आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के मसौदे से जिन लोगों के नाम छूटे थे उनमें सरकार द्वारा नियुक्त फील्ड लेवल अफसर मोइनुल हक तक शामिल हैं, जिन्होंने खुद रजिस्टर में लोगों के नाम तस्दीक कराने के बाद दर्ज कराए। मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि असम में उदलगुडी जिले के एक शिक्षक का नाम भी एनसीआर के अंतिम मसौदे में नहीं है। जब यह मसौदा जारी हुआ तब जिन लोगों के नाम छूट गए, उनमें अजीब सा डर देखा गया। हक खुद अपना नाम गायब होने पर हैरान हैं। वह उन 55 हजार सरकारी कर्मचारियों व कांट्रेक्ट वर्करों में से एक थे, जिन्होंने एनआरसी को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया को पूरा किया। लेकिन वह खुद गिनती से बाहर हो गए। उनके मुताबिक वह इस बारे में वरिष्ठ अधिकारियों से बात करेंगे कि आखिर ऐसा हुआ कैसे? उन्हें भारतीय नागरिक क्यों नहीं माना गया?
छूटे लोगों में एक जवान व गजटेड अफसर शामिल
अन्य लोग जो छूटे हैं उनमें आर्मी जवान, सीआईएसएफ हेड कांस्टेबल, एजी ऑफिस के गजटेड अफसर और असम पुलिस स्पेशल ब्रांच के एक एसआई तक शामिल हैं। एएसआई मुख्यमंत्री सब्रनंद सोनोवाल की सुरक्षा में शामिल हैं। वह पूर्व सीएम तरुण गोगोई के भी सुरक्षा दस्ते का हिस्सा थे। इंडियन एक्सप्रेस ने मोइनुल हक के हवाले से कहा कि उनके परिवार के सभी 11 सदस्यों का नाम एनआरसी में शामिल नहीं है। वह बताते हैं कि बीते 3 साल में मैंने स्कूल में बहुत कम समय बिताया क्योंकि मैं ज्यादातर एनआरसी के काम में ही लगा रहता था। उनके छोटे भाई भी सरकारी स्कूल में टीचर हैं।
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मोइनुल ने बताया कि उन्होंने अपने दिवंगत पिता का मैट्रिक का सर्टिफिकेट भी लगाया था, जो 1949 में दरांग जिले से जारी हुआ था लेकिन उस सर्टिफिकेट को एनआरसी अधिकारियों ने स्वीकार नहीं किया। मेरी मां का नाम इसलिए नहीं शामिल किया गया क्योंकि वह अपने पैतृक रिकॉर्ड से यह प्रमाणित नहीं कर पाईं कि वह राज्य की नागरिक हैं। एनआरसी मसौदे में दिक्कतें हैं लेकिन हमें उम्मीद है कि अगले राउंड में हमारा नाम शामिल हो जाए।
उत्तराखंड में तैनात आर्मी जवान को भूल गई सरकार
29 वर्षीय सिपाही इनेमुल हक बारपेटा जिले के रहने वाले हैं और इस समय उनकी पोस्टिंग उत्तराखंड में आर्मी सर्विस कॉर्प में है। उनका भी नाम मसौदे से गायब है, लेकिन परिवारवालों का नाम शामिल है। उन्होंने बताया कि मेरे बड़े भाई का फोन आया था- मेरा नाम मसौदे में नहीं है। मैं एक सिपाही हूं, मैं कैसे भारतीय नागरिक नहीं हो सकता? मेरे भाई ने कहा-तुम परेशान मत हो वह मेरा नाम शामिल कराने के लिए कोशिश करेंगे।
इंडियन एयरफोर्स में रह चुके सैदुल्लाह का नाम भी गायब
सैदुल्लाह अहमद भी नाम न आने से घबराए हुए हैं। उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि मेरा नाम शामिल हो जाएगा। वह इंडियन एयरफोर्स में टेक्निशियन थे और इस समय गुवाहाटी में एजी ऑफिस में असिस्टेंट ऑडिट ऑफिसर (गजटेड) पद पर तैनात हैं। उन्होंने बताया-मेरे पिता मोबिद अली का नाम 1951 के एनआरसी में है। 1958 और 1967 के भूमि रिकॉर्ड में भी उनका नाम दर्ज है। साथ ही 1971 में बनी वोटर लिस्ट में भी है। इसके बावजूद मेरी बहन बारपेटा को 2012 में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने विदेशी करार दिया था।इससे संबंधित केस सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। इनकी तरह ही सीआईएसएफ के हेड कांस्टेबल उस्मान गनी का भी नाम मसौदे में शामिल नहीं है।
‘2019 का पहला रुझान :‘विपक्ष ’40 लाख’ वोटों से पीछे चल रहा है’ -- परेश रावल
एनआरसी मामले पर लगातार सियासत जारी है। विपक्षी दल 40 लाख लोगों को अवैध करार दिए जाने की वजह से लगातार मोदी सरकार पर हमला कर रहे हैं। विपक्ष इसे भाजपा की वोट राजनीति और सोचा-समझा गेम प्लान बता रही है। इसके अलावा कांग्रेस के एक सांसद ने इस पर पीएम को सफाई देने के लिए कहा है। वहीं सरकार का कहना है कि इसमें हमारा कोई हाथ नहीं है। यह सब सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में हो रहा है। इसी बीच भाजपा के सांसद और अभिनेता परेश रावल ने विपक्ष पर चुटकी ली है।परेश रावल ने ट्विट कर कहा- ‘2019 का पहला रुझान आ गया है, ‘विपक्ष ’40 लाख’ वोटों से पीछे चल रहा है।’ उनके इस ट्वीट पर कई लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। महेंद्र नाम के यूजर ने लिखा, ‘कम से कम 2 करोड़ वोट तो होंगे ही विपक्ष के पास बंग्लादेश+पाकिस्तान+रोहिंग्या घुसपैठियों को मिलाकर।’ सौरभ सिंह नाम के यूजर ने लिखा, ’40 लाख लोग कहां जाएंगे, बड़ी चिंता है। 5 लाख कश्मीरी पंडित कहां गए, किसी को चिंता नहीं। क्यों सही कहा न? परेश रावल जी।’
आम चुनावों के लिए चुनाव आयोग को 4 जनवरी 2019 तक अपनी वोटर लिस्ट तैयार करनी होगी और उसी लिस्ट के आधार पर तय होगा कि कौन सा मतदाता आगामी लोकसभा चुनावों के लिए मतदान कर सकेगा या नहीं। मुख्य चुनाव आयुक्त ने साफ किया एनआरसी की इस ड्राफ्ट रिपोर्ट का वोटर लिस्ट के ऊपर कोई असर नहीं पड़ेगा। अगर फाइनल रिपोर्ट भी आ जाती है और किसी का नाम एनआरसी में नहीं होता तब भी ऐसा नहीं है कि उस शख्स का नाम वोटर लिस्ट से यूं ही काट दिया जाएगा। उसके बाद भी चुनाव आयोग अपनी जांच करेगा कि क्या वाकई में वह शख्स देश का नागरिक है या नहीं।
असम में नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन की दूसरी ड्राफ्ट लिस्ट का प्रकाशन कर दिया गया। जिसके मुताबिक कुल 3 करोड़ 29 लाख आवेदन में से 2 करोड़ नवासी लाख लोगों को नागरिकता के योग्य पाया गया है, वहीं करीब 40 लाख लोगों के नाम इससे बाहर रखे गए हैं। NRC का पहला मसौदा 1 जनवरी को जारी किया गया था, जिसमें 1.9 करोड़ लोगों के नाम थे। दूसरे ड्राफ्ट में पहली लिस्ट से भी काफी नाम हटाए गए हैं।
नए ड्राफ्ट में असम में बसे सभी भारतीय नागरिकों के नाम पते और फोटो हैं। इस ड्राफ्ट से असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों को बारे में जानकारी मिल सकेगी। असम के असली नागरिकों की पहचान के लिए 24 मार्च 1971 की समय सीमा मानी गई है यानी इससे पहले से रहने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना गया है।
एनआरसी मसले पर विपक्ष अपने सख्त रवैये को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। अगस्त 1 को भी टीएमसी सहित दूसरे सांसदों ने राज्यसभा में काफी हंगामा किया। विपक्ष ने अमित शाह को अपनी बात खत्म करने का मौका नहीं दिया। तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि असम हमारा पड़ोसी है और हम अपने पड़ोसी के साथ हो रहे अन्याय पर चुप नहीं बैठेंगे। उनका यह भी कहना है कि असम की तरह पश्चिम बंगाल में एनआरसी लागू होता है तो गृहयुद्ध छिड़ जाएगा और रक्तपात होगा। उनके इस बयान की भाजपा और कांग्रेस ने निंदा की है।
वहीं पश्चिम बंगाल से भाजपा नेता रूपा गांगुली ने ममता पर पलटवार करते हुए कहा है, ‘क्या वह जानती हैं कि पश्चिम बंगाल में बहुत सारे अवैध घुसपैठिए रहते हैं? बंगाल में आज यही हो रहा है, क्या यह रक्तपात या गृह युद्ध से कम है? क्या उन्हें यह नहीं मालूम कि हर दूसरे दिन बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं को मारा जा रहा है।’ भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय एनआरसी को बंगाल में तो सांसद मनोज तिवारी इसे दिल्ली में भी लागू करने की मांग कर रहे हैं।
स्मरण हो, घुसपैठ की समस्या आज कोई नई नहीं है, 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद से भारत में इस राष्ट्रीय समस्या से जूझ रहा है। इस राष्ट्रीय समस्या को उठाने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी तक तुष्टिकरण अनुसरण करते हुए, बस चिंगारी छोड़ चुप होकर बैठ गयीं। यदि लेशमात्र भी वह गम्भीर होती और कार्यवाही करती, निश्चित रूप से यह समस्या तभी हल हो गयी होती, और आज गृह युद्ध की धमकी देने वाला कोई नेता पैदा नहीं होता। फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी मसौदा तैयार करते हैं, लेकिन कोई कदम उठाने में पूर्णरूप से असफल रहे।
क्या विपक्ष शून्य में जाने की तैयारी कर रहा है?
यह भारत का दुर्भाग्य है कि यहाँ देश सुरक्षा से अधिक अपनी कुर्सी यानि रोजी-रोटी को अधिक महत्व देते हैं। अवैध रूप से भारत में रह-रहे विदेशियों को बाहर करने की प्रक्रिया का विरोध करने वाले एवं गृह युद्ध की धमकी देने वाला कोई भी नेता राष्ट्र को अवैध रूप से किसी विदेश में रहकर दिखाए। एक निश्चित अवधि तक हो सकता है, कुछ न कहा जाए, लेकिन जहाँ विपक्ष ने प्रश्न किया, तुरन्त सरकार को कार्यवाही करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। क्या यही इन नेताओं का देश प्रेम है? यदि ममता बनर्जी के पीछे समस्त विपक्ष एकजुट हो खड़ा होता है, निश्चित अगला होने वाला लोकसभा चुनाव हिन्दू बनाम मुस्लिम उर्फ़ देशप्रेमी बनाम घुसपैठिये प्रेमी होने की कगार पर पहुंच जायेगा, और वह आग इतनी भयंकर होगी, ये विदेशी भी इन नेताओं की सहायता करने की बजाए आग में धकेलने में देशप्रेमियों का साथ देंगे। क्योंकि सच्चाई को झुड़ला नहीं सकता कि जो "अपने देश का नहीं हुआ, किसी और का क्या होगा।" अभिनेता-सांसद परेश रावल ने "....केवल 40 लाख से पीछे..." तो बहुत छोटी बात बोल दी, यदि समस्त विपक्ष ममता के पीछे खड़ा होकर देश को गृह युद्ध में धकेलने में साथ देते हैं, तो होने वाले लोकसभा चुनावों में विपक्ष शून्य की स्थिति में पहुँचने से कोई रोक नहीं पाएगा। ऐसी स्थिति हर देशप्रेमी, चाहे वह किसी भी धर्म,जाति अथवा समुदाय से हो, भाजपा से अपने मतभेद भुलाकर भाजपा के पक्ष में ही अपना वोट देगा।
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