पुरानी दिल्ली में औरंगजैब के जमाने का स्कुल अब बंद होने जा रहा है। इस स्कुल का नाम एंगलो अरेबिक है और यह पुरानी दिल्ली का 324 साल पुराना स्कूल है। जानकारी के मतुाबिक, इस स्कुल से देश के नामचीन लोगों ने पढाई की है। स्कुल के बंद होने की वजह अध्यापकों की कमी को बताया जा रहा है। बता दें कि इस स्कूल में 1800 छात्र ही पढ़ाई करने के लिए बचें है।
इन हस्तियो ने की इस स्कूल से पढ़ाई
पूर्व सासंद एम अफजल ने इस स्कूल से अपनी शुरुआती शिक्षा पूरी की है। अफजल का कहना है कि आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों ने इस स्कुल से पढ़ाई की शुरुआत की क्योंकि प्राइवेट स्कुल के महंगे होने की वजह से उनमे पढ़ नहीं सके। वहीं यही कहा जाता है कि कई अभिभावकों की उम्मीदों की किरण इस स्कूल से जुड़ी हुई है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सैय्यद अहमद खान और भारतीय हॉकी लीजेंड मिर्जा एमएन मसूद भी इस स्कूल के छात्र रहे हैं। वहीं पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी, पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी. इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर के अध्यक्ष सिराजुद्दीन कुरैशी, मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी के कुलपति असलम परवेज और प्रख्यात ऊर्दू प्रोफेसर गोपीचंद नारंग भी यहां से पढ़ाई कर चुके है।
दिल्ली के अजमेरी गेट में स्थित
पूरानी दिल्ली के अजमेरी गेट स्थित यह स्कूल सरकारी सहायता प्राप्त है। बता दें कि यह स्कूल 1990 से छठी कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा तक की पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम से कराता रहा है। स्कूल के प्रिंसिपल का कहना है कि 2008 से एक भी अध्यापक की नियुक्ति नहीं हूई है। गौरतलब है कि 2008 में ही सात अध्यापक और एक गार्ड की नियुक्ति हुई थी।
मंत्रालय ने लौटा दी प्रमोशन वाली फाइल
एनबीटी की खबर के मुताबिक, स्कूल ने 44 अध्यापकों के प्रमोशन वाली फाइल शिक्षा मंत्रालय़ को भेजी थी लेकिन मंत्रालय ने बिना किसी वजह के फाइल को वापस कर दिया। जानकारी के मुताबिक मंत्रालय के इस फैसले से स्कूल को बहुत बड़ा झटका लगा। वहीं स्कूल को 31 अध्यापकों की जरुरत है।
अनुबंधीय अध्यापकों के भरोसे था स्कूल
शिक्षा विभाग अध्यापकों के प्रमोशन को लेकर नकारात्मक रुख अपनाए हुआ है। विभाग की शर्ते है कि नयें अध्यापकों की नियुक्ति के लिए स्कूल के किसी भी अध्यापक को प्रमोशन नहीं दिया जाएगा क्योंकिं जब तक वे 44 मामलें लंबित रहेंगे तब तक कोई नियुक्ति नहीं होगी। गौरतलब है कि स्कूल में अस्थायी तौर पर पढ़ाने वाले अध्यापकों से काम चलाया जा रहा है और 25 नए अनुबंधीय अध्यापकों की नियुक्ति भी की गई है।
फंड की कमी के चलते हुआ बुरा हाल
स्कूल को हेरिटेज का दर्जा मिलने से इसकी मरम्मत नहीं करवाई जा सकती है और इसके लिए दिल्ली विकास बोर्ड अधिकृत है। बता दें कि इस स्कूल में खेल का सबसे बड़ा मैदान है लेकिन फंड की कमी के चलते इसकी भी हालत खस्ता होती जा रही है। गौरतलब है कि 1692 में गजीउद्दीन खान के इस स्कूल की स्थापना की थी और यह एशिया के सबसे पुराने स्कुलों में से एक है।
कई वर्ष इस स्कूल के एक हिस्से में दिल्ली कॉलेज, जिसे आज ज़ाकिर हुसैन कॉलेज के नाम से जाना जाता है, था। और इसी कॉलेज ने मुझ समेत न जाने कितने विद्यार्थी देश को दिए। जहाँ तक स्कूल ग्राउंड की बात है उस पर अपने विद्यार्थी जीवन से ही अनदेखा किया जा रहा था। जबकि उस समय धन की कोई समस्या भी नहीं थी।
स्कूलों की बदतर हालत के लिए सरकार ही दोषी
वास्तव में यदि गंभीरता से विश्लेषण किया जाने पर प्रशासनिक लापरवाही ही उजागर होगी। पब्लिक स्कूलों के खुलने से अधिकांश सरकारी एवं मान्यता प्राप्त स्कूलों के बद से बदतर स्थिति होने के लिए केवल और केवल सरकार ही ज़िम्मेदार है।
अधिकतर मुस्लिम अपने बच्चों को इसी स्कूल में भेजते थे। लेकिन गैर-मुस्लिम अपने बच्चों को दरिया गंज स्थित ए.एस.वी.जे. संस्कृत स्कूल, जैन स्कूल,रामजस, डीएवी एवं कमर्शियल, खालसा एवं फ्रांसिस के अतिरिक्त चावड़ी बाजार में आर्य समाज और जामा मस्जिद पर इन्द्रप्रस्थ कन्या आदि स्कूल थे। इन स्कूलों में इतनी प्रतिस्पर्धा थी, जिसका शब्दों में उल्लेख करना सूरज को दीया दिखाना है। आज क्या हालात हो गयी है इन स्कूलों की। किसी भी दिल्ली या केन्द्र सरकार ने चिन्ता नहीं की। बेला रोड स्थित घटा मस्जिद के निकट गवर्नमेंट स्कूल में पढ़ते थे, लेकिन रामजस स्कूल के पीटी अध्यापक का उस स्कूल तक डर था। आज अध्यापक का किसको डर है ? इसकी ज़िम्मेदार भी दिल्ली एवं केंद्र सरकारें हैं। संस्कृत स्कूल हमारे समय में "गाँधी टोपी" स्कूल के नाम से चर्चित था। आज जिस नेता को देखो गाँधी की माला जप रहा है,लेकिन जिन स्कूलों देश को एक से बढ़कर एक विद्धवान, स्वतन्त्रता सैनानी दिए, उन स्कूलों की इतनी दुर्दशा। बहुत शर्म की बात है। आरक्षण पहले भी था, लेकिन आज इतना अधिक शोर हो गया है,दूसरी श्रेणी वालों को नौकरी करने में मुश्किल हो रही है। स्कूलों की हालात सुधारने के हर पहलु पर संकीर्णता से विचार करना होगा। आज स्कूल केवल प्रमाण-पत्रों के लिए है, वास्तविक शिक्षा तो माँ-बाप को बच्चे की ट्यूशन लगवाकर ही होती है। आज नर्सरी से लेकर उच्चतर शिक्षा तक 70 से 80 प्रतिशत विद्यार्थी ट्यूशन पर ही आश्रित हैं। जितना बड़ा स्कूल उतनी मोटी ट्यूशन फीस।
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