नोटबंदी ने देश में इस कदर जादू डाला है कि जन धन खता धारकों के खातों में लक्ष्मी की कृपा बरस रही है, नोटबंदी के 8 दिन बाद जन धन खातों में 64,252.15 करोड़ रुपये जमा हुए हैं। संसद में नवम्बर 25 को यह जानकारी दी गई। वित्त राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने लोकसभा को लिखित जवाब में बताया, "प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत देश भर में 16 नबंवर तक कुल 25.58 करोड़ खातों में 64,252.15 करोड़ रुपये जमा हुए है।"
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 3.79 करोड़ खाते हैं जहां 10,670.62 करोड़ रुपये जमा हुए हैं। उसके बाद पश्चिम बंगाल के 2.44 करोड़ खातों में 7,826.44 करोड़ रुपये जमा हुए हैं।
राजस्थान तीसरे स्थान पर है जहां के 25.58 करोड़ खातों में 5.98 करोड़ रुपये जमा हुए हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी सरकारी बैंक ने अपने कर्मचारियों को यह निर्देश नहीं दिया है कि वे खातों में 1 या 2 रुपये जमा करें, ताकि जीरो बैलेंस न दिखे।
इसी सन्दर्भ में कुछ माह पूर्व जो लिखा गया, आज चरितार्थ हो रहा है। अवलोकन करें:--
नोटबंदी ने छद्दम धर्म-निरपेक्षों की भांति छद्दम गरीबों को भी उजागर कर दिया। वास्तव में पिछली सरकारों ने जिस तरह गरीबी-गरीबी के नाम पर जनता को छला, उसी तर्ज़ पर जनता ने भी गरीब बनकर सरकारों का उपहास किया। बैंको में अधिकतर भीड़ इन्ही लोगों की थी।
आधारकार्ड पर नोट बदली की भी जाँच होनी चाहिए। घरों में काम करने वाली बाईयों ने इस अभियान में खूब धन कमाया। एक बार नोट बदलवाकर दुबारा लाइन में, यही कारण था कि बैंकों के आगे लाइन कम होने का नाम नहीं ले रही थीं।
नोटबंदी तर्ज़ पर बिजली अभियान भी हो
अब प्रश्न यह है कि जन-धन खातों में इतना धन कहाँ से आया? जिसकी गम्भीरता से जाँच अतिआवश्यक है। इतना ही नहीं, जिस तर्ज़ पर नोटबंदी अभियान को अंजाम दिया गया है, ठीक इसी तर्ज़ पर बिजली अभियान भी चलाया जाए। वास्तव में बिजली पर खर्चा केन्द्र सरकार द्धारा किया जाता है। घर से बाहर मीटर लगाना या पीले तार डालना उसका समाधान नहीं। बिजली चोरी पर इस कदम से लेशमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ा। यह मात्र एक छलावा है। घरेलू मीटर पर फ़ैक्टरियाँ चल रही है, घर वातानुकूलित है, और बिजली के बिल देखो, ऊंट के मुँह में जीरा। इस नुकसान की भरपाई कहाँ से होगी? आखिर गरीबी का छलावा कब तक चलेगा? उपरोक्त दिये लींक में छद्दम गरीबी के कुछ तथ्यों पर रौशनी डालने का प्रयास किया है।
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