उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जीत के साथ अब दिल्ली में नगर निगम चुनाव में भी बीजेपी ने जीत हासिल की है। बता दें कि बीजेपी ने एमसीडी में तीसरी बार कब्जा किया है। पूर्वी दिल्ली नगर निगम में बीजेपी ने तीनों नगर निगम चुनावों में सबसे बेहतर परिणाम आए हैं।
एमसीडी में इस बार बीजेपी ने 184 सीटे जीती हैं तो वहीं आम आदमी पार्टी ने 46 सीटें, कांग्रेस ने 30 और अन्य ने 10 सीटों पर कब्जा किया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तीनों नगर निगमों में जीत पर बीजेपी को दी बधाई दी।
केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली के लिए मिलकर काम करेंगे। जैसे-जैसे रिजल्ट आते गए नेताओं के सुर भी बदलते गए। तो वहीं दूसरी तरफ दिल्ली कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको ने कहा कि हम दोनों ही एक तरह से अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहे। पार्टी को चीजें सही करने के लिए मौका देना चाहिए दिल्ली कांग्रेस में सुधार हो।
फिलहाल, एमसीडी चुनावों में बीजेपी की जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली की जनता का शुक्रिया अदा किया, और केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि एमसीडी चुनावों में बीजेपी की जीत ईवीएम पर विलाप करने वालों के लिए एक सबक है। आज MCD चुनाव के नतीजे आये जिसमें आम आदमी पार्टी की करारी हार हुई जबकि भारतीय जनता पार्टी की करारी जीत लेकिन जिस प्रकार से Opinion Poll और Exit Poll के नतीजे आये थे उसके अनुसार काउंटिंग के परिणाम नहीं आये, Exit Poll में बीजेपी को करीब 220 सीटें मिली थीं जबकि AAP को केवल 20 सीटों के आसपास दिखाया गया था लेकिन जब वास्तविक नतीजे आये तो BJP को केवल 183 सीटें मिलीं जबकि AAP को 41 सीटें।
किसी ने सोचा भी नहीं था कि AAP को 41 सीटें मिल जाएंगी, ज्यादातर लोगों ने अनुमान लगाया था कि AAP को सिर्फ 10-20 सीटें ही मिलेंगी और किसी किसी ने तो 1-2 सीट लायक भी नहीं माना था।
अब सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि केजरीवाल की धमकी ने असर कर दिया, लगता है डेंगू और चिकनगुनिया फैलाने की केजरीवाल की धमकी से लोग डर गए और AAP को वोट दे दिया।
कब तक मोदी-अमित पर निर्भर रहेगी पार्टी?
जैसा कि सर्वविदित है कि जब किसी को सफलता मिलती है, उस सफलता के जश्न में सफर में आयी कठिनाइयों का अवलोकन करने की सुध नहीं होती। जबकि असफलता से अधिक मन्थन सफलता प्राप्त करने वाले को जरुरत होती है। कोई निर्वाचित भाजपा निगम पार्षद यह न भूले की उसको जो सफलता मिली है, उनकी योग्यता के कारण मिली है, नहीं। इसका समस्त श्रेय जाता है, केवल प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी और अध्यक्ष अमित शाह को। हालाँकि दिल्ली अध्यक्ष मनोज तिवारी भी इन दोनों के प्रभुत्व की आड़ में बहुत टकड़ा जुआ खेल गए, कि किसी भी भूतपूर्व पार्षद को टिकट न देना। बहुत अड़चनें आयीं, विरोध हुए, किन्तु मोदी-अमित जोड़ी ने सब पर चादर डाल पार्टी के विजयी रथ को रुकने नहीं दिया। अन्यथा सीटें और भी आतीं। मतदान पूर्व जो भाजपा को स्थान मिल रहे थे, भाजपा को कम और आम आदमी पार्टी को अधिक सीटें मिलना, इस विषय पर मंथन करना है भाजपा को।
चुनावों में बन्दर बाँट
कई स्थान ऐसे थे जो भाजपा ने स्वयं गवाएं। कहीं बाहरी, कहीं धन का आभाव तो कहीं धन का दुरूपयोग। कुछ स्थान तो ऐसे थे, जहाँ बाहरी उम्मीदवार होने के कारण, क्षेत्रीय कार्यकर्ता/अधिकारी चुनाव में जितना व्यस्त रहे, उससे अधिक अपने ही उम्मीदवार के विरोध में रहे। जो किसी सीमा तक उचित भी था और अनुचित भी। किसी बाहरी को टिकट देने के लिए कसूरवार प्रदेश अथवा जिला है, कार्यकर्ता नहीं।
इतना ही नहीं, कुछ स्थान तो ऐसे थे जहाँ उम्मीदवार के जनसम्पर्क करने के अतिरिक्त किसी अन्य कार्यकर्त्ता द्वारा धन के आभाव में जनसम्पर्क नहीं किया गया। जो अत्यन्त दुखत है। संघ पर्वेक्षक द्वारा इस कमी को जिला अथवा प्रदेश को क्यों नहीं सूचित किया? दूसरी ओर, जो धन था, उसका दुरूपयोग भी भरपूर हुआ। कुछ पदाधिकारियों ने अनपढ़ को हज़ार रूपए दिए, वहीँ शिक्षित को मात्र 300/400 रूपए देकर संतोष करवाना पड़ा, क्या यह कार्यकर्ताओं के साथ अन्याय नहीं? पूर्व में कई बार लिखा है कि वास्तव में आज भाजपा मोदी-अमित पर ज्यादा निर्भर है, बनिस्बत अपने कार्यों पर।
इसमें कोई दो राय नहीं कि नगर निगम में सत्ताधीन होते हुए किसी महापौर या पार्षद ने भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगाई। क्योंकि मोदी लहर है, हराएगा कौन?
कुछ चुनाव तो भाजपा ने मण्डल की लापरवाही के कारण हाथ से गवाएँ। उद्धारण, जब टेबल का प्रबन्ध पोलिंग इंचार्ज ने करना था, उस स्थिति में अप्रैल 22 की शाम 7 बजे से फाइल बाँटने का क्या मतलब? फिर मेज कुर्सी का प्रबंध स्वयं करो, कोई इस मूर्ख मण्डल से पूछे 7 बजे, या 8 बजे मेज-कुर्सी कहाँ से मिलेगी? जबकि पिछले चुनाव तक मेज-कुर्सी मण्डल द्वारा ही दी जाती थीं। इस चुनाव में कौन सी मुसीबत आ गयी, जो मेज-कुर्सी तक नहीं दी गयीं। क्या यह किसी षड्यंत्र की ओर इशारा नहीं कर रहा?
किसी मण्डल का नाम लिए बिना इतना कहना है कि मतदाता सूची तक निरीक्षण नहीं करवाई गयीं, न कोई मतदान पर्ची का वितरण हुआ, क्यों? इन षड्यंत्रों के लिए उम्मीदवार को दोष देना मूर्खतापूर्ण होगा। जबकि विपक्ष बच्चों को एवं दैनिक भत्ता पर रखे कार्यकर्ताओं को घर-घर भेज रहे हैं, लेकिन भाजपा की तरफ से नहीं। जानते है न मोदी-अमित शाह किस दिन काम आएंगे। क्या जरुरत है मोदी लहर है, सीट जाएगी कहाँ? लिखने को बहुत-कुछ है, लेकिन मोदी जी सम्मान को देखते हुए, केवल इतना ही लिखना बहुत है।
अल्पसंख्यक पदाधिकारी चौधरी बन घूमते रहे, लेकिन किसी अल्पसंख्यक सदस्य को फ्री में पार्टी प्रचार-प्रसार के लिए बाहर तक नहीं निकाल पाए, क्यों? मतदान वाले दिन हज़ार रूपए अनपढ़ को दिलवाने का अधिकार तो रखते हैं, लेकिन चुनाव प्रक्रिया में नहीं, क्यों? क्या शीर्ष नेतृत्व इस षड्यंत्रों पर मन्थन करेगा?
अवलोकन करें :--
http://nigamrajendra28.blogspot.in/2017/03/blog-post_16.html
चुनाव पूर्व डॉ हर्षवर्धन ने पार्कों, मंदिर एवं शमशाम घाटों पर बेंच लगवाए, जिस क्षेत्र में बेंचों को लगवा गया, उस क्षेत्र के मंडल के मात्र कुछ ही पदाधिकारियों को इसकी जानकारी रही, क्यों? क्या शीर्ष नेतृत्व इन कमियों का मन्थन करने में सक्षम है?
आआप ने भी दी टक्कर कुछ चुनाव तो भाजपा ने मण्डल की लापरवाही के कारण हाथ से गवाएँ। उद्धारण, जब टेबल का प्रबन्ध पोलिंग इंचार्ज ने करना था, उस स्थिति में अप्रैल 22 की शाम 7 बजे से फाइल बाँटने का क्या मतलब? फिर मेज कुर्सी का प्रबंध स्वयं करो, कोई इस मूर्ख मण्डल से पूछे 7 बजे, या 8 बजे मेज-कुर्सी कहाँ से मिलेगी? जबकि पिछले चुनाव तक मेज-कुर्सी मण्डल द्वारा ही दी जाती थीं। इस चुनाव में कौन सी मुसीबत आ गयी, जो मेज-कुर्सी तक नहीं दी गयीं। क्या यह किसी षड्यंत्र की ओर इशारा नहीं कर रहा?
किसी मण्डल का नाम लिए बिना इतना कहना है कि मतदाता सूची तक निरीक्षण नहीं करवाई गयीं, न कोई मतदान पर्ची का वितरण हुआ, क्यों? इन षड्यंत्रों के लिए उम्मीदवार को दोष देना मूर्खतापूर्ण होगा। जबकि विपक्ष बच्चों को एवं दैनिक भत्ता पर रखे कार्यकर्ताओं को घर-घर भेज रहे हैं, लेकिन भाजपा की तरफ से नहीं। जानते है न मोदी-अमित शाह किस दिन काम आएंगे। क्या जरुरत है मोदी लहर है, सीट जाएगी कहाँ? लिखने को बहुत-कुछ है, लेकिन मोदी जी सम्मान को देखते हुए, केवल इतना ही लिखना बहुत है।
अल्पसंख्यक पदाधिकारी चौधरी बन घूमते रहे, लेकिन किसी अल्पसंख्यक सदस्य को फ्री में पार्टी प्रचार-प्रसार के लिए बाहर तक नहीं निकाल पाए, क्यों? मतदान वाले दिन हज़ार रूपए अनपढ़ को दिलवाने का अधिकार तो रखते हैं, लेकिन चुनाव प्रक्रिया में नहीं, क्यों? क्या शीर्ष नेतृत्व इस षड्यंत्रों पर मन्थन करेगा?
अवलोकन करें :--
http://nigamrajendra28.blogspot.in/2017/03/blog-post_16.html
चुनाव पूर्व डॉ हर्षवर्धन ने पार्कों, मंदिर एवं शमशाम घाटों पर बेंच लगवाए, जिस क्षेत्र में बेंचों को लगवा गया, उस क्षेत्र के मंडल के मात्र कुछ ही पदाधिकारियों को इसकी जानकारी रही, क्यों? क्या शीर्ष नेतृत्व इन कमियों का मन्थन करने में सक्षम है?
दिल्ली नगर निगमों में रिकॉर्ड में भाजपा की जीत जरूर है, लेकिन आम आदमी पार्टी को भी नकारा नहीं जा सकता। यदि दिल्ली में केजरीवाल ने आरोप-प्रत्यारोप में समय व्यर्थ करने की बजाए जनसमस्याओं पर ध्यान दिया होता, भाजपा द्वारा इतनी सीटें लेना असम्भव था। इस कटु सच्चाई को कोई नकार नहीं सकता। यदि केजरीवाल पार्टी नगर निगम में दूसरे नम्बर पर आयी है, यह इसकी हार नहीं जीत है। और अब केजरीवाल पार्टी अधिक सतर्कता से कार्य करती है, निश्चित रूप से अगामी दिल्ली विधान सभा चुनाव में भाजपा को चुनौती देने में सक्षम होगी। इतना ही नहीं पानी और बिजली पर लगने वालों करों में कटौती करती दी जाए, विधान सभा चुनावों में अगर सत्ता नहीं तो एक शक्तिशाली विपक्ष के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने में सफल हो सकती है।
जेडूयू की दुर्गति चुनाव में जदयू को करारी शिकस्त झेलनी पड़ीं है। ये नतीजे इस ओर इशारा करते हैं, कि क्या नीतीश कुमार विपक्ष के इतने कद्दावर नेता हैं, जो विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री का सुयोग्य उम्मीदवार बनाये जा सकें. जानकारी के मुताबिक नगर निगम चुनाव में जदयू ने काफी निराशाजनक प्रदर्शन किया है। चुनाव में जदयू के उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए है। ओम विहार वार्ड से जदयू की उम्मीदवार पूजा सिंह को सबसे ज्यादा 2857 वोट मिला जबकि सबसे कम रोहिणी से उम्मीदवार सुजत हुसैन को सिर्फ 7 वोट मिले है। गौरतलब है की पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई है। पूर्वांचल के वोटरों को लुभाने के लिए सीएम नीतीश कुमार ने बुरारी, संगम विहार और बदरपुर इलाके में रोड शो के अलावे पैदल मार्च भी किया था। जहां संगम विहार में राजकुमारी को 2038 वोट वहीं बदरपुर योगेश को सिर्फ 13 वोट मिले।
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