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कायस्थ कौन हैं ?


सर्वप्रथम तो ये जान लें आप सब कि ना तो मै जातिवादी हुँ और ना ही मुझे जातिवादी बनने का शौक है और ना ही कायस्थ समाज को जागृत करने मे मेरा कोई स्वार्थ छिपा है। मै कल भी एक कट्टर सनातनी था आज भी एक कट्टर सनातनी हुँ और विश्वास दिलाता हुँ सनातन धर्म के प्रति मेरी ये कट्टरता भविष्य मे भी बनी रहेगी। इन शब्दों के बावजूद भी हमे कोई जातिवादी कहे तो मै बस इतना ही कहुँगा कि कुत्तो के भौकने से हाथी रास्ता नही बदला करते।
मै ‘कायस्थ समाज’ से संबंध रखता हूँ । जो मेरे मित्र इस से सर्वथा अपरिचित हैं, उनकी जानकारी के लिए बता दुँ कि उत्तर भारत के बहुलांश क्षेत्रों मे कायस्थों की जबर उपस्थिति मौजूद है, हालांकि यह समाज देश के अन्य हिस्सों मे भी विद्यमान है । इनकी जनसंख्या काफी सीमित है परंतु इस वर्ग से संबन्धित सम्मानित महापुरुषों , विद्वानो, राजनेताओ , समाज सेवियों की एक लंबी फेहरिस्त मिलेगी जिन्होंने अपनी विद्वता, कर्मठता और प्रतिभा का लोहा पूरे विश्व मे मनवाया है ।
सम्राट अकबर के नवरत्न बीरबल से लेकर आधुनिक समय मे स्वामी विवेकानंद , राजा राम मोहन रॉय , महर्षि अरविंद ,श्रीमंत शंकर देव ,महर्षि महेश योगी, मुंशी प्रेमचंद, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, प्रोफेसर जगदीश चन्द्र बसु ,डाक्टर जे के भटनागर , डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद , हरिवंश राय बच्चन , महादेवी वर्मा , लाल बहादुर शास्त्री , बीजू पटनायक , ज्योति बसु, बाल ठाकरे, अमिताभ बच्चन इत्यादि इस श्रंखला की अहम कड़ियाँ हैं ।
परंतु साथ ही समाज मे कायस्थ समाज की उत्पत्ति के बारे मे अनेक भ्रांतियाँ मौजूद हैं और इनके निर्मूलन के लिए स्वयं कायस्थ समाज की ओर से भी कभी प्रयास नही किए जाते। कायस्थों के वर्ण और गोत्र के संबंध मे अनेक शंकास्पद प्रश्न उठाए जाते रहे हैं , मसलन हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था मे इस जाति का कोई उल्लेख नही है, यह ज्ञात नही की वे ब्राह्मण हैं या क्षत्रिय या वैश्य अथवा शूद्र ?? और यह भी की वे सभी समगोत्रीय हैं, आदि तमाम प्रकार के अफवाह फैलाये जाते हैं।
अवलोकन करें:--

दुनिया में न्याय व्यवस्था के संचालन और लेखा जोखा रखने के लिए ही ब्रह्मा जी की काया से भगवान श्री चित्रगुप्त जी की उत्पत्ति हुई, श्री चित्र...
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कायस्थ गण प्रायः संकोची, विनम्र, शांतस्वभावी होते हैं तथा जातिगत अस्मिता व स्वाभिमान के प्रश्न पर भी मुखर होने के बजाय मौन और उदासीन रहकर निर्लिप्त भाव से अपना कर्म करते रहते हैं । शायद यही वजह है कि श्रष्टि की सबसे आदिम जाति होने के बावजूद भी आज वह अपनी पहचान और गौरव से वंचित है। विडम्बना भी यही है कि स्वयं कायस्थ गण भी अपनी विशिष्ट पहचान और जातिबोध को लेकर उदासीन और निर्लिप्त हैं तथा अपनी संतानों व संबंधियों को अपने जातीय गौरव और वंशाभिमान से स्वयं ही विमुख कर रहे हैं।
कायस्थ शब्द का अर्थ है – काया मे स्थित , काया मे अवस्थित यानी जो इस मनुष्य के देह मे स्थित है , उस प्राण ,उस आत्मन का नाम है कायस्थ । पौराणिक मान्यता के अनुसार जब श्रष्टि का निर्माण हुआ और मनुष्य योनि मे जब ब्रह्म प्राण काया मे अवस्थित हुए तो वह ‘ कायस्थ ‘’ कहलाया । कालांतर मे कर्म की प्रधानता को स्वीकारते हुए चातुर्वर्ण की व्यवस्था की गयी । इस प्रकार कायस्थ इन सभी चार वर्णो का मूल वर्ण है , जिसमे से प्रत्येक वर्ण ने आकार लिया ।
कुछ विद्वानो के कथनानुसार मूल कायस्थ वर्ण से विभाजित होकर जब चार वर्णो की स्थापना हुई , उसके उपरांत भी मूल विशिष्ट , कार्यदक्ष कुल समूह जिसने अपनी पहचान को इन चार वर्णो मे विलीन न कर अपना वैशिष्ट्य बोध बनाए रखा , ऐसा कुल समूह ‘ कायस्थ ‘’ कहलाया ।
कायस्थ की गणना उच्च जाति के हिन्दुओं में होती है। बंगाल में वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत उनका स्थान ब्राह्मणों के बाद माना जाता है। बहुत से विद्वानों का मत है कि, बंगाल के कायस्थ मुख्य रूप से क्षत्रिय थे और उन्होंने तलवार के स्थान पर कलम ग्रहण कर ली तथा लिपिक बन गये।
जैसोर का राजा प्रतापदित्य, चन्द्रदीप का राजा कन्दर्पनारायण तथा विक्रमपुर ( ढाका ) का केदार राम, जिसने अकबर का प्रबल विरोध किया था, अनेक वर्षों तक मुग़लों को बंगाल पर अधिकार करने जिसने नहीं दिया,वो सभी कायस्थ थे।
कायस्थों को वेदों और पुराणों के अनुसार एक दोहरी जाति का दर्जा दिया गया है। यह मुख्य रूप से उत्तर भारत में फैले हुए हैं, और ऊपरी गंगा क्षेत्र में ब्राह्मण और बाकी में क्षत्रिय माने जाते हैं। कायस्थ को निम्न भागों में बांटा गया है-
1. चित्रगुप्त कायस्थ - 'चित्रंशी' या 'ब्रह्म कायस्थ' या 'कायस्थ ब्राह्मण'
2. चन्द्रसेनीय कायस्थ प्रभु - 'राजन्य क्षत्रिय कायस्थ'
3. मिश्रित रक्त के कायस्थ - वे क्षत्रिय हैं, अदालत के अनुसार
इनके अतिरिक्त चतुर्थ प्रकार, उन गणों का है, जो रक्त से नहीं, किंतु नाम या कार्य से कायस्थ कहे जाते हैं। कायस्थ ब्राह्मण
उपर्युक्त वर्गों में पहला वर्ग ही 'कायस्थ ब्राह्मण' कहलाता है!
यही वह ऐतिहासिक वर्ग है, जो चित्रगुप्त का वंशज है। इसी वर्ग कि चर्चा सबसे पुराने पुराण और वेद करते हैं। यह वर्ग 12 उपवर्गो में विभजित किया गया है। यह 12 वर्ग चित्रगुप्त की पत्नियों देवी, शोभावति और देवी नन्दिनी के 12 सुपुत्रों के वंश के आधार पर है।
कायस्थों के इस वर्ग की उपस्थिती वर्ण व्यवस्था में उच्चतम है।
प्रायः कायस्थ शब्द का प्रयोग अन्य कायस्थ वर्गों के लिये होने के कारण भ्रम की स्थिति हो जाती है, ऐसे समय इस बात का ज्ञान कर लेना चाहिये कि, क्या बात 'चित्रंशी' या 'चित्रगुप्तवंशी'
कायस्थ की हो रही है या अन्य किसी वर्ग की।
कायस्थों का जन्मदाता भगवान 'चित्रगुप्त' महाराज को माना जाता है। माना जाता है कि, ब्रह्मा ने चार वर्ण बनाये थे- ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र । तब यमराज ने उनसे मानवों का विवरण रखने के लिए सहायता मांगी। तब ब्रह्मा 11000 वर्षों के लिये ध्यान-साधना मे लीन हो गये और जब उन्होंने आँखे खोलीं, तो एक पुरुष को अपने सामने स्याही-दवात तथा कमर मे तलवार बाँधे पाया। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि, 'हे पुरुष! क्योकि तुम मेरी काया से उत्पन्न हुए हो, इसलिये तुम्हारी संतानो को कायस्थ कहा जाएगा, और जैसा कि तुम मेरे चित्र मे गुप्त थे, इसलिये तुम्हे चित्रगुप्त कहा जाएगा।'
कायस्थ ब्राह्मणों की 12 शाखाएँ बताई गयी हैं,जो निम्नलिखित हैं-
1. माथुर 2. गौड़ 3. भटनागर 4. सक्सेना 5. अम्बष्ठ 6. निगम 7. कर्ण 8. कुलश्रेष्ठ 9. श्रीवास्तव 10. सुरध्वजा 11. वाल्मीक
12. अस्थाना
इस प्रकार यदि प्रकारांतर से देखें तो आज समस्त विश्व की मानव संताने कायस्थ हैं । जिस प्रकार हिन्दू धर्म विश्व का सनातन धर्म है और संसार का प्रत्येक धर्म इसी की कोख से निकला है , अतः विश्व का हर मानव मूलतः हिन्दू की उत्पत्ति है उसी प्रकार स्वायंभुव मनु की हर संतान कायस्थ है ।
कायस्थों के आदि देव हैं न्याय व व्यवस्था के संरक्षक व धर्मराज के अति विश्वस्त महाराज चित्रगुप्त जो स्वायंभुव मनु के अंतिम प्रजापति दक्ष की पुत्री अदिति व ब्रह्मर्षि कश्यप से उत्पन्न आदित्य कुल के गौरव थे और इसी कारण समूचा कायस्थ समाज स्वयं को ब्रह्मर्षि कश्यप का वंशज मानकर गौरवान्वित होता है और स्वयं को कश्यप गोत्र से पहचानता है।
मेरा कहने का सार बस इतना ही है कि सनातन धर्म के अन्तर्गत जितनी भी जातियां आती हैं वो सब के सब बस कायस्थ ही हैं। इसलिये मुझे गर्व है कि मै एक सनातनी कायस्थ हुँ। लेख आगे भी बाकी रह जा रहा है पर लेख ज्यादा बडा ना हो जाये इसलिये बाकी का कल पर छोडते हैं। 
अब कायस्थ समाज को राजनीती में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के लिए आगे आना होगा। बिना सिस्टम का हिस्सा बने हम सिस्टम को अपने अनुकूल नहीं बना सकते हैं। आजादी के बाद से हम कायस्थ केवल वोटर के रूप में भारतीय राजनीती का हिस्सा रहे हैं। हमें अब वोट देने के साथ ही वोट लेना भी सीखना होगा तभी समाज विकसित और संगठित होगा। समस्याएं हमारी तभी हल होंगी जब सत्ता और सशन हमारा अपना होगा। कब तक भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा के भरोसे अपनी राजनैतिक योग्यता को परवान चढ़ने की राह देखते रहेंगे। इन बड़े राजनैतिक दलों में कब तक हम अपना भविष्य तलाशने की कोशिश करते रहेंगे ?
कहा जाता है कि भाग्य तो जन्म के साथ ही लिखा जाता है, मगर एक स्थान ऐसा है जहां कागज, कलम और दवात चढ़ाने से भाग्य बदलकर नए सिरे से भाग्य का उदय हो जाता है। यह स्थान मध्य प्रदेश में महाकाल की नगरी उज्जैन में है, जहां भगवान चित्रगुप्त और धर्मराज एक साथ मिलकर आशीर्वाद देते हैं।
उज्जैन नगरी के यमुना तलाई के किनारे एक मंदिर में चित्रगुप्त एवं धर्मराज एक साथ विराजे हैं। यह स्थान किसी तीर्थ से कम नहीं है। मान्यता है कि इस मंदिर में कलम, दवात व डायरी चढ़ाने मात्र से मनोकामना पूरी हो जाती है। यही कारण है कि इस मंदिर में दर्शन करने आने वाले श्रद्घालुओं के हाथों में फल-फूल न होकर कलम, स्याही और डायरी नजर आती है।
चित्रगुप्त और धर्मराज की उत्पत्ति को लेकर अलग-अलग कथाएं है। भगवान चित्रगुप्त के बारे में कहा जाता है कि इनकी उत्पत्ति स्वयं ब्रह्मा जी के हजारों साल के तप से हुई है। बात उस समय की है जब महाप्रलय के बाद सृष्टि की उत्पत्ति होने पर धर्मराज ने ब्रह्मा से कहा कि इतनी बड़ी सृष्टि का भार मैं संभाल नहीं सकता।
ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए कई हजार वर्षो तक तपस्या की और उसके फलस्वरूप ब्रह्मा जी के सामने एक हाथ में पुस्तक तथा दूसरे हाथ में कलम लिए दिव्य पुरुष प्रकट हुआ। जिनका नाम ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त रखा।
ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त से कहा कि आपकी उत्पत्ति मनुष्य कल्याण और मनुष्य के कर्मो का लेखा जोखा रखने के लिए हुई है अत: मृत्युलोक के प्राणियों के कर्मो का लेखा जोखा रखने और पाप-पुण्य का निर्णय करने के लिए आपको बहुत शक्ति की आवश्यकता पड़ेगी, इसलिए आप महाकाल की नगरी उज्जैन में जाकर तपस्या करें और मानव कल्याण के लिए शक्तियां अर्जित करे।
कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के आदेश पर चित्रगुप्त महाराज ने उज्जैन में हजारों साल तक तपस्या कर मानव कल्याण के लिए सिद्घियां एव शक्तियां प्राप्त की। भगवान चित्रगुप्त की उपासना से सुख-शांति और समृद्घि प्राप्त होती है और मनुष्य का भाग्य उज्जवल हो जाता है। इनकी विशेष पूजा कार्तिक शुक्ल तथा चैत्र कृष्ण पक्ष की द्वितीया को की जाती है।
भगवान चित्रगुप्त के पूजन में कलम और दवात का बहुत महत्व है। उज्जैन को भगवान चित्रगुप्त की तप स्थली के रूप में जाना जाता है। धर्मराज के बारे में पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि वह दीपावली के बाद आने वाली भाई दूज पर यहां अपनी बहन यमुना से राखी बंधाने आए थे तभी से वह इस स्थान पर विराजित हैं। कहा जाता है कि धर्मराज द्वारा यहां पर अपनी बहन से दूज के दिन राखी बंधवाने के बाद से भाई दूज मनाया जा रहा है। आज भी यहां पर धर्मराज और चित्रगुप्त मंदिर के सामने यमुना सागर स्थित है। श्रद्घालुओं को इनके दर्शन व पूजन करने से मोक्ष मिलता है।
चित्रगुप्त जी के ठीक सामने चारभुजाधारी धर्मराज जी एक हाथ में अमृत कलश दो हाथों में शस्त्र एवं एक हाथ आशीर्वाद की मुद्रा के साथ विराजित है। धर्मराज की मूर्ति के दोनों ओर मनुष्यों को अपने कर्मों की सजा देते यमराज के दूत हैं। इतना ही नहीं ब्रम्हा, विष्णु महेश की भी प्रतिमाएं हैं।
" चित्रगुप्त नमस्तुभ्याम वेदाक्सरदत्रे
चित्रगुप्त जी हमारी-आपकी तरह इस धरती पर किसी नर-नारी के सम्भोग से उत्पन्न नहीं हुए... न किसी नगर निगम में उनका जन्म प्रमाण पत्र है। कायस्थों से द्वेष रखनेवालों ने एक पौराणिक कथा में उन्हें ब्रम्हा से उत्पन्न बताया... ब्रम्हा पुरुष तत्व है जिससे किसी की उत्पत्ति नहीं हो सकती, नव उत्पत्ति प्रकृति तत्व से होती है।
'चित्र' का निर्माण आकार से होता है. जिसका आकार ही न हो उसका चित्र नहीं बनाया जा सकता... जैसे हवा का चित्र नहीं होता। चित्र गुप्त होना अर्थात चित्र न होना यह दर्शाता है कि यह शक्ति निराकार है। हम निराकार शक्तियों को प्रतीकों से दर्शाते हैं... जैसे ध्वनि को अर्ध वृत्तीय रेखाओं से या हवा का आभास देने के लिये पेड़ों की पत्तियों या अन्य वस्तुओं को हिलता हुआ या एक दिशा में झुका हुआ दिखाते हैं।
कायस्थ परिवारों में आदि काल से चित्रगुप्त पूजन में दूज पर एक कोरा कागज़ लेकर उस पर 'ॐ' अंकितकर पूजने की परंपरा है। 'ॐ' परात्पर परम ब्रम्ह का प्रतीक है.सनातन धर्म के अनुसार परात्पर परमब्रम्ह निराकार विराट शक्तिपुंज हैं जिनकी अनुभूति सिद्ध जनों को 'अनहद नाद' (कानों में निरंतर गूंजने वाली भ्रमर की गुंजार) केरूप में होती है और वे इसी में लीन रहे आते हैं।
यही शक्ति सकल सृष्टि की रचयिता और कण-कण की भाग्य विधाता या कर्म विधान की नियामक है. सृष्टि में कोटि-कोटि ब्रम्हांड हैं. हर ब्रम्हांड का रचयिता ब्रम्हा,पालक विष्णु और महादेव शंकर हैं किन्तु चित्रगुप्त कोटि-कोटि नहीं हैं, वे एकमात्र हैं... वे ही ब्रम्हा, विष्णु, महेश के मूल हैं.आप चाहें तो 'चाइल्ड इज द फादर ऑफ़ मैन' की तर्ज़ पर उन्हें ब्रम्हा का आत्मज कह सकते हैं।
वैदिक काल से कायस्थ जान हर देवी-देवता, हर पंथ और हर उपासना पद्धति का अनुसरण करते रहे हैं चूँकि वे जानते और मानते रहे हैं कि सभी में मूलतः वही परात्पर परमब्रम्ह (चित्रगुप्त) व्याप्त है.... इसलिए कायस्थों का सभी के साथ पूरा ताल-मेल रहा. कायस्थों ने कभी ब्राम्हणों की तरह इन्हें या अन्य किसी को अस्पर्श्य या विधर्मी मान कर उसका बहिष्कार नहीं किया।
निराकार चित्रगुप्त जी कोई मंदिर, कोई चित्र, कोई प्रतिमा. कोई मूर्ति, कोई प्रतीक, कोई पर्व,कोई जयंती,कोई उपवास, कोई व्रत, कोई चालीसा, कोई स्तुति, कोई आरती, कोई पुराण, कोई वेद हमारे मूल पूर्वजों ने नहीं बनाया चूँकि उनका दृढ़ मत था कि जिस भी रूप में जिस भी देवता की पूजा, आरती, व्रत या अन्य अनुष्ठान होते हैं सब चित्रगुप्त जी के एक विशिष्ट रूप के लिये हैं। उदाहरण खाने में आप हर पदार्थ का स्वाद बताते हैं पर सबमें व्याप्त जल (जिसके बिना कोई व्यंजन नहीं बनता) का स्वाद अलग से नहीं बताते।
यही भाव था... कालांतर में मूर्ति पूजा प्रचालन बढ़ने और विविध पूजा-पाठों, यज्ञों, व्रतों से सामाजिक शक्ति प्रदर्शित की जाने लगी तो कायस्थों ने भी चित्रगुप्त जी का चित्र व मूर्ति गढ़कर जयंती मानना शुरू कर दिया. यह सब विगत ३०० वर्षों के बीच हुआ जबकि कायस्थों का अस्तित्व वैदिक काल से है.
वर्तमान में ब्रम्हा की काया से चित्रगुप्त के प्रगट होने की अवैज्ञानिक, काल्पनिक और भ्रामक कथा के आधार पर यह जयंती मनाई जाती है जबकि चित्रगुप्त जी अनादि, अनंत, अजन्मा, अमरणा, अवर्णनीय हैं I
एक अतिमहत्वपूर्ण जानकारी :--

प्रसंग : जब भगवान राम के राजतिलक में निमंत्रण छुट जाने से नाराज भगवान् चित्रगुप्त ने रख दी थी कलम !!

कायस्थ खबर डेस्क I परेवा काल शुरू हो चुका है और आज के दिन कायस्थ समाज कलम का प्रयोग नहीं करता है यानी किसी भी तरह का का हिसाब कितना नहीं करता है I कई लोगो के इस पर फ़ोन आये की आखिर ऐसा क्यूँ है की पश्चिमी उत्तरप्रदेश में कायस्थ दीपावली के पूजन के कलम रख देते है और फिर कलम दवात पूजन के दिन ही उसे उठाते है I
इसको लेकर सर्व समाज के भी कई सवाल अक्सर लोग कायस्थों से करते है, ऐसे में अपने ही इतिहास से अनभिग्य कायस्थ युवा पीड़ी इसका कोई समुचित उत्तर नहीं दे पाती है I कायस्थ खबर ने जब इसकी खोज की तो इससे सम्बंधित एक बहुत रोचक घटना का संदर्भ हमें किवदंतियों में मिला I
कहते है जब भगवान् राम दशानन रावण को मार कर अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके खडाऊं को राजसिंहासन पर रख कर राज्य चला रहे राजा भरत ने  गुरु वशिष्ठ को भगवान् राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को सन्देश भेजने की वयवस्था करने को कहा I गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दीं I
ऐसे में जब राज्यतिलक में सभी देवीदेवता आ गए तब भगवान् राम ने अपने अनुज भरत से पूछा चित्रगुप्त नहीं दिखाई दे रहे है इस पर जब खोज बीन हुई तो पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमत्रण पहुंचाया ही नहीं था जिसके चलते भगवान् चित्रगुप्त नहीं आये I इधर भगवान् चित्रगुप्त सब जान तो चुके थे और इसे भी नारायण के अवतार प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया I
सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे , प्राणियों का का लेखा जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था की किसको कहाँ भेजे I तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुएभगवान राम ने अयोध्या में भगवान् विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर ( श्री अयोध्या महात्मय में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्यफल प्राप्त नहीं होता।) में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमायाचना की, जिसके बाद नारायण रूपी भगवान राम के आदेश मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग ४ पहर (२४ घंटे बाद ) पुन: कलम की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया I कहते तभी से कायस्थ दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं और यम द्वीत्या के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम दवात पूजन करके ही कलम को धारण करते है
कहते है तभी से कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से  दान लेने का हक़ भी कायस्थों को ही है I
कैसी लगी आपको कलम दावत पूजन से सम्बंधित ये अद्भुद जानकारी, अपने विचार हमें कमेन्ट बाक्स में दें , अगर ऐसी ही कोई जानकारी आपके भी पास है तो हमें मेल करें या फ़ोन करे आपके नाम से ही जानकारी पब्लिश की जायेगी
प्रस्तुति : डा बी बी एस रायजादा  (पूर्व संयुक्त निदेशक,उच्च शिक्षा उत्तर प्रदेश ), सहयोग : धीरेन्द्र श्रीवास्तव(इलाहाबाद) : शोध : रुपिका भटनागर एवं आशु भटनागर 
विश्व कायस्थ संघ से निम्न :--
चित्रगुप्त टीम ने 2 महीने की मेहनत कर भारत के समस्त राज्यों से कायस्थ  जनसँख्या जानने की कोशिश की है जिसके अनुसार सूची तयार हुई हैे। उम्मीद है कायस्थ अपनी शक्ति पहचाने और एकजुट होकर कार्य करे :

1) जम्मू कश्मीर : 2 लाख + 4 लाख विस्थापित
2) पंजाब : 9 लाख
3) हरयाणा : 14 लाख 
4) राजस्थान : 78 लाख 
5) गुजरात : 60 लाख 
6) महाराष्ट्र : 45 लाख 
7) गोवा : 5 लाख
8) कर्णाटक : 45 लाख 
9) केरल : 12 लाख 
10) तमिलनाडु : 36 लाख  
11) आँध्रप्रदेश : 24 लाख 
12) छत्तीसगढ़ : 24 लाख 
13) उड़ीसा : 37 लाख 
14) झारखण्ड : 12 लाख 
15) बिहार : 90 लाख 
16) पश्चिम बंगाल : 18 लाख
17) मध्य प्रदेश : 42 लाख  
18) उत्तर प्रदेश : 2 करोड़ 
19) उत्तराखंड : 20 लाख 
20) हिमाचल : 45 लाख 
21) सिक्किम : 1 लाख 
22) आसाम : 10 लाख
23) मिजोरम : 1.5 लाख 
24) अरुणाचल : 1 लाख 
25) नागालैंड : 2 लाख 
26) मणिपुर : 7 लाख 
27) मेघालय : 9 लाख 
28) त्रिपुरा : 2 लाख

सबसे ज्यादा कायस्थ वाला राज्य: उत्तर प्रदेश

सबसे कम कायस्थ वाला राज्य : सिक्किम

सबसे ज्यादा कायस्थ  राजनैतिक वर्चस्व : पश्चिम बंगाल

सबसे ज्यादा प्रतिशत वाला राज्य : उत्तराखंड में जनसँख्या के 20 % कायस्थ

अत्यधिक साक्षर कायस्थ राज्य : 
केरल और हिमाचल

सबसे ज्यादा अच्छी आर्थिक स्तिथि में कायस्थ  : आसाम 

सबसे ज्यादा कायस्थ मुख्यमंत्री वाला राज्य : राजस्थान

 सबसे ज्यादा कायस्थ विधायक वाला राज्य : उत्तर प्रदेश
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भारत लोकसभा में कायस्थ :48 %

भारत राज्यसभा में कायस्थ  : 36 %

भारत में कायस्थ राज्यपाल : 50 %

भारत में कायस्थ कैबिनेट सचिव : 33 %

भारत में मंत्री सचिव में कायस्थ 54%

भारत में अति०सचिव कायस्थ : 62%

भारत में पर्सनल सचिव कायस्थ 70%

यूनिवर्सिटी में कायस्थ वी शी 51%

सुप्रीम कोर्ट में कायस्थ  जज: 56%

हाई कोर्ट में कायस्थ जज 40 %

भारतीय राजदूत कायस्थ  : 41%

पब्लिक अंडरटेकिंग कायस्थ :

केंद्रीय : 57%

राज्य : 82 % 

बैंक में कायस्थ : 57 %

एयरलाइन्स में कायस्थ : 61% 

 IAS कायस्थ 72%

IPS कायस्थ: 61%

टीवी कलाकार एव बॉलीवुड कायस्थ : 83% 

CBI Custom कायस्थ : 72%

Comments

C k said…
मै महाराष्ट्र से हू.हमारे यहाँ कायस्थ स्वयं को चन्द्रसेनिय कायस्थ कहते हैं.उन्हें क्षत्रिय वर्णीय माना जाता हैं. चन्द्रसेनिय कायस्थों में जनेऊ बंधनकारक हैं व् उन्हें मासाहार करने की भी अनुमति हैं. महाराष्ट्र के ब्राह्मण से उनके विवाह सम्बन्ध आम बात है
Unknown said…
Very good information provided by you...
Apka hriday se dhanyawad
Unknown said…
एक ब्राह्मण परिवार की कन्या ने मेरे विवाह प्रस्ताव पे मुझे उत्तर देते हुए कहा था कि तुम्हारे परिवार के लोगो को घर आने पर अपमानित करके निकाल दिया जाएगा। ये बात आज से लगभग 8 वर्ष पूर्व की है किंतु मुझे टैब से इस निम्न ब्राह्मणी विचार से घृणा सी हो चली है।
उत्तर प्रदेश में आज भी ब्राह्मण अपने को श्रेष्ठ मानते हुए कायस्थों में अपनी लड़की का विवाह नहीं करते हैं, ऐसे में उन्हें कैसे समझाया जाए, क्या कोई कायस्थ समाज का सदस्य इस मामले में सहयोग कर सकता हैं,
Unknown said…
Ek hi comment kar sakta hoon ki apni pakad samaj mein dhila mat chodna varna brahman nicha dikhaney mein koi kor kasar nhi Chorley.
Unknown said…
Jo log shaddi ke bisay main bol Raha hain unhi ke liye hain . Manusmriti main ullekh hain ki " santusto Varys varta varta varta tathaibo cha. Yasminneba kule nittyang kalyanang Tatra boi dhrubam." Means. Gun, karm, aur swavab Ko chunte huye jis kul main stri o purush prassanno hote hain oha Sukh Anand aur dhan ki briddhi hota hain.
Unknown said…
i praud of u and your team sir kal hamara time bhi ayega
Kunal saxena said…
भाई हम कायस्थ कलम के लिये जाने जाते है। ब्राह्मण हमे अपना माने या न माने उसकी हमे कोई जरूरत नही। हमे तो बस योग्य होना चाहिये। ब्राह्मणों की लड़कियों से शादी करना कोई जरूरी नही
Unknown said…
Pahli aapkelekh mai kai galat tathya hai.jaise birbal rajarammohan Ray are not kayasth.up mai sabse jyada kayasth mla nahi 50 percent rajya pal nahi sabse jyada kayasth c m aassam aur bangal mai hua.n ki rajsthan mai.up mai kebal 4 mla hai.
[17/11, 10:58 pm] Ashwani Srivastava: जय हो।
ब्राम्हण कुल दो वंश का है जिसकी जानकारी बहुत कम है :-
(1) ऋषिवंशी ब्राम्हण।
(2) कायस्थवंशी ब्राम्हण।
कायस्थवंशी ब्राम्हण को ही कलियुग में द्विज क्षत्रिय कहा गया है जिनमे श्रीवास्तव , माथुर , भटनागर , सक्सेना , निगम ,सूर्यध्वज, अस्थाना , अम्बष्ठ ,कुलश्रेष्ठ ,कर्ण , वाल्मीकि, गौड़ हुवे है।
जिनका पौराणिक इतिहास मौजुद है।
राजा चित्र/चित्रगुप्त , राजा सुररथ , राजा चित्ररथ , राजा कैथिया , राजा चोल , सम्राट विक्रमादित्य , सम्राट ललियादित्य मुक्तपिड , राजा प्रतापादित्य , रुद्रमा देवी , इत्यादि।
कैथिया राजवंश ,पाल , कर्कोटक , पलवल , वर्मन ,काकतीय , विजयनगरम इत्यादि इत्यादि राजवंश हुवे है।
कायस्थवंशी ब्राम्हण , पंच गौड़ ब्राम्हण में से एक द्वादश गौड़ ब्राम्हण हुवे है। जो आदि युग में ब्राम्हण एवं कलियुग में द्विज क्षत्रिय हुवे है।
[17/11, 11:41 pm] Ashwani Srivastava: 7 वी शताब्दी में कायस्थवंशी लोगो ने अपने वंश को वर्ण ब्यवस्था से अलग करके एक नई जातिगत आधार दे दिया जिसके कारण आज तक लोग सत्य से अनभिज्ञ है।
जायद जैन धर्म और बौद्ध धर्म के प्रभाव से हुवा है।
[17/11, 11:56 pm] Ashwani Srivastava: यही सारांश है कायस्थों का
[17/11, 11:56 pm] Ashwani Srivastava: बाकी लोग भटकते रहते हैं।
[17/11, 11:58 pm] Ashwani Srivastava: माथुर कायस्थवंशी समाज की जो बिल्कुल सही है।
[17/11, 11:58 pm] Ashwani Srivastava: समाज में कायस्थों का स्थान

९ वीं शताब्दी के लगभग कायस्थ जाति ने हिन्दू समुदाय में वर्णविहीन स्थान बना लिया था। अपनी उत्पति के साथ ही यह जाति आभिजात वर्ग से सम्वंधित रही थी। मेवाड़ में इस जाति का माथुर शाखा विद्यमान थी। इनमें पुन: प्रशाखा के रुप में भटनागर की श्रेणी प्राप्त हेती है जो पंजाब के भटनेर क्षेत्र से देशाटन करने वाले थे। श्रीवास्तव, कटारिया, निगम, सक्सेना आदि कायस्थों की प्रशाखाएँ थी। विवाह-सम्बन्धों का प्रचलन सिर्फ अन्तर्शाखा और प्रशाखा से तक ही सीमित था।

महाराण द्वारा स्वीकृत पट्टों, परवानों व आदेशों पर ठसही' का निशान लगाने वाले ठसहीवाला' और राजकीय-मंत्रालय का काम करने वाले ठबख्शी' कहलाते थे। प्राचीन कालीन पंचकूल (पंचायती निर्णय) की समिति का घराना ठपंचोली' कायस्थ कहलाने लगे थे। प्रकार्यात्मक दृष्टि से यह जाति विद्ववा में ब्राह्मण-गुणों, राज व्यवस्था में वैश्व-गुणों एवं वीसा में राजपूत-गुणों से युक्त रही थी। अपने इस वंशानुगत गुणों के कारण ये मेवाड़ राज्य की सैनिक और असैनिक सेवा करते रहे थे। कामदार, कुशल कुटनीतिक, प्रशासक, राज अधिकारी, कानून विशेषज्ञ, महासहानी, लेखापाल, रोकड़िया तथा लिपिक के रुप में उनका एक विशेष स्थान था। महाराणा व सामन्तों से निकट सम्पर्क में रहने के कारण इन्हे इनाम तथा जीविकोपार्जन के लिए भूमि आदि प्राप्त होती रहती थी। इस प्रकार भू-ग्रहिता कायस्थ स्वत: कृषकों की श्रेणी में आ जाते थे किन्तु इनकी भूमि पर कृषि-कार्य इनके घरेलू दास अथवा गाँव के अन्य कृषकों के द्वारा किया जाता था।

मांस-सदिरा के प्रयोग के सम्बन्ध में इस जाति में कोई प्रतिबन्ध नहीं था। अत: इसे विचलित-ब्राम्हण के रुप में भी माना जाता था। सामाजिक-आर्थिक प्रतिष्ठा में यह जाति राजपूतों व वैश्यों के समान स्तर पर रही।
[17/11, 11:58 pm] Ashwani Srivastava: ये मेवाड़ राजस्थान की लेख है
Unknown said…
बड़ा कन्फ्यूज़न हो प्रमाण ही तो ढ़ूढ रहा हूँ।
मेरा email ID:amitabhsrivastava79@gmail.com है कृपया साक्ष्य प्रेषित कर दें जैसा कि आपने वर्णन किया है। आपकी महान कृपा होगी।
Unknown said…
Bhai ishwar ek hai or hum sub uski santan hai, duniya ko iswar ne barna hai
Unknown said…
Nice information sir thank you
Unknown said…
Mere bade bhai log mujhe ye btaiye ki
Sinduriya kayashth koun hote hai or unka
Kayashth jati se kya taluk hai
kayasth are best in every field💪💪💪💪
sabhi varno ka mul varn kayasth h💪💪
jay chitransh
Unknown said…
Kshatriya pariwar ki ladki hai or hum dono ek dusre se pyaar karte hai,lekin ladki ke ghar walo ko kaise samjhaye. please help
Unknown said…
कायस्थ सबसे श्रेष्ठ है ये आपने सही कहा पर ब्रह्मा विष्णु महेश ककि तरह हि मूल है ये मै नही मानती हू क्यू कि ये संसार परमशक्ति के द्वरा हुया है और वो परमशक्ति महादेव है महादेव मे अदिशाक्ती निर्मित है संसार कि रचना सतयुग मे हुई है और उससे पहले परमशक्ति कि उत्पति हुई हैं तबी वेदिक काल से ही स्श्वुलींग कि पूजा होती आयी है
Unknown said…
🚩🚩Jai sri Chitraguptay namah 🚩🚩
Mai up se hu yha 2 caror caysath h ham log milkar rhana chahiye ham log bhot kuch kar skte h apne bharat ke liye


Ankit Srivastav (9076752349)
🙏🙏🙏🙏🙏
Insab ke beech sirf itna kahunga ki hum sarvshresth hote huye bhi apni Shakti ko nahi pahchaante aur kuch kayasth bhai bahan apne jaati ko nimn samajhte hain hame rashtriya munch par logo ko jagrit karne ki jarurat hai nahi to ekdin kayasth ka astitva samapt ho jayega kripa karke meri baato ko sangyan me le aur ek kadam kayasth samaj ke liye uthaye🙏🙏
Mai apni taraf se har disa me prayas kar raha aapbhi hamara sath de mo.no.(8840606601 only for kayasth)

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