संघ विषयों पर विशेषज्ञ या शोधकर्ता तो नहीं, लेकिन यदाकदा संघ सम्बन्धी समाचार से अवगत होने पर अपने नोट पैड पर सुरक्षित करता रहता हूँ। लगभग हर मुद्दे पर चुप्पी साधे रखने वाली कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने काफ़ी दिन बाद मुँह खोला है और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ यानी संघ के लिए ज़हर उगला है । सोनिया गांधी ने ये भी पूछा है कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का आज़ादी में क्या योगदान रहा है, यह सब इस कारण से हुआ है कि कांग्रेस और वामपंथियों ने इतिहास की वास्तविकता को छुपा कर भ्रमित इतिहास जनमानस के सम्मुख रख, तुष्टिकरण को बैसाखी बना राज करते रहे। यह तुष्टिकरण समूह यह भूल गया कि जिस दिन जनमानस को वास्तविक इतिहास का बोध होगा, इनका नाम लेने वाला तक मिलना बहुत कठिन होगा।
इतिहास के जानकारों-- जन्म बेशक आज़ादी उपरान्त हुआ हो-- को शायद स्मरण हो बटवारे के बाद पाकिस्तान के चर्चित अख़बार 'The Dawn" ने लिखा था "... if RSS was formed 10 years before its formation, partition was not possible...." जो अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि संघ की स्वतन्त्रता संग्राम में भूमिका अवश्य रही होगी। लेकिन देश को बताया आज़ादी मिली महात्मा गाँधी के चरखे और नेहरू परिवार के कारण। जो पार्टी भगत सिंह आदि को आतंकवादी बताती हो, वास्तविकता कहाँ से बताएगी।
खैर अब असली मुद्दे पर आते हैं। 6 अप्रैल 1930 को असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ तो संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार जी संघचालक का दायित्व डा.परांजपे को सौंपकर अनेक स्वयंसेवको के साथ आंदोलन में कुद पड़े । मई 1930 को नमक कानुन के बजाए जंगल कानुन तोड़कर संघ ने सत्याग्रह शुरू करने का निर्णय लिया । उन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ एक संघटन के नाते नमक सत्याग्रह में भाग नहीं लेगा लेकिन सभी स्वयमसेवक भाग ले सकते हैं ।
डा .हेडगेवार के साथ गए जत्थे में अप्पाजी जोशी ( जो बाद में संघ के सरकार्यवाह बने ) दादाराव परमार्थ (जो बाद में मद्रास प्रान्त के प्रथम प्रान्त प्रचारक बने) , आदि 12 प्रमुख स्वयंसेवक थे , उनको 9 महीने का सश्रम कारावास का दंड दिया गया था । ये भी बता दें कि उसके बाद अ.भा.शारीरिक शिक्षण प्रमुख श्री मार्तण्ड राव जोग, नागपुर के जिला संघचालक श्री अप्पाजी हल्दे आदी अनेक स्वयंसेवकों ने भाग लिया तथा शाखाओं के जत्थे ने भी सत्याग्रह में भाग लिया था। सत्याग्रह के समय पुलिस की बर्बरता के शिकार बने सत्याग्रहियों की सुरक्षा के लिए 100 स्वयंसेवकों की टोली बनायीं गयी जिसके सदस्य सत्याग्रह के समय उपस्थित रहते थे ।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का दूसरा योगदान : 8 अगस्त 1930 को मनाए गए गढ़वाल दिवस पर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ जाकर और धारा 144 तोड़कर जुलूस निकलने पर पूलिस की मार से अनेकों स्वयंसेवक घायल हुए थे ।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का तीसरा योगदान : विजयदशमी 1931 को डॉ. हेडगेवार जेल में थे । उनकी विदर्भ के अष्टीचिमुर क्षेत्र में संघ के स्वयंसेवको ने सामानांतर सरकार स्थापित कर दी । स्वयंसेवको ने अंग्रेज़ों द्वारा किए गए असहनीय अत्याचारों का सामना किया। उस समय उस क्षेत्र में 1 दर्जन से अधिक स्वयंसेवकों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया था ।
नागपुर के निकट रामटेक के तत्कालीन नगर कार्यवाह श्री रमाकांत केशव देशपांडे उपाख्य बालासाहेब देशपांडे को आंदोलन में भाग लेने पर मृत्यु दंड सुनाया गया था लेकिन आज़ादी के बाद में अपनी सरकार के समय मुक्त होकर उन्होंने बनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की थी ।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का चोथा योगदान : देश के कोने-कोने में स्वयंसेवक जूझ रहे थें।स्वयंसेवको द्वारा दिल्ली- मुजफ्फरनगर रेल लाईन पूरी तरह क्षतिग्रस्त करदी गयी। आगरा के निकट बरहन रेलवे स्टेशन को जला दिया गया| मेरठ जिले में मवाना तहसील पर झंडा फहराते समय स्वयंसेवकों पर पुलिस ने गोली चलायी जिसमे अनेकों घायल हुए थे। बाद में चतुर्थ संघचालक बने पूज्य रज्जु भैया जी ने प्रयाग में आंदोलन किया था।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का पाँचवा योगदान : राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ यानी संघ द्वारा 1942 के आंदोलन में भी माननीय दतोपन्त ठेंगड़ी जी सहित अनेको प्रमुख संघ नेताओ को आंदोलन के लिये भेजा गया था और उन्होंने लगातार बढ़ चढ़कर उसमें भाग लिया था ।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का छठा योगदान : संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रखी । यह काम न नेहरू-माउंटबेटन सरकार कर रही थी, न हरिसिंह सरकार. उसी समय, जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की, तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण दिए थे. विभाजन के दंगे भड़कने पर, जब नेहरू सरकार पूरी तरह हैरान-परेशान थी, संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज्यादा राहत शिविर लगाए थे ।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का सातवाँ योगदान : दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका थी. 21 जुलाई 1954 को दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया, 28 जुलाई को नरोली और फिपारिया मुक्त कराए गए और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गई. संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर भारत सरकार को सौंप दिया. संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में प्रभावी रूप से शामिल हो चुके थे. गोवा में सशस्त्र हस्तक्षेप करने से नेहरू के इनकार करने पर जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने गोवा पहुंच कर आंदोलन शुरू किया, जिसका परिणाम जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा सुनाए जाने में निकला. हालत बिगड़ने पर अंततः भारत को सैनिक हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा आज़ाद हुआ.
क्रांतिकारियों से संघ के रिश्ते क्या थे ? : क्रांतिकारीयो के बीच संघ के संस्थापक हेडगेवार जी का नाम “कोकीन ” था तथा शस्त्रो के लिये “एनाटमि ” शब्दो का प्रयोग किया जाता था । क्रांतिकारीयो से रिश्ते प्रगाढ़ होने के कारण ही 1928 में साण्डर्स की हत्या के बाद राजगुरू को डाक्टर जी ने अपने पास छिपाकर रखा था , ये बात इटली से आयी विदेशी कांग्रेस अध्यक्ष को जान लेनी चाहिए ।
1927 में जब ब्रिटीश सरकार द्वारा भारतीय सेनाओ को चीन भेजने के विरोध का प्रस्ताव हेडगेवार जी ने ही तैयार किया था और उस प्रस्ताव को संघ नेता ला.ख. परांजपे द्वारा सभा के सामने रखा गया था ।और इसी तिव्र विरोध के कारण भारतीय लोगो को चीन जाने से रोका गया था ।
सन 1928 में ‘साइमन कमीशन विरोधी आंदोलन के प्रचार-प्रसार एवं लोगो को जागृत करने का कार्य का दायित्व डा. हेडगेवार जी को सौंपा गया ।
सन 28 अप्रैल 1929 को वर्धा के प्रशिक्षण वर्ग में स्वयंसेवको को सार्वजनीक रूप से कहा गया ” स्वराज्य प्राप्ति के लिये वे अपना सर्वस्व त्याग हेतु तैयार रहे हमारा लक्ष्य स्वराज्य प्राप्त करना है ।
संघ ने 26 जनवरी 1930 को अपने सभी शाखाओ पर स्वतंत्रता दिवस मनाया ।
पुना शिवीर में प पू. गुरूजी तथा बाबा साहेब आप्टे ने अंग्रेजो के विरूद्ध संघर्ष करने का आह्वान किया ।
स्वयंसेवको द्वारा क्रांतिकारीयो व आंदोलनकारीयो को देश भर में शरण दी गयी थी । दिल्ली प्रान्त के माननीय संघचालक श्री हंसराज गुप्ता के निवास पर अरूणा व जयप्रकाश नारायण, पुणे के माननीय संघचालक श्री भाउसाहब देवरस के यहाँ अच्युत पटवर्धन , आंध्र प्रदेश के माननीय प्रान्त संघचालक पण्डित सातवेलकर के यहाँ क्रांतिकारी नाना पाटिल आदि ने आवास के साथ-साथ अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया गया था और सभी स्वयमसेवकों ने हर आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया था।
इतिहास के जानकारों-- जन्म बेशक आज़ादी उपरान्त हुआ हो-- को शायद स्मरण हो बटवारे के बाद पाकिस्तान के चर्चित अख़बार 'The Dawn" ने लिखा था "... if RSS was formed 10 years before its formation, partition was not possible...." जो अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि संघ की स्वतन्त्रता संग्राम में भूमिका अवश्य रही होगी। लेकिन देश को बताया आज़ादी मिली महात्मा गाँधी के चरखे और नेहरू परिवार के कारण। जो पार्टी भगत सिंह आदि को आतंकवादी बताती हो, वास्तविकता कहाँ से बताएगी।
खैर अब असली मुद्दे पर आते हैं। 6 अप्रैल 1930 को असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ तो संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार जी संघचालक का दायित्व डा.परांजपे को सौंपकर अनेक स्वयंसेवको के साथ आंदोलन में कुद पड़े । मई 1930 को नमक कानुन के बजाए जंगल कानुन तोड़कर संघ ने सत्याग्रह शुरू करने का निर्णय लिया । उन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ एक संघटन के नाते नमक सत्याग्रह में भाग नहीं लेगा लेकिन सभी स्वयमसेवक भाग ले सकते हैं ।
डा .हेडगेवार के साथ गए जत्थे में अप्पाजी जोशी ( जो बाद में संघ के सरकार्यवाह बने ) दादाराव परमार्थ (जो बाद में मद्रास प्रान्त के प्रथम प्रान्त प्रचारक बने) , आदि 12 प्रमुख स्वयंसेवक थे , उनको 9 महीने का सश्रम कारावास का दंड दिया गया था । ये भी बता दें कि उसके बाद अ.भा.शारीरिक शिक्षण प्रमुख श्री मार्तण्ड राव जोग, नागपुर के जिला संघचालक श्री अप्पाजी हल्दे आदी अनेक स्वयंसेवकों ने भाग लिया तथा शाखाओं के जत्थे ने भी सत्याग्रह में भाग लिया था। सत्याग्रह के समय पुलिस की बर्बरता के शिकार बने सत्याग्रहियों की सुरक्षा के लिए 100 स्वयंसेवकों की टोली बनायीं गयी जिसके सदस्य सत्याग्रह के समय उपस्थित रहते थे ।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का दूसरा योगदान : 8 अगस्त 1930 को मनाए गए गढ़वाल दिवस पर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ जाकर और धारा 144 तोड़कर जुलूस निकलने पर पूलिस की मार से अनेकों स्वयंसेवक घायल हुए थे ।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का तीसरा योगदान : विजयदशमी 1931 को डॉ. हेडगेवार जेल में थे । उनकी विदर्भ के अष्टीचिमुर क्षेत्र में संघ के स्वयंसेवको ने सामानांतर सरकार स्थापित कर दी । स्वयंसेवको ने अंग्रेज़ों द्वारा किए गए असहनीय अत्याचारों का सामना किया। उस समय उस क्षेत्र में 1 दर्जन से अधिक स्वयंसेवकों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया था ।
नागपुर के निकट रामटेक के तत्कालीन नगर कार्यवाह श्री रमाकांत केशव देशपांडे उपाख्य बालासाहेब देशपांडे को आंदोलन में भाग लेने पर मृत्यु दंड सुनाया गया था लेकिन आज़ादी के बाद में अपनी सरकार के समय मुक्त होकर उन्होंने बनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की थी ।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का चोथा योगदान : देश के कोने-कोने में स्वयंसेवक जूझ रहे थें।स्वयंसेवको द्वारा दिल्ली- मुजफ्फरनगर रेल लाईन पूरी तरह क्षतिग्रस्त करदी गयी। आगरा के निकट बरहन रेलवे स्टेशन को जला दिया गया| मेरठ जिले में मवाना तहसील पर झंडा फहराते समय स्वयंसेवकों पर पुलिस ने गोली चलायी जिसमे अनेकों घायल हुए थे। बाद में चतुर्थ संघचालक बने पूज्य रज्जु भैया जी ने प्रयाग में आंदोलन किया था।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का पाँचवा योगदान : राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ यानी संघ द्वारा 1942 के आंदोलन में भी माननीय दतोपन्त ठेंगड़ी जी सहित अनेको प्रमुख संघ नेताओ को आंदोलन के लिये भेजा गया था और उन्होंने लगातार बढ़ चढ़कर उसमें भाग लिया था ।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का छठा योगदान : संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रखी । यह काम न नेहरू-माउंटबेटन सरकार कर रही थी, न हरिसिंह सरकार. उसी समय, जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की, तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण दिए थे. विभाजन के दंगे भड़कने पर, जब नेहरू सरकार पूरी तरह हैरान-परेशान थी, संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज्यादा राहत शिविर लगाए थे ।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का सातवाँ योगदान : दादरा, नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका थी. 21 जुलाई 1954 को दादरा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया, 28 जुलाई को नरोली और फिपारिया मुक्त कराए गए और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गई. संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर भारत सरकार को सौंप दिया. संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में प्रभावी रूप से शामिल हो चुके थे. गोवा में सशस्त्र हस्तक्षेप करने से नेहरू के इनकार करने पर जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने गोवा पहुंच कर आंदोलन शुरू किया, जिसका परिणाम जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा सुनाए जाने में निकला. हालत बिगड़ने पर अंततः भारत को सैनिक हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा आज़ाद हुआ.
क्रांतिकारियों से संघ के रिश्ते क्या थे ? : क्रांतिकारीयो के बीच संघ के संस्थापक हेडगेवार जी का नाम “कोकीन ” था तथा शस्त्रो के लिये “एनाटमि ” शब्दो का प्रयोग किया जाता था । क्रांतिकारीयो से रिश्ते प्रगाढ़ होने के कारण ही 1928 में साण्डर्स की हत्या के बाद राजगुरू को डाक्टर जी ने अपने पास छिपाकर रखा था , ये बात इटली से आयी विदेशी कांग्रेस अध्यक्ष को जान लेनी चाहिए ।
1927 में जब ब्रिटीश सरकार द्वारा भारतीय सेनाओ को चीन भेजने के विरोध का प्रस्ताव हेडगेवार जी ने ही तैयार किया था और उस प्रस्ताव को संघ नेता ला.ख. परांजपे द्वारा सभा के सामने रखा गया था ।और इसी तिव्र विरोध के कारण भारतीय लोगो को चीन जाने से रोका गया था ।
सन 1928 में ‘साइमन कमीशन विरोधी आंदोलन के प्रचार-प्रसार एवं लोगो को जागृत करने का कार्य का दायित्व डा. हेडगेवार जी को सौंपा गया ।
सन 28 अप्रैल 1929 को वर्धा के प्रशिक्षण वर्ग में स्वयंसेवको को सार्वजनीक रूप से कहा गया ” स्वराज्य प्राप्ति के लिये वे अपना सर्वस्व त्याग हेतु तैयार रहे हमारा लक्ष्य स्वराज्य प्राप्त करना है ।
संघ ने 26 जनवरी 1930 को अपने सभी शाखाओ पर स्वतंत्रता दिवस मनाया ।
पुना शिवीर में प पू. गुरूजी तथा बाबा साहेब आप्टे ने अंग्रेजो के विरूद्ध संघर्ष करने का आह्वान किया ।
स्वयंसेवको द्वारा क्रांतिकारीयो व आंदोलनकारीयो को देश भर में शरण दी गयी थी । दिल्ली प्रान्त के माननीय संघचालक श्री हंसराज गुप्ता के निवास पर अरूणा व जयप्रकाश नारायण, पुणे के माननीय संघचालक श्री भाउसाहब देवरस के यहाँ अच्युत पटवर्धन , आंध्र प्रदेश के माननीय प्रान्त संघचालक पण्डित सातवेलकर के यहाँ क्रांतिकारी नाना पाटिल आदि ने आवास के साथ-साथ अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया गया था और सभी स्वयमसेवकों ने हर आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया था।
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