मधुर भंडारकर अपनी खास तरह की फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। उनकी फिल्मों के सब्जेक्ट में एक नयापन होता है जो कि हमेशा बाकी विषयों से अलग होता है। इस बार मधुर भंडारकर ने आपातकाल के ऊपर फिल्म बनाई है और फिल्म का नाम रखा है ‘इंदु सरकार’। इतिहास गवाह है, इंदिरा गांधी ने आपातकाल घोषित किया था, जो कि 21 महीने तक चला। इसके बाद लोगों को आपातकाल में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। मधुर भंडारकर ने अपनी फिल्म इंदु सरकार में इस पूरे घटनाक्रम को उतारने की कोशिश की है। यही वजह रही कि रिलीज से पहले फिल्म काफी विवादों में छा गई। वहीं फिल्म रिलीज न हो पाए इसके लिए कांग्रेस के नेताओं ने रिलीज रोकने की पुरजोर कोशिश की। लेकिन कोर्ट ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया।
बात करें अगर फिल्म की कहानी की तो ट्रेलर देखने के बाद ही आपको अंदाजा हो जाएगा कि आपको फिल्म में क्या देखने को मिलेगा। फिल्म की कहानी आपको आपातकाल में हुए अत्याचारों की तरफ ले जाती है। फिल्म में कृति कुल्हरी एक बुलंद आवाज वाली महिला का किरदार निभा रही हैं। फिल्म में वह एक ऐसी महिला बनी हैं जो आपातकाल में हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाती हैं। वहीं नील नितिन मुकेश संजय गांधी के जबकि सुप्रिया विनोद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के किरदार में हैं। फिल्म में आपको कीर्ति हकलाती हुई महिला के किरदार में नजर आई हैं। तो वहीं फिल्म में अनुपम खेर ने भी दमदार भूमिका निभाई है।
इसी सन्दर्भ में अवलोकन करें :--
फिल्म में इंदु, एक बहुत ही शर्मीली लड़की है जो कि अनाथ है और उसे हकलाने की आदत है। वहीं फिल्म में नवीन (तोता रॉय चौधरी) उनके साथी बनते हैं। वह शादी के दौरान उससे पूछते हैं कि वह अपनी जिंदगी से क्या चाहती है। इस सवाल का जवाब उसे तब मिलता है जब शादी के बाद वह अपने पति को उन नेताओं के साथ सुर में सुर मिलाते देखती है जो इमर्जेंसी का गलत फायदा उठाते हैं और नियमों को ताक पर रखते हैं। इस दौरान इंदु ऐसे लोगों और उस सिस्टम के खिलाफ अपना मोर्चा खोलती है। उसके आगे हालात ऐसे हो जाते हैं जो उसे अपनी आवाज बुलंद करने पर मजबूर कर देते हैं। इसके बाद वह खुल कर विरोध करती है। लेकिन इसकी कीमत उसे अपनी जिंदगी की खूबसूरती देकर चुकानी पड़ती है। ‘इंदु सरकार’ में बहुत अच्छे तरीके से लीड किरदार की भावनाओं और दुविधाओं के बीच संघर्ष करते हुए दिखाया गया है वहीं पॉलिटिक्स इस दौरान कहीं पीछे छूट जाती है।
फिल्म में कीर्ति कुल्हरी का अभिनय शानदार है। मधुर को उनकी फिल्मो के बेहतरीन और ‘जरा हट के’ सब्जेक्ट के लिए माना जाता है। इस फिल्म में अपना अलग एंगल और अपनी बात रखने में वह कामयाब रहे हैं। लेकिन पेजथ्री जैसी फिल्मों के मुकाबले मधुर की फिल्म उंदु सरकार कुछ मायनों में थोड़ी पीछे है।
“इंदु” इंदिरा गांधी का घरेलू नाम था। कांग्रेसी नेता जगदीश टाइटलर का दावा है कि फिल्म में एक किरदार उन पर आधारित है। फिल्म को लेकर कांग्रेसियों के डर को समझने से पहले इसके ट्रेलर के कुछ संवाद देखें- “अब इस देश में गांधी का मायने बदल चुका है…”, “इमरजेंसी में इमोशन नहीं मेरे ऑर्डर चलते हैं…”, “आज से आपका टारगेट 350 से नहीं, 700 नसबंदियां है…”, “भारत की एक बेटी ने देश को बंदी बनाया हुआ है, तुम वो बेटी बनो जो देश को मुक्ति का मार्ग दिखा सके…”, “सरकारें चैलेंजेज से नहीं चाबुक से चलती हैं…” , “तुम लो जिंदगी भर माँ-बेटे की गुलामी करते रहोगे…”
फिल्म में कांग्रेस की सबसे दुखती रग “आपातकाल” को छुआ गया है। फिल्म में संजय गांधी के तानाशाही रवैये, इंदिरा गांधी सरकार द्वारा विपक्ष के दमन, प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों के हनन के अलावा सिख दंगों को भी दिखाए जाने के अनुमान लगाया जा रहा है। ये सारे मुद्दे कांग्रेस के लिए पिछले तीन दशकों से सिरदर्द का सबब रहे हैं। आपको याद होगा कि इंदिरा गांधी सरकार के कामकाज के तरीके पर बनी श्रीकांत नाहटा की फिल्म “किस्सा कुर्सी का” के रील को जलवाने का आरोप कांग्रेसी नेताओं पर लगा था। केंद्र मे में इस समय बीजेपी की सरकार है। मधुर भंडारकर कई मौकों पर पीएम नरेंद्र मोदी की तारीफ कर चुके हैं। आपातकाल में बीजेपी नेता आपातकाल की ज्यादतियों के शिकार हुए थे। ऐसे में बीजेपी राज में मोदी समर्थक निर्देशक के लोकतंत्र के “काले अध्याय” को सबसे लोकप्रिय माध्यम सिनेमा के द्वारा सामने लाने से कांग्रेस का परेशान होना स्वाभाविक है।
आपातकाल से जनता को लाभ
वैसे तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के आदेशानुसार देश में चुनाव करवाने की घोषणा गैर-कांग्रेसी पार्टियाँ जिस आपातकाल के विरुद्ध एकजुट हुई, किसी ने इंदिरा गाँधी के विरुद्ध ऐतिहासिक निर्णय देने वाले जस्टिस लाल की सुध ली। जिसको देखो अपनी रोटियाँ मक्खन में डुबोकर खाने में लग गए। दूसरे, यदि जनता के साथ नसबंदी जैसे जबरदस्ती नहीं होती, किसी को शिकायत नहीं थी, चाट-पकोड़ी, छोले-कुलचे, चाय, सब्जी-फल आदि बेचने वालों पर आयकर विभाग ने सख्ती कर टैक्स वसूला। गरीबी का चोला ओढ़ कर खूब दुनियाँ को मूर्ख बना रहे थे, जिस तरह आज भी बना रहे हैं। आयकर विभाग को चाट-पकोड़ी, छोले-कुलचे बेचने वालों के कूड़े के ढेर में पत्ते गिनते देखा गया है। उन दिनों साड़ी वालों की दुकानों पर छापे डाले, असर दाम लगभग आधे हो गए। इतना ही नहीं, एक बहुचर्चित साड़ी वाले की इतनी खिंचाई होने से साड़ी के दामों में आशा के विपरीत अंतर आ गया। परिणाम यह हुआ कि दिवाली के अवसर पर उसके गोदाम तक खाली हो गए और जबतक नया माल नहीं आया, ग्राहक निराश होकर लौटते रहे।
आयकर विभाग ने उस साड़ी वाले से केवल यही पूछा था "आखिर कितना लाभ कमाओगे? कोई सीमा तो होगी?" लेकिन जनता पार्टी बनने से आज तक कोई भी इन छद्दम गरीबो पर लगाम कसने में नाकाम सिद्ध हो रहा है। जनता पार्टी बनने पर दौनों में बिकने वाली चाट प्लेटों में बिकनी शुरू हो गयी। अतिक्रमण शुरू हो गए।
अवसरवादी नेता
यही कारण था कि 1977 में बहुमत वाली सरकार का तख्ता पलट इन्दिरा गाँधी पुनः सत्ता में आ गयी। और विपक्ष का नारा "नसबंदी के तीन दलाल, इन्दिरा, संजय, बंसीलाल" टायें टायें फिस हो गया। और कुछ अवसरवादी विपक्षी कांग्रेस की गोदी में बैठ मालपुए का आनन्द लेने लगे। जो आज की तारीख में घटित हो रहा है। और जनता भी चंद टुकड़ों की खातिर अंधी आंधी में बह रहे हैं। यही कारण है, कि इन अवसरवादियों के कारण देश में भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण और अस्त-व्यस्त होती कानून व्यवस्था बहुत ही निम्न स्तर पर पहुँच चुकी है।
यदि आपातकाल में ज्यादती नहीं होती, जनता को कोई परेशानी नहीं थी, यह वह कटु सत्य है, जिसे झुडलाया नहीं जा सकता। विपक्षी होने के कारण, नुकसान मुझे भी बहुत हुआ था। लेकिन बस बचते रहे, जबकि विरोधियों ने मुझ समेत समस्त परिवार को जेल भेजने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी।आपातकाल समाप्त होने उपरान्त, विरोधी प्रश्न करते रहे कि "माफ़ी भी नहीं मांगी, फिर भी जेल नहीं हुई, आखिर कौन था वह महानुभाव जो आखिर तक तुम्हे बचाता रहा?"
आपातकाल से जनता को लाभ
वैसे तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के आदेशानुसार देश में चुनाव करवाने की घोषणा गैर-कांग्रेसी पार्टियाँ जिस आपातकाल के विरुद्ध एकजुट हुई, किसी ने इंदिरा गाँधी के विरुद्ध ऐतिहासिक निर्णय देने वाले जस्टिस लाल की सुध ली। जिसको देखो अपनी रोटियाँ मक्खन में डुबोकर खाने में लग गए। दूसरे, यदि जनता के साथ नसबंदी जैसे जबरदस्ती नहीं होती, किसी को शिकायत नहीं थी, चाट-पकोड़ी, छोले-कुलचे, चाय, सब्जी-फल आदि बेचने वालों पर आयकर विभाग ने सख्ती कर टैक्स वसूला। गरीबी का चोला ओढ़ कर खूब दुनियाँ को मूर्ख बना रहे थे, जिस तरह आज भी बना रहे हैं। आयकर विभाग को चाट-पकोड़ी, छोले-कुलचे बेचने वालों के कूड़े के ढेर में पत्ते गिनते देखा गया है। उन दिनों साड़ी वालों की दुकानों पर छापे डाले, असर दाम लगभग आधे हो गए। इतना ही नहीं, एक बहुचर्चित साड़ी वाले की इतनी खिंचाई होने से साड़ी के दामों में आशा के विपरीत अंतर आ गया। परिणाम यह हुआ कि दिवाली के अवसर पर उसके गोदाम तक खाली हो गए और जबतक नया माल नहीं आया, ग्राहक निराश होकर लौटते रहे।
आयकर विभाग ने उस साड़ी वाले से केवल यही पूछा था "आखिर कितना लाभ कमाओगे? कोई सीमा तो होगी?" लेकिन जनता पार्टी बनने से आज तक कोई भी इन छद्दम गरीबो पर लगाम कसने में नाकाम सिद्ध हो रहा है। जनता पार्टी बनने पर दौनों में बिकने वाली चाट प्लेटों में बिकनी शुरू हो गयी। अतिक्रमण शुरू हो गए।
अवसरवादी नेता
यही कारण था कि 1977 में बहुमत वाली सरकार का तख्ता पलट इन्दिरा गाँधी पुनः सत्ता में आ गयी। और विपक्ष का नारा "नसबंदी के तीन दलाल, इन्दिरा, संजय, बंसीलाल" टायें टायें फिस हो गया। और कुछ अवसरवादी विपक्षी कांग्रेस की गोदी में बैठ मालपुए का आनन्द लेने लगे। जो आज की तारीख में घटित हो रहा है। और जनता भी चंद टुकड़ों की खातिर अंधी आंधी में बह रहे हैं। यही कारण है, कि इन अवसरवादियों के कारण देश में भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण और अस्त-व्यस्त होती कानून व्यवस्था बहुत ही निम्न स्तर पर पहुँच चुकी है।
यदि आपातकाल में ज्यादती नहीं होती, जनता को कोई परेशानी नहीं थी, यह वह कटु सत्य है, जिसे झुडलाया नहीं जा सकता। विपक्षी होने के कारण, नुकसान मुझे भी बहुत हुआ था। लेकिन बस बचते रहे, जबकि विरोधियों ने मुझ समेत समस्त परिवार को जेल भेजने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी।आपातकाल समाप्त होने उपरान्त, विरोधी प्रश्न करते रहे कि "माफ़ी भी नहीं मांगी, फिर भी जेल नहीं हुई, आखिर कौन था वह महानुभाव जो आखिर तक तुम्हे बचाता रहा?"
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