जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में जून 22 को मारे गए 4 आतंकवादियों के निशाने पर 28 जून से शुरू हो रही अमरनाथ यात्रा भी थी। मारे गए आतंकियों का रिश्ता इस्लामिक स्टेट जम्मू ऐंड कश्मीर (आईएसजेके) से था। मारे गए आतंकियों में आईएसजेके का चीफ दाऊद अहमद सोफी भी शामिल है।
खबरों के मुताबिक इस बात की आशंका थी कि इन आतंकियों ने अमरनाथ यात्रा में हमले की योजना बनाई हो क्योंकि इन्हें तीर्थयात्रा के मार्ग में पड़ने वाले खिर्रम गांव में छिपाया गया था। दरअसल, आईएसजेके तहरीक-उल-मुजाहिदीन का पुनर्निर्मित रूप है। सूत्रों की मानें तो यह 90 के दशक से शुरुआती दिनों से घाटी में ऐक्टिव था लेकिन बाद कई वर्षों तक यह निष्क्रिय भी पड़ा रहा। जम्मू-कश्मीर के डीजीपी एसपी वैद्य का दावा है कि आईएसजेके के केवल 8-10 सक्रिय आतंकी हैं, जिसमें 6 को मार दिया गया है।
आईएस का खौफनाक मॉडल, आईएसजेके की कोशिश
आईएसजेके इस्लामिक स्टेट द्वारा बताए मॉडल को अपनाते हुए पूरे विश्व में उसके द्वारा तैयार किया गया जिहाद कायम करना चाहता है। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि आईएस और जम्मू-कश्मीर के बीच कोई खास रिश्ता है। पिछले आतंकी हमलों के बाद आईएस नाम के लिए दावा किया जा रहा था और आईएसजेके ने आईएस को जम्मू-कश्मीर के युवाओं के बीच चर्चित करने की कोशिश की।’
आईएसजेके इस्लामिक स्टेट द्वारा बताए मॉडल को अपनाते हुए पूरे विश्व में उसके द्वारा तैयार किया गया जिहाद कायम करना चाहता है। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि आईएस और जम्मू-कश्मीर के बीच कोई खास रिश्ता है। पिछले आतंकी हमलों के बाद आईएस नाम के लिए दावा किया जा रहा था और आईएसजेके ने आईएस को जम्मू-कश्मीर के युवाओं के बीच चर्चित करने की कोशिश की।’
मुगीस अहमद मीर को दफनाते वक्त नारेबाजी
जम्मू-कश्मीर सरकार घाटी में युवाओं के बीच बढ़ते आईएस के आकर्षण को पहचानने में नाकामयाब रही। गौरतलब है कि पिछले वर्ष जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में तहरीक-उल-मुजाहिदीन के आतंकी मुगीस अहमद मीर को दफनाते समय लोगों ने ‘ना हुर्रियतवाली शरीयत, ना हुर्रियतवाली आजादी, कश्मीर बनेगा दारुल इस्लाम’ जैसे नारे लगाए थे।
जम्मू-कश्मीर सरकार घाटी में युवाओं के बीच बढ़ते आईएस के आकर्षण को पहचानने में नाकामयाब रही। गौरतलब है कि पिछले वर्ष जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में तहरीक-उल-मुजाहिदीन के आतंकी मुगीस अहमद मीर को दफनाते समय लोगों ने ‘ना हुर्रियतवाली शरीयत, ना हुर्रियतवाली आजादी, कश्मीर बनेगा दारुल इस्लाम’ जैसे नारे लगाए थे।
आईएस के झंडे में लपेटकर निकाली थी अंतिम यात्रा
सुरक्षाबलों ने श्रीनगर के बाहरी इलाके जकूरा में मुठभेड़ के दौरान मुगीस अहमद मीर को मार गिराया था। मुगीस के समर्थकों ने उसके शव को इस्लामिक स्टेट के झंडे में लपेटकर अंतिम यात्रा निकाली थी। इस नारेबाजी से सूबे में इराक और सीरिया में सक्रिय खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के प्रभाव के संकेत मिले। हालांकि, राज्य सरकार ने उस दौरान आईएस का कोई प्रभाव होने की बात से साफ तौर पर इनकार कर दिया था।
सुरक्षाबलों ने श्रीनगर के बाहरी इलाके जकूरा में मुठभेड़ के दौरान मुगीस अहमद मीर को मार गिराया था। मुगीस के समर्थकों ने उसके शव को इस्लामिक स्टेट के झंडे में लपेटकर अंतिम यात्रा निकाली थी। इस नारेबाजी से सूबे में इराक और सीरिया में सक्रिय खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के प्रभाव के संकेत मिले। हालांकि, राज्य सरकार ने उस दौरान आईएस का कोई प्रभाव होने की बात से साफ तौर पर इनकार कर दिया था।
बीटेक का छात्र बना आतंकी ईसा फाजली
सिर्फ मुगीस अहमद मीर ही नहीं बल्कि ईसा फाजली के भी आईएस नेटवर्क से जुड़े होने के संकेत मिले। बता दें कि ईसा फाजली बीटेक का छात्र था और उसके पिता गंदरबल में स्कूल के प्रधानाचार्य के रूप में कार्यरत थे। सिर्फ टीयूएम ही नहीं बल्कि कई अन्य छोटे-छोटे आतंकी संगठनों ने भी घाटी में खूब सुर्खियां बटोरीं। उदाहरण के रूप में अब्दुल कयूम नजर, जो 17 वर्षों तक कश्मीर में सक्रिय रहा। अब्दुल को हिज्बुल की कमान मिली थी और वह पाकिस्तान से लौट रहा था तभी सुरक्षा बलों ने उसे उड़ी सेक्टर के लाछीपोरा में जोरावर पोस्ट के पास मार गिराया।
सिर्फ मुगीस अहमद मीर ही नहीं बल्कि ईसा फाजली के भी आईएस नेटवर्क से जुड़े होने के संकेत मिले। बता दें कि ईसा फाजली बीटेक का छात्र था और उसके पिता गंदरबल में स्कूल के प्रधानाचार्य के रूप में कार्यरत थे। सिर्फ टीयूएम ही नहीं बल्कि कई अन्य छोटे-छोटे आतंकी संगठनों ने भी घाटी में खूब सुर्खियां बटोरीं। उदाहरण के रूप में अब्दुल कयूम नजर, जो 17 वर्षों तक कश्मीर में सक्रिय रहा। अब्दुल को हिज्बुल की कमान मिली थी और वह पाकिस्तान से लौट रहा था तभी सुरक्षा बलों ने उसे उड़ी सेक्टर के लाछीपोरा में जोरावर पोस्ट के पास मार गिराया।
इंडियन आर्मी की वॉन्टेड लिस्ट में था अब्दुल कयूम
बता दें कि 1999 से आतंकी घटनाओं में शामिल रहा अब्दुल कयूम इंडियन आर्मी की वॉन्टेड आतंकियों की लिस्ट में शामिल था। उस पर 10 लाख का इनाम रखा गया था। नजर 2003 में अब्दुल मजीद डार की हत्या के बाद कयूम घाटी में होने वाली आतंकी घटनाओं में काफी सक्रिय हो गया था। कयूम पहले हिज्बुल के लिए काम करता था। 2015 में हिज्बुल चीफ सैयद सलाहुद्दीन ने उसे हिज्बुल से बाहर कर दिया था। हिज्बुल से अलग होने के बाद उसने लश्कर-ए-इस्लाम नामक आतंकी संगठन बनाया था। 2015 में जब नजर हिज्बुल से अलग हुआ तो उसे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के मुजफ्फराबाद क्षेत्र में आतंकियों को ट्रेनिंग देने वाले बेस कैंप में बुला लिया गया। अब्दुल कयूम नजर जम्मू-कश्मीर में अनगिनत निर्दोष लोगों की हत्या और कई आतंकी हमलों में शामिल रहा था। इस दौरान उसने मोबाइल टॉवर पर भी कई हमले किए थे।
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