2014 के जिस लोकसभा चुनाव में युवाओं को हर साल 2.5 करोड़ नौकरियां देने का सपना बेंच कर नरेन्द्र मोदी ने सत्ता का सिंहासन हासिल किया है, वह सपना अब पानी के बुलबुले की तरह फूटता जा रहा है। कहाँ वादा था नौकरियां बढ़ाने का, उल्टा वे घट रही हैं। खुद केंद्र सरकार की ओर से जारी ताजा आंकड़ों में कहा गया है कि देश की आबादी के लगभग 11 फीसदी यानी 12 करोड़ लोगों को नौकरियों की तलाश है। मतलब साफ़ है कि हर दसवां व्यक्ति बेरोजगारी का दंश झेल रहा है। सबसे चिंता की बात यह है कि इनमें पढ़े-लिखे युवाओं की संख्या ही सबसे ज्यादा है। बेरोजगारों में 25 फीसदी 20 से 24 आयु वर्ग के हैं, जबकि 25 से 29 वर्ष के बेरोजगार युवकों की तादाद 17 फीसदी है। 20 साल से ज्यादा उम्र के 14.30 करोड़ युवाओं को नौकरी की तलाश है।
देश के लेबर ब्यूरो द्वारा जारी सालाना हाउसहोल्ड सर्वे के आंकड़ों के अनुसार देश में बेरोजगारी दर पिछले पांच वर्षों के सबसे ख़राब स्तर पर है। 2015-16 के आंकड़ों की बात करें तो देश में बेरोजगारी दर पांच प्रतिशत पहुंच चुकी है। जबकि भारत में बेरोजगारी दर वित्त वर्ष 2013-14 में 4.9 प्रतिशत, 2012-13 में 4.7 प्रतिशत और 2011-12 में 3.8 प्रतिशत थी। पांचवी सालाना रोजगार-बेरोजगारी सर्वे रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो सालों में गांवों में बेरोजगारी बढ़ी है जबकि शहरी इलाकों में इसमें मामूली सुधार आया है। ग्रामीण इलाकों में 2013-14 के 4.7 प्रतिशत से 2015-16 में बढ़कर 5.1 प्रतिशत हो गई है। जबकि शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर 2013-14 के 5.5 प्रतिशत से घटकर 2015-16 में 4.7 प्रतिशत हो गई है।
इसी तरह वित्त वर्ष 2015-16 की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष 2014-15 की पहली तिमाही में विकास दर 7.9 प्रतिशत थी। रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2015-16 में भारत के कामगार की संख्या में केवल 47.8 प्रतिशत के पास नौकरी थी। जबकि दो साल पहले इनकी संख्या में 49.9 प्रतिशत लोगों के पास नौकरी थी। ब्यूरो द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि इसी दौरान महिलाओं की बेरोजगारी दर 8.7 फीसदी तक पहुंच गई। देश के 68 फीसदी घरों की मासिक आय महज 10 हजार रुपये है। ब्यूरो ने अपनी इस रिपोर्ट के लिए बीते साल अप्रैल से दिसंबर के बीच 1.6 लाख घरों का सर्वेक्षण किया था।
महिलाएं बेरोजगारी की सबसे ज्यादा शिकार
मोदी सरकार में महिलाएं बेरोजगारी की सबसे ज्यादा शिकार हो रही हैं। नए आंकड़ों के अनुसार 2013-14 में महिला बेरोजगारी की दर 7.7 प्रतिशत थी जो 2015-16 में बढ़कर 8.7 प्रतिशत हो गई। इन आंकड़ों के मुताबिक, नौकरी की तलाश करने वालों में लगभग आधी महिलाएं शामिल हैं। इससे यह मिथक भी टूटा है कि महिलाएं नौकरी की बजाय घरेलू कामकाज को ज्यादा तरजीह देती हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट के प्रोफेसर अमिताभ कुंडू ने कहा, “ये चिंता की बात है, खासकर महिलाओं में बढ़ती बेरोजगारी। सरकार को ध्यान देना होगा कि केवल विकास पर ध्यान केंद्रित करने से समस्या हल नहीं होगी।”
2050 तक गायब हो जाएँगी 70 लाख नौकरियां
सर्वे में ये बात भी सामने आई कि देश में स्व-रोजगार करने वालों और वेतनमान पर नौकरी करने वालों की संख्या भी घटी है। सर्वे के अनुसार स्नातक और परास्नातक शिक्षा प्राप्त युवाओं-युवतियों को उनकी शिक्षा और कौशल के अनुरूप नौकरी नहीं मिलना भी बेरोजगारी बढ़ने की एक प्रमुख वजह है। इस बीच, एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में बीते चार वर्षों से रोजाना 550 नौकरियां घट रही हैं। अगर यही स्थिति जारी रही तो वर्ष 2050 तक 70 लाख नौकरियां गायब हो जाएंगी। दिल्ली स्थित सिविल सोसायटी ग्रुप प्रहार की ओर से जारी इस अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों, छोटे वेंडरों, ठेका मजदूरों और निर्माण के काम में लगे मजदूरों पर इसका सबसे प्रतिकूल असर होगा।
श्रम ब्यूरो की एक रिपोर्ट के हवाले इस अध्ययन में कहा गया है कि देश में वर्ष 2015 के दौरान रोजगार के महज 1.35 लाख नए मौके पैदा हुए। इससे साफ है कि सबसे ज्यादा रोजगार पैदा करने वाले यानी खेती और छोटे व मझौले उद्योगों में रोजगार के मौके कम हुए हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1994 में जहां कृषि क्षेत्र में कुल 60 फीसदी लोगों को रोजगार मिलता था वहीं वर्ष 2013 में यह आंकड़ा घट कर 50 फीसदी तक आ गया।
42 फीसदी कामगारों को साल में 12 महीने काम नहीं
रिपोर्ट के मुताबिक प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार में युवाओं को रोजगार योजनाओं का लाभ नहीं हासिल हुआ है। महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना पर नजर डालें तो वित्त वर्ष 2015-16 में 21.9 प्रतिशत परिवारों को काम मिला, जबकि वित्त वर्ष 2013-14 में 24.1 प्रतिशत परिवारों को काम मिला था। लेबर ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में लगभग 42 फीसदी कामगारों को साल में 12 महीने काम नहीं मिलता। नतीजतन खेती के मौसमी रोजगार पर उनकी निर्भरता बढ़ी है। यह केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद अपनी तरह का पहला सर्वेक्षण है। इससे साफ है कि सरकार के तमाम दावों और मेक इन इंडिया के तहत रोजगार के नए अवसर पैदा करने के वादों के बावजूद हालात जस के तस ही हैं।
निर्यात में कमी से आ रही बेरोजगारी
बेरोजगारी बढ़ने के लिए मोदी सरकार की नीतियों की ही जिम्मेदार बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इसके पीछे मुख्य कारण निर्यात क्षेत्र में लगातार आ रही कमी है। निर्यात के क्षेत्र में पिछले अगस्त में ही 0.3 फीसद की गिरावट आई है। जिन प्रमुख वस्तुओं के निर्यात में कमी आयी है, उनमें पेट्रोलियम 14 फीसदी, चमड़ा 7.82 फीसदी, रसायन 5.0 फीसदी और इंजीनियरिंग 29 फीसदी शामिल हैं। इसी तरह से सेवाओं का निर्यात भी इस साल जुलाई में 4.6 फीसदी घटकर 12.78 अरब डॉलर रह गया। इन सबका असर रोजगार पर हो रहा है। उद्योग मंडल एसोचैम और थॉट आर्बिट्रिज की एक संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 की दूसरी तिमाही में निर्यात में हुई गिरावट के कारण करीब 70,000 नौकरियां जा चुकी हैं। सबसे अधिक प्रभाव कपड़ा क्षेत्र पर पड़ा है।
इस सन्दर्भ में अवलोकन करें:--
निर्यात में गिरावट के करीब दो साल होने वाले हैं लेकिन अभी तक इसका कोई ठोस उपाय नहीं निकाला जा सका है। वित्त वर्ष 2015-16 की आर्थिक समीक्षा के अनुसार इस दौरान के पहली तीन तिमाही में निर्यात में करीब 18 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली थी जिसमें निर्माण क्षेत्र की तुलना में सेवा का क्षेत्र अधिक प्रभावित हुआ था । भारतीय श्रम मंत्रालय द्वारा 2015 में किये गये सर्वेक्षण के अनुसार रोजगार में 43,000 नौकरियों की गिरावट देखने को मिली थी। इनमें से 26,000 नौकरियां निर्यात करने वाली कंपनियों से जुड़ी थीं।
बेरोजगार युवाओं की बढ़ती तादाद देश के लिए खतरे की घंटी
रिपोर्ट में कहा गया है कि बेरोजगारों में 10वीं या 12वीं तक पढ़े युवाओं की तादाद 15 फीसदी है। यह तादाद लगभग 2.70 करोड़ है। तकनीकी शिक्षा हासिल करने वाले 16 फीसदी युवा भी बेरोजागारों की कतार में हैं। इससे साफ है कि देश के तकनीकी संस्थानों और उद्योग जगत में और बेहतर तालमेल जरूरी है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि बेरोजगार युवाओं की तेजी से बढ़ती तादाद देश के लिए खतरे की घंटी है और नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार को तुरंत इस मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर द स्टडी आफ रीजनल डेवलपमेंट के अमिताभ कुंडू कहते हैं, “यह खतरे की स्थिति है। इन युवाओं ने ही बीते साल भारी तादद में वोट देकर केंद्र में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने का रास्ता साफ किया था। भारी तादाद में रोजगार देने वाले उद्योग नई नौकरियां पैदा करने में नाकाम रहे हैं। इसी से यह हालत पैदा हुई है।”
बेरोजगारी के दसवें हिस्से के बराबर भी नहीं सृजित हो रहे रोजगार
देश के लेबर ब्यूरो द्वारा जारी सालाना हाउसहोल्ड सर्वे के आंकड़ों के अनुसार देश में बेरोजगारी दर पिछले पांच वर्षों के सबसे ख़राब स्तर पर है। 2015-16 के आंकड़ों की बात करें तो देश में बेरोजगारी दर पांच प्रतिशत पहुंच चुकी है। जबकि भारत में बेरोजगारी दर वित्त वर्ष 2013-14 में 4.9 प्रतिशत, 2012-13 में 4.7 प्रतिशत और 2011-12 में 3.8 प्रतिशत थी। पांचवी सालाना रोजगार-बेरोजगारी सर्वे रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो सालों में गांवों में बेरोजगारी बढ़ी है जबकि शहरी इलाकों में इसमें मामूली सुधार आया है। ग्रामीण इलाकों में 2013-14 के 4.7 प्रतिशत से 2015-16 में बढ़कर 5.1 प्रतिशत हो गई है। जबकि शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर 2013-14 के 5.5 प्रतिशत से घटकर 2015-16 में 4.7 प्रतिशत हो गई है।
इसी तरह वित्त वर्ष 2015-16 की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष 2014-15 की पहली तिमाही में विकास दर 7.9 प्रतिशत थी। रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2015-16 में भारत के कामगार की संख्या में केवल 47.8 प्रतिशत के पास नौकरी थी। जबकि दो साल पहले इनकी संख्या में 49.9 प्रतिशत लोगों के पास नौकरी थी। ब्यूरो द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि इसी दौरान महिलाओं की बेरोजगारी दर 8.7 फीसदी तक पहुंच गई। देश के 68 फीसदी घरों की मासिक आय महज 10 हजार रुपये है। ब्यूरो ने अपनी इस रिपोर्ट के लिए बीते साल अप्रैल से दिसंबर के बीच 1.6 लाख घरों का सर्वेक्षण किया था।
महिलाएं बेरोजगारी की सबसे ज्यादा शिकार
मोदी सरकार में महिलाएं बेरोजगारी की सबसे ज्यादा शिकार हो रही हैं। नए आंकड़ों के अनुसार 2013-14 में महिला बेरोजगारी की दर 7.7 प्रतिशत थी जो 2015-16 में बढ़कर 8.7 प्रतिशत हो गई। इन आंकड़ों के मुताबिक, नौकरी की तलाश करने वालों में लगभग आधी महिलाएं शामिल हैं। इससे यह मिथक भी टूटा है कि महिलाएं नौकरी की बजाय घरेलू कामकाज को ज्यादा तरजीह देती हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट के प्रोफेसर अमिताभ कुंडू ने कहा, “ये चिंता की बात है, खासकर महिलाओं में बढ़ती बेरोजगारी। सरकार को ध्यान देना होगा कि केवल विकास पर ध्यान केंद्रित करने से समस्या हल नहीं होगी।”
2050 तक गायब हो जाएँगी 70 लाख नौकरियां
सर्वे में ये बात भी सामने आई कि देश में स्व-रोजगार करने वालों और वेतनमान पर नौकरी करने वालों की संख्या भी घटी है। सर्वे के अनुसार स्नातक और परास्नातक शिक्षा प्राप्त युवाओं-युवतियों को उनकी शिक्षा और कौशल के अनुरूप नौकरी नहीं मिलना भी बेरोजगारी बढ़ने की एक प्रमुख वजह है। इस बीच, एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में बीते चार वर्षों से रोजाना 550 नौकरियां घट रही हैं। अगर यही स्थिति जारी रही तो वर्ष 2050 तक 70 लाख नौकरियां गायब हो जाएंगी। दिल्ली स्थित सिविल सोसायटी ग्रुप प्रहार की ओर से जारी इस अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों, छोटे वेंडरों, ठेका मजदूरों और निर्माण के काम में लगे मजदूरों पर इसका सबसे प्रतिकूल असर होगा।
श्रम ब्यूरो की एक रिपोर्ट के हवाले इस अध्ययन में कहा गया है कि देश में वर्ष 2015 के दौरान रोजगार के महज 1.35 लाख नए मौके पैदा हुए। इससे साफ है कि सबसे ज्यादा रोजगार पैदा करने वाले यानी खेती और छोटे व मझौले उद्योगों में रोजगार के मौके कम हुए हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1994 में जहां कृषि क्षेत्र में कुल 60 फीसदी लोगों को रोजगार मिलता था वहीं वर्ष 2013 में यह आंकड़ा घट कर 50 फीसदी तक आ गया।
42 फीसदी कामगारों को साल में 12 महीने काम नहीं
रिपोर्ट के मुताबिक प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार में युवाओं को रोजगार योजनाओं का लाभ नहीं हासिल हुआ है। महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना पर नजर डालें तो वित्त वर्ष 2015-16 में 21.9 प्रतिशत परिवारों को काम मिला, जबकि वित्त वर्ष 2013-14 में 24.1 प्रतिशत परिवारों को काम मिला था। लेबर ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में लगभग 42 फीसदी कामगारों को साल में 12 महीने काम नहीं मिलता। नतीजतन खेती के मौसमी रोजगार पर उनकी निर्भरता बढ़ी है। यह केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद अपनी तरह का पहला सर्वेक्षण है। इससे साफ है कि सरकार के तमाम दावों और मेक इन इंडिया के तहत रोजगार के नए अवसर पैदा करने के वादों के बावजूद हालात जस के तस ही हैं।
निर्यात में कमी से आ रही बेरोजगारी
बेरोजगारी बढ़ने के लिए मोदी सरकार की नीतियों की ही जिम्मेदार बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इसके पीछे मुख्य कारण निर्यात क्षेत्र में लगातार आ रही कमी है। निर्यात के क्षेत्र में पिछले अगस्त में ही 0.3 फीसद की गिरावट आई है। जिन प्रमुख वस्तुओं के निर्यात में कमी आयी है, उनमें पेट्रोलियम 14 फीसदी, चमड़ा 7.82 फीसदी, रसायन 5.0 फीसदी और इंजीनियरिंग 29 फीसदी शामिल हैं। इसी तरह से सेवाओं का निर्यात भी इस साल जुलाई में 4.6 फीसदी घटकर 12.78 अरब डॉलर रह गया। इन सबका असर रोजगार पर हो रहा है। उद्योग मंडल एसोचैम और थॉट आर्बिट्रिज की एक संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 की दूसरी तिमाही में निर्यात में हुई गिरावट के कारण करीब 70,000 नौकरियां जा चुकी हैं। सबसे अधिक प्रभाव कपड़ा क्षेत्र पर पड़ा है।
इस सन्दर्भ में अवलोकन करें:--
बेरोजगार युवाओं की बढ़ती तादाद देश के लिए खतरे की घंटी
रिपोर्ट में कहा गया है कि बेरोजगारों में 10वीं या 12वीं तक पढ़े युवाओं की तादाद 15 फीसदी है। यह तादाद लगभग 2.70 करोड़ है। तकनीकी शिक्षा हासिल करने वाले 16 फीसदी युवा भी बेरोजागारों की कतार में हैं। इससे साफ है कि देश के तकनीकी संस्थानों और उद्योग जगत में और बेहतर तालमेल जरूरी है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि बेरोजगार युवाओं की तेजी से बढ़ती तादाद देश के लिए खतरे की घंटी है और नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार को तुरंत इस मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर द स्टडी आफ रीजनल डेवलपमेंट के अमिताभ कुंडू कहते हैं, “यह खतरे की स्थिति है। इन युवाओं ने ही बीते साल भारी तादद में वोट देकर केंद्र में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने का रास्ता साफ किया था। भारी तादाद में रोजगार देने वाले उद्योग नई नौकरियां पैदा करने में नाकाम रहे हैं। इसी से यह हालत पैदा हुई है।”
बेरोजगारी के दसवें हिस्से के बराबर भी नहीं सृजित हो रहे रोजगार
अगर हम आठ श्रमिक आधारित उद्योगों में किए गए श्रमिक ब्यूरो के सर्वेक्षण को सही माने तो 2011 में जहाँ नौ लाख रोजगार थे, उसमें 2013 में 19 लाख और 2015 में मात्र 1.35 लाख रोजगार रह गये हैं। जबकि आंकड़े दिखाते हैं कि हर महीने लगभग दस लाख नए लोग रोजगार की तलाश में जुड़ जाते हैं। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी रोजगार के अवसर बढ़ाने की आवश्यकता को लेकर कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को अगले दस वर्षों में लगभग5 करोड़ रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे। 2011 की जनगणना से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में7 प्रतिशत की प्रतिवर्ष की औसत बढ़ोत्तरी हुई, रोजगार की वृद्धि दर केवल 1.8 प्रतिशत ही रही।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि मौजूदा स्थिति को सुधारने के लिए केंद्र सरकार को मूल तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए। कृषि, असंगठित खुदरा कारोबार व छोटे और लघु उद्योग जैसे क्षेत्रों की सुरक्षा की दिशा में ठोस पहल करनी होगी। देश में आजीविका के मौजूदा साधनों में से 99 फीसदी इन क्षेत्रों से ही आता है। विशेषज्ञों का कहना है कि 21वीं सदी में देश को स्मार्ट गांव चाहिए, स्मार्ट शहर नहीं। प्राथमिकता के आधार पर ध्यान नहीं देने की स्थिति में आने वाले वर्षों में बेरोजगारी की यह समस्या और भयावह हो सकती है।
(साभार: उत्तर हमारा)
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