Skip to main content

आखिर कब तक इतिहास से खिलवाड़ किया जाता रहेगा ?

Related imageइतिहास पर फिल्म निर्मित करना कोई गलत काम नहीं है। ताकि जनता को इतिहास के उन तथ्यों को जानने का अवसर मिले, जिन्हें कुंठित इतिहासकारों ने चन्द चांदी के टुकड़ों की खातिर धरती में दबा दिया है। लेकिन कुंठित इतिहास पर फिल्म को चर्चित करने के लिए इतिहास से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। फिल्म निर्मित करनी है तो वास्तविक इतिहास पर करो। 
क्या भारत से बाहर किसी भी देश में कोई इतिहासकार या फ़िल्मकार देश के इतिहास के साथ खिलवाड़ करने का साहस कर सकता है? लेकिन यह संभव है केवल भारत में। जहाँ आक्रमणकारियों के इतिहास का पढ़ाया जाता है, उस पर टिप्पणी करने वालों को साम्प्रदायिक घोषित कर दिया जाता है। जैसाकि कल (जनवरी 28 को) राजस्थान में लीला भंसारी के साथ दुर्व्यवहार करने को हिन्दू आतंकवाद का नाम दे दिया गया।  शर्म आती है, ऐसी ओछी मानसिकता वालों को भारतीय कहने पर। यदि किसी विदेश में ऐसी घटना घटित हुई होती, सरकार द्धारा ही इतिहास से छेड़छाड़ करने वालों पर सख्त कार्यवाही हो गयी होती।  
Related image
क्या कोई फ़िल्मकार या इतिहासकार राष्ट्र को यह सच्चाई बताने का साहस कर पाएगा कि "अकबर के दरबार में कोई अनारकली थी ? या  किसी खूबसूरत लड़की को अनारकली के नाम से नवाज़ा हो ? आखिर कब तक भारतीय इतिहास को कलंकित किया जाता रहेगा ?

भंसाली के इस प्रकरण पर स्मरणीत होता है, मुगल-ए-अज़ाम के निर्माता के.आसिफ और संगीतकार नौशाद विवाद। सलीम और अनारकली को फिल्म के अंत में जब निर्माता ने मिलते फिल्माया, तब नौशाद अज्ञानता में निर्माता से इतने नाराज़ हो गए की फिल्म से संगीतकार के नाम हटाने तक को आसिफ को बोल दिया। लेकिन आसिफ ने नौशाद को बताया कि "यह कोई ऐतिहासिक तथ्य नहीं,बल्कि इम्तियाज़ अली ताज के नोवल पर आधारित है, इसका इतिहास से कोई लेना-देना नहीं।" नौशाद वास्तविकता स्वयं पढ़ने उपरान्त ही फिल्म में संगीतकार रूप में अपना नाम रखने को तैयार ही नहीं हुए, बल्कि निर्माता से माफ़ी भी माँगी। इस घटना का उल्लेख मैंने अपनी पुस्तक "भारतीय फिल्मोउद्योग --एक विवेचन" में किया है।
अगर भंसाली ने अपनी फिल्म में ऐसा कुछ दिखाने की कोशिश की है, जैसा बताया जा रहा है तो इसे क्या माना जाए? यह भारतीय इतिहास के स्थापित तथ्यों के साथ खिलवाड़ नहीं, बलात्कार जैसा है. इतिहास के सीने में खंजर भोंकने जैसा है. क्या दुनिया का कोई और देश अपने इतिहास के स्थापित तथ्यों के साथ कला के नाम पर ऐसा कुछ करने की इजाजत देता है? भारतीय इतिहास और जन ऐसी इजाजत क्यों देगा? उससे यह मूर्खतापूर्ण अपेक्षा क्यों की जानी चाहिए? क्या यह वैसा ही जघन्य अपराध नहीं है जैसे बलात्कार या छेड़छाड़ के किसी मामले में अपराधी को उसके अत्याचारों की शिकार लड़की का प्रेमी बताया जाए? क्या यह् पद्मावती की चरित्र हत्या जैसा मामला नहीं है? यह कौन करता है? वे टुच्चे वकील जिनका पेशा ऐसे घटिया लोगों की पक्षधरता करके ही चलता है. जिनके बारे में माना जाता है कि नैतिकता, मानवता और जीवन के उदात्त मूल्यों से उनका कोई लेना-देना नहीं है. क्या कला का धंधा करने वाले उन वकीलों से भी ज़्यादा गए-गुज़रे हो गए हैं? क्या इनका कोई दीन-ईमान नहीं रह गया है? क्या यह न केवल भारतीय इतिहास, बल्कि भारतीय जन से भी विश्वासघात जैसा नहीं है? क्या कला इसीलिए होती है?
Image result for rani padmini original photoImage result for rani padminiभारतीय इतिहास पर एसिड अटैक का यह दौर बहुत लंबे समय से चला आ रहा है. यह बार-बार समय और जगह बदल-बदल कर भिन्न-भिन्न रूपों में होता आ रहा है. सही कहें तो इस प्रवृत्ति को पिछले 70 वर्षों में सत्ता प्रतिष्ठान ने जान-बूझकर बढ़ावा दिया है. एक समुदाय के मिथकों-प्रतीकों के साथ जब भी कुछ बेहूदी हरकत की गई तो उसके विरोध को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन’ बताकर लगभग बर्बरता से दबा दिया गया. यहाँ तक कि एक टुच्चा पेंटर बार-बार अदालत के सम्मन की अनदेखी करता रहा और जब उसके ख़िलाफ़ वारंट कट गया तो इसे इमरजेंसी से भी भयावह बताया गया. क्या यह वही मानसिकता नहीं है जो ‘अफ़जल हम शर्मिंदा हैं/तेरे क़ातिल ज़िंदा हैं’ का नारा लगाते हुए देश के माननीय उच्चतम न्यायालय को क़ातिल बताने में भी संकोच नहीं करती? उस पर तुर्रा ये कि यही संविधान में सबसे बड़े आस्था रखने वाले भी हैं. बाक़ी लोग संविधान की ऐसी-तैसी कर रहे हैं. यह बताने वाले वही लोग थे जिन्हें तसलीमा नसरीन, सलमान रुश्दी, एम.ए.खान, तारिक़ फ़तह, हसन निसार के नाम पर साँप सूँघ जाता है. वहीं दूसरी ओर शर्ले एब्दो की घटना पर चुप्पी साध ली गई. क्यों?
Image result for rani padmini original photoउस ख़ास वर्ग की यह चुप्पी बहुत दिनों तक सधी नहीं रही. थोड़े दिनों बाद जब हल्ला थम गया तो मुखर हुई और मुखर इस रूप में हुई कि ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कोई तो सीमा होनी चाहिए’. फेसबुक-ट्विटर पर इस तरह की अभिव्यक्तियों की भरमार हो गई. यह सीमाएँ बताने वाले भी वही थे, जो एक टुच्चे पेंटर के मामले में अभिव्यक्ति की अनंत स्वतंत्रता के बड़े भारी पैरोकार बने फिर रहे थे. क्या इस मानसिकता को आप ‘दोगली’ के अलावा कोई और संज्ञा दे सकते हैं?
Image result for rani padminiउस ख़ास समुदाय के ही संबंध में इन्हें सीमाएँ क्यों याद आती हैं? केवल इसलिए न कि वह इनकी उस चक्रव्यूह रूपी चुनौती के षड्यंत्र को स्वीकार नहीं करता जिसे ये संवाद या बहस या विमर्श कहते हैं! वह बात करने की एक ही भाषा जानता है और वह है बंदूक. जो इनसे बात करने की कोशिश करते हैं उन्हें ये पहले तो दकियानूस करार देते हैं और फिर बहस का मैदान छोड़कर भाग जाते हैं. अपनी एक ख़ास खोल में छिपे हुए वहीं से भौं-भौं करते रहते हैं. ग़लती से कोई इनका सुरक्षा घेरा तोड़कर भीतर घुस गया और वहाँ इनसे बहस करने बैठ गया तो पहले तो उसके तथ्यगत सही तर्कों को सुनने से ही इनकार कर देते हैं और फिर उस पर कुतर्कों की बौछार कर देते हैं. इस पर भी कुछ रह गया तो देश भर के अख़बारों-टीवी चैनलों में रंगे सियारों की तरह हुआँ-हुआँ शुरू कर देते हैं. इसके बाद चारा क्या बचता है?
Related imageसाहित्य में यह बात बार-बार कही जाती रही है कि ऐतिहासिक उपन्यास इतिहास नहीं होता. लेकिन साथ ही यह भी कहा जाता रहा है कि ऐतिहासिक उपन्यास की अपनी सीमाएँ होती हैं. साफ़ अर्थ है कि साहित्य में कल्पना के पुट के नाम पर इतिहास के तथ्यों के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता. इसकी अनुमति स्वयं साहित्य भी नहीं देता. ऐसा केवल हिंदी या भारतीय साहित्य में नहीं है, दुनिया भर का साहित्य इस धारणा को मान्यता देता है. वह इस धारणा को मान्यता इसलिए देता है क्योंकि अगर ऐसा न किया गया तो साहित्य और इतिहास के बीच बड़ी अराजक स्थिति उत्पन्न हो जाएगी. जो न तो साहित्य के लिए ठीक होगी, न इतिहास के लिए और न ही समाज के लिए. इसके बावजूद भारतीय साहित्य में ऐसी छूट ली गई है और वह छूट लेने वाले कोई दूसरे नहीं, वही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर साहित्य को अपनी कुंठाओं का उगालदान बनाने वाले हैं. आज वही गिरोह है जो सिनेमा में करोड़ों की लागत लगाकर अरबों का मुनाफ़ा कमाने वाले ग़रीब संजय लीला भंसाली के पीछे एक बार फिर खड़ा हो गया है. क्या अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य की इस पैरोकारी और इस कलावाद पर आपको हँसी नहीं आती?
मुझे सिनेमा को इतिहास संबंधी अपनी कुंठाओं का उगालदान बनाने वालों पर जूते पड़ने का कोई अफ़सोस नहीं है. हाँ, अफ़सोस इस बात का है कि ये जूते मारने वाले अभी तक या तो केवल क्षणिक आवेश के शिकार साबित हुए हैं या फिर भाड़े के कुत्ते. जो अंततः इन ग़रीब खरबपतियों के लिए मुनाफ़ा बढ़ाने वाले औजार ही साबित होते हैं. अगर करणी सेना इसे इतिहास और स्त्री की अस्मिता के साथ खिलवाड़ का मामला बनाकर अदालत तक न ले गई और अदालत से यह फिल्म बनने पर रोक न लगवा सकी तो उसे भी भाड़े का कुत्ता ही माना जाएगा. 
इस सम्बध मे पिछले 3-4 महीनों से राजपूत समाज अलग अलग संगठनो के जरिये अपने-अपने स्तर पर विरोध कर रहे थे। जिसमे कि ज्ञापन सौंपना, पुतले जलाना इत्यादि । इस सम्बंध मे पहले भी वाट्स एप व फेसबुक पोस्ट के माध्यम से मार्मिक अपील की जा चुकी है कि हमारे गौरवपूर्ण इतिहास को तोडा-मरोडा ना जाये व इस विरोध को व्यापक रुप से देशभर मे किया जाये व समाज के हर तबके को इसमे साथ देना चाहिए। महारानी पद्मिनी के बलिदान को हम इस तरह अपमानित नहीं होने देंगे, बॉलीवुड तो मुस्लिम परस्ती मे इतना गिर चुका हे कि इनकी फिल्मे हिंदुओं के महिमामंडन की हों, यह कल्पना करना भी बेमानी होगा।
आज न्यूज पर देखता हूं कि करणी सेना के कार्यकर्ताओ ने “भंसाली “के सेट पर “भसड“ मचा दी तो मन गदगद् हो गया। मेरी दिली तमन्ना हे कि ऐसे हाथ साफ करने के मौके (भंसाली जैसे लोगो पर) मेरे जीवन मे भी आये। 
इन्हें पटकथा हिन्दू समाज का मख़ौल उड़ाकर ही मिलती है। हमारी संस्कृति को विकृत करके पैसे कमाते है।
Image result for rani padmini
इतने बड़े मौलिकतावादी और सच के पुजारी है तो कभी शांतिप्रिय धर्म की कुरीतियों पर फिल्म क्यों नही बनाते?
महारानी पद्मावती
मेवाड महाराजा रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मावती ना सिर्फ राजपूतों का गौरव थी बल्कि समस्त भारतीय महिलाओं का गौरव भी थी जिन्होंने अपने शील की रक्षा मुस्लिम आक्रान्ता -अलाउद्दीन खिलजी से करने के लिये हजारो राजपूत स्त्रियों के साथ धधकते अग्नि कुंड मे गिरकर अपने प्राण न्यौछावर कर दिये । बॉलीवुड का प्रगतिशील (लौंडिया छाप) फिल्मकार -संजय लीला भंसाली इस गौरवपूर्ण इतिहास को तोड मरोडकर इस संबंध मे एक फिल्म बनाने जा रहा हे जिसमे दुर्दान्त आतंकी खिलजी को पद्मावती के प्रेमी के रुप मे पेश कर रहा है।
“रानी पद्मिनी” जिस पर संजय लीला भंसाली फ़िल्म बनाने जा रहे हैं, क्या वो रानी की असली कहानी दिखा पाएंगे या फिर बाजीराव मस्तानी की तरह एक साहसिक कहानी की फजीहत करके उसको लव स्टोरी बना देंगे और पूरे इतिहास को ही बरगला देंगे ? रानी पद्मिनी की असली कहानीl
रावल समरसिंह के बाद उनका पुत्र रत्नसिंह चितौड़ की राजगद्दी पर बैठा | रत्नसिंह की रानी पद्मिनी अपूर्व सुन्दर थी | उसकी सुन्दरता की ख्याति दूर दूर तक फैली थी | उसकी सुन्दरता के बारे में सुनकर दिल्ली का तत्कालीन बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी पद्मिनी को पाने के लिए लालायित हो उठा और उसने रानी को पाने हेतु चितौड़ दुर्ग पर एक विशाल सेना के साथ चढ़ाई कर दी | उसने चितौड़ के किले को कई महीनों घेरे रखा पर चितौड़ की रक्षार्थ तैनात राजपूत सैनिको के अदम्य साहस ववीरता के चलते कई महीनों की घेरा बंदी व युद्ध के बावजूद वह चितौड़ के किले में घुस नहीं पाया |
तब उसने कूटनीति से काम लेने की योजना बनाई और अपने दूत को चितौड़ रत्नसिंह के पास भेज सन्देश भेजा कि “हम तो आपसे मित्रता करना चाहते है……रानी की सुन्दरता के बारे बहुत सुना है सो हमें तो सिर्फ एक बार रानी का मुंह दिखा दीजिये….हम घेरा उठाकर दिल्ली लौट जायेंगे”!सन्देश सुनकर रत्नसिंह आगबबुला हो उठे पर रानी पद्मिनी ने इस अवसर पर दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने पति रत्नसिंह को समझाया कि "मेरे कारण व्यर्थ ही चितौड़ के सैनिको का रक्त बहाना बुद्धिमानी नहीं है |"
रानी को अपनी नहीं पूरे मेवाड़ की चिंता थी वह नहीं चाहती थी कि उसके चलते पूरा मेवाड़ राज्य तबाह हो जाये और प्रजा को भारी दुःख उठाना पड़े क्योंकि मेवाड़ की सेना अल्लाउद्दीन की विशाल सेना के आगे बहुत छोटी थी | सो उसने बीच का रास्ता निकालते हुए कहा कि अल्लाउद्दीन चाहे तो रानी का मुख आईने में देख सकता है |
अल्लाउद्दीन भी समझ रहा था कि राजपूत वीरों को हराना बहुत कठिन काम है और बिना जीत के घेरा उठाने से उसके सैनिको का मनोबल टूट सकता है साथ ही उसकी बदनामी होगी वो अलग….सो उसने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया |
Related image
चितौड़ के किले में अल्लाउद्दीन का स्वागत रत्नसिंह ने अतिथि की तरह किया |रानी पद्मिनी का महल सरोवर के बीचों बीच था सो दीवार पर एक बड़ा आइना लगाया गया रानी को आईने के सामने बिठाया गया | आईने से खिड़की के जरिये रानी के मुख की परछाई सरोवर के पानी में साफ़ पड़ती थी वहीँ से अल्लाउद्दीन को रानी का मुखारविंद दिखाया गया | सरोवर के पानी में रानी के मुख की परछाई में उसका सौन्दर्य देख देखकर अल्लाउद्दीन चकित रह गया और उसने मन ही मन रानी को पाने के लिए कुटिल चाल चलने की सोच ली! जब रत्नसिंह अल्लाउद्दीन को वापस जाने के लिएकिले के द्वार तक छोड़ने आये तो अल्लाउद्दीन ने अपने सैनिको को संकेत कर रत्नसिंह को धोखे से गिरफ्तार कर लिया |रत्नसिंह को कैद करने के बाद अल्लाउद्दीन ने प्रस्ताव रखा कि रानी को उसे सौंपने के बाद ही वह रत्नसिंह को कैद मुक्त करेगा | रानी ने भी कूटनीति का जबाब कूटनीति से देने का निश्चय किया और उसने अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा कि -” मैं मेवाड़ की महारानी अपनी सात सौ दासियों के साथ आपके सम्मुख उपस्थित होने से पूर्व अपने पति के दर्शन करना चाहूंगी यदि आपको मेरी यह शर्त स्वीकार है तो मुझे सूचित करे | रानी का ऐसा सन्देश पाकर कामुक अल्लाउद्दीन के ख़ुशी का ठिकाना न रहा ,और उस अदभुत सुन्दर रानी को पाने के लिए बेताब उसने तुरंत रानी की शर्त स्वीकार कर सन्देश भिजवा दिया |
उधर रानी ने अपने काका गोरा व भाई बादल के साथ रणनीति तैयार कर सात सौ डोलियाँ तैयार करवाई और इन डोलियों में हथियार बंद राजपूत वीर सैनिक बिठा दिए! डोलियों को उठाने के लिए भी कहारों के स्थान पर छांटे हुए वीर सैनिको को कहारों के वेश में लगाया गया |इस तरह पूरी तैयारी कर रानी अल्लाउद्दीन के शिविर में अपने पति को छुड़ाने हेतु चली! उसकी डोली के साथ गोरा व बादल जैसे युद्ध कला में निपुण वीर चल रहे थे | अल्लाउद्दीन व उसके सैनिक रानी के काफिले को दूर से देख रहे थे |
Related imageसारी पालकियां अल्लाउदीन के शिविर के पास आकर रुकीं और उनमे से राजपूत वीर अपनी तलवारे सहित निकल कर यवन सेना पर अचानक टूट पडे l  इस तरह अचानक हमले से अल्लाउद्दीन की सेना हक्की बक्की रह गयी और गोरा बादल ने तत्परता से रत्नसिंह को अल्लाउद्दीन की कैद से मुक्त कर सकुशल चितौड़ के दुर्ग में पहुंचा दिया |
इस हार से अल्लाउद्दीन बहुत लज्जित हुआ और उसने अब चितौड़ विजय करने के लिए ठान ली |आखिर अल्लाउद्दीन के छ:माह से ज्यादा चले घेरे व युद्ध के कारण किले में खाद्य सामग्री अभाव हो गया तब राजपूत सैनिकों ने केसरिया बाना पहन कर जौहर और शाका करने का निश्चय किया | जौहर के लिए गोमुख के उत्तर वाले मैदान में एक विशाल चिता का निर्माण किया गया | रानी पद्मिनी के नेतृत्व में 16000 राजपूत रमणियों ने गोमुख में स्नान कर अपने सम्बन्धियों को अन्तिम प्रणाम कर जौहर चिता में प्रवेश किया | थोडी ही देर में देवदुर्लभ सौन्दर्य अग्नि की लपटों में स्वाहा होकर कीर्ति कुंदन बन गया | जौहर की ज्वाला की लपटों को देखकर अलाउद्दीन खिलजी भी हतप्रभ हो गया | महाराणा रतन सिंह के नेतृत्व में केसरिया बाना धारण कर 30000 राजपूत सैनिक किले के द्वार खोल भूखे सिंहों की भांति खिलजी की सेना पर टूट पड़े!
Related imageभयंकर युद्ध हुआ गोरा और उसके भतीजे बादल ने अद्भुत पराक्रम दिखाया बादल की आयु उस वक्त सिर्फ़ बारह वर्ष की ही थी उसकी वीर गाथा का गीतकार ने इस तरह वर्णन किया –
“बादल बारह बरस रो,लड़ियों लाखां साथ |
सारी दुनिया पेखियो,वो खांडा वै हाथ ||”
इस प्रकार छह माह और सात दिन के खुनी संघर्ष के बाद 18 अप्रेल 1303 को विजय के बाद असीम उत्सुकता के साथ खिलजी ने चित्तोड़ दुर्ग में प्रवेश किया लेकिन उसे एक भी पुरूष,स्त्री या बालक जीवित नही मिला जो यह बता सके कि आख़िर विजय किसकी हुई और उसकी अधीनता स्वीकार कर सके | उसके स्वागत के लिए बची तो सिर्फ़ जौहर की प्रज्वलित ज्वाला और क्षत-विक्षत लाशे और उन पर मंडराते गिद्ध और कौवे |
रत्नसिंह युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हुए और रानी पद्मिनी राजपूत नारियों की कुल परम्परा मर्यादा और अपने कुल गौरव की रक्षार्थ जौहर की ज्वालाओं में जलकर स्वाहा हो गयी जिसकी कीर्ति गाथा आज भी अमर है और सदियों तक आने वाली पीढ़ी को गौरवपूर्ण आत्म बलिदान की प्रेरणा प्रदान करती रहेगी |
चितौड़ यात्रा के दौरान पद्मिनी के महल को देखकर स्व.तनसिंह जी ने अपनी भावनाओं को इस तरह व्यक्त किया –
Image result for rani padmini
यह रानी पद्मिनी के महल है | अतिथि-सत्कार की परम्परा को निभाने की साकार कीमतें ब्याज का तकाजा कर रही है… जिसके वर्णन से काव्य आदि काल से सरस होता रहा है,जिसके सोंदर्य के आगे देवलोक की सात्विकता बेहोश हो जाया करती थी;जिसकी खुशबू चुराकर फूल आज भी संसार में प्रसन्ता की सौरभ बरसाते हैl  उसे भी कर्तव्य पालन की कीमत चुकानी पड़ी ? सब राख़ का ढेर हो गई केवल खुशबु भटक रही है-पारखियों की टोह में | क्षत्रिय होने का इतना दंड शायद ही किसी ने चुकाया हो | भोग और विलास जब सोंदर्य के परिधानों को पहन कर,मंगल कलशों को आम्र-पल्लवों से सुशोभित कर रानी पद्मिनी के महलों में आए थे…तब सती ने उन्हें लात मारकर जौहर व्रत का अनुष्ठान किया था | अपने छोटे भाई बादल को रण के लिए विदा देते हुए रानी ने पूछा था,- ” मेरे छोटे सेनापति ! क्या तुम जा रहे हो ?” तब सोंदर्य के वे गर्वीले परिधान चिथड़े बनकर अपनी ही लज्जा छिपाने लगे; मंगल कलशों के आम्र पल्लव सूखी पत्तियां बन कर अपने ही विचारों की आंधी में उड़ गए;भोग और विलास लात खाकर धुल चाटने लगे | एक और उनकी दर्दभरी कराह थी और दूसरी और धू-धू करती जौहर यज्ञ की लपटों से सोलह हजार वीरांगनाओं के शरीर की समाधियाँ जल रही थी |कर्तव्य की नित्यता धूम्र बनकर वातावरण को पवित्र और पुलकित कर रही थी और संसार की अनित्यता जल-जल कर राख़ का ढेर हो रही थी

Comments

AUTHOR

My photo
shannomagan
To write on general topics and specially on films;THE BLOGS ARE DEDICATED TO MY PARENTS:SHRI M.B.L.NIGAM(January 7,1917-March 17,2005) and SMT.SHANNO DEVI NIGAM(November 23,1922-January24,1983)

Popular posts from this blog

भोजपुरी एक्ट्रेस त्रिशा कर मधु का MMS…सोशल मीडिया पर हुआ लीक

सोशल मीडिया पर भोजपुरी एक्ट्रेस और सिंगर त्रिशा कर मधु का MMS लीक हो गया है, जिससे वो बहुत आहत हैं, एक्ट्रेस ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां किया है, त्रिशा मधु ने इस बात को कबूल किया है कि वीडियो उन्होंने ही बनाया है लेकिन इस बात पर यकीन नहीं था कि उन्हें धोखा मिलेगा। गौरतलब है कि हाल ही में त्रिशा का सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा था जिसमें वह एक शख्स के साथ आपत्तिजनक स्थिति में नजर आ रही थीं। इस वीडियो के वायरल होने के बाद अभिनेत्री ने इसे डिलीट करने की गुहार लगाई साथ ही भोजपुरी इंडस्ट्री के लोगों पर उन्हें बदनाम करने की साजिश का आरोप लगाया। त्रिशा मधु कर ने अपने फेसबुक पेज पर एक वीडियो के साथ पोस्ट लिखा है जिसमें कहा, आप लोग बोल रहे हैं कि खुद वीडियो बनाई है। हां, हम दोनों ने वीडियो बनाया थ। पर मुझे ये नहीं मालूम था कि कल को मेरे साथ धोखा होने वाला है। कोई किसी को गिराने के लिए इतना नीचे तक गिर जाएगा, यह नहीं पता था। इससे पहले त्रिशा ने वायरल हो रहे वीडियो पर अपना गुस्सा जाहिर किया था और कहा था कि उनको बदनाम करने को साजिश की जा रही है। त्रिशा मधु कर ने सोशल मीडिया पर ए...

राखी सावंत की सेक्सी वीडियो वायरल

बॉलीवुड की ड्रामा क्वीन राखी सावंत हमेशा अपनी अजीबो गरीब हरकत से सोशल मिडिया पर छाई रहती हैं। लेकिन इस बार वह अपनी बोल्ड फोटो के लिए चर्चे में हैं. उन्होंने हाल ही में एक बोल्ड फोटो शेयर की जिसमें वह एकदम कहर ढाह रही हैं. फोटो के साथ-साथ वह कभी अपने क्लीवेज पर बना टैटू का वीडियो शेयर करती हैं तो कभी स्नैपचैट का फिल्टर लगाकर वीडियो पोस्ट करती हैं. वह अपने अधिकतर फोटो और वीडियो में अपने क्लीवेज फ्लांट करती दिखती हैं. राखी के वीडियो को देखकर उनके फॉलोवर्स के होश उड़ जाते हैं. इसी के चलते उनकी फोटो और वीडियो पर बहुत सारे कमेंट आते हैं. राखी अपने बयानों की वजह से हमेशा सुर्खियों में रहती हैं.राखी अक्सर अपने रिलेशनशिप को लेकर हमेशा चर्चा में बनी रहतीं हैं. राखी कभी दीपक कलाल से शादी और लाइव हनीमून जैसे बयान देती हैं तो कभी चुपचाप शादी रचाकर फैंस को हैरान कर देती हैं. हंलाकि उनके पति को अजतक राखी के अलावा किसी ने नहीं देखा है. वह अपने पति के हाथों में हाथ डाले फोटो शेयर करती हैं लेकिन फोटो में पति का हाथ ही दिखता है, शक्ल नहीं. इतना ही नहीं सोशल मीडिया पर राखी जो भी शेयर करती हैं वह भी चर्चा ...

रानी चटर्जी की बोल्ड तस्वीरों ने हिलाया इंटरनेट

भोजपुरी इंडस्ट्री में अपने अलग अदांज से धाक जमाने वाली रानी चटर्जी अब तक 300 से ज्यादा फिल्में कर चुकी हैं. एक्ट्रेस की गिनती इंडस्ट्री की नामी एक्ट्रेस में होती है. उनकी हर अदा पर फैंस की नजर बनी रहती हैं. इस बीच वो अपनी लेटेस्ट फोटो के चलते चर्चा का विषय बन गई हैं. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब उनकी किसी हॉट फोटो ने सोशल मीडिया पर धूम मचाई हो. बल्कि ऐसा हर बार देखने को मिलता है. वहीं इस बार भी एक्ट्रेस की नई तस्वीर को खूब पसंद किया जा रहा है. साथ वो इस नई तस्वीर में बेहद हॉट और बोल्ड नजर आ रही हैं. फोटो में रानी काफी प्यारी दिख रही है. तस्वीरों में रानी का स्टाइलिश अंदाज भी उनके फॉलोअर्स का ध्यान उनकी ओर खींच रहा है. रानी चटर्जी सोशल मी़डिया पर भी काफी एक्टिव रहती हैं और अपनी हॉट सेक्सी फोटो वीडियो फैंस के साथ शेयर करती रहती हैं. वहीं उनके फैंस भी उनकी नई अपडेट पर नजर बनाए बैठे रहते हैं. अक्सर रानी के बोल्ड फोटो सोशल मीडिया पर ट्रेंड करते नजर आते हैं. हाल ही में रानी के नए लुक ने इंटरनेट को हिला दिया है. इस फोटो में रानी लाल रंग की ड्रेस में नजर आ रही हैं. इस ड्रेस में रानी अपने सेक्सी...