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आखिर कब तक मीडिया हिन्दू विरोधी रहेगा?

No automatic alt text available.यह एक कटु सत्य है कि मीडिया हिन्दू विरोधी है। और इस सत्य से कोई इंकार नहीं कर सकता। होली, दीपावली एवम अन्य त्योहारों पर कितना दुष्प्रचार किया जाता है, किसी अन्य धर्म के त्यौहारों की नहीं। आखिर किस कारण केवल हिन्दू त्यौहारों का विरोध किया जाता है?
*आख़िर क्यों मुख्य न्यायाधीश ने भरी अदालत में कहा-“मैं हिन्दू हूँ पर किसी से नहीं डरता”*

भारत एक हिंदू राष्ट्र है, हिंदुत्व इसकी पहचान हैं ! फिर एक हिंदू होने में डरने की क्या बात है! एक ऐसा मामला सामने आया हैं जहां एक याचिकाकर्ता ने हिंदू होने के नाते अदालत में पेश न होने का हवाला दिया ! जिस पर न्यायधीश को हिंदू होने पर गर्व होने की बात कहनी पड़ी !

*सुप्रीम कोर्ट के नवनिर्वाचित मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर ने सोमवार को अदालत की सुनवाई के दौरान कहा “मैं हिन्दू हूँ पर किसी से नहीं डरता”।*

*आखिर क्यों मुख्य न्यायाधीश को इस तरह का बयान देना पड़ा होगा ? क्या देश के अन्य सारे हिन्दू डर-डर के जीते है ? क्या हमारा देश इतना बदल गया है ?*

दरअसल एक *याचिकाकर्ता बाल राम बाली ने दसवीं बार “गौहत्या” पर रोक लगाने की गुहार लगाई थी। याचिकाकर्ता ने कहा “हिन्दू अदालत मे आने से डरते है, वह इन सब (गौहत्या ) मामलों मे नहीं पड़ना चाहते”।*

इस पर मुख्य न्यायाधीश ने राम बाली से कहा “मैं हिन्दू हूँ पर किसी से नहीं डरता, अदालत आने मे डरने की बात क्या है।” आखिर किसी के पास तथ्य है तो उसे क्यों डरना चाहिए । *हालांकि इसके बाद उन्होने याचिकाकर्ता से कुछ सवाल-जवाब तलब करने के बाद, 10वीं बार उसकी याचिका ख़ारिज कर दी गयी।*

*वैसे यह आश्चर्य की बात है कि जिस सुप्रीम कोर्ट ने जलीकुट्टी का खेल यह कहकर बंद करवा दिया था। कि उसमें जानवरों के साथ हिंसा होती है। उसी सुप्रीम कोर्ट को बेजुबान मर रहे इन जानवरों की चीख़ें सुनाई नहीं पड़ती है।*

"मस्जिद से मौलवी जोर जोर से लाउडस्पीकर से बोल रहा था कि मुसलमानों एक हो जाओ, हिंदुओं को मरना होगा, अब हम इन्हें यहां रहने नहीं देंगे, हिंदुओं को घर में घुस कर मारो
इसके बाद जो हुआ वह अभी भी डरा देता है "
..... पुजारी काली मंदिर... धूलागढ़ 

हर दिन की तरह वह घर में काम कर रही थी
तभी अचानक शोर सुनाई देता है.. अल्लाह - हो-अकबर, हिन्दुस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान जिंदाबाद... हिंदुओं भाग जाओ... नहीं तो सब के सब मारे जाओगे...
और देखते ही देखते सैकड़ों मुसलमान हिंदुओं की बस्तियों में आग लगा देते हैं

जब तक कोई समझ पाता.. हिंदुओं की बस्तियां जल कर खाक और खंडहर हो चुकी थी और उसकी बेटी की शादी के लिए इकट्ठा किया सामान भी जलकर स्वाहा हो चुका था
बस कुछ बचा था तो... उसकी सूनी आंखों में आंसू और चेहरे पर बेबसी..

उस बेबस का कसूर क्या था कि वह हिंदू है... ऐ कैसी लाचारी है.. हम अपने उसी देश में रोज तबाह और जलील हो रहे हैं

जो बना ही था हिंदू - मुसलमान के सिद्धांत पर
मुसलमान पाकिस्तान ले लें और हिंदू भारत को..

यहाँ के मुसलमान अभी भी पाकिस्तान को अपना देश मानते हैं जबकि रहते भारत में हैं
और हम यह कह देते हैं कि तो फिर पाकिस्तान क्यूँ नहीं चले जाते.. तो sekulars की MC BC हो जाती है

जब तक लोगों के जहन में ये गांधी जिंदा रहेगा.. हिंदू यूं ही जलील होता रहेगा
इतना ही नहीं, चंद चाँदी के टुकड़ों की खातिर हिन्दू सम्राटों के इतिहास को धूमिल कर आक्रमणकारियों के इतिहास को भारत का इतिहास दर्शा कर स्कूल से लेकर कॉलेज तक पढ़ाया जाता है। 
https://www.facebook.com/gunjanaggrawala/videos/1041165872590313/


indiafacts.com पर लिखित शुभम वर्मा का निम्न लेख में जिन मुद्दों का वर्णन किया है, वास्तव में मंथन करने योग्य है:-- 
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आज भारत में मीडिया की ख़बरों को यदि देखा जाए, तो लगता है कि भारत में अल्पसंख्यकों पर बहुत अत्याचार होते हैं , तथा हिन्दू उन्हें बुरी तरह से प्रताड़ित करते हैं  | कई अखबारों में यह खबर भी बार बार छपती है कि बीजेपी के आने के बाद मुसलमानों पर अत्याचार बढ़ गए हैं तथा यह पार्टी मुस्लिम विरोधी है एवं बाकी सब पार्टिया मुसलमानों की हितैषी हैं  आदि | लेकिन इसी के उलट जब सोशल मीडिया पर देखा जाता है तो जनता बीजेपी के समर्थन में ज्यादा नज़र आती है | अब ऐसे में मीडिया और सोशल मीडिया दोनों ही बिलकुल विपरीत बाते करते नज़र आते हैं | दोनों में से कौन सही है कौन गलत यह जानने के लिए मैंने एक शोध किया जिसमे मैंने देश के ५ बड़े अख़बारों का अध्ययन किया | इस अध्ययन में ३ केसेस को मैंने लिया तथा उनका तुलनात्मक अध्ययन कर के देखा कि किस तरह से मीडिया ने इन्हें छापा है और उसके आधार पर मैंने यह पेपर लिखा है | अंत में जो नतीजे आये उससे यह साबित हो गया कि मीडिया कितनी हिन्दू विरोधी तथा पक्षपाती है |
क्रियाविधि :
इस शोध में ५ अख़बारों को लिया गया जिनके नाम हैं इंडियन एक्सप्रेस, द हिन्दू, हिंदुस्तान, जनसत्ता और टाइम्स ऑफ़ इंडिया | इसमें तीन अंग्रेजी तथा २ हिंदी अखबारों का मैंने अध्ययन किया है | इसी के साथ मैंने ३ केसेस को लिया है जो उत्तरप्रदेश में लगभग एक ही समय के अंतराल में घटित हुए हैं:
chart
इनको चुनने के पीछे कारण यह था कि तीनो ही मामलो में हत्याकांड हुए हैं जिसमे एक समुदाय के व्यक्ति को दूसरे समुदाय के व्यक्तियों ने मारा है | इसलिए इस शोध में यह जानने का प्रयास किया गया कि किस केस को मीडिया ने कितनी जगह दी | इस तुलनात्मक अध्ययन को करने के लिए पांचो अख़बारों को लिया गया, तथा जिस तिथि को यह घटना घटी है उस दिन से लेकर १० दिनों तक हर अखबार में उस घटना के बारे में कितनी न्यूज़ छपी है , इसे गिना गया | इस तरह ५ अखबार , ३ खबरे और १० दिन अतः ५ * ३ * १० = १५० खबरों का अध्ययन इस शोध में किया गया तथा अंत में सभी अख़बारों की खबरों को जोड़ दिया गया एवं यह भी पता लगाया गया कि इनमे से कितनी खबरे पहले पृष्ठ पर थी और कितने अलग अलग पन्नो पर (जैसे  पेज १ , पेज ५ , पेज १३ आदि ) खबर सारे दिनों में मिलाकर छापी गयी |
तीनो मामलो के विषय में संशिप्त जानकारी :
  1. अखलाख हत्याकांड दादरी ( 28 सितम्बर 2015)[1] : उत्तरप्रदेश के बिसारा गाँव में कुछ लोगों ने अखलाख नामक मुसलमान व्यक्ति की हत्या कर दी | हत्या का कारण उसके घर में गाय के मॉस का होना बताया गया , बाद में एक रिपोर्ट ने भी यह कहा के वो गौ मॉस ही था |[2]मगर जो भी हो एक व्यक्ति की हत्या को कभी भी जायज़ नहीं ठहराया जा सकता |
  2. संजू राठौर हत्याकांड, रामपुर (29 जुलाई  2015)[3] : उत्तरप्रदेश के ही रामपुर के कुपगाँव गाँव में एक गाय एक मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति के खेत में चली गयी | इस पर मुस्लिम समुदाय इतना नाराज हुआ कि मज्जिद से फतवा हुआ कि इन हिन्दुओ की गाय हमारे खेत खा रही हैं | इसके बाद गुस्से में आये लोगों ने १५ वर्षीय संजू राठौर को गोली मार दी और उसकी मौत हो गयी |
  3. गौरव हत्याकांड, अलीगढ (12 नवम्बर 2015)[4] : उत्तरप्रदेश के अलीगढ क्षेत्र में पठाखे चलाते समय कुछ चिंगारी मुस्लिम समुदाय के घर में चली गयी | इस बात पर उन्होंने बाहर आकर झगडा किया तथा गौरव को गोली मार दी | इसके बाद इलाके में तनाव बढ़ गया | गौरव के विषय में यह सवाल भी समाजवादी पार्टी से पूछा गया कि गौरव के मरने के बाद उसके परिवार को अखलाक से कम मुआवजा क्यों दिया गया, सिर्फ इसलिए क्योंकि गौरव हिन्दू था ?[5]
इन तीन मामलो को तुलनात्मक अध्ययन के लिए चुनने का एक कारण यह भी था कि यह सभी लगभग ५ महीनो के अन्दर एक ही प्रदेश में हुए मामले थे, तथा सभी में दो समुदाय शामिल थे | अखलाख केस के विषय में सभी जानते हैं क्योंकि यह प्रसिद्द केस है तथा इसमें नयनतारा सहगल, अशोक वाजपयी आदि ने अवार्ड वापसी और असहिष्णुता आदि वाले बयान दिए थे और बाकि विपक्ष ने भी राज्य सरकार की जगह केंद्र में बैठी सरकार पर चीखना शुरू कर दिया था | मगर बाकी के २ मामलों में अधिकतर विपक्ष और सिविल सोसाइटी शांत दिखाई दी | मगर ऐसे में मीडिया का फ़र्ज़ बनता था कि वो तटस्थ रहते हुए तीनो हत्याकांडो को बराबर जनता के सामने रखे |
अवलोकन करें :--
http://nigamrajendra28.blogspot.in/2016/07/blog-post_11.html

मीडिया को बिकाऊ क्यूँ कहते हैं?

शोध के परिणाम :
मीडिया ने किस तरह तीनो केसेस को छापा देखिये चार्ट में :
chart
इसमें पहले स्थान पर न्यूज़ आइटम्स कितने छपे १० दिनों में ५ अखबारों में वह है | दूसरे स्थान पर कितने अलग अलग पन्ने सभी अखबारों ने प्रयोग किये | तीसरा प्रथम प्रष्ठ पर उस मामले की कितनी खबर छपी | १५० खबरों के अध्ययन से यह चार्ट सामने आया है | जिसमे साफ़ नज़र आता है कि अखलाख मामले को मीडिया ने कितना अधिक तूल दिया वहीँ गौरव और संजू राठौर कहीं तुलना में नज़र भी नहीं आते |
मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल :
इन तीन मामलों में साफ़ नज़र आता है कि किस तरह मीडिया ने अल्प्संखयक वाले मामले को ज्यादा तूल दिया तथा हिन्दुओं की हत्या का ढंग भी वैसा ही होने के बाद भी उन्हें उतना कवरेज नहीं दिया गया | साथ ही एक तथ्य और इस अध्ययन में सामने आया है कि कानून की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होने के बाद भी कई लोगों ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर इसका इल्जाम लगाया | कई सिविल सोसाइटी के लोग जैसे नयनतारा सहगल, अशोक वाजपेयी , जे एन यु के कुछ लोग भी सिर्फ अखलाख के समय मुखर हुए तथा बाकी दो मामलो में शांत दिखे | ऐसे में मीडिया की जिम्मेदारी बनती थी तीनो मामलो को बराबरी से दिखाए मगर मीडिया ने पक्षपाती रवैया दिखाते हुए सिर्फ उस केस को बढाया जिसमे केंद्र में बैठी बीजेपी पर ज्यादा हमले हो सकें | यदि मीडिया को केंद्र सरकार से या बीजेपी से परेशानी है तो, जो भी गलत बीजेपी करे, तो मीडिया हज़ार बार उनके खिलाफ छापे | मगर यदि सिर्फ बीजेपी को हराने के लिए हिन्दुओं के साथ पक्षपात किया जाए तथा उनके साथ हो रहे अत्याचारों को दबाया जाए तो यह गलत है | इससे समाज में वैमस्यता और अधिक बढ़ेगी |
उपसंहार :
मीडिया को पूरी तरह निष्पक्ष होकर कार्य करना चाहिए तथा किसी भी घटना को घटना की तरह ही छापना चाहिए | जब मीडिया किसी व्यक्ति की मौत को मुसलमान की मौत या हिन्दू या दलित की मौत बताने लगता है तो वो अनकहे शब्दों में दूसरे समुदाय पर इल्जाम लगा रहा होता है कि उन्होंने यह किया है | इसी तरह जब मीडिया किसी हत्यारे को हिन्दू भीड़ या मुस्लिम भीड़ बताने लगता है तो दूसरा समुदाय अपने आप भड़कने लगता है | अब यदि मीडिया को लोगो को भड़काने के ही पैसे मिलते हैं तो अलग बात है मगर यदि ऐसा नहीं है तो मीडिया को हत्या को हत्या की तरह और अपराधी को अपराधी की तरह ही पेश करना चाहिए ना की उसे समुदाय और जाती का रंग देना चाहिए |
References
[2] http://www.ndtv.com/india-news/meat-at-the-centre-of-dadri-lynching-case-is-beef-finds-new-forensic-test-1413998
[3] http://indiatoday.intoday.in/story/15-year-old-boy-dies-in-rampur-communal-clashes/1/455258.html
[4] http://indianexpress.com/article/india/india-news-india/one-killed-in-clash-over-firecracker-in-aligarh/
[5] http://archive.news18.com/news/uttar-pradesh/aligarh-youths-kin-should-get-same-amount-that-of-dadri-bjp-838247.html
अवलोकन करें:--
http://devbhoomisamachar.com/my-thinking-13/


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