 18, 2008)
अब स्वयं सोचिये क्या बुरखा किसी भी प्रकार से ऐसी विकृत मानसिक लोगो से निजात दिलवा सकता है ? जरुरी है समाज को ऐसे विकृत मानसिक लोगो से निजाद दिलाना, महिलाओ को बुर्के में कैद करना इस समस्या का समाधान नहीं है, क्योंकि महिलाओ को बुरका पहनने से सेहत का खतरा है, देखिये :
हम जानते हैं विटामिन डी मानव स्वास्थ्य के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व है जो वसा में घुलनशील विटामिन है, विटामिन डी किसी भी खाद्य पदार्थ में प्राकर्तिक तौर पर नहीं पाया जाता, यह केवल सूर्य की किरणों से त्वचा पर प्रतिक्रिया होने से विटामिन डी का संश्लेषण होता है जो शरीर के लिए महत्वपूर्ण है। विटामिन डी मजबूत हड्डियों के लिए अतयन्तावश्यक है क्योंकि यह आहार में मौजूद कैल्शियम को प्रयोग में लाता है जिससे हड्डिया मजबूत होती हैं, इसकी कमी से "रिकेट" नामक रोग होता है। इस बीमारी में बोन टिशू एक रोग जिसमे बोन टिशू ठीक तरह से मिनरलाइज नहीं हो पाते, जो आगे चलकर हड्डियों को कमजोर तथा हड्डी विकृति जैसी भयंकर स्थिति उत्पन्न कर देता है।
इस रोग के लक्षण अनेको मुस्लिम बहुल देशो में विटामिन डी की कमी के चलते महिलाओ में पाये गए, सऊदी अरब में किंग फहद यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में की गयी शोध में पाया गया की जो ५२ महिलाओं पर टेस्ट किया गया उनमे सभी महिलाओ में विटामिन डी का स्तर बहुत कम पाया गया जो अनेको गंभीर स्वास्थ्य समस्याए उत्पन्न कर सकता है, जबकि ये एक ऐसा देश है जहाँ सबसे ज्यादा धुप निकलती है पूरी दुनिया के मुकाबले (Elsammak, M.Y., et al., Vitamin D deficiency in Saudi Arabs. Hormone and Metabolic Research, 2010. 42(5): p. 364-368.)
जॉर्डन में किये गए अध्यन के मुताबिक वे महिलाये जो पूरी तरह से इस्लामी वेश भूषा (बुरखा) पहनती थी, 83.3% उनमे विटामिन डी की कमी पायी गयी, ये अध्ययन दोपहर के समय किया गया था। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात ये थी की मात्र 18.2% पुरुषो में ही विटामिन डी की कमी पायी गयी, यहाँ ध्यान रहे, पुरुष बुरखा नहीं पहनते (Elsammak, M.Y., et al., Vitamin D deficiency in Saudi Arabs. Hormone and Metabolic Research, 2010. 42(5): p. 364-368.)
एक बात और बताना चाहूंगा की जॉर्डन भी ऐसी ही जगह है जहाँ अरब देश की भांति सूरज की धुप ज्यादा रहती है। तब भी ऐसी स्थिति में केवल महिलाओ में ही विटामिन डी की कमी पाया जाना ये सिद्ध करता है की बुरका प्रथा महिलाओ के स्वास्थ्य हेतु भी खतरनाक है।
अब हम अंत में यही कहेंगे की बुरखा प्रथा न तो खुदाई आदेश है, न ही बुरखा छेड़ छाड़ से ही बचाव करता है, न ही ये महिलाओ की स्वयं की पसंद है, न ही ये महिलाओ के स्वास्थ्य हेतु ही कोई अच्छा कार्य है। अतः मेरी सभी बंधुओ से विनम्र प्रार्थना है, कृपया इन पाखंडो को छोड़ सत्य सनातन वैदिक धर्म की शरण में आओ, जहाँ महिला और पुरुषो दोनों को ही बराबर अधिकार हैं, कोई छुपने छुपाने की वस्तु नहीं, स्त्री जाति हमारा गौरव है।
आओ लौटो वेदो की और
शायद यही कारण है कि मुस्लिम देशों में सत्यार्थ प्रकाश प्रतिबंधित है और आज तक किसी भी भारतीय सरकार ने इस मुद्दे पर आवाज़ तक नहीं उठाई। जबकि भारत में किसी भी इस्लामिक पुस्तक पर प्रतिबन्ध नहीं।
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